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Tuesday, December 16, 2014

लोकतंत्र की खुली खिड़की और साइबर आतंकवाद

हाल में ट्विटर ने पाकिस्तानी संगठन लश्करे तैयबा के अमीर हाफिज सईद का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड किया। इसके कुछ समय बाद ही हाफिज सईद के तीन नए अकाउंट तैयार हो गए। इनके मार्फत भारत विरोधी प्रचार फिर से शुरू हो गया साथ ही ट्विटर के संचालकों के नाम भी लानतें बेजी जाने लगीं। आईएस के एक ट्वीट हैंडलर की बेंगलुरु में गिरफ्तारी के बाद जो बातें सामने आ रहीं हैं उनसे लगता है कि सायबर आतंकवाद का खतरा उससे कहीं ज्यादा बड़ा है, जितना सोचा जा रहा था। ब्रिटेन के जीसीएचक्यू (गवर्नमेंट कम्युनिकेशंस हैडक्वार्टर्स) प्रमुख रॉबर्ट हैनिगैन के अनुसार फेसबुक और ट्विटर आतंकवादियों और अपराधियों के कमांड एंड कंट्रोल नेटवर्क बन गए हैं। फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में उन्होंने बताया कि आईएस (इस्लामिक स्टेट) ने वैब का पूरा इस्तेमाल करते हुए सारी दुनिया से भावी जेहादियों को प्रेरित-प्रभावित करना शुरू कर दिया है।


नौजवानों को भड़काने और पश्चिमी देशों के खिलाफ युद्ध के लिए तैयार करने के लिए आतंकी संगठन पश्चिमी के ही उपकरणों और तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हैनिगैन का कहना है कि अमेरिका की टेक्नोलॉजी कम्पनियों और सरकार के बीच इस मामले में समन्वय नहीं हो पा रहा है, जिसके कारण स्थिति बिगड़ रही है। अमेरिकी ह्विसिल ब्लोवर एडवर्ड स्नोडेन के प्रसंग के बाद से वहाँ की सरकार तकनीक के इस्तेमाल को नियंत्रित करना चाहती है, पर उसमें तमाम पेच हैं। दूसरी और साइबर आतंकी अब अपनी पहचान छिपाने में भी कामयाब हो रहे हैं। वे ऐसे एनक्रिप्शन टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं जो पहले केवल सरकारी एजेंसियों को ही उपलब्ध थे। हाल में उत्तरी इराक के मोसुल शहर पर हमला करते हुए आईएस ने एक दिन में तकरीबन 40,000 ट्वीट किए। आईएस के ट्वीट स्पैम कंट्रोल अवरोधों को पार कर जाते हैं। वे एबोला और वर्ल्ड कप जैसे लोकप्रिय हैशटैग का इस्तेमाल करके खुफिया भाषा में अपने संदेश थ्रू कर देते हैं।

आईएस के कार्यकर्ता फेसबुक, यूट्यूब, ह्वाट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम, टम्बलर, इंटरनेट मीम और सोशल मीडिया के दूसरे प्लेटफॉर्मों का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं। ट्विटर ने हाल में आतंकी गतिविधियों के संदेह में तकरीबन 1,000 अकाउंट बंद किए हैं, पर इस बीच कितने नए अकाउंट शुरू हो गए होंगे कौन जाने? वे हर रोज तमाम वीडियो, फोटो और प्रचार संदेश अपलोड कर रहे हैं। इन्हें सामान्य नागरिक तो देख-सुन रहे हैं, मुख्यधारा का मीडिया भी उन्हें उठा रहा है। जो काम वे युद्ध के मैदान में नहीं कर पा रहे हैं वह सोशल मीडिया के मैदान में आसानी से हो जा रहा है। सोशल मीडिया मॉनिटर रिकॉर्डेड फ्यूचर ने तकरीबन सात लाख ऐसे अकाउंटों की सूची बनाई है जो इस आतंकी गिरोह के मसलों पर चर्चा करते हैं।

मेहदी विश्वास इस नेटवर्क का एक टूल है। यह नेटवर्क काफी बड़ा है। चिंता की बात यह है कि मेहदी जैसे लोग आराम से हमारे जैसे देशों में सक्रिय हैं। अब हमें तेजी से सोचना चाहिए। मेहदी तक हम अपनी खुफिया पड़ताल के आधार पर नहीं पहुँचे। उसके बारे में पता तब लगा जब एक ब्रिटिश चैनल ने खबर दी। आईएस इस साल की अवधारणा है। इसके पहले अल कायदा तकरीबन दो दशक से इंटरनेट पर है। मई 2011 से तालिबान भी ट्विटर पर है और उसके हजारों फॉलोवर हैं। तालिबान लगभग नियमित रूप से ट्विटर पर सक्रिय रहता है। चेकोस्लोवाकिया की सेना की खुफिया शाखा का कहना है कि अल कायदा यूरोप में सोशल मीडिया के मार्फत अपनी विचारधारा का प्रसार कर रहा है। अल कायदा और आईएस की पद्धतियों में भी अंतर है। अल कायदा जहाँ अपनी प्रचार सामग्री के वितरण और कार्यकर्ताओं से सम्पर्क के लिए सोशल मीडिया का छिपकर इस्तेमाल करता है। आईएस  डायरेक्ट अपना प्रचार करते हुए पश्चिम एशिया में विदेशी लड़ाकों की भर्ती एवं नौजवानों को उत्तेजित करने, भड़काने और अपनी फौज में भरती करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहा है। उनमें गला रेते जाते हुए वीडियोआतंकवादी प्रशिक्षण आदि जैसी चीजें होती हैं।

