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Sunday, December 11, 2011

सरकार बनाम सरकार !!!


लड़ाई राजनीति में होनी चाहिए सरकारों में नहीं
नवम्बर के आखिरी हफ्ते में लखनऊ में हुई एक रैली में मायावती ने आरोप लगाया कि हमने केन्द्र सरकार से 80,000 करोड़ रुपए की सहायता माँगी थी, पर हमें मिला कुछ नहीं। यही नहीं संवैधानिक व्यवस्थाओं के तहत जो कुछ मिलना चाहिए वह भी नहीं मिला। संघ सरकार पर राज्य सरकार का करोड़ों रुपया बकाया है। इस तरह केन्द्र सरकार उत्तर प्रदेश के विकास को बंधक बना रही है। कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी खस्ता हालत को देखकर इस कदर डरी हुई है कि उसके महासचिव राहुल गांधी दिल्ली में सारे काम छोड़कर उत्तर प्रदेश में ‘नाटकबाजी’ कर रहे हैं।

उधर राहुल गांधी ने बाराबंकी की एक रैली में कहा कि लखनऊ में एक हाथी विकास योजनाओं का पैसा खा रहा है। पिछले बीस साल से उत्तर प्रदेश में कोई काम नहीं हुआ है। देश आगे जा रहा है और उत्तर प्रदेश पीछे। राहुल गांधी का कहना है कि मनरेगा और शिक्षा से जुड़ी जो रकम उत्तर प्रदेश को मिली उसका दुरुपयोग हुआ। दो साल पहले संसद में पूछे गए एक सवाल में बताया गया था कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में सबसे ज्यादा शिकायतें उत्तर प्रदेश से मिली हैं। हाल में केन्द्रीय रोजगार गारंटी परिषद के सदस्य संदीप दीक्षित ने कहा कि प्रदेश में मनरेगा के तहत 10,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का घोटाला है। हाल में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भी इसी किस्म के आरोप लगाए और इसकी सीबीआई जाँच की माँग भी की। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने इस घोटाले को लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय पर सीधे आरोप लगाए हैं। उत्तर प्रदेश में ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के घोटालों को लेकर सीएजी की कोई रपट भी जल्द आने वाली है। प्रदेश में तीन वरिष्ठ डॉक्टरों की हत्या के बाद से उत्तर प्रदेश की ग्रामीण स्वास्थ्य योजना को लेकर कांग्रेस पार्टी लगातार आलोचना कर रही है।


प्रदेश के लोकायुक्त की रपट पर पाँच मंत्री हटाए जा चुके हैं। कुछ और मंत्रियों, विधायकों और वरिष्ठ नेताओं पर तलवार लटकी है। आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर चल रहा है। इस बीच विधानसभा ने उत्तर प्रदेश के विभाजन का प्रस्ताव पास कर गेंद केन्द्र के पाले में डाल दी है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री मायावती ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर माँग की है कि ओबीसी आरक्षण में मुसलमानों को भी शामिल कर लिया जाए। केन्द्र सरकार अपनी तरफ से पहले ही मुसलमानों को आरक्षण देने की योजना पर काम कर रही है। रंगनाथ मिश्र आयोग ने पहले ही मुलमानों को 10 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की थी। अगले हफ्ते राहुल गांधी बदायूँ से शुरू करके मुरादाबाद, शाहजहाँपुर, बिजनौर, पीलीभीत और बरेली होते हुए कानपुर तक की यात्रा पर निकलने वाले हैं। इन सभी इलाकों के वोटरों में 20 फीसदी से ज्यादा मुसलमान हैं। मायावती 18 दिसम्बर को लखनऊ में रैली करने वाली हैं, जिसमें मुसलमानों पर खास जोर होगा।

सरकार बनाम सरकार। बसपा का मुकाबला एक ओर सरकार बनाने की दावेदार समाजवादी पार्टी और भाजपा से है और दूसरी ओर केन्द्रीय सरकार से है, जिसके प्रतिनिधि के रूप में वे राहुल गांधी को निशाना बना रहीं हैं। वे कहती हैं कि रिटेल कारोबार में विदेशी निवेश की अनुमति के पीछे कांग्रेस के युवराज और उनके दोस्तों को फायदा पहुँचाने की कोशिश थी। राहुल गांधी के मनरेगा-वक्तव्यों के जवाब में वे कहती हैं कि मनरेगा कांग्रेस पार्टी का कार्य़क्रम नहीं है। युवराज इसका श्रेय कैसे ले सकते हैं?

