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Friday, December 23, 2011

कांग्रेस की इस युद्ध घोषणा में कितना दम है?

कांग्रेस का मुकाबला अन्ना हजारे से नहीं भाजपा और वाम मोर्चे से है। उसका तात्कालिक एजेंडा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में सफलता हासिल करना है। उम्मीद थी कि संसद के इस सत्र में कांग्रेस कुछ विधेयकों के मार्फत अपने नए कार्यक्रमों की घोषणा करेगी। पिछले साल घोटालों की आँधी में सोनिया गांधी ने बुराड़ी सम्मेलन के दौरान पार्टी को पाँच सूत्री प्रस्ताव दिया था, पर अन्ना-आंदोलन के दौरान वह पीछे रह गया। सोनिया गांधी अचानक युद्ध मुद्रा में नजर आ रहीं हैं।  क्या कांग्रेस इन तीखे तेवरों पर कायम रह सकेगी?

पिछले साल 19 दिसम्बर को सोनिया गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से भ्रष्टाचार के खिलाफ एकताबद्ध होने का आह्वान किया था। कांग्रेस महासमिति के बुराड़ी सम्मेलन में सोनिया गांधी ने जो पाँच सूत्र दिए थे, उनकी चर्चा इस साल शुरू के महीनों में सुनाई पड़ी, पर धीरे-धीरे गुम हो गई। अन्ना हजारे के आंदोलन के शोर में यह आवाज़ दबती चली गई। पिछले साल इन्हीं दिनों टूजी मामले में जेपीसी को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में टकराव चल रहा था। कांग्रेस को उस मामले में विपक्ष के साथ समझौता करना पड़ा। धीरे-धीरे पार्टी रक्षात्मक मुद्रा में उतर आई। बुधवार को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया गांधी ने लोकपाल को लेकर अपने तेवर तीखे किए हैं। बीमारी से वापस लौटीं सोनिया गांधी का यह पहला महत्वपूर्ण राजनीतिक वक्तव्य है।
सोनिया गांधी ने दृढ़ विश्वास के साथ कहा है कि पार्टी इस बिल को पास करालेगी। उनका यह भी कहना है कि पार्टी और सरकार के बीच कोई मतभेद नहीं है। वे चाहती हैं कि पार्टी कार्यकर्ता खाद्य सुरक्षा कानून के फायदों को जनता तक लेकर जाएं। सोनिया गांधी ने यह भी कहा है कि पार्टी अपने बहुत से कार्यों को जनता तक ठीक तरीके से ले जाने में नाकामयाब रही है। यानी कम्युनिकेशन में कमी रह गई।

सोनिया गांधी के तीखे तेवरों के पीछे कोई दीर्घकालीन विचार है या दीवार तक धकेले जाने के बाद की सहज प्रतिक्रिया? इसका पता लोकपाल कानून पर बहस के दौरान पार्टी के रुख से लगेगा। कांग्रेस के सामने इस वक्त सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में है। पिछले तीन साल से पार्टी उत्तर प्रदेश में खुद को जगाने की कोशिश में लगी है। राहुल गांधी इस वक्त पूरी तरह उत्तर प्रदेश पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। प्रत्याशियों की घोषणा हो गई है। पार्टी में कई जगह इस बात को लेकर असंतोष है कि पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर हाल में दलबदल कर आने वालों को प्राथमिकता दी गई। बिहार में यह प्रयोग उल्टा पड़ा था। बहरहाल यह हर चुनाव में होता है। पर इसके पहले विरोध स्थानीय नेताओं तक सीमित रहता था। इस बार राहुल गांधी को भी विरोध का सामना करना पड़ा है। लगता है कि राहुल गांधी अपने जीवन की निर्णायक लड़ाई लड़ रहे हैं। हाल में स्टार न्यूज के सर्वे में कांग्रेस को 68 सीटें दिखाई गई हैं। इससे पार्टी में उत्साह है। पर क्या यह सर्वेक्षण सच साबित होगा? सच हुआ भी तो क्या इससे पूरा काम हो जाएगा? क्या उत्तर प्रदेश में कांग्रेस स्वयं या किसी दूसरे की मदद से सत्ता हासिल कर सकेगी? प्रदेश में अन्ना फैक्टर की क्या भूमिका होगी?

