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Saturday, December 4, 2010

राजदीप सरदेसाई भाग-1

राजदीप इसे मिस-कंडक्ट नहीं मिस-जजमेंट मानते हैं। इसे मानने में दिक्कत नहीं है, पर इसे मानने का मतलब है कि हम इस किस्म की पत्रकारिता से जुड़े आचरण को उचित मानते हैं। इन टेपों को सुनें तो आप समझ जाएंगे कि इन पत्रकारों ने नीरा राडिया से सवाल नहीं किए हैं, बल्कि उनके साथ एक ही नाव की सवारी की है। ये पत्रकार नीरा राडिया से कहीं असहमत नहीं लगते। व्यवस्था की खामियों को वे देख ही नहीं पा रहे हैं। दरअसल पत्रकारिता की परम्परागत समझ उन्हें है ही नहीं और वे अपने सेलेब्रिटी होने के नशे में हैं।

4 comments:

  1. अब उन कथित सेलेब्रिटियों की हक़ीक़त से जनता भी वाकिफ़ हो चुकी है। यह वाक्या पूरे चौथे खंभे को शर्मसार कर देने वाला है। पता नहीं, मीडिया के किस इथिक के तहत राजदीप उनका पक्ष ले रहे हैं।

    गांवों में एक कहावत बड़ी मशहूर है..."दही का गवाही चूड़ा"...

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  2. आखिर क्यों नहीं, राजदीप का काफी लम्बे अरसे तक 'मिस जजमेंट' के साथ रिश्ता रहा है। हां, यह रिश्ता अभी पूरी तरह टूटा नहीं। फिर फील्ड कॉमन कभी भी टक्कर और सामना हो सकता है।

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  3. राजदीप 'सर'देसाई को पूरा सुना... पूरी दलील सुनने के बाद यह लगता है कि हमाम में सब नंगे हैं। दूसरी बात राजदीप साहब यह कहना चाहते हैं कि सब चोर हैं। लेकिन यह उन्हें भी पता है कि जो पकड़ा जाता है उसे ही चोर कहते हैं और वह ही चीख कर कहता है कि मैं चोर नहीं हूं। उसे साबित करना होता है कि वह चोर नहीं है।
    दूसरी बात 'मिस जजमेंट' की आड़ में जो वह कह रहे हैं वह भी पूरी तरह से गलत है। आखिर वह आदमी ग्रुप एडिटर कैसे रह सकता है जो लगातार वर्षों तक मिस जजमेंट की खाता है। अगर यह ही उसका जजमेंट है जो यदि वह कहे कि उसकी मजबूरी है तो उसे अपने को पत्रकार कहने से परहेज करना चाहिए और तीसरी बात पत्रकारिता के लम्बे लम्बे सिद्धांतों की बात से नवोदित पत्रकारों को दिग्भ्रमित न करें।

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  4. एक अहम और सबसे जरूरी बात राजदीप के लिए... आखिर वह एडिटर्स गिल्ड में अब क्या कर रहे हैं... जब वह यह मान रहे हैं कि मिस जजमेंट हो गई है या हो सकती है तो वह क्या ऐसे आदमी इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए।

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