हमारे संविधान निर्माताओं ने कल्पना नहीं की होगी कि कभी केन्द्र और किसी राज्य सरकार में ऐसी भिड़ंत होगी। इस चुनाव में तमाम मुद्दों पर हावी है केन्द्र और उत्तर प्रदेश की सरकारों का टकराव। आम नगारिक के लिए सरकार तो सरकार होती है। पर यहाँ दो सरकारें हैं। संवैधानिक भावना टकराव की नहीं है, पर राजनीति ने उसे अवश्यंभावी बना दिया है। भारतीय राजनीति में यह बात अपेक्षाकृत नई है। पिछले दिनों जब बंगाल में वाम मोर्चा की सरकार थी तब भी यही तस्वीर बन रही थी। ममता बनर्जी नक्सली समूहों के प्रति हमदर्दी रखती थीं और वाम मोर्चा का उनसे टकराव था। इसलिए नक्सलियों से निपटने की गृहमंत्री पी चिदम्बरम और मुख्यमंत्री बुद्धदेव दासगुप्त की रणनीति में निरंतर टकराव चलता रहा। लगभग ऐसी ही तस्वीर बिहार और केन्द्र के रिश्तों में है।

उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने आनन-फानन लोकायुक्त कानून पास करके एक तरह से केन्द्र सरकार पर लोकपाल विधेयक को लेकर पड़ रहे दबाव को बढ़ाया है। तकरीबन ऐसा ही बिहार सरकार ने अपने लोकायुक्त कानून को पास करके किया। गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर राज्यपाल और राज्य सरकार के अधिकारों की पृष्ठभूमि में केन्द्र-राज्य टकराव है। कुछ ऐसा ही टकराव बिहार में कुछ नए कुलपतियों की राज्यपाल द्वारा की गई नियुक्ति से पैदा हो गया है। यह राजनीति है, जो राजव्यवस्था में नजर आ रही है। राज-व्यवस्था को राजनीति निरपेक्ष होना चाहिए। पर ऐसा है नहीं।

हमारा संविधान निरंतर बदलती सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार बदलने के लिए बनाया गया है। हमारी संघीय व्यवस्था निरंतर परिभाषित हो रही है। पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति में निरंतर आ रहे बदलाव आने वाले समय में परेशानियाँ खड़ी करेंगे। दो विपरीत धुरों वाली पार्टियों की सरकारें आपस में टकराने पर उतारू हो गईं तो क्या होगा? 116 साल पुराने मुल्लापेरियार बाँध को लेकर तमिलनाडु और केरल की सरकारों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। यह स्थिति भी एक फिल्म के कारण बनी। पानी के बँटवारे को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक की सरकारें ही नहीं जनता भी आपस में भिड़ चुकी है। कई राज्यों के बीच ऐसे विवाद हैं। केन्द्र और राज्यों के बीच तब तक टकराव की परिस्थिति नहीं बनी जब तक दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकारें होती थीं। पर अब तो वह बीते जमाने की बात है।

केन्द्र सरकार ने पेट्रोलियम की कीमतों में वृद्धि की घोषणा की तो मायावती ने इस साल 31 मई को प्रदेश बंद की घोषणा कर दी। सामान्य नागरिक नहीं समझ पाता कि सरकार कौन है। केन्द्र या राज्य? इसके पीछे चुनाव की राजनीति है। इस राजनीति में अभी दो पक्ष हैं। आने वाले समय में अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग दल और अलग-अलग हित भी हो सकते हैं। तब यह कह पाना और मुश्किल होगा कि सही कौन है और गलत कौन। बहरहाल इसके बारे में पार्टियों को सोचना चाहिए और नागरिकों को भी।    


जनवाणी में प्रकाशित

1 comment:

  1. आने वाले दिनों में ये टकराव और बढते जायेंगे, क्योंकि वर्तमान में जैसी सरकार केंद्र में है, ऐसी सरकारें अपने घटीया प्रदर्शन पे पर्दा डालने के लिए सभी विरोधी पार्टियों कि सरकारों के कामकाज पे ऊँगली उठा के खुद को पाक साफ़ साबित करने कि कोशिश करती रहेंगी.

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