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Thursday, October 23, 2014

बदलते अंधेरे और बदलते चिराग़

इस साल लालकिले के प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, मेड इन इंडिया के साथ-साथ दुनिया से कहें मेक इन इंडिया. भारत की यात्रा पर आए चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा, चीन दुनिया का कारखाना है और भारत दुनिया का दफ्तर. उधर सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी पर अपने संदेश में कहा, हम अपने देवी और देवताओं की मूर्तियां व अन्य उत्पाद भी चीन से खरीद रहे हैं, जिस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. जाने-अनजाने दीपावली की रात आप अपने घर में एलईडी के जिन नन्हें बल्बों से रोशनी करने वाले हैं उनमें से ज्यादातर चीन में बने हैं. वैश्वीकरण की बेला में क्या हम इन बातों के निहितार्थ और अंतर्विरोधों को समझ रहे हैं?


वैश्विक व्यापार के अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत हम अपने यहाँ विदेशी माल को आने से तभी रोक पाएंगे जब वह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो या स्थानीय उद्योगों के लिए खतरा हो. रोशनी की झालरें तैयार करने का काम चीन लंबे अरसे से कर रहा है. हमने क्यों नहीं किया? सिवाकासी की आतिशबाजी बनाने वाली कंपनियाँ अपने रैपरों पर चीनी बच्चों की तस्वीरें लगा रहीं हैं, जिससे लगे कि यह चीन में बनी है. हाल में एक न्यूज़ चैनल नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास दीये बनाने वाले कुम्हारों और उनकी दिक्कतों पर आधारित खबर दिखा रहा था. काम करने वाले की पत्नी का कहना था कि ये कोई और काम जानते भी नहीं हैं. अब कर भी क्या सकते हैं? दीयों की माँग घट रही है. क्या हम इस बात का इंतज़ार कर रहे हैं कि चीन का कोई उद्यमी भारतीय बाज़ार पर रिसर्च करके मिट्टी के बर्तनों और दीयों का विकल्प तैयार करके लाए. इसके लिए जिम्मेदार कौन है? चीन, हमारे कुम्हार, हमारे उद्यमी या भारत सरकार?  

दीपक बनाने वाले दिल्ली के कुम्हार के हाथ की खाल मिट्टी का काम करते-करते गल गई थी. चैनल महारथियों को इन विषयों पर फिल्म बनाने की समझ नहीं है. ऐसे मसलों पर बेहतरीन फिल्में बन सकतीं हैं और बननी चाहिए. क्या हम दस्तकारों को वक्त के साथ खुद को ढालना नहीं सिखा पा रहे हैं? या ऐसे हालात तैयार नहीं कर पा रहे हैं कि उनके हितों की रक्षा हो. हाल में नरेंद्र मोदी ने हुनर सिखाने का अभियान चलाया है. स्किल डेवलपमेंट. मिट्टी का काम करने वाले को अपने काम के तरीके में थोड़ा बदलाव करके और उसकी तकनीक को सुधारकर उसकी बनाई चीजों को बेहतर बाजार तक लाने की जरूरत है. हमें विलाप नहीं, विकल्प चाहिए. मोहन भागवत की अपील के पीछे भावनाएं हैं. भावुक होकर कुछ नहीं होगा, विकल्प दीजिए. ग्राहक को अच्छी रोशनी की लड़ी मिलेगी तो वह भारतीय और चीनी का फर्क नहीं करेगा.

फेसबुक पर किसी ने लिखा, चीन की सरकार चीन की कंपनियों को सस्ती जगह, सस्ती बिजली, पानी, 1 फीसदी ब्याज पर कर्ज उपलब्ध करवाती है! और अगर उनकी कंपनी सरकार को बोल दे कि उसे माल एक्सपोर्ट करना है तो सरकार उनको 50 फीसदी तक एक्सपोर्ट सब्सिडी देती है! तो भाई उनका माल तो अपने आप ही हमारे देश मे सस्ता बिकेगा! और हमारे देश की सरकार अपने ही देश के व्यापारियों को सुविधाएं उपलब्ध करवाना दूर की बात उल्टा उनका खून चूसने में लगी हैं! कभी एक विभाग का अफसर तंग करने आ जाता है कभी दूसरा! सारे टैक्सेशन कानून अंग्रेजों द्वारा भारतीय कंपनियों को बर्बाद करने के लिए बनाए गए थे ताकि ईस्ट इंडिया कंपनी का माल बिके! आज भी ऐसा ही चल रहा है!

