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Wednesday, December 26, 2012

मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के संकेत


नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह का एक राजनीतिक संदेश साफ है कि पार्टी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मोदी के महत्व को महसूस कर रही है। पिछली 20 दिसम्बर को चुनाव परिणाम आने के बाद अनंत कुमार की प्रतिक्रिया में जोश नहीं था। लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेता की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, जबकि वे गांधीनगर से सांसद हैं। पर बुधवार के शपथ समारोह में पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के अतिरिक्त सुषमा स्वराज और अरुण जेटली, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह शामिल हुए। राजनाथ सिंह और वैंकेया नायडू भी इस अवसर पर मौज़ूद थे। झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, गोवा मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया, पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू, हेमा मालिनी, किरण खेर, सुरेश व विवेक ऑबेराय भी समारोह में मौज़ूद थे। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, इंडियन नेशनल लोकदल के नेता ओमप्रकाश चौटाला, शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे, उनके चेचेरे भाई एवं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे और आरपीआई नेता रामदास अठावले भी शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद थे।  बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सीपी ठाकुर समारोह में शामिल हुए।

आडवाणी जी, सुषमा जी, जेटली जी, नितिन गडकरी और अनंत कुमार से लेकर स्मृति ईरानी तक की मौज़ूदगी थी। पर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जय ललिता और ओम प्रकाश चौटाला की उपस्थिति भावी राजनीति का संकेत कर रही है। जिस तरह उत्तर प्रदेश से मुलायम सिंह और मायावती आने वाले समय में किंगमेकर बनने की भूमिका तैयार कर रहे हैं, उसी तरह जय ललिता भी अपनी भूमिका को तैयार कर रहीं हैं। पिछले साल नरेंद्र मोदी ने जयललिता के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लिया था। निमंत्रित नेताओं में उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक नहीं पहुंचे, पर बताया जाता है कि वे मोदी-विरोधी नहीं हैं। उन्होंने जीत के बाद मोदी को सबसे पहले बधाई दी थी। बताया गया कि वे अपनी पार्टी के स्थापना दिवस से जुड़े कार्यक्रमों के चलते नहीं आ पाए। शायद वे  मोदी के साथ खड़ा होते दिखने से पहले हर विकल्प के नफा-नुकसान पर गौर कर लेना चाहते हैं। लगभग यही बात ममता बनर्जी पर लागू होती है। मुस्लिम वोटों के गणित को देखते हुए ममता की अनुपस्थिति से आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अभी यह साफ नहीं है कि मोदी ने उन्हें निमंत्रित किया था या नहीं।

मंच पर भारतीय जनता पार्टी की लगभग पूरी राष्ट्रीय कार्यकारिणी मौजूद थी। भाजपा शासित राज्यों के  मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्ष सहित सभी प्रदेशाध्यक्ष और कई फ़िल्मी सितारे हाज़िर थे। कहा जा सकता है कि  मोदी ने नए एनडीऐ की तस्वीर पेश करने की कोशिश की थी। इतना ज़ाहिर है कि जिन नेताओं को मुस्लिम वोटों की फिक्र नहीं है, वे इस समारोह में आए थे। शिरोमणि अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ऐसे ही नेता हैं। ओम प्रकाश चौटाला के लिए हरियाणा की राजनीति महत्वपूर्ण है, पर उनकी निगाह राष्ट्रीयराजनीति पर भी है।  why nitish kumar absent in narendra modi oath ceremony

कहा जा रहा है कि मोदी ने एनसीपी से भी संपर्क साधा था और कोशिश की गई थी कि शरद पवार नहीं तो उनकी पार्टी का कोई और बड़ा नेता तो शामिल हो ही जाए। पर महाराष्ट्र से उद्धव और राज ठाकरे दोनों का आना महत्वपूर्ण है। क्या दोनों मिलकर चुनाव लड़ेंगे? क्या मोदी इनकी एकता के सूत्रधार बनेंगे? रिपब्लिकन पार्टी के रामदास अठावले का आना भी महाराष्ट्र की राजनीति का संकेतक है। मोदी गुरुवार को दिल्ली में हो रही राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में हिस्सा लेंगे। पिछली बार ऐसी ही एक बैठक में वे जयललिता और नवीन पटनायक के साथ अलग से बातचीत में शामिल हुए थे। मोदी की व्यक्तिगत पसंद के नेताओं में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस यदुरप्पा भी रहे हैं। पर अब यदुरप्पा भाजपा विरोधी खेमे में हैं। अगले साल मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक विधान सभाओं के चुनाव हैं। इन तीनों राज्यों का अगले लोकसभा चुनाव के लिहाज से महत्व है। क्या इन चुनावों में मोदी प्रचार करने जाएंगे? पर उसके पहले यह तय होना बाकी है कि भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का क्या होगा। क्या नितिन गडकरी दुबारा अध्यक्ष बनेंगे?

नरेंद्र मोदी की जीत के बाद देश भर से उनको बधाई देने वालों का तांता लगा है, लेकिन एनडीए के सहयोगी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस पर प्रतिक्रिया देने से परहेज कर रहे हैं। नीतीश कुमार के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि नीतीश ऎसा जानबूझकर कर रहे हैं। मोदी के खिलाफ राजनीतिक स्तर पर कंग्रेस के बाद घोषित रूप में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू है। मोदी की विजय के बाद नीतीश कुमार ने किसी किस्म का बधाई संदेश नहीं भेजा। उनके नजदीकी सूत्रों ने अलबत्बता संकेत दिया कि 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए ने ऎतिहासिक जीत हासिल की थी, तब मोदी ने भी नीतीश को बधाई नहीं दी थी। पर उसके पहले नीतीश कुमार ने बिहार में चुनाव प्रचार के लिए मोदी के आने का विरोध किया था। बुधवार के शपथ समारोह में नीतीश कुमार का कोई प्रतिनिधि भी नहीं था। नीतीश कुमार के दफ्तर के मुताबिक उन्‍हें मोदी की ओर से शपथ ग्रहण समारोह में आने के लिए कोई चिट्ठी नहीं मिली।

शपथ समारोह का कांग्रेस पार्टी ने बहिष्कार किया। उसका कहना है कि इतने शानदार तरीके से शपथ लेना सार्वजनिक धन का दुरुपयोग है। पर यह पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी के समारोह का बहिष्कार किया हो। पिछले कई साल से गुजरात कांग्रेस नवरात्रि समारोह, ऱण उत्सव, पतंग उत्सव और दूसरे सरकारी समारोहों का बहिष्कार करती रही है। वह केवल बहिष्कार ही नहीं करती बल्कि गरीब कल्याण मेला जैसे समारोहों की आलोचना भी करती है। पिछले कुछ साल से वायब्रैंट गुजरात समिट के जरिए नरेंद्र मोदी राज्य में निवेश लाने का कार्यक्रम कर रहे हैं। पिछले वायब्रेंट गुजरात समिट के बाद कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोविल ने केन्द्रीय वित्त मंत्री के पास पत्र भेजा था कि जिन लोगों ने गुजरात में निवेश का वादा किया है उनकी आयकर जाँच कराई जानी चाहिए। आयकर विभाग ने पिछली बार एमओयू का ब्योरा माँगा भी था। सन 2013 में होने वाले वायब्रेंट-2013 में इस बार ब्रिटेन भी हिस्सा लेगा। भारत में ब्रिटेन के उच्चायुक्त जेम्स बेवन ने यह घोषणा की। वे अहमदाबाद में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने आए थे।





2 comments:

  1. शानदार लेखन,
    जारी रहिये,
    बधाई !!

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  2. नये बनते बिगड़ते संबंध।

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