Sunday, December 5, 2021

पुतिन के भारत-दौरे के निहितार्थ


रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सोमवार 6 दिसंबर को दो दिन की भारत-यात्रा पर आ रहे हैं। इस दौरान वे दोनों देशों के बीच सालाना शिखर-वार्ता में शामिल होंगे। भारत-रूस वार्षिक शिखर वार्ता सितंबर 2019 में हुई थी जब मोदी व्लादीवोस्तक गए थे। पिछले साल कोविड-19 महामारी के कारण शिखर वार्ता नहीं हो सकी। पुतिन सोमवार को दिल्ली पहुंचेंगे जबकि रूस के विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव और रक्षामंत्री सर्गेई शोयगू रविवार की रात को पहुंच जाएंगे।

टू प्लस टू वार्ता

इस यात्रा के दौरान ही दोनों देशों के बीच टू प्लस टूवार्ता की शुरुआत होगी। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेशमंत्री एस जयशंकर रूसी मंत्रियों के साथ ‘टू प्लस टू’ वार्ता करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच शिखर वार्ता में रक्षा, व्यापार और निवेश, ऊर्जा और तकनीक के अहम क्षेत्रों में सहयोग मजबूत करने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर करने की संभावना है।

इस यात्रा के पहले भारत के सरकारी सूत्रों ने अनौपचारिक रूप से मीडिया को जो संकेत दिए हैं, उनके अनुसार यह यात्रा काफी महत्वपूर्ण साबित होगी। दोनों देशों के बीच रिश्तों को लेकर हाल के वर्षों में कभी तनाव और कभी सुधार की खबरें आती रही हैं। हाल में रूस और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार हुआ है। रूसी सिक्योरिटी कौंसिल के महासचिव निकोलाई पात्रुशेव ने हाल में पाकिस्तान की यात्रा की है। रूस की दिलचस्पी अफगानिस्तान में है, जिसमें पाकिस्तान से उसे उम्मीदें हैं।  

आर्थिक सहयोग

भारत और रूस मुख्यतः रक्षा-तकनीक में साझीदार हैं। भारतीय सेनाओं के पास करीब 60 फीसदी शस्त्रास्त्र रूसी तकनीक पर आधारित हैं। इस यात्रा के ठीक पहले सुरक्षा से संबद्ध कैबिनेट कमेटी ने अमेठी के कोरवा में एके-203 असॉल्ट राइफल्स के विनिर्माण के लिए करीब 5,000 करोड़ रुपए के समझौते को मंजूरी दे दी है। संभवतः इस समझौते पर इस दौरान हस्ताक्षर होंगे। इसके अलावा हाल में आर्थिक रिश्ते भी बने हैं। खासतौर से भारत ने रूस के पेट्रोलियम-कारोबार में निवेश किया है।

एमएसपी-गारंटी से जुड़े सवाल


तीन कृषि-कानूनों की वापसी का विधेयक दोनों सदनों से पारित हो चुका है, लेकिन किसान क़ानूनों की वापसी के साथ-साथ, लगातार एक मांग करते आए हैं कि उन्हें फसलों पर एमएसपी की गारंटी दी जाए। उधर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने फसल विविधीकरण, शून्य-बजट खेती, और एमएसपी प्रणाली को पारदर्शी और प्रभावी बनाने के मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए एक समिति गठित करने की घोषणा की है। कमेटी में किसान संगठनों के प्रतिनिधि भी होंगे। एमएसपी व्यवस्था को पुष्ट और व्यावहारिक बनाना है, तो इसमें किसान संगठनों की भूमिका भी है। उनकी जिम्मेदारी केवल आंदोलन चलाने तक सीमित नहीं है।

क्या किसान मानेंगे?

