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Tuesday, July 29, 2014

बाली पैकेज पर भारत की गुगली

अपने खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से पंगा लेकर क्या मोदी सरकार कोई बड़ी गलती करने जा रही है? क्या वह वैश्विक बिरादरी में अलग-थलग पड़ने को तैयार है? या यह देश की आंतरिक राजनीति के कारण है? सरकार क्या यह साबित करना चाहती है कि हम यूपीए सरकार की गलती को दुरुस्त कर रहे हैं? पिछले साल संसद में खाद्य सुरक्षा कानून को पास कराकर उसका सारा श्रेय कांग्रेस ने लिया था. अब कुछ श्रेय भाजपा भी लेना चाहेगी. उस कानून को पास कराने में भाजपा ने संसद में सरकार का साथ दिया था. पर पिछले साल दिसम्बर में जब वाणिज्य मंत्री आनन्द शर्मा बाली में व्यापार सुगमता करार (टीएफए) को स्वीकार करके आए थे, तब अरुण जेटली ने आलोचना करते हुए कहा था कि भारत सरकार विकसित देशों के दबाव में आ गई है. तब आनन्द शर्मा का कहना था कि हमने चार साल तक के लिए मोहलत ले ली है और इस बीच इस मसले का कोई स्थायी समाधान खोज लिया जाएगा.

व्यापार सुगमता करार (टीएफए) का मतलब है देशों के बीच व्यापार अवरोधों को कम करना. इनमें लालफीताशाही को कम करने के साथ-साथ नियमों को आसान बनाने तथा बंदरगाहों और परिवहन के अन्य केंद्रों को चुस्त-दुरुस्त, गतिशील बनाना शामिल है, ताकि आवागमन में तेजी आए. टीएफए को 31 जुलाई तक अनुमोदित होना है. डब्ल्यूटीओ के फैसले सर्वानुमति से होते हैं. भारत और ग्रुप-33 के देश यदि इसके अनुमोदन में शामिल नहीं होंगे तो विश्व व्यापार-वार्ता के दोहा चक्र में फिर से अवरोध पैदा हो जाएगा. भारत सरकार के रुख के पीछे भावना यह है कि प्रक्रिया और व्यवस्थाओं को दुरुस्त भी कर लेंगे, पर पहले हमें अपनी गरीब जनता को भी देखने है. यह सही है कि डब्ल्यूटीओ ने सकल अनाज उत्पादन पर ज्यादा से ज्यादा 10 फीसदी जो सब्सिडी की सीमा तय की है वह अनुचित है. यह सीमा भी 1986 की कीमत पर है. उसमें बदलाव होना चाहिए. इसके साथ ही भारत सरकार पर जिम्मेदारी आयद होती है कि वह कृषि उत्पादन, खरीद, वितरण और सब्सिडी की व्यवस्था में सुधार भी करे.

लगता है कि मोदी सरकार जान-बूझकर जोखिम मोल लेना चाहती है, ताकि दबाव बने. उसका उद्देश्य इस बात पर जोर देना है कि इस मसले का स्थायी समाधान निकाला जाए. ऐसा न हो कि 2017 के बाद उसे अंतरराष्ट्रीय विवादों में फँसना पड़े. लगता है सरकार को दिसम्बर तक किसी स्थायी समाधान की आशा है. इस बीच अपनी तरफ से दबाव बनाकर वह विकसित देशों से पक्का आश्वासन ले लेना चाहती है. सरकार ने टीएफए लागू करने की व्यवस्थाएं कर ली हैं. इस बार के बजट में बंदरगाहों में आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने और आयात में सिंगल विंडो क्लियरेंस के इंतज़ाम किए गए हैं. क्या भारत को कहीं से भरोसा दिलाए जाने का संकेत मिला है? मिला भी हो तब भी भैंस पानी में जा चुकी है. मोटे तौर पर अमेरिका, ब्राज़ील, चीन, दक्षिण अफ्रीका और विकासशील जी-33 से (जिसमें अब 46 देश हैं) भरोसा दिला चुके हैं, पर दूसरी ओर 160 में से ज्यादातर देश जिनमें ब्रिक्स, जी-20, जी-33 और अफ्रीकी समूह शामिल हैं, बाली सहमति पर अपनी रजामंदी दे दी है. इस लिहाज से भारत अकेला पड़ता नज़र आ रहा है.

टीएफए को जुलाई 2015 में लागू होना है. उसका रुकना वैश्विक व्यापार के खुलने के रास्ते में बड़ा अड़ंगा साबित होगा. पिछले 12 साल से संगठन इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समझौता करने की कोशिश कर रहा है. ऐसे वक्त में जब वैश्विक अर्थ-व्यवस्था मंदी के चक्र से बाहर आ रही है, व्यापार मार्गों को खोलना आर्थिक संवृद्धि के लिए जरूरी होगा. ऐसा माना जा रहा है कि खाद्य बाज़ार खुलने से वैश्विक जीडीपी में तकरीबन 10 खरब (एक ट्रिलियन) डॉलर की संवृद्धि होगी और तकरीबन दो करोड़ दस लाख नए रोज़गार पैदा होंगे. इसका लाभ भारत को भी मिलेगा. बेशक विकसित देश अपने अनाज भंडार के लिए विकसित देशों का बाज़ार खोलना चाहते हैं. भारत इनमें सबसे बड़ा बाज़ार है, पर साथ ही हम अपने खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम की अनदेखी नहीं कर सकते.

वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री निर्मला सीतारामन ने सिडनी में जी-20 की बैठक के दौरान डब्ल्यूटीओ के महानिदेशक रॉबर्टो ऐज्वेडो, यूएसटीआर माइकल फॉरमैन और अन्य से मुलाकात की. सभी ने उन्हें भरोसा दिलाया कि टीएफए पर काम पूरा होने के बाद खाद्य सुरक्षा पर जल्द से जल्द चर्चा की जाएगी. पर अब भारत ने मुद्दे के स्थायी समाधान के लिए अपना रोडमैप दिया है. भारत ने जिनीवा में हुई सामान्य परिषद की बैठक में कहा कि लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालना ठीक नहीं है. देखना यह है कि क्या टीएफए के क्रियान्वयन की क्या कोई और समय सीमा तय की जाएगी. डब्ल्यूटीओ में भारतीय राजदूत अंजली प्रसाद ने कहा, मेरे प्रतिनिधिमंडल का विचार है कि टीएफए को खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर स्थायी समाधान तक टाला जाना चाहिए.

भारत ने खाद्य सुरक्षा के लिए भंडारण सीमा तय करने के मुद्दे पर एक विशेष सत्र बुलाने और 31 दिसंबर 2014 तक खाद्य सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के समाधान के लिए संस्थागत व्यवस्था बनाने की जरूरत पर ज़ोर दिया है. इस रुख पर अमेरिका की प्रारंभिक प्रतिक्रिया हड़बड़ी से भरी है. उसने भारत का सीधे नाम नहीं लिया है लेकिन कहा है कि इस रुख से व्यापार सुधार के प्रयास को झटका लगेगा. ऑस्ट्रेलिया की अगुवाई वाले 25 देशों के समूह ने चेताया है कि इससे हटने का फैसला किसी के हित में नहीं होगा. इससे भविष्य की योजनाओं पर निर्णय करने की डब्ल्यूटीओ की क्षमता पर गंभीर सवाल खड़ा होगा. यूरोपियन यूनियन की प्रतिक्रिया भी लगभग इसी प्रकार की है. पिछले साल बाली में हुए सम्मेलन में तत्कालीन वाणिज्य मंत्री आनन्द शर्मा ने आश्वासन दिया था कि भारत बाली समझौते पर कोई रोक नहीं लगाएगा. पर अब वस्तुतः उसने रोक लगा दी है.

विश्व व्यापार के दोहा विकास एजेंडा (डीडीए) और सिंगल अंडरटेकिंग के सिद्धांत को लेकर भी विकासशील देशों में मतभेद हैं। सिंगल अंडरटेकिंग का आशय है कि कोई समझौता तभी अंतिम माना जाए जब उसे जुड़े सभी मामलों में समझौते हो जाएं. पिछले साल बाली पैकेज की घोषणा के वक्त यह आशंका व्यक्त की गई थी कि विकसित देश अपने मसलों पर फैसला जल्द कराते हैं और विकासशील देशों से जुड़े मसले लटके रह जाते हैं. केवल खाद्य सुरक्षा का सवाल ही नहीं है, विकासशील देशों को अपने बंदरगाहों में जिन व्यवस्थाओं का निर्माण करना है उनपर भारी खर्च आएगा. इनका भार उठाने की जिम्मेदारी भी अमीर देशों को लेनी चाहिए. इसके अलावा सीमा शुल्क प्रणाली, उसके लिए कर्मचारियों की नियुक्ति और उनके प्रशिक्षण का काम भी खर्चीला है.


खाद्य सामग्री का बाज़ार खुलने से परम्परागत व्यवसायों पर विपरीत प्रभाव भी पड़ेगा, साथ ही बहुत से लोगों के रोजगार मारे जाएंगे. ऐसे सवालों पर भी विचार किया जाना चाहिए. इसी तरह भारत सरकार अनाज का जो भंडार तैयार करती है उसे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में सस्ता बेचने नहीं जाती, बल्कि अपने गरीबों को सस्ते में उपलब्ध कराती है. यह बात किसी व्यापार-मर्यादा के खिलाफ नहीं है. इसके विपरीत अमेरिका सरकार अपने किसानों को भारी सब्सिडी देती है, जो अपना अनाज गरीब देशों में बेचना चाहते हैं. यह अमेरिकी पाखंड है, उसे भी सामने लाने में कोई हर्ज नहीं.

प्रभात खबर में प्रकाशित

3 comments:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
    साया बापू का उठा, *रूप-चन्द ग़मगीन :चर्चा मंच 1690

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  2. बढ़िया जानकारी .

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  3. व्यापार सुगमता करार के बारे में जानकारी देने का आभार।

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