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Monday, December 24, 2012

मध्य वर्ग के युवा को क्या नाराज़ होने का हक नहीं है?

हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून
दिल्ली में बलात्कार के खिलाफ युवा-आक्रोश को लेकर एक अलग तरह की बहस चल निकली है। कुछ लोगों को इसमें  क्रांति की चिंगारियाँ नज़र आती हैं, वहीं कुछ लोग इसे मध्य वर्ग का आंदोलन मानकर पूरी तरह खारिज करना चाहते हैं। इन लोगों के पास जल, जंगल, जमीन और शर्मीला इरोम की एक शब्दावली है। वे इसके आगे बात नहीं करते। मध्य वर्ग कहीं बाहर से नहीं आ गया है। और जल, जंगल, जमीन पार्टी जिन लोगों के लिए लड़ रही है उन्हें भी तो इसी मध्य वर्ग में शामिल कराने की बात है। जो मध्य वर्ग दिल्ली की सड़कों पर खड़ा है, उसमें से आधे से ज्यादा की जड़ें जल,जंगल,जमीन में हैं। यह वर्ग अगर नाराज़ है तो उसके साथ न भी आएं, पर उसका मज़ाक तो न उड़ाएं। 

अरुंधती रॉय ने बलात्कार की शिकार लड़की को अमीर मध्य वर्ग की लड़की बताया है। वे किस आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँची कहना मुश्किल है, पर यदि वे दिल्ली की सड़कों पर काम के लिए खाक छानते बच्चों को अमीर मध्य वर्ग मानती हैं तो उनकी समझ पर आश्चर्य होता है।

इस आंदोलन में बाबा रामदेव, केजरीवाल और जन वीके सिंह के शामिल होने पर कुछ लोगों ने ऐतराज जताया है। ऐतराज का कारण राजनीतिक है, पर एक तत्व ऐसा भी है जो हिंसा भड़काने का काम कर रहा है? कौन लोग हैं ऐसे? कुछ वामपंथियों ने संघ और साम्प्रदायिक तत्वों की ओर इशारा किया है, पर काफिला में आदित्य निगम ने कांग्रेसी युवा संगठनों की ओर संकेत किया है। उनकी रपट के अंश पढ़ें:-

So, who were these people who suddenly materialized and took over the protest area in exactly the way that the police wanted them to? Who were these people who gave the police the much needed alibi alongside their display of sexist machismo? It is highly unlikely that they were ‘protestors’. There is only one word for such elements who surface repeatedly in the history of mass movements: agent provocateurs. Some people seem to have identified them as NSUI elements. Perhaps there were some others too like ABVP, but it seems most likely that they were the stormtroopers of the Congress party.
When we got back home, most reports on television too uderlined the fact that there had been a violent police attack on utterly peaceful protestors. Of all the footage that I could see, I did not see a single one where the ‘lumpens’ were being beaten and attacked. They had done their work and conveniently moved to a safe distance from where they continued to pelt stones but the police made no attempt to get them. Apart from the pro-Congress NDTV and the somewhat chastized CNN-IBN, most of the others clearly showed that the police violence was entirely one-sided.
One more thing needs to be stated clearly, especially for the benefit of those misled by the die-hard left-wing and other assorted cynics. Yes there were slogans about ‘death penalty’ and ‘castration’ but there were as many slogans that asserted different viewpoints – ‘Take Back the Night’, ‘Don’t teach your daughter not to go out; Teach  your son to behave properly’; ‘Mere skirt se oonchi meri awaz hai’.  And not all those who raise demands for ‘death penalty’ are incorrigible rightists – these are just young people spontaneously expressing their anger. So, for instance, when one of us got into a conversation with a group of students who were raising this slogan and explained why feminists have a problem with such a demand, they listened attentively. Not only did they listen; they were actually open to seeing the other point of view. [In any case, we might do well to remember that the question of capital punishment is not a settled issue among 'Leftists' either - many of whom pass off summary executions in China in complete silence!].


बीबीसी वैबसाइट ने अरुंधती रॉय को इस रूप में उधृत किया हैः-

Indian novelist Arundhati Roy said rape is seen as a "matter of feudal entitlement" in many parts of the country, and the reason this case had come to light is because the woman victim belongs to the affluent middle class.
She said attitudes towards women need to change in India, because a change in the law only will protect middle class women, but "the violence against other women who are not entitled will continue".

अरुंधती रॉय का इंटरव्यू

4 comments:

  1. Anonymous12:08 PM

    इस आंदोलन में बाबा रामदेव, केजरीवाल और जन वीके सिंह के शामिल होने पर कुछ लोगों ने ऐतराज जताया है। ऐतराज का कारण राजनीतिक है, पर एक तत्व ऐसा भी है जो हिंसा भड़काने का काम कर रहा है? कौन लोग हैं ऐसे? कुछ वामपंथियों ने संघ और साम्प्रदायिक तत्वों की ओर इशारा किया है, पर काफिला में आदित्य निगम ने कांग्रेसी युवा संगठनों की ओर संकेत किया है।
    ye padhkar to wampanthiyoka dogla pan hi dikhta hai.... unse hinsak na hi aaj tak koi hua hai aur na hi hoga.... mumbai me jo hinsa hui thi uske piche wampanthi the... unki ma ne itna dudh to pilaya nahi hai ki mullo k hinsa ka virodh kare, support karna shuru kar dete hain. aur har bat k liye sangh ko doshi thahrate hain.... pure bengalaur desh ko barbad kar diya in wampanthiyo ne... ab inka ek hi ilaj hai ki inko kat diya jaye...

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  2. बढ़िया,
    जारी रहिये,
    बधाई !!

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  3. अरुधंती राय और कुछ वरिष्ठ पक्रकारोँ की नजर मेँ ये आन्दोलन उच्च/मध्यम सवर्ण वर्गोँ का है। मुझे उस लड़की का नाम पता नहीँ है, उसका धर्म या जाति किसको पता है.? क्या ये आन्दोलन सिर्फ एक घटना विशेष के आलोक मेँ हो रहा है.? भले ही इस घटना ने इसी उद्देलित किया हो लाकिन विरोध की बजहेँ और भी हैं। इससे बढ़कर ये गुस्सा देश भर के नेताओँ और पुलिस के उस रवैये के विरोध मेँ है जिनसेँ ये दोनोँ कौमेँ अपने को आमजन का माईबाप समझती हैँ। नेता ये समझने लगे हैँ कि एक बार चुनाव जीतने से संसद या विधानमण्डल इनकी बपौती बन जाते है जिसमेँ ये कुछ भी करेँ, जनता तो पाँच सालोँ तक कुछ कर ही नहीँ सकती।
    (मीडिया की भी तारीफ करनी होगी कि उसने गोपनियता वरतने मेँ उल्लेखनिय योगदान दिया)

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  4. मन की बहती पीर न रोको,
    आँखों का यह नीर न रोको,
    मौन रहा है अब वह पूरा बहना चाहे।
    सहता, बहता, कहता आज समीर न रोको।

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