सोनिया गांधी ने पिछले साल पार्टी कार्यकर्ताओं को सादगी, ईमानदारी और पारदर्शिता का मंत्र दिया था। बुराड़ी में उन्होंने सुझाव दिया था कि हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को अपना हथियार बनाना चाहिए। इसके लिए व्यवस्था में पारदर्शिता को बढ़ाने और ह्विसिल ब्लोवरों के संरक्षण का कानून बनाने की जरूरत है। सच यह है कि कांग्रेस इस मोर्चे पर विफल रही। कैबिनेट ने इसी हफ्ते ह्विसिल ब्लोवर संरक्षण कानून को मंजूरी दी है। इसके पहले कम से कम दो हफ्ते रिटेल में एफडीआई के खाते में चले गए। जिस वक्त लोकपाल कानून बड़ी राजनीतिक जरूरत बन कर खड़ा हो ऐसे वक्त में एफडीआई की पेशकश क्या आत्महत्या जैसा कदम नहीं था? सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून को मंजूरी दे दी है, पर इसे लेकर सरकार के भीतर ही अभी असमंजस है। कांग्रेस पार्टी इसके राजनीतिक लाभ देख रही है, पर इसकी कीमत का अनुमान नहीं लगा पा रही है। उधर शरद पवार ने संकेत किया है कि मनरेगा के कारण गाँवों में खेत मजदूरों की कमी पड़ गई है। अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी के रास्ते पर है। औद्योगिक उत्पादन में गिरावट का रुख है। जिस अर्थव्यवस्था से सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए साधन जुटाने की उम्मीद लगाई जा रही है वह खुद खतरे में है।

लोकपाल बिल को पेश करने का मतलब शेर की सवारी करना है। इस कानून को पास कराने के लिए जिस बहुमत की ज़रूरत है क्या वह दोनों सदनों में जुटा लिया गया है? कांग्रेस ने अपने सांसदों को ह्विप जारी करके दिल्ली में रोक लिया है। सोनिया गांधी के तेवरों से लगता है कि या तो उन्होंने यूपीए के सहयोगियों से बात कर ली है या इस बार उनकी धौंस-पट्टी में आएंगी नहीं। सरकार ने जिस तरह न्यूक्लीयर डील पर संसदीय बहस के दौरान दृढ़ता व्यक्त की थी क्या वैसी दृढ़ता आज पार्टी दिखा सकती है? बावजूद कमजोर सरकार के उस वक्त देश का मध्य वर्ग सरकार के साथ खड़ा था। आज उस मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा सरकार के खिलाफ है।

लोकपाल विधेयक को लेकर कांग्रेस पार्टी के रुख को लेकर दो तरह के मसले हैं। एक है इसका कानूनी पहलू और दूसरा है इस आंदोलन के प्रति पार्टी और सरकार का नज़रिया। इससे निपटने में सरकारी रुख में कई तरह के उतार-चढ़ाव नजर आए हैं। कांग्रेस आज टकराव की जिस मुद्रा में है वह अप्रेल की मुद्रा के उलट है। उस वक्त सरकार ने अन्ना टीम के साथ संयुक्त प्रारूप समिति बनाई। ऐसा किया था तो उसे उसकी तार्किक परिणति तक लेकर जाना चाहिए था। फिर बाबा रामदेव को लेकर भ्रम रहा। रामलीला मैदान पर की गई कार्रवाई का संदेश अच्छा नहीं गया। अभी अदालत में यह मामला है। गृहमंत्री चिदम्बरम इस वक्त यों भी कई तरह के विवादों में घिरे हैं।

लोकपाल कानून में सबसे पेचीदा मामला सीबीआई का है। इसकी प्रशासनिक व्यवस्था कैसी होगी, निदेशक की नियुक्ति कैसे होगी और इसकी जाँच पद्धति कैसे निर्धारित होगी जैसी बातें अब भी साफ नहीं हैं। इसमें केवल सरकार ही नहीं विपक्षी पार्टियाँ भी भ्रम की स्थिति में हैं। खासतौर से भारतीय जनता पार्टी का रुख साफ नहीं है। कांग्रेस के बाद केन्द्रीय सत्ता का उपभोग करने वाली यह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। यह सीबीआई के दुरुपयोग का सवाल तो उठाती है, पर रास्ते सुझाते वक्त संशय में नजर आती है। हवाला मामले में जस्टिस जेएस वर्मा ने कहा था कि सीबीआई के नियमन-प्रशासन की जरूरत है। लोकपाल कानून की तरह इस मामले पर भी देश के राजनीतिक तंत्र ने कोई फैसला नहीं किया। लोकपाल विधेयक में यह सबसे कमजोर पहलू है।