आईएस के उग्र नजरिए के कारण दुनिया भर की सरकारें सक्रिय हुईं हैं और इस्लामी संगठन भी उसके खिलाफ खड़े हो रहे हैं। हाल में ब्रिटेन के जाने-माने दस इमामों ने ऑनलाइन इस्लामिक चरमपंथी प्रचार का मुकाबला करने के लिए आपस में हाथ मिलाया है। इन इमामों ने वैब को आतंकवादियों का पनाहगाह बनने देने के लिए इंटरनेट कंपनियों की निंदा की है। कहना मुश्किल है कि खुफिया एजेंसियाँ इस नेटवर्क तक पहुँच पाईं है या नहीं, पर इतना स्पष्ट है कि हाल में मुम्बई के नौजवान अरीब मजीद से पूछताछ के बाद कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिली हैं। ट्विटर पर अरीब उसे फॉलो करता था और गिरफ्तारी के बाद उसने यह जानकारी एनआईए को दी थी।

इस ताने-बाने का भेद खुलने के साथ यह बात सामने आ रही है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की खुली खिड़की तमाम गैर-लोकतांत्रिक ताकतों को भीतर प्रवेश करने का मौका देती हैं। लोकतांत्रिक संस्थाओं का खुलापन इन्हें रास आता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था को परास्त करने में आतंकवादी विफल हुए हैं बुनियादी रूप से वे लोकतंत्र के खिलाफ हैं, पर अपनी तरफ ध्यान खींचने में वे कामयाब हुए हैं। लोकतंत्र लोगों को अपनी शिकायतें ज़ाहिर करने का पूरा मौका देता है, जिसका लाभ ये संगठन लोगों को भड़काने में लेते हैं। आतंकवाद प्रचार की प्राणवायु पर जीवित है। यह प्रचार उन्हें मुफ्त में मिल जाता है। इस काम में लोकतांत्रिक संस्थाओं की मदद लेने में उन्हें संकोच नहीं है। यह मदद मीडिया से मिलती है। सन 2008 मुम्बई हमले के दौरान पाकिस्तानी हमलावरों ने सोशल मीडिया के साथ-साथ भारतीय मीडिया में हो रही कवरेज का फायदा भी उठाया था। इसलिए मीडिया को भी इस मामले में विचार करना चाहिए। 16 नवम्बर को अमेरिकी सामाजिक कार्यकर्ता पीटर कैसिग की गर्दन काटे जाने वाले वीडियो के प्रचारित होने के बाद उनके परिवार वालों ने मीडिया से अनुरोध किया था कि वीडियो का प्रचार न करें। इसका प्रचार होने से आतंकियों का उद्देश्य पूरा होता है। दिक्कत यह है कि मीडिया जल्दबाजी में अपने कार्यों का आकलन नहीं कर पाता। अक्सर वह आतंकियों के प्रचारात्मक वीडियो भी दिखाता रहता है। 


यह जटिल काम है। अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही हो सकता है। इस कोशिश का मतलब लोकतांत्रिक प्रवृत्तियों पर रोक लगाना भी नहीं है। अमेरिकी ह्विसिल ब्लोवर एडवर्ड स्नोडेन के प्रसंग ने इस बात को भी रेखांकित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के अपने संबोधन में इस सवाल को उठाया था और कांप्रिहैंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म को स्वीकार करने की अपील की थी। इसके बाद नवम्बर में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की संसद में इंटरनेट की मदद से प्रवेश करते आतंकवाद को रोकने की अपील की थी। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी इसी मसले को उठाया। 2008 के मुंबई हमले में इंटरनेट टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग का उल्लेख करते हुए भारत ने इंटरनेट के प्रबंधन में बदलाव की बात की। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारतीय राजदूत अशोक कुमार मुखर्जी ने मुंबई हमले को याद करते हुए कहा, 'ह पहला मौका था जब हमने आतंकी गतिविधियों को निर्देश देने वाले वॉइस ओवर प्रोटोकॉल का सामना किया।' भारत ने आतंकवाद को रोकने के लिए इंटरनेट के प्रबंधन में बदलाव का आह्वान भी किया। सुरक्षा परिषद में यह चर्चा इस जानकारी के बाद हुई थी कि यूरोप सहित 80 देशों के 15,000 विदेशी लड़ाके सीरिया, इराक और अन्य पड़ोसी देशों में आतंकवादी संगठन से जुड़ गए हैं। दुनिया के सामने यह निर्णायक घड़ी है। एक और तकनीकी और लोकतांत्रिक खुलेपन की जरूरतें बढ़ रही हैं और दूसरी ओर मध्य युगीन प्रवृत्तियाँ सिर उठा रहीं हैं। सामूहिक पहल और जन-शिक्षण ही इसका एकमात्र हल है। साथ ही वैश्विक स्तर पर तकनीकी और कानूनी समन्वय भी चाहिए।


फाइनेंशियल टाइम्स में रॉबर्ट हैनिगैन का लेख

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-12-2014) को तालिबान चच्चा करे, क्योंकि उन्हें हलाल ; चर्चा मंच 1829 पर भी होगी।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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