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Monday, December 10, 2012

मालदीव में क्या चीनी चक्कर है?

खुदरा बाज़ार में एफडीआई के मसले और तेन्दुलकर की फॉर्म में मुलव्विज़ हमारे मीडिया ने हालांकि इस खबर को खास तवज्जो नहीं दी, पर मालदीव सरकार ने एक भारतीय कम्पनी को बाहर का रास्ता दिखाकर हमें महत्वपूर्ण संदेश दिया है। माले के इब्राहिम नासिर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की देखरेख के लिए जीएमआर को दिया गया 50 करोड़ डॉलर का करार रद्द होना शायद बहुत बड़ी बात न हो, पर इसके पीछे के कारणों पर जाने की कोशिश करें तो हमारी चंताएं बढ़ेंगी। समझना यह है कि मालदीव में पिछले एक साल से चल रही जद्दो-जेहद सिर्फ स्थानीय राजनीतिक खींचतान के कारण है या इसके पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है।

इस प्रश्न पर विचार करने के हाल की कुछ खबरों पर ध्यान दें। पिछले महीने 18 नवम्बर को श्रीलंका के हम्बनटोटा बन्दरगाह का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री महीन्दा राजपक्षे ने कहा था, चीन और भारत के नेतृत्व में तेजी से विकसित होते एशिया के साथ हमारा देश भी आगे बढ़ेगा। इस वक्तव्य को पोलिटिकली करेक्ट करने के लिए क्या चीन के साथ भारत का नाम सायास जोड़ा गया था? हम यह जानते हैं कि तकरीबन डेढ़ अरब डॉलर की राशि से विकसित हो रहा हम्बनटोटा बन्दरगाह श्रीलंका और चीन के मैत्री सम्बन्धों की कहानी है। इस साल मार्च में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में अमेरिका द्वारा श्रीलंका के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव का भारत ने समर्थन किया था। भारत का यह कहना था कि हमने समर्थन ज़रूर किया, पर इस प्रस्ताव को काफी नरम बनवाने में सफलता प्राप्त कर ली थी। बहरहाल श्रीलंका को भारत की इस सफाई पर संतोष नहीं है। अगस्त के महीने में टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक इंटरव्यू में महीन्दा राजपक्षे ने कहा कि भारत हमारा समर्थन करता तो यह प्रस्ताव आता ही नहीं। भारत सरकार के लिए श्रीलंका का तमिल प्रश्न गले की हड्डी बन गया है। लिट्टे और श्रीलंका सरकार दोनों हमारे खिलाफ रहे। इस इंटरव्यू में राजपक्षे ने चीन के साथ अपनी बढ़ती दोस्ती की सफाई भी दी, पर संदेह के कारण अपनी जगह कायम हैं।

अब इसे कुछ और खबरों से जोड़ें। चीन ने भारत को चेतावनी दी है कि वह दक्षिण चीन सागर में तेल की खुदाई करने का कोई एकतरफा फैसला न करे। चीन का कहना है कि इस विवादित क्षेत्र में बाहरी देश के दखल के वह खिलाफ है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग लेई ने कहा कि चीन इस क्षेत्र में किसी देश द्वारा एकतरफा तौर पर तेल और गैस निकालने के खिलाफ है। यह चीन की संप्रभुता पर हमला है। होंग लेई के इस वक्तव्य के पहले भारतीय नौसेना अध्यक्ष डीके जोशी ने नौसेना दिवस की तैयारी के सिलसिले में बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि दक्षिण चीन सागर में देश के हितों की रक्षा के लिए वहां भारतीय नौसेना के जहाज तैनात करने को तैयार हैं। इस बयान के फौरन बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने कहा था कि जोशी के बयान को गलत ढंग से पेश किया गया है। दक्षिणी चीन सागर में अधिकार को लेकर चीन का वियतनाम, फिलीपींस, ताइवान, ब्रुनेई और मलेशिया के साथ विवाद है। चीन इस पूरे सागर पर अपना दावा जताता है जिसका पड़ोसी देश विरोध करते है। वियतनाम ने चीन सागर में पेट्रोलियम की खोज करने का काम भारतीय कम्पनी ओएनजीसी विदेश को सौंपा है। चीन को इस तेल खोज पर आपत्ति है, पर उससे ज्यादा आपत्ति वियतनाम और भारत के रक्षा सम्बन्धों पर है। चीन को लगता है कि इस इलाके में अमेरिका, जापान और भारत मिलकर दुरभिसंधि कर रहे हैं, जिससे उसके आर्थिक हितों को आघात पहुँचेगा। चीन के अनुसार भारत ने हिन्द महासागर में मलक्का की खाड़ी के प्रवेश द्वार पर अनेक द्वीपों पर नियंत्रण कर रखा है। अंडमान-निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में भारत नौसेना का बड़ा बेस विकसित कर रहा है।


श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह उस अंतरराष्ट्रीय सागर लेन से करीब 10 नॉटीकल मील दूर है, जिससे होकर तकरीबन 200 जहाज हर रोज पूरब से पश्चिम या पश्चिम से पूरब की ओर जाते हैं। यह दुनिया के सबसे व्यस्त जलमार्गों में से एक है। यहाँ से एक लाख टन तक के वजनी जहाज गुजर सकते हैं। चीन की यह महत्वपूर्ण जीवन रेखा है, क्योंकि उसके लिए पेट्रोलियम और खनिजों की सप्लाई और उसके तैयार माल की दूसरे देशों को सप्लाई इसी मार्ग से होती है। आने वाले समय में यहाँ माल की आवा-जाही बढ़ेगी, क्योंकि चीन, जापान, कोरिया, ताइवान, हांगकांग, मलेशिया, वियतनाम, इंडोनेशिया, सिंगापुर और फिलिपाइंस आदि का कारोबार इस रास्ते से होता है और वह बढ़ेगा। श्रीलंका अब अपने यहाँ पाँच और बंदरगाह बनाने की तैयारी कर रहा है। इस रास्ते पर हिन्द महासागर में सबसे अच्छी पोर्ट सुविधा श्रीलंका में ही मिलेगी। श्रीलंका की इस ज़रूरत को पूरी करने में चीन मदद कर रहा है।

चीन के व्यावसायिक हितों के अलावा सामरिक हित भी हैं। व्यापार मार्गों के रखरखाव में अमेरिका, चीन या भारत के हितों में टकराव नहीं है। असली टकराव सामरिक उद्देश्यों का है। चीन ने श्रीलंका में केवल हम्बनटोटा बंदरगाह बनाने में ही मदद नहीं दी है। हम्बनटोटा के उद्घाटन के दो महीने पहले सितम्बर में चीन के रक्षामंत्री लियांग गुआंग ली श्रीलंका आए थे। चीन ने श्रीलंका को 10 करोड़ डॉलर (तकरीबन 550 करोड़ रु) की सैन्य सहायता दी है। वह उसकी रक्षा-व्यवस्था को दुरुस्त कर रहा है। माना जा सकता है कि लिट्टे के कारण लम्बे अर्से तक आतंकवाद से पीड़ित देश की सुरक्षा आवश्यकताएं हैं। पर सवाल है उसने बजाय भारत के चीन के सामने हाथ क्यों पसारा? उधर पाकिस्तान-ईरान सीमा पर चीन ने पाकिस्तान के लिए न सिर्फ ग्वादर बंदरगाह तैयार कर दिया है, उसका संचालन भी उसके पास आ गया है। पाकिस्तान ने सन 2007 में पोर्ट ऑफ सिंगापुर अथॉरिटी के साथ 40 साल तक बंदरगाह के प्रबंध का समझौता किया था। यह समझौता अचानक पिछले अक्टूबर में खत्म हो गया। और अब एक चीनी कम्पनी यह काम करेगी।

बंगाल की खाड़ी के उत्तर में कोको द्वीपों को म्यांमार सरकार ने 1994 में चीन को सौंप दिया। हालांकि म्यांमार या चीन सरकार ने कभी आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि नहीं की, पर यह खुली जानकारी में है कि अंडमान निकोबार से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर चीन ने सैनिक अड्डा बना लिया है, जहाँ से भारतीय नौसेना की गतिविधियों पर नज़र रखी जाती है। भारत के सारे मिसाइल परीक्षण और उपग्रह प्रक्षेपण के काम पूर्वी तट पर होते हैं। इस लिहाज से चीन का यह अड्डा सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। पिछले दिनों चीन ने हिन्द महासागर के छोटे से द्वीप सेशेल्स में भी नौसैनिक अड्डा बना लिया। चीन का कहना है कि यह नौसैनिक अड्डा उसने समुद्री लुटेरों से अपने जहाजों की रक्षा के लिए स्थापित किया है। पर यह चीन की उस स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स का हिस्सा है, जो वह मेनलैंड चीन से सूडान के पोर्ट तक बना रहा है। वाशिंगटन के सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी के विशेषज्ञ रॉबर्ट कपलान के अनुसार चीन सामुद्रिक शक्ति के रूप में उभरने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है। उसने अपनी ज्यादातर भू-सीमाओं को व्यवस्थित कर रखा है. वह इस वक्त प्रभुत्व के चरम पर है। उन्होंने हाल में सीएनएन के एक इंटरव्यू में कहा कि चीन के साथ-साथ भारत भी सामुद्रिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। इससे चीन और भारत अपने इतिहास में पहली बार एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पूर्वी एशिया तथा दक्षिण चीनी सागर और पूर्वी सागर में प्रभुत्व जमाने पर चीन एक महान क्षेत्रीय शक्ति बन जाएगा लेकिन हिन्द महासागर में मौजूदगी के साथ ही वह उससे भी बड़ी ताकत बन गया है।

तब क्या मालदीव की घटना चीन की उस व्यापक रणनीति का हिस्सा है? असल बात जल्द साफ हो जाएगी। इसमें दो राय नहीं कि इस साल 7 फरवरी को मालदीव के राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद के तख्ता पलट को हमने गम्भीरता से नहीं लिया। यहाँ धार्मिक चरमपंथी संगठन भी सक्रिय हैं। पूर्व राष्ट्रपति नशीद ने फरवरी में इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि हमने चीन के साथ एक रक्षा करार को नामंज़ूर कर दिया था। लगता यह है कि माले के हवाई अड्डे की देखरेख का काम अंततः किसी चीनी कम्पनी को मिलेगा। साथ ही चीन की निगाहें मालदीव के अद्दू हवाई अड्डे पर भी हैं।
  

सी एक्सप्रेस में प्रकाशित

2 comments:

  1. सरकार को एफडीआई के सिवा कुछ दीखता कहाँ है !!

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