Saturday, October 16, 2021

राहुल गांधी फिर से पार्टी अध्यक्ष बनने पर विचार करने को तैयार


कांग्रेस कार्यसमिति की आज 16 अक्तूबर को हुई बैठक के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि राहुल गांधी सम्भवतः फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनने को राजी हो जाएंगे। संगठन चुनाव को लेकर हुई कार्यसमिति की बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने राहुल से पार्टी अध्यक्ष बनने का आग्रह किया जिस पर उन्होंने कहा कि मैं इस पर विचार करूँगा। कार्यसमिति की आज की बैठक में पार्टी ने किसान आंदोलन, अल्पसंख्यकों, दलितों और लोकतांत्रिक गतिविधियों के दमन को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ एक प्रस्ताव भी पास किया।

राहुल गांधी का कांग्रेस पार्टी का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है, पर इसके लिए अगले साल चुनाव होंगे। कार्यसमिति की बैठक में अशोक गहलोत के इस प्रस्ताव पर तकरीबन सभी नेताओं ने हामी भर दी है। ऐसे में राहुल गांधी को अगले साल राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाना तय हो गया है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्यों की इस मांग पर राहुल गांधी ने विचार करने की बात कही है। इस प्रस्ताव में हामी भरने वाले जी-23 के वे नेता भी हैं, जो कल तक पार्टी के तमाम फैसलों पर न सिर्फ सवालिया निशान लगा रहे थे बल्कि राहुल गांधी पर भी सवाल उठाते थे।

कार्यसमिति की बैठक में कांग्रेस संगठन के चुनाव यानी अध्यक्ष के चुनाव की तारीखों पर मुहर लगी। तय कार्यक्रम के मुताबिक सितम्बर 2022 तक कांग्रेस को अगला अध्यक्ष मिल जाएगा। इसके पहले चर्चा थी कि पार्टी ने पदाधिकारियों के चुनाव के लिए इस समय को उपयुक्त नहीं माना है। बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कहा, सीडब्ल्यूसी के हर सदस्य ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी में उनका गहरा विश्वास है। सोनिया गांधी बीमार होकर भी किसी स्वस्थ व्यक्ति से ज्यादा 24 घंटे काम करती हैं। सीडब्ल्यूसी के सदस्यों ने अनुरोध किया कि अगले चुनाव तक वह नेतृत्व करें। रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कई नेताओं ने यह बात उठाई कि राहुल गांधी आगे बढ़ कर पार्टी का नेतृत्व संभालें।

Thursday, October 14, 2021

बीजेपी को हराएगा कौन?


पिछले शुक्रवार को एबीपी चैनल ने उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा समेत पाँच चुनावी राज्यों की सम्भावनाओं पर सी-वोटर के सर्वेक्षण को प्रसारित किया। सर्वेक्षण के अनुसार यूपी में सबसे ज्यादा सीटों के साथ बीजेपी फिर सरकार बना सकती है। इसे लेकर तमाम बातें हवा में हैं। माहौल बनाने की कोशिश है। सरकारी विज्ञापन देकर चैनलों से कुछ भी कहलाया जा सकता है वगैरह। बेशक चैनलों की साख खत्म है, पर सर्वे के परिणाम पूरी तरह हवाई नहीं हैं। बीजेपी नहीं, तो कौन?

2022 के उत्तर प्रदेश के परिणाम 2024 के लोकसभा चुनाव की कसौटी साबित होंगे। बीजेपी अजर-अमर नहीं है। वह भी हार सकती है। पर कैसे और कौन उसे हराएगा? केन्द्र की बात बाद में करिए, क्या उसके पहले यूपी में उसे हराया जा सकता है? पिछले सात साल से यह सवाल हवा में है कि क्या बीजेपी लम्बे अरसे तक सत्ता में रहेगी? क्या कांग्रेस धीरे-धीरे हवा में विलीन हो जाएगी? दोनों अर्धसत्य हैं। यानी एक हद तक सच हैं।

पिछले सात साल में हुए चुनावों में बीजेपी को भी झटके लगे हैं। हाल में पश्चिम बंगाल में और उसके पहले छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में वह हारी है। 2015 में बिहार में उसे झटका लगा, 2017 में पंजाब में, कर्नाटक में वह सबसे बड़ी पार्टी बनी, पर सरकार जेडीएस और कांग्रेस की बनी। गुजरात में भले ही बीजेपी की सरकार बनी, पर उसकी ताकत कम हो गई।

बीजेपी तभी हारेगी, जब राष्ट्रीय स्तर पर उसका विकल्प होगा। विचार और संगठन दोनों रूपों में। विकल्प जो बहुसंख्यक समाज को स्वीकार हो। कांग्रेस ने सायास वह जगह छोड़ी है और आज वह लकवे की शिकार है। पंजाब के घटनाक्रम को देखें, तो भ्रमित नेतृत्व की तस्वीर उभरती है। हाल में एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उत्तर प्रदेश के गाँव के कुछ लोग कह रहे थे, ‘चाहे कुछ हो जाए वोट तो योगी को ही देंगे। कितनी भी महंगाई हो जाए, वोट बीजेपी को ही देंगे, धन गया तो फिर कमा लेंगे, धर्म गया तो अधर्मी जीने नहीं देंगे वगैरह-वगैरह।’

Wednesday, October 13, 2021

क्या हम पीओके वापस ले सकते हैं?


दो साल पहले 5 अगस्त, 2019 को भारत ने कश्मीर पर अनुच्छेद 370 और 35 को निष्प्रभावी करके लम्बे समय से चले आ रहे एक अवरोध को समाप्त कर दिया। राज्य का पुनर्गठन भी हुआ है और लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है। पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का मामला अब भी अधूरा है। कश्मीर हमारे देश का अटूट अंग है, तो हमें उस हिस्से को भी वापस लेने की कोशिश करनी चाहिए, जो पाकिस्तान के कब्जे में है। क्या यह सम्भव है? कैसे हो सकता है यह काम?

गृह मंत्री अमित शाह ने नवम्बर 2019 में एक कार्यक्रम में कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर और जम्मू-कश्मीर के लिए हम जान भी दे सकते हैं और देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं, जिनके मन में यही भावना है। साथ ही यह भी कहा कि इस सिलसिले में सरकार का जो भी ‘प्लान ऑफ एक्शन’ है, उसे टीवी डिबेट में घोषित नहीं किया जा सकता। ये सब देश की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दे हैं, जिन्हें ठीक वैसे ही करना चाहिए, जैसे अनुच्छेद 370 को हटाया गया। इसके समय की बात मत पूछिए तो अच्छा है।

इसके पहले संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए भी उन्होंने कहा था कि पीओके के लिए हम जान दे सकते हैं। गृहमंत्री के इस बयान के पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सितम्बर 2019 में एक मीडिया कॉन्फ्रेंस में कहा ता कि पाकिस्तान के कब्जे में जो कश्मीर है, वह भारत का हिस्सा है और हमें उम्मीद है कि एक दिन इस पर हमारा अधिकार हो जाएगा।

इन दोनों बयानों के बाद जनवरी 2020 में भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने सेना दिवस के पहले एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि यदि देश की संसद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस लेने का आदेश देगी तो हम कारवाई कर सकते है। ‌उन्होंने कहा, संसद इस बारे में प्रस्ताव पास कर चुकी है कि पीओके भारत का अभिन्न अंग है‌‌। इन बयानों के पीछे क्या कोई संजीदा सोच-विचार था? क्या भविष्य में हम कश्मीर को भारत के अटूट अंग के रूप में देख पाएंगे?

संसद का प्रस्ताव

इस सिलसिले में भारतीय संसद के एक प्रस्ताव का उल्लेख करना भी जरूरी है। हमारी संसद के दोनों सदनों ने 22 फरवरी 1994 को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया और इस बात पर जोर दिया कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इसलिए पाकिस्तान को अपने कब्जे वाले राज्य के हिस्सों को खाली करना होगा संकल्प में कहा गया, जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहा है, और रहेगा तथा उसे देश के बाकी हिस्सों से अलग करने के किसी भी प्रयास का सभी आवश्यक साधन के द्वारा विरोध किया जाएगा। प्रस्ताव में कहा गया कि पाकिस्तान बल पूर्वक कब्जाए हुए भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों को खाली करे।

Tuesday, October 12, 2021

चीन पर मंडरा रहा है आर्थिक और राजनीतिक संकट से घिरने का खतरा

गोल्डमैन सैक्स के अनुसार चीनी अर्थव्यवस्था की संवृद्धि दर इस साल तीसरी तिमाही में शून्य हो जाएगी। वित्तीय संस्थाओं का पूर्वानुमान है कि चीनी अर्थव्यवस्था में ब्रेक लग रहे हैं। कार्बन-उत्सर्जन और कोविड-19 को लेकर किए गए सख्त फैसलों की वजह से कोयले और गैस की सप्लाई में कमी आ गई है। इसके कारण बिजली-संकट पैदा हो गया है। कारखानों में उत्पादन