ऐसा लगता है हमारी समूची राजनीति अपने अस्तित्व को लेकर फिक्रमंद नहीं है। कश्मीर-समस्या इस राजनीति की देन है। एक ज़माने तक केन्द्र सरकार वहाँ सरकार बनाने और गिराने के खेल खेलती रही। जब पाकिस्तान के समर्थन से हिंसक शक्तियों ने मोर्चा सम्हाल लिया तो उसे दुरुस्त करने की बड़ी कीमत हमें चुकानी पड़ी। फिर वहाँ हालात सुधरे और 2009 के चुनाव में बेहतर मतदान हुआ। उसके बाद आई नई सरकार ने चादर खींच कर लम्बी तान ली। अब हम किसी राजनैतिक पैकेज का इंतज़ार कर रहे हैं। इस पैकेज का अर्थ क्या है? एक अर्थ है सन 2000 का स्वायत्तता प्रस्ताव जिसे नेशनल कांफ्रेस भी भूल चुकी है। विडंबना देखिए कि हिंसक आतंकवादियों को परास्त करने के बाद हम ढेलेबाज़ी कर रहे किशोरों से हार रहे हैं। भीलन लूटीं गोपियाँ.....
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बलराज पुरी का लेख
हिन्दू में हैपीमन जैकब का लेख
हिन्दू में सम्पादकीय
कश्मीर का घटनाक्रम 2002 तक-इंडिया टुगैदर
कश्मीर समस्या पाकिस्तान की वजह से नहीं बल्कि हमारे भ्रष्ट नेताओं और कुछ बेहद हैवान किस्म के सैन्य अधिकारियों के स्वार्थ की वजह से चल रहा है | इसका समाधान तब हो सकता है जब वहां बेहद इमानदार लोगों को हर-हाल में न्यायसंगत व तर्कसंगत आधार पर समस्या को सुलझाने का जिम्मा दिया जाय और देश भर के इमानदार लोगों को उसका निगरानी भी करने दिया जाय | अभी तो इस समस्या के आर में अड्बों रुपया का खर्च सैन्य और अन्य खर्चों पे दिखाकर सिर्फ बन्दर बाँट किजा जा रहा है जिसे रोकने वाला कोई नहीं है ,कश्मीर समस्या भ्रष्ट सत्ता के दलालों के लिए भी दुधारू गाय की तरह है नुकसान सिर्फ और सिर्फ उन इंसानों का है जो कश्मीर में रह रहें हैं या रहने को मजबूर हैं ...|
ReplyDeleteKashmir samsya par jis tarah se rajniti hoti hai wah behat dukhdaaye aur nijswarth purti mein lagi partiyon ke liye satta hasil karne ka mudda hai... jo ki desh ke liye ghatak hai..
ReplyDeleteAapne bahut hi sahi dhang se sabke samne aaj kee sachhi ujjagar ki hai..
bahut aabhar
बिलकुल सही कहा.
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा आपने....यही तो विडंबना है...
ReplyDeleteकभी 'डाकिया डाक लाया' पर भी आयें...