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Wednesday, July 28, 2010

विकीलीक्स जैसे काम क्या सही हैं?

विकीलीक्स का नाम इस बार काफी बड़े स्तर पर सामने आया है, पर पत्रकारिता तो काफी हद तक इस तरह की लीक के सहारे चलती रही है। कोई न कोई भीतर के भेद बाहर करता है। विकीलीक्स ने 92000 से ज्यादा दस्तावेज़ बाहर निकाले हैं । इसका मतलब है कि एक-दो नहीं काफी लोग इस काम में लगे होंगे। दस्तावेज़ ओबामा प्रशासन से पहले के हैं। इनमें नई बात कोई खास नहीं है। अलबत्ता एक जानकारी नई है कि तालिबान के पास हीट सीकिंग विमानभेदी मिसाइलें हैं। 


ऐसी जानकारियाँ बाहर आने से रक्षा व्यवस्था को ठेस लगना स्वाभाविक है। यह जानकारी तालिबान के पास भी गई है। इससे उनकी रणनीति को मदद मिलती है। खुफिया जानकारी को जाहिर न करने की कानूनी व्यवस्था है। अमेरिकी खुफिया विभाग को अब यह पता लगाना होगा कि लीक कैसे हुआ। 


इस लीक में जिस 'टॉर' तकनीक का इस्तेमाल हुआ है, उसका उद्देश्य सार्वजनिक हित में काम करना है। साथ ही हैकिंग के नैतिक पहलू भी सामने आए हैं। सरकारें सार्वजनिक हित में काम करतीं हैं या गैर-सरकारी लोग सार्जनिक हित में काम करते हैं, इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। बहरहाल सोचने-बिचारने के लिए एक नया विषय हमारे पास है।  हम इस मामले को अमेरिका के संदर्भ में देखते हैं, पर यदि ऐसा लीक हमारे देश में होता तब क्या हमारी यही प्रतिक्रिया होती? 


हिन्दुस्तान में प्रकाशित मेरा लेख पढ़ने के लिए कतरन पर क्लिक करें

कुछ उपयोगी लिंक
अमेरिका ने वॉर फंडिंग बिल पास किया
लीक दस्तावेज़ों को समझने में हफ्तों लगेंगे
ओबामा ने लीक के सहारे अपनी नीति को सही बताया
अमेरिकी लीक्स का इतिहास
हूट में नूपुर बसु का लेख

2 comments:

  1. i am waiting for the day when site like wiki-leaks will bring facts from Indian govt and show us the real facts of some of the key govt decisions.

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  2. विकीलीक्स जो काम कर रहा है, वैसा काम तो हर देश में होना चाहिये, खासकर भारत में… जहाँ लोकतन्त्र "लूट का साधन" बन चुका है। जरा सोचिये, कॉमनवेल्थ के अनाप-शनाप खर्चों और मनमाने ठेकों के बारे में यदि अभी एक बड़ा लीक हो जाये तो?

    जो काम "ईमानदार पत्रकारों" (ये बड़ा दुर्लभ प्राणी है) को करना चाहिये, अब विकीलीक्स जैसे कर रहे हैं…

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