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Friday, August 31, 2012

कसाब की फाँसी से हमारे मन शांत नहीं होंगे

जिन दिनों अजमल कसाब के खिलाफ मुकदमा शुरू ही हुआ था तब राम जेठमलानी ने पुणे की एक गोष्ठी में कहा कि इस लगभग विक्षिप्त व्यक्ति को मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिए। उनका आशय यह भी था कि किसी व्यक्ति को जीवित रखना ज्यादा बड़ी सजा है। मौत की सजा दूसरों को ऐसे अपराध से विचलित करने के लिए भी दी जाती है। पर जिस तरीके से कसाब और उनके साथियों ने हमला किया था उसके लिए आवेशों और भावनाओं का सहारा लेकर लोगों को पागलपन की हद तक आत्मघात के लिए तैयार कर लिया जाता है। आज पाकिस्तान में ऐसे तमाम आत्मघाती पागल अपने देश के लोगों की जान ले रहे हैं। हाल में कामरा के वायुसेना केन्द्र पर ऐसा ही एक आत्मघाती हमला किया गया। ऐसे पगलाए लोगों को समय सजा देता है। बहरहाल कसाब की फाँसी में अब ज्यादा समय नहीं है। पर फाँसी से जुड़े कई सवाल हैं।
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने अपना पद भार छोड़ने के पहले 35 व्यक्तियों के मृत्युदंड को कम किया था। किसी राष्ट्रपति के कार्यकाल में इतनी बड़ी माफी नहीं हुई थी। पर यह राष्ट्रपति का निजी फैसला नहीं था। गृहमंत्री ने उन्हें सलाह दी थी। हालांकि भारत में मृत्युदंड की व्यवस्था कायम है, पर उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था है कि ‘रेयर ऑफ द रेयरेस्ट’ मामले में मौत की सजा देनी चाहिए। भारत दुनिया के उन 58 देशों में है, जहाँ फाँसी की सजा प्रचलन में है। 97 देशों ने फाँसी की सजा खत्म कर दी है और शेष देशों में पिछले दस साल में मौत की सजा का कोई मौका नहीं आया। भारत में भी पिछले 17 साल में सिर्फ धनंजय चटर्जी को फाँसी हुई है। क्या अगली फाँसी कसाब की होगी?

हाल में नॉर्वे में 77 लोगों की हत्या की बात स्वीकार कर चुके आंद्रे बेरिंग ब्रेविक को अदालत ने 21 साल की जेल की सजा सुनाई है। पिछले साल जुलाई में 33 वर्षीय ब्रेविक ने गोलियाँ चलाकर 77 लोगों को मार डाला था। इस घटना में 240 लोग घायल हुए थे। अक्सर हम कसाब की बिरयानी का विवरण सुनते हैं। ब्रेविक का जेल विवरण सुनकर हमें लगेगा कि उसे फाइवस्टार जीवन प्राप्त हुआ है। उसके पास छोटा सा जिम और बगैर इंटरनेट वाला कम्प्यूटर है। उम्मीद है वह अपने विचारों की किताब लिखेगा। एक हत्यारे को मिली सुविधाओं को सुनकर हम विचलित हो सकते हैं, पर यह देश-काल और समय-संस्कृति का मसला है। अफजल गुरू और अजमल कसाब को लेकर फेसबुक में तानाकशी की ढेरों प्रविष्टियाँ मिलती हैं। पर सजा-ए-मौत को लेकर हमारे यहाँ विमर्श नहीं है। सच यह है कि सजा पाने वाले ज्यादातर गरीब लोग होते हैं, जो अपने मुकदमें ठीक से नहीं लड़ पाते।

इस लेख का विषय मौत की सजा पर विमर्श को बढ़ाना नहीं है। उस पर कभी भविष्य में बात करेंगे। फिलहाल कसाब के मामले के निहितार्थ और भारत-पाकिस्तान रिश्ते जेहन में आते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कसाब की फाँसी की सजा को बरकरार रखते हुए कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं हैं। कोर्ट के अनुसार अच्छा हुआ कि कसाब ज़िन्दा पकड़ा गया और जल्द यह पता लगा कि वह पाकिस्तानी है। उसकी पाकिस्तानी पहचान साबित न होती तो उसे भारतीय मान लिया जाता। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से देशभर में रेलगाड़ियाँ जाती हैं। हर गाड़ी में ऐसे लोग होते जिनके साथ का कोई न कोई व्यक्ति इस हत्याकांड का शिकार होता। आप कल्पना करें देशभर में क्या माहौल होता। फिर मीडिया ने इस घटना का कैसा घमासान किया, इससे हम सब वाकिफ हैं। एक सामान्य मुसलमान के लिए जीवन दुखदायी हो जाता। बहरहाल कसाब ज़िन्दा पकड़ा गया और पाकिस्तानी मीडिया ने ही उसे पाकिस्तानी साबित किया। पाकिस्तान और पाकिस्तानी मीडिया को लेकर हमारी गलत-फहमियाँ कम हुईं। और भारत के मुसलमानों के ऊपर से दबाव भी कम हुआ।

सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया की भूमिका पर भी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि मीडिया इस मामले में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सहारा नहीं ले सकता। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ कुछ पाबंदियाँ भी जुड़ी होती हैं। मीडिया ने उन दिनों जिस तरीके से सुरक्षा दलों की कारवाई का विवरण लाइव दिखाया उससे सुरक्षा सैनिकों के काम में दिक्कतें आईं। अदालत ने एक और महत्वपूर्ण बात यह कही है कि इस बारे में दो राय नहीं कि 26/11 की साज़िश पाकिस्तान में रची गई। अदालत की इस टिप्पणी के बाद विदेशमंत्री एसएम कृष्णा ने कहा है कि पाकिस्तान को सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर ध्यान देना चाहिए और वहाँ की न्यायपालिका को सक्रिय होना चाहिए। तेहरान में गुट निरपेक्ष देशों के शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे भारतीय और पाकिस्तानी राजनेताओं के बीच इस सवाल पर बातचीत हुई है। अभी तक वहाँ की अदालतों में इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। पिछले दिनों पाकिस्तान से आए आयोग के सदस्यों ने यहाँ से जो विवरण हासिल किए उन्हें वहाँ की अदालत ने स्वीकार नहीं किया। सुना जा रहा है कि भारत सरकार एक और पाकिस्तानी आयोग को भारत आने का निमंत्रण देगी और उसे अपने न्यायिक अधिकारियों से ज़िरह करने का मौका देगी। ऐसा होने पर पाकिस्तानी अदालतों की एक शर्त पूरी हो जाएगी। फिर भी कहना मुश्किल है कि इस मामले में कोई प्रगति होगी क्योंकि पाकिस्तानी न्यायपालिका वहाँ की सरकार से टकराव लेकर चलती है। इसके अलावा जेहादियों के प्रति उसका रुख नरम रहता है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी के बीच तेहरान में इस साल की दूसरी मुलाकात हुई। इसके पहले अप्रेल में ज़रदारी साहब अजमेर शरीफ जाते वक्त दिल्ली में कुछ देर के लिए रुके थे। तोहरान में मनमोहन सिंह ने 26/11 के दोषियों के मामले तेजी करने की अपील की। हाल में असम की हिंसा को लेकर फैली दहशत में पाकिस्तान के कुछ ब्लॉगरों की भूमिका को लेकर भी भारतीय पक्ष ने अपनी निराशा व्यक्त की है। 26/11 का मामला सामने आते ही पाकिस्तानी पक्ष समझौता एक्सप्रेस का मामला उठाने लगता है। सच यह है कि दोनों मामलों की प्रकृति अलग-अलग है। समझौता एक्सप्रेस की जाँच भारतीय़ एजेंसियों ने की और यह मामला अदालतमें चल रहा है, जबकि 26/11 से जुड़े सात अभियुक्तों के खिलाफ कोई कारवाई पाकिस्तानी अदालत में नहीं हो रही है। रावलपिंडी की अडियाला जेल में सुनवाई कर रही अदालत में पाँच जज बदले जा चुके हैं। अभियुक्तों के खिलाफ साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी भारत की है। पाकिस्तान के वकील और जज सातों अभियुक्तों से हमदर्दी रखते हैं। यह अदालत इंसाफ करे तो भारत-पाक रिश्तों को बेहतर बनाने में इससे बड़ा कदम कोई नहीं हो सकता। 26/11 की पीड़ा भारत के हर नागरिक के मन में है।

भारत और पाकिस्तान के बीच 26/11 की घटना के पहले माहौल सुधरता नज़ार आता था। खासतौर से वीज़ा, सर क्रीक और सियाचिन जैसे मसलों पर काफी हद तक सहमति थी। उस हमले के पीछे किसी की योजना माहौल को तनावपूर्ण बनाए रखने की थी। सिर्फ एक उस घटना ने कई साल की कोशिशों को निरर्थक कर दिया था। बहरहाल अब दोनों देश व्यापारिक रिश्तों को सामान्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस साल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पाकिस्तान जाने की सम्भावना भी है। दोनों देशों के बीच क्रिकेट के सम्बन्ध फिर से कायम हो रहे हैं। दोनों के रिश्तों को सामान्य बनाना जितना आसान है उतना ही बिगाड़ना भी आसान है। कोई एक मामूली सा धमाका भी सारे किए-धरे को खराब कर सकता है। इसलिए सावधानी बरतने की ज़रूरत भी है। अजमल कसाब को फाँसी होने मात्र से भारत के लोगों के मन शांत नहीं होंगे। उसके लिए पाकिस्तान में बैठे लोगों को सजा मिलनी चाहिए। यह काम पाकिस्तान सरकार के लिए मुश्किल है, असम्भव नहीं। पाकिस्तानी न्यायपालिका इसके महत्व को समझ सके यह भी ज़रूरी है।  जनवाणी में प्रकाशित

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