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Saturday, September 17, 2011

बीमारी का इलाज




सन 2008-09 में वैश्विक आर्थिक मंदी की बेला में भारतीय उद्योग-व्यापार ने हाहाकार शुरू कर दिया था। इस पर सरकार ने 1.86 लाख करोड़ रु की कर राहत दी थी। वह अभी जारी है। अभी उद्योगपति और कर राहत चाहते हैं। सरकार खाद्य सुरक्षा का बिल ला रही है। इस पर काफी खर्च होगा। सरकार के पास वित्तीय घाटे को सन 2013-14 तक 3.5 प्रतिशत पर लाने का तरीका सिर्फ यही है कि उपभोक्ता पर लगने वाला टैक्स बढ़ाओ। पेट्रोल के 70 रु में 45 से ज्याद टैक्स है। पेट्रोल की कीमत बढ़ने से सिर्फ कार चलाने वालों को ही कष्ट नहीं होता। सब्जी से लेकर दूध तक महंगा हो जाता है। वही हो रहा है। हिन्दू में केशव का यह कार्टून सही इशारा कर रहा है। डीएनए में मंजुल का कार्टून कार चलाने वालों की टूटती साँस की ओर इशारा कर रहा है



पेट्रोल की कीमत बढ़ाए जाने पर आज बहुत कम अखबारों ने सम्पादकीय लिखे हैं। सबसे जोरदार विरोध हिन्दू ने ही किया है। शॉकिंग एंड इनसेंसिटिव शीर्षक सम्पादकीय में हिन्दू ने कहा है कि डीज़ल की कीमत न बढ़ाने के पीछे कारण यह बताया गया है कि इससे कृषि उत्पादों के दाम बढ़ेंगे। पर सच यह है कि इसका फायदा महंगी डीज़ल कार और एसयूवी चलाने वालों को मिलेगा। टू ह्वीलर और छोटी कार चलाने वालों को सदमा लगेगा। नीचे पढ़ें सम्पादकीय के अंशः-


While grappling with the hardships of high inflation, most evident in the sharp rises in the prices of essential commodities, India's middle classes cannot afford the ballooning of their household budgets on account of recurrent petrol price increases. Nor are the poor spared the indirect effects. Waiting in the wings is a proposal to limit the number of LPG cylinders supplied to households paying income tax to between four and six a year. Although a meeting of the Empowered Group of Ministers that was to decide this issue on Friday was deferred following open opposition from the Trinamool Congress and the Dravida Munnetra Kazhagam, indications are that the relief might be temporary. Political expediency, and not social commitment, seems to have stayed the hand of the government on this sensitive issue. Targeting subsidies is the name of the game, with the UPA government conveniently ignoring the fact that with social targeting, errors of exclusion are invariably high and the poorer and weaker sections often fall through the safety net. India still needs price controls on petroleum products if hundreds of millions of its vulnerable people are not to be exposed to sudden shocks.


हिन्दी में आज के हिन्दुस्तान ने महंगाई पर सम्पादकीय लिखा है 



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