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Wednesday, August 11, 2010

साथी हाथ बढ़ाना

एक ज़माने में हिन्दी फिल्मों की थीम गरीबों के इर्द-गिर्द होती थी। मदद करना, सहयोग करना, दूसरे के दुख में साझीदार होना उसका मकसद था। अब की फिल्मों के नायक चमक-दमक का जीवन जीते हैं। गरीब-गुर्बे पृष्ठभूमि में चले गए हैं। शायद इसीलिए हम सबने मदद के मूल्यों को बिसरा दिया है। अमेरिका के चालीस फीसदी अमीरों नें कम से कम अपनी आधी सम्पदा दान में देने की घोषणा करके भरोसा बढ़ाया है। शायद हमारे देश के सम्पन्न
वर्ग को भी अपनी जिम्मेदारी समझ में आए।
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अमेरिकी अमीरों ने संकल्प किया
संकल्प करने वालों की सूची
भारतीय दानशीलता पर बैन एंड कम्पनी की रपट
देविन बनर्जी की रपट
द क्रॉनिकल ऑव फिलैन्थ्रॉपी दानशीलता को समर्पित पत्रिका

2 comments:

  1. वास्तव में, प्रमोद जी , हमारी स्वार्थपरता ही है जो परलोक के भ्रम में इहलोक को खराब करने पर तुले हैं

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  2. सुबह पड़ा था। फिल्मी विषय क्या इस बात के घोतक नही हैं कि समाज ने पहले अपने मूल्य खोने शुरु किए। क्या समाज के अंदर कई स्तर पर एक साथ कई तरह के आंदोलन का समय नहीं है ।

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