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Sunday, May 30, 2010
हिन्दी पत्रकारिता दिवस
आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस है। 184 साल हो गए। मुझे लगता है कि हिन्दी पत्रकार में अपने कर्म के प्रति जोश कम है। तमाम बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। उदंत मार्तंड इसलिए बंद हुआ कि उसे चलाने लायक पैसे पं जुगल किशोर शुक्ल के पास नहीं थे। आज बहुत से लोग पैसा लगा रहे हैं। यह बड़ा कारोबार बन गया है। जो हिन्दी का क ख ग नहीं जानते वे हिन्दी में आ रहे हैं, पर मुझे लगता है कि कुछ खो गया है। क्या मैं गलत सोचता हूँ?
लतिकेश जी शायद गणेश संकर विद्यार्थी के डाक टिकट पर लिखी तारीख से संशय में पड़ गए। दर असल मैं उदंत मार्तंड का चित्र लगाना चाहता था। मिला नहीं, इसलिए विद्यार्थी जी और माथुर जी का चित्र लगा दिया. यह सिर्फ प्रतीक भर है।
एक विचारणीय आलेख । पत्रकारिता कोई धंधा नहीं है,यह तो सत्य को सामने लाने का एक मिशन है, हिंदी पत्रकारिता में सत्यनिष्ठ पत्रकारों की बहुत जरूरत है । इस ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए धन्यवाद ।
सर नमस्ते, आपका लेख मुझे बहुत ही अच्छा लगा, वैसे आपके लेख को मेरे जैसी छोटी पत्रकार की प्रतिक्रिया की कोई आवश्यकता तो नहीं है लेकिन फिर भी एक पाठक का यह उत्तर दायित्व बनता है की वह पढ़ कर प्रतिक्रिया दे, प्रतिक्रिया से ही लेखक का लिखना सफ़र मन जाता है, यह मेरी अपनी राय है, सर यह बात तो रही आपके लेख की, अब मैं आपसे यह जानना चाहती हूँ की आपने अपने ब्लॉग के हेडर पर जो तस्वीर लगाईं है उसका क्या सन्देश है, यक़ीनन मुझे जिज्ञासा हुई जानने की , अंत में अपना छोटा सा परिचय शुरुआत में इसलिए नहीं लिखा की अगर शुरू में ही लिख देती तो शायद आप मेरी जिज्ञासा नहीं जान पाते और मेरा परिचय पढ़कर ही छोड़ देते, सर मेरा नाम प्रीती पाण्डेय है, एक छोटे अखबार में सहायक संपादक हूँ, पत्रकारिता की पगडण्डी पर अभी कदम भर रखा है, अभी मेरा बस यही छोटा सा परिचय है, हिन्दुस्तान में इन्टरन के दोरान ही आपसे एक- दो बार मिलना का सोभाग्य प्राप्त हुआ था. www.merikoshish.blogspot.com
प्रीति जी धन्यवाद। हैडर पर चार जिज्ञासु चार सुन्दर और जिज्ञासु नज़र आने वाले कुत्तों का चित्र लगाते वक्त मैं इनकी आँखों की जिज्ञासा से प्रभावित हुआ था। दूसरे अपने काम को मैं समाज के वॉचडॉग के रूप में भी देखता हूँ। यों कुत्ते मनुष्य के सबसे अच्छे मित्रों में से एक होते हैं। महाभारत के अंत में पांडवों का अंत तक साथ एक कुत्ते ने दिया था। तीसरे मुझे यह एक रोचक चित्र लगा। मेरे ब्लाग में नचे एक दाईं ओर के कॉलम में एक विजेट है जिसमें एक पपी की तस्वीर रोज़ बदलती है। यह भी सिर्फ एक चित्र है।
आपकी जिज्ञासा का मैं स्वागत करता हूँ। मेरे विचार से मनुष्य के पास जो सबसे अच्छी निधियाँ हैं उनमें एक जिज्ञासा भी है। वह उसे श्रेष्ठतम राह पर ले जाने में सहायक हो सकती है।
प्रति आपने यह नहीं बताया कि आप किस अखबार में काम करतीं हैं। शुभकामनाएं।
एक युग था जबपत्रिकाएं, अख़बार समाज की दिशा और दशा दोनों को तय करते थे । आज के परिवेश में काफी बदलाव आया है । व्यवसायीकरण ने चौथे स्तम्भ को भी प्रभावित कर दिया है ।
सर मुझे लगता है की १८४ साल की जगह ८४ होनी चाहिए
ReplyDeleteसर मुझे लगता है की १८४ साल की जगह ८४ होनी चाहिए
ReplyDelete30 मई 1826 को उदंत मार्तंड का पहला अंक निकला। इस हिसाब से 184 साल ही होंगे।
ReplyDeleteलतिकेश जी शायद गणेश संकर विद्यार्थी के डाक टिकट पर लिखी तारीख से संशय में पड़ गए। दर असल मैं उदंत मार्तंड का चित्र लगाना चाहता था। मिला नहीं, इसलिए विद्यार्थी जी और माथुर जी का चित्र लगा दिया. यह सिर्फ प्रतीक भर है।
ReplyDeleteएक विचारणीय आलेख । पत्रकारिता कोई धंधा नहीं है,यह तो सत्य को सामने लाने का एक मिशन है, हिंदी पत्रकारिता में सत्यनिष्ठ पत्रकारों की बहुत जरूरत है । इस ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए धन्यवाद ।
ReplyDeleteएक बार फिर जानकारिओं से भरी सच्ची तस्वीर......पर सवाल वही है..हमे अब करना क्या है...?