बुधवार को संसद में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह और आरजेडी के लालू प्रसाद यादव ने आगाह किया कि लोकपाल कानून दरोगाओं को ताकत दे देगा। संसद की ताकत का क्या अर्थ हमारे राजनेता लगाते है, पता नहीं। अलबत्ता सीबीआई को लेकर हमारा राजनीतिक तंत्र विचलित नज़र आता है। जाँच का सिद्धांत है कि जो भी जाँच कर रहा हो उसके काम में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। जाँच चाहे दरोगा करे या डीआईजी वह जाँच अधिकारी हो तो उसे पूरी ताकत मिलनी चाहिए। तभी वह सही निष्कर्ष पर पहुँच पाएगा। संसदीय संस्थाओं की गरिमा अपनी जगह है। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की शक्तियों का संतुलन ही सफल लोकतंत्र की निशानी है। कोई ज़रूरी नहीं कि अमेरिकी या ब्रिटिश व्यवस्था में से ही हम अपने लिए विचार और सिद्धांत खोजें। यदि हमारी संसद लोकपाल के कार्यों और शक्तियों की परिभाषा कर देगी तो वह इसी व्यवस्था का अंग होगा। कहीं बाहर से नहीं आएगा। और जब ज़रूरी होगा संसद ही उसमें बदलाव करेगी।

बहरहाल कांग्रेस पार्टी के साथ देश के लिए यह चुनौती भरा समय है। खुदरा बाजार में एफडीआई के मामले पर जब हालात बिगड़ रहे थे तब किसी ने अंदेशा जताया था कि मध्यावधि चुनाव के आसार बन रहे हैं। यह अंदेशा भी गलत है। पर इतना ज़रूर नजर आता है कि हमारे पास राष्ट्रीय स्तर पर बड़े कद वाले नेता नहीं हैं। और न चिंतन है। कांग्रेस पार्टी ने बुराड़ी सम्मेलन के वक्त चिंतन शिविरों की बात की थी। पर लगता है पार्टी के पास अब सोचने-विचारने का समय नहीं है। वह एक ओर विधानसभा चुनाव और दूसरी ओर केन्द्र सरकार पर बढ़ते दवाब के बीच है। दूसरे दलों के साथ भी यही कहानी है। जनवाणी में प्रकाशित

 हिन्दू में प्रकाशित केशव का कार्टून
 हिन्दू में प्रकाशित सुरेन्द्र का कार्टून

3 comments:

  1. लोकपाल का जो मसौदा पेश किया गया है उसे समझने में यह आता है कि सरकार बजाय सी बी आई को स्वायत्तता देने के लोकपाल के रूप में ए़क और संगठन बना रही है जो उसके हाथों में होगा और जिस चाहे उस राजनितिक दल या राज्य सरकारों या अन्य संगठनों को अपने ढंग से चलवाने में केंद्र सरकार कि मदद करेगा.

    लोकपाल का चुनाव, हटाने का अधिकार, प्रधानमंत्री की जांच को सार्वजनिक ना करने का अधिकार, लोकपाल को जांच खुद ना कर पाने की विवशता ये सारे बिंदु जो केंद्र सरकार ने लोकपाल का कानून बनाने के लिए रखे हैं ये साबित करते हैं कि कम से कम कांग्रेस पार्टी तो भ्रष्टाचार को हटाने की इच्छुक नहीं है

    अन्य राजनितिक दल भी ब्रहस्पतिवार को संसद में हुई चर्चा में कोई बहुत घम्भीर नज़र नहीं आये और लालू जी ने जिस प्रकार समय खराब किया और गोल मोल बाते करते नज़र आये उससे तो और भी चिंता होती है कि ये कैसे लोगों को हमने संसद में भेज दिया है.

    २७ दिसम्बर को इस बिल पर शुरू होने वाली चर्चा का इंतज़ार ज़रूर रहेगा लेकिन कोई उमीद्द इन राजनेताओं से नहीं है.

    अन्ना हजारे का अब होने वाला आंदोलन पहले से जयादा मुखर और जयादा लोगों के जुड़ाव के साथ होगा. और राज्य चुनावों में कांग्रेस नुक्सान उठाने वाली है.

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  2. Nice post .
    We will fight with unity . Hindu muslim unity is our strenth . See this video against terrorism and corruptions of all types .
    http://www.youtube.com/watch?feature=endscreen&NR=1&v=uBLctMHjhWo

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  3. Congress ne majboot lokpal bill pesh kiya hai,corruption ko majboot karne ka.Phaltoo ki kavayad hai.Janta ke paise ko barbad karna hai. jab enki echha shakti hi nahi hai to aisa hi hona hai.Kewal rasta bhatkana hai Laloo mulayam aur congress sab peeche se ek mat hai Bhala CBI ko independent kar apni gardan katne ke liye thode hi rakh denge.Vahi hal hona hai jo Mahila aarakshan bill ka hua.

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