हिंदी फिल्मों में व्यापारी को शोषक के रूप में दिखाया जाता रहा है. जबकि कारीगरों को नवोन्मेष का मौका बाज़ार देता है. हमने बाज़ार को तमाम समस्याओं की जड़ मान लिया. जबकि बाजार में ही नहीं हर घर, मुहल्ले, स्कूल-कॉलेज और दफ्तर में नवोन्मेष यानी नया करने की ललक चाहिए. दीपावली समृद्धि का पर्व है, जिसका रिश्ता सरकारी नीतियों और विचारों से है. दीपावली के ठीक पहले नरेंद्र मोदी की सरकार ने महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव जीतने के बाद कोल सेक्टर और पेट्रोलियम को लेकर दो बड़े फैसले किए हैं. उद्यमियों को ब्याज की दरों के कम होने का इंतज़ार है. मुद्रास्फीति के नवीनतम आँकड़े गिरावट का संकेत दे रहे हैं. फिर भी अभी ब्याज की दरें गिरेंगी नहीं, क्योंकि रिज़र्व बैंक को भरोसा नहीं है कि वे अपेक्षित सीमा तक गिरेंगी. भारी ब्याज दरों की वजह से पूँजी हासिल करना महंगा पड़ता है. पर औद्योगिक उत्पादन, भवन निर्माण और उपभोक्ता सामग्री में तेजी लाने के लिए ब्याज दरों का भी नीचे आना जरूरी है. ये सेक्टर रोज़गार बढ़ाते हैं.  

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की छमाही रपट में अगले साल भारत की संवृद्धि दर 6.4 फीसदी होने की सम्भावना व्यक्त की गई है. पिछले साल भारत की विकास दर पांच फीसद से भी नीचे चली गई थी. कह सकते हैं कि अर्थ-व्यवस्था पटरी पर वापस आ रही है. पिछले शनिवार को सरकार ने पेट्रोलियम क्षेत्र से जुड़े कुछ बड़े फैसले किए थे. और अब कोयला क्षेत्र में सरकार ने काफी बड़ा कदम उठाया है. कोल ब्लॉक आवंटन को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जो असमंजस पैदा हुआ था उसे दूर करते हुए सरकार ने कोयला ब्लॉकों की नीलामी का रास्ता साफ कर दिया है और नीलामी की पारदर्शी व्यवस्था की घोषणा की है. पिछले साल भारत ने साढ़े 17 करोड़ टन कोयले का आयात किया जिसकी कीमत लगभग 20 अरब डॉलर थी. विडंबना है कि भारत के पास दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा कोयला भंडार है, जो लगभग 301 अरब टन है. तब खराबी कहाँ है? शायद सरकारी नीतियों में.


जिस प्रकार पेट्रोल की कीमतों को बाजार से जोड़ दिया गया था उसी प्रकार अब डीजल भी बाजार के हवाले कर दिया गया है. पेट्रोलियम सब्सिडी खत्म होने का सीधा प्रभाव मुद्रास्फीति पर भी पड़ेगा. आयात व्यय कम होने से विदेशी मुद्रा का दबाव कम होगा. रुपए की कीमत बढ़ेगी. संयोग से डीजल के दाम नियंत्रण मुक्त करने का यह सुनहरा मौका था. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम चार साल के सबसे निचले स्तर पर हैं. पर कभी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में दाम बढ़े तो हमें ज्यादा कीमत देने के लिए तैयार रहना होगा. खुशहालियाँ मुफ्त में नहीं मिलतीं. सरकार अब बीमा संशोधन, जीएसटी और इंफ्रास्ट्रक्चर की रुकी परियोजनाओं को चालू कराने तथा ग्रामीण रोजगार योजना की शक्ल बदलने का काम कर रही है. उद्यमियों ने राष्ट्रीय बैंकों की काफी बड़ी रकम को दबा रखा है. उसे वापस लाने और विदेशी बैंकों में जमा काले धन का विवरण हासिल करने की जिम्मेदारी भी सरकार पर है. बहरहाल गाढ़े अंधेरे में छोटे चिराग़ भी मशाल जैसे लगते हैं. रोशनी तो हमें हर रात चाहिए, सिर्फ आज की रात ही नहीं.   

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