ReplyDeleteआभार . माथुरजी का चित्र क्यों लगा है ? गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ नहीं जँचा !
ReplyDeleteधन्मुयवाद। मुझे माथुर जी याद रखने लायक पत्रकार लगते हैं।
ReplyDeleteसर नमस्ते, आपका लेख मुझे बहुत ही अच्छा लगा, वैसे आपके लेख को मेरे जैसी छोटी पत्रकार की प्रतिक्रिया की कोई आवश्यकता तो नहीं है लेकिन फिर भी एक पाठक का यह उत्तर दायित्व बनता है की वह पढ़ कर प्रतिक्रिया दे, प्रतिक्रिया से ही लेखक का लिखना सफ़र मन जाता है, यह मेरी अपनी राय है, सर यह बात तो रही आपके लेख की, अब मैं आपसे यह जानना चाहती हूँ की आपने अपने ब्लॉग के हेडर पर जो तस्वीर लगाईं है उसका क्या सन्देश है, यक़ीनन मुझे जिज्ञासा हुई जानने की , अंत में अपना छोटा सा परिचय शुरुआत में इसलिए नहीं लिखा की अगर शुरू में ही लिख देती तो शायद आप मेरी जिज्ञासा नहीं जान पाते और मेरा परिचय पढ़कर ही छोड़ देते, सर मेरा नाम प्रीती पाण्डेय है, एक छोटे अखबार में सहायक संपादक हूँ, पत्रकारिता की पगडण्डी पर अभी कदम भर रखा है, अभी मेरा बस यही छोटा सा परिचय है, हिन्दुस्तान में इन्टरन के दोरान ही आपसे एक- दो बार मिलना का सोभाग्य प्राप्त हुआ था.
ReplyDeletewww.merikoshish.blogspot.com
प्रीति जी धन्यवाद। हैडर पर चार जिज्ञासु चार सुन्दर और जिज्ञासु नज़र आने वाले कुत्तों का चित्र लगाते वक्त मैं इनकी आँखों की जिज्ञासा से प्रभावित हुआ था। दूसरे अपने काम को मैं समाज के वॉचडॉग के रूप में भी देखता हूँ। यों कुत्ते मनुष्य के सबसे अच्छे मित्रों में से एक होते हैं। महाभारत के अंत में पांडवों का अंत तक साथ एक कुत्ते ने दिया था। तीसरे मुझे यह एक रोचक चित्र लगा। मेरे ब्लाग में नचे एक दाईं ओर के कॉलम में एक विजेट है जिसमें एक पपी की तस्वीर रोज़ बदलती है। यह भी सिर्फ एक चित्र है।
ReplyDeleteआपकी जिज्ञासा का मैं स्वागत करता हूँ। मेरे विचार से मनुष्य के पास जो सबसे अच्छी निधियाँ हैं उनमें एक जिज्ञासा भी है। वह उसे श्रेष्ठतम राह पर ले जाने में सहायक हो सकती है।
प्रति आपने यह नहीं बताया कि आप किस अखबार में काम करतीं हैं। शुभकामनाएं।
सर क्या अप मुझे पत्रकारिता स्वतन्त्रता दिवस की डेट बता सकते हैं आप की बड़ी कृपा होगी
ReplyDeleteपत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस के बारे में मैं नहीं जानता। कृपया स्पष्ट करें।
ReplyDeleteएक युग था जबपत्रिकाएं, अख़बार समाज की दिशा और दशा दोनों को तय करते थे । आज के परिवेश में काफी बदलाव आया है । व्यवसायीकरण ने चौथे स्तम्भ को भी प्रभावित कर दिया है ।
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