शनिवार को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में तय किया गया कि अभी हमारे कुछ मसले बाकी हैं। सरकार के साथ बात करने के लिए किसानों की पाँच-सदस्यीय समिति बनाई गई है। अब 7 दिसंबर को एक और बैठक होगी, जिसमें आंदोलन के बारे में फैसला किया जाएगा। मोर्चा ने 21 नवंबर को छह मांगों को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। सरकार संसद में एमएसपी गारंटी कानून बनाने पर प्रतिबद्धता बताए। कमेटी गठित कर इसकी ड्राफ्टिंग क्लियर करे और समय सीमा तय करे। किसानों पर दर्ज मुकदमे रद्द करे, आंदोलन के शहीदों के आश्रितों को मुआवजा और उनका पुनर्वास, शहीद स्मारक बनाने को जगह दे। किसानों का कहना है कि सरकार ने इस पत्र का जवाब नहीं दिया है।

कानूनी गारंटी

इनमें सबसे महत्वपूर्ण माँग है एमएसपी गारंटी कानून। सरकार ने एमएसपी पर कमेटी बनाने की घोषणा तो की है, पर क्या वह इसकी गारंटी देने वाला कानून बनाएगी या बना पाएगीभारत में किसानों को उनकी उपज का ठीक मूल्य दिलाने और बाजार में कीमतों को गिरने से रोकने के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा करती है। कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों पर सरकार फसल बोने के पहले कुछ कृषि उत्पादों पर समर्थन मूल्य की घोषणा करती है। खासतौर से जब फसल बेहतर हो तब समर्थन मूल्य की जरूरत होती है, क्योंकि ऐसे में कीमतें गिरने का अंदेशा होता है।

कितनी फसलें

इस समय 23 फसलों की एमएसपी केंद्र-सरकार घोषित करती है। इनमें सात अन्न (धान, गेहूँ, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी और जौ), पाँच दलहन (चना, तूर या अरहर, मूँग, उरद और मसूर), सात तिलहन (रेपसीड-सरसों, मूँगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम (सैफ्लावर) और नाइजरसीड) और नकदी (कॉमर्शियल) फसलें गन्ना, कपास, नारियल और जूट शामिल हैं। सिद्धांततः एमएसपी का मतलब है लागत पर कम से कम पचास फीसदी का लाभ, पर व्यावहारिक रूप से ऐसा होता नहीं। फसल के समय पर किसानों से एमएसपी से कम कीमत मिलती है। चूंकि एमएसपी को कानूनी गारंटी नहीं है, इसलिए वे इस कीमत पर अड़ नहीं सकते। किसान चाहते हैं कि उन्हें यह कीमत दिलाने की कानूनन गारंटी मिले।

Friday, December 3, 2021

यूरोप में भयावह लहर, फिर भी कोविड-पाबंदियों का विरोध


कोरोना वायरस ने एक बार फिर यूरोप में कहर मचाना शुरू कर दिया है। ज्यादातर देशों ने कोविड-पाबंदियों को सख्ती से लागू करना शुरू किया है, जिनका विरोध हो रहा है। पाबंदियों का विरोध ही नहीं वैक्सीनेशन का विरोध भी हो रहा है। ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में 40,000 ऐसे लोगों ने विरोध-प्रदर्शन किया है, जिन्होंने टीके नहीं लगवाए। उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यूरोप और मध्य एशिया के 53 देशों को चेतावनी दी है कि इन दो इलाकों में कोविड-19 से फरवरी तक पाँच लाख मौतें हो सकती हैं। संक्रमण की वजह से हो रही मौतों में से करीब आधी यूरोप के देशों में हैं। यूरोप में एक हफ्ते में 20 लाख से ज्यादा नए केस मिल रहे हैं।

टीके की अनिवार्यता

इस लहर की भयावहता को देखते हुए संभवतः ऑस्ट्रिया अगले साल फरवरी से पहला देश बनेगा, जहाँ टीका लगवाना कानूनन अनिवार्य किया जा सकता है। शुक्रवार 19 नवंबर को सरकार ने इस आशय की घोषणा की। इस घोषणा के बाद राजधानी वियना में हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के यूरोप में रीजनल डायरेक्टर डॉ हैंस क्लूग का कहना है कि कानूनन वैक्सीनेशन को अनिवार्य बनाना अंतिम उपाय होना चाहिए। अलबत्ता इस विषय पर समाज में व्यापक विचार-विमर्श होना चाहिए।

डॉ क्लूग का कहना है कि मास्क पहनने से संक्रमण को काफी हद तक रोका जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सर्दी का मौसम, टीकाकरण में कमी और बहुत तेजी से फैलने वाले डेल्टा वेरिएंट की उपस्थिति के कारण यूरोप पर खतरा बढ़ा है। यूरोप और मध्य एशिया के देशों में अब तक करीब 14 लाख लोगों की मौतें इस महामारी से हो चुकी हैं। अब यूरोप और मध्य एशिया के देशों में सर्दी शुरू होने के कारण बीमारी के बढ़ने का अंदेशा पैदा हो गया है। पूर्वी यूरोप के देशों में हालात खासतौर से ज्यादा खराब हैं। रोमानिया, एस्तोनिया, लात्विया और लिथुआनिया जैसे देशों में स्थिति खराब है।

लॉकडाउन

ऑस्ट्रिया ने सोमवार 22 नवंबर से देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया। लॉकडाउन अधिकतम 20 दिन तक चलेगा, हालांकि 10 दिन के बाद इसपर पुनर्विचार किया जाएगा। इस दौरान लोगों के अनावश्यक रूप से बाहर जाने पर रोक होगी, रेस्तरां तथा ज्यादातर दुकानें बंद रहेंगी और बड़े आयोजन रद्द रहेंगे। स्कूल और ‘डे-केयर सेंट’ खुले तो रहेंगे, लेकिन अभिभावकों को बच्चों को घर पर रखने की सलाह दी गई है।

इससे एक दिन पहले, रविवार को मध्य वियना के बाजारों में भीड़ उमड़ पड़ी। यह भीड़ लॉकडाउन से पहले जरूरत की चीजों और क्रिसमस की खरीदारी के लिए भी थी। लोगों के मन में भविष्य को लेकर अनिश्चय है। देश के चांसलर अलेक्जेंडर शालेनबर्ग ने शुक्रवार को लॉकडाउन की घोषणा की थी। तब उन्होंने यह भी कहा था कि अगले वर्ष एक फरवरी से यहां लोगों के लिए टीकाकरण अनिवार्य किया जा सकता है।

ऑस्ट्रिया ने शुरू में केवल उन लोगों के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की शुरुआत की थी, जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है, लेकिन संक्रमण के मामले बढ़ने पर सरकार ने सभी के लिए इसे लागू कर दिया। दो सबसे ज्यादा प्रभावित प्रांत, सॉल्ज़बर्ग और ऊपरी ऑस्ट्रिया ने कहा कि वे अपने यहां लॉकडाउन की शुरुआत करेंगे, जिससे सरकार पर राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा करने का दबाव बढ़ेगा। नए प्रतिबंधों की घोषणा और अगले साल टीकों को अनिवार्य बनाने की योजना के बाद 10 हजार से ज्यादा लोगों ने ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में भी विरोध प्रदर्शन किया।

कांग्रेस के बगैर क्या ममता सफल होंगी?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार 1 दिसंबर को मुंबई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद पवार से मुलाक़ात के बाद पत्रकारों से कहा, "यूपीए क्या है? कोई यूपीए नहीं है।" पत्रकारों ने उनसे पूछा था कि क्या शरद पवार को यूपीए का नेतृत्व करना चाहिए? इसके जवाब में ममता बनर्जी ने यूपीए पर ही सवाल उठा दिया। साथ ही कांग्रेस को लगभग खारिज करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि सभी क्षेत्रीय पार्टियां साथ आ जाएं तो बीजेपी को आसानी से हराया जा सकता है। हालांकि तृणमूल कांग्रेस 2012 में ही यूपीए से अलग हो चुकी थी, पर यूपीए का अस्तित्व आज भी बना हुआ है, पर उससे जुड़े कई सवाल हैं। मसलन महाराष्ट्र में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की सरकार है यूपीए की नहीं।

तृणमूल नेताओं का कहना है पार्टी के विस्तार को कांग्रेस के खिलाफ कदम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। पर ममता बनर्जी ने बयान दिया कि बीजेपी से लड़ने की इच्छा रखने वाले हर नेता का वह स्वागत करेंगी। साफ है कि पार्टी की रणनीति में यह नया बदलाव है। अलबत्ता ममता बनर्जी ने महाराष्ट्र में जो आक्रामक मुद्रा अपनाई उससे बीजेपी के बजाय विरोधी दलों में तिलमिलाहट नजर आ रही है।

राहुल पर हमला

कांग्रेस पार्टी और उसके नेतृत्व पर सीधा हमला बोलते हुए ममता ने कहा कि ज्यादातर समय विदेश में बिताते हुए आप राजनीति नहीं कर सकते। उनका इशारा राहुल गांधी की तरफ था। ममता ने कहा, "आज जो परिस्थिति चल रही है देश में, जैसा फासिज्म चल रहा है, इसके ख़िलाफ़ एक मज़बूत वैकल्पिक ताक़त बनानी पड़ेगी, अकेला कोई नहीं कर सकता है, जो मज़बूत है उसे लेकर करना पड़ेगा।"

ममता बनर्जी इन दिनों पश्चिम बंगाल के बाहर राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले रही हैं। उन्होंने स्वयं बाहर के कई दौरे किए हैं और विरोधी दलों के नेताओं से मुलाक़ात की है। राजनीतिक विश्लेषक इसे ममता बनर्जी की विपक्ष की राजनीति में कांग्रेस की जगह लेने की कोशिश के रूप में देखते हैं। साथ ही यह भी कि ममता बनर्जी अपनी स्थिति को मजबूत बना रही हैं, ताकि आने वाले समय में उन्हें कांग्रेस के साथ सौदेबाजी करनी पड़े, तो अच्छी शर्तों पर हो। 

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस यूपीए का हिस्सा रही है, लेकिन साल 2012 में वे इससे अलग हो गईं। पर कांग्रेस के साथ मनमुटाव उसके भी काफी पहले से शुरू हो चुका था। सन 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में यह साफ नजर आने लगा, जब ममता बनर्जी और मुलायम सिंह ने मिलकर एपीजे अब्दुल कलाम का नाम आगे कर दिया था। 2014 और फिर 2019 चुनावों में बीजेपी की जीत के बाद ये गठबंधन सिमट गया है.

क्या है यूपीए?

2004 में बनीं राजनीतिक परिस्थितियों के जवाब में कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए बना था। चार वामदलों- सीपीएम, सीपीआई, आरएसपी और फॉरवर्ड ब्लॉक ने गठबंधन का समर्थन तो किया लेकिन सरकार में शामिल नहीं हुए. वामदलों ने सरकार का समर्थन करने के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम (कॉमन मिनिमम प्रोग्राम-सीएमपी) पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता 14 मई 2004 को हुआ था।

Thursday, December 2, 2021

उत्तर भारत के राज्य गरीबी में आगे

भारत में आर्थिक विषमता का एक दूसरा रूप है, अलग-अलग क्षेत्रों के बीच विषमता। जहाँ दक्षिण भारत अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है, वहीं उत्तर भारत के राज्य पिछड़े है। यह बात हाल में जारी देश के पहले मल्टीडाइमेंशनल पावर्टी इंडेक्स (बहुआयामी गरीबी सूचकांक-एमपीआई) से भी जाहिर हुई है, जिसे नीति आयोग ने जारी किया है। इसके अनुसार जहाँ बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों का स्तर दुनिया के सबसे पिछड़े उप-सहारा अफ्रीकी देशों जैसा है, वहीं केरल का स्तर विकसित देशों जैसा है।

बिहार नंबर एक

नीति आयोग के दस्तावेज से आपको देश के अलग-अलग राज्यों की तुलनात्मक गरीबी का पता लगेगा। बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार, बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है। बिहार की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 10.4 करोड़ है। इसकी 51.91 फीसदी यानी 5.4 करोड़ आबादी गरीबी में जीवन बसर कर रही है।

बहुआयामी गरीबी सूचकांक में बिहार के बाद दूसरे नंबर पर झारखंड है, इस राज्य में 42.16 प्रतिशत आबादी गरीब है। तीसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है। 2011 की जनगणना के अनुसार यूपी की आबादी 19.98 करोड़ है। यूपी में 37.79 प्रतिशत आबादी गरीब है। यानी 7.55 करोड़ आबादी गरीब है। चौथे नंबर पर मध्य प्रदेश है। यहां की 36.65 प्रतिशत आबादी गरीब है। देश में सबसे अच्छी स्थिति केरल की है, जहां केवल 0.71 प्रतिशत लोग ही गरीब हैं।