इस बात पर टाइम्स ऑफ इंडिया ने ध्यान दिया। खबर में खास बात नहीं थी, पर लगता है कि कुछ बड़े अखबार इस खबर के लपेटे में आ गए। हाँ इससे एक बात यह भी साबित हुई कि लगभग सभी अखबार पुलिस की ब्रीफिंग का खुले तरीके से इस्तेमाल करते हैं और हर बात ऐसे लिखते हैं मानो यही सच है। पत्रकारिता की ट्रेनिंग के दौरान उन्हें बताया जाता है कि सावधानी से तथ्यों की पुष्टि करने के बाद लिखो, पर व्यवहार में ऐसा होता नहीं।
पहले आप यह विज्ञापन देखें जो कुछ दिन पहले कई अखबारों में छपा, जिसमें गौरी भोंसले नामक लड़की के लंदन से लापता होने की जानकारी दी गई थी। विज्ञापन देखने से ही पता लग जाता था कि यह किसी चीज़ की पब्लिसिटी के लिए है। इस सूचना की क्लिप्स लगभग खबर के अंदाज़ में एबीपी न्यूज़ में आ रहीं थीं। हालांकि एबीपी न्यूज़ का स्टार टीवी से सम्बन्ध अब नहीं है, पर विज्ञापन क्लिप्स खबर के अंदाज़ में आना क्या गलतफहमी पैदा करना नहीं है? पर स्टार के पास इसका जवाब है कि विज्ञापन को खबर के फॉ्र्मेट में देना मार्केटिंग रण नीति है। बहरहाल पहले से लग रहा था कि स्टार पर कोई सीरियल आने वाला है, जिसमें इस किस्म की कहानी है। अचानक 31 अक्टूबर को दिल्ली के इंडियन एक्सप्रेस, मेल टुडे और हिन्दू ने खबर छापी कि वह लड़की उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के एक गाँव से बरामद की गई है। हिन्दू ने खबर में लड़की का नाम नहीं दिया, जबकि बाकी दोनों अखबारों ने उसका नाम गौरी भोंसले, वही विज्ञापन वाला नाम।
अगले रोज़ यानी 1 नवम्बर को तीनों अखबारों ने बताया कि लड़की मिली तो है, पर वह नहीं है। उसने अपना नाम यही बताया था। इस खबर से कई सवाल पैदा हुए हैं। क्या यह पब्लिसिटी के लिए हुआ? या उस लड़की ने बचने के लिए गाँव वालों को अपना नाम गौरी भोंसले बता दिया? या कोई और बात है। हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर का काफी इनवेस्टिगंशन किया है, पर यह बात भी अटपटी है। अक्सर हमारे अखबार ऐसी खबरों की उपेक्षा करते हैं। खासकर मीडिया के मसलों पर तो इनवेस्टिगेशन करते ही नहीं। तब क्या यह सीरियल की पब्लिसिटी के लिए था? स्टार टीवी इसका खंडन करता है। पर पब्लिसिटी तो हो ही गई। टाइम्स की खबर से इन अखबारों की खबरों पर संदेह तो पैदा हुआ, पर पब्लिसिटी तो और ज्यादा हो गई। टाइम्स के रिपोर्टर ने अपनी पड़ताल में शेखर गुप्ता, संदीप बमज़ाई और सिद्धार्थ वरदराजन से बात भी की। स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर से बात भी की। यानी काफी मेहनत की। अच्छा किया, पर सवाल तो खड़े हो ही गए हैं। टीवी मनोरंजन का मीडिया है, पर इसमें खबर और मनोरंजन को अलग करने वाला कोई फॉर्मेट नहीं है। और इस दिशा में प्रयास करने की कोई पहल भी नहीं है। टीवी के खबरचियों को अपनी साख को लेकर फिक्र नहीं तो कोई बात नहीं। बात तब है जब चार सौ साल में बनी साख को खत्म करने पर उतारू प्रिंट मीडिया भी टीवी के रास्ते पर जाता नज़र आता है। पता नहीं कोई इस बात पर ध्यान दे भी रहा है या नहीं।
31 अक्टूबर के इंडियन एक्सप्रेस एक्सप्रेस में खबर
1 नवम्बर के एक्सप्रेस की खबर
1 नवम्बर के हिन्दू में खबर
1 नवम्बर के टाइम्स ऑफ इंडिया में इस खबर की पड़ताल
पहले आप यह विज्ञापन देखें जो कुछ दिन पहले कई अखबारों में छपा, जिसमें गौरी भोंसले नामक लड़की के लंदन से लापता होने की जानकारी दी गई थी। विज्ञापन देखने से ही पता लग जाता था कि यह किसी चीज़ की पब्लिसिटी के लिए है। इस सूचना की क्लिप्स लगभग खबर के अंदाज़ में एबीपी न्यूज़ में आ रहीं थीं। हालांकि एबीपी न्यूज़ का स्टार टीवी से सम्बन्ध अब नहीं है, पर विज्ञापन क्लिप्स खबर के अंदाज़ में आना क्या गलतफहमी पैदा करना नहीं है? पर स्टार के पास इसका जवाब है कि विज्ञापन को खबर के फॉ्र्मेट में देना मार्केटिंग रण नीति है। बहरहाल पहले से लग रहा था कि स्टार पर कोई सीरियल आने वाला है, जिसमें इस किस्म की कहानी है। अचानक 31 अक्टूबर को दिल्ली के इंडियन एक्सप्रेस, मेल टुडे और हिन्दू ने खबर छापी कि वह लड़की उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के एक गाँव से बरामद की गई है। हिन्दू ने खबर में लड़की का नाम नहीं दिया, जबकि बाकी दोनों अखबारों ने उसका नाम गौरी भोंसले, वही विज्ञापन वाला नाम।
एक्सप्रेस में 31 अक्टूबर की खबर |
31 अक्टूबर के इंडियन एक्सप्रेस एक्सप्रेस में खबर
1 नवम्बर के एक्सप्रेस की खबर
1 नवम्बर के हिन्दू में खबर
1 नवम्बर के टाइम्स ऑफ इंडिया में इस खबर की पड़ताल
विज्ञापन को खबर के रूप में दिखाए जाने का तरीका गलत है, हालाँकि प्रस्तुतीकरण से ही समझ में आ गया था कि कुछ गड़बड़ झाला है, लेकिन इससे कितने ही लोगो में कन्फ्यूज़न तो पैदा हुई ही बहरहाल....
ReplyDeleteविज्ञापन की यह रणनीति काफी चिंता बढाती है.. मैं तो इस सम्बन्ध में तब से चिंतित हूँ जब मैं पत्रकार नहीं पाठक हुआ करता था... जब तक पता नहीं था तब तक इस तरह के विज्ञापन खबर ही लगते रहे...
ReplyDeleteभोसले के मामले में तो मैं पत्रकार होने के बाद भी कन्फ्यूज हो गया...
मेरा अंदाजा यही था कि यह किसी आने वाले सीरियल की पब्लिसिटी का तरीका है लेकिन घर के दूसरे सदस्यों का यह मानना था कि यह रियल न्यूज़ है। आज सुबह अखबार में जब सहारनपुर वाली खबर पढ़ी तो क्लियर हुआ। ये प्रचार का निहायत ही घटिया तरीका है।
ReplyDeleteयदि पत्रकारिता के लिए किसी परमिट लाइसेंस की ज़रुरत नहीं है तो वह बने जानी चाहिए और यदि है तो इस केस से जुड़े सभी पत्रकारों, रिपोर्टरों व संपादकों के लाइसेंस रद्द किये जाने चाहिए.
ReplyDeleteखबर के रूप में चल रहे इस विज्ञापन को देखने के बाद तभी संदेह की दृष्टि इसकी ओर पनप रही थी क्योंकि गौरी की मिसिंग पर प्रोगाम एबीपी न्यूज ( पूर्व स्टार न्यूज) 12 नवबंर को दिखाने की बात कह रहा था साथ ही में अप्पा जी का फोटो भी देखकर पहचान लिया गया था कि वो एक टीवी सीरियल के कलाकार हैं लेकिन इस तरह के छदम विज्ञापन हकीकत में आम लोगों के साथ ही जुझारू पत्रकारों को भी भ्रमित कर देते हैं ....
ReplyDeleteshame shame india media
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