भारत और जापान के बीच एटमी सहयोग की बातचीत लम्बे अर्से से चली आ रही है, पर हाल के दिनों में इसमें तेजी आई है। इसके पीछे जापान की अपनी आर्थिक दुश्वारियाँ ज्यादा हैं। बहरहाल तमाम अंदेशों के बावज़ूद ऐसा लगता है कि इस साल के अंत में जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जापान जाएंगे तब भारत-जापान न्यूक्लियर संधि हो जाएगी। अंतरराष्ट्रीय रिश्तों के बनने और बिगड़ने की गति आसानी से नज़र नहीं आता।
भारत-जापान रिश्तों के भविष्य में और प्रगाढ़ होने की अच्छी खासी सम्भावनाएं हैं। इसके पीछे भौगोलिक यथार्थ, सामरिक और आर्थिक ज़रूरतें हैं। यों तो आज कोई किसी या शत्रु या मित्र नहीं है, पर कुछ मित्र अपेक्षाकृत ज्यादा सहज होते हैं। जापान हमारा अपेक्षाकृत सहज मित्र है।
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विश्लेषण आईडीएसए की टिप्पणी
joshiji apko sadinama kii prtimili plz inform
ReplyDeleteनहीं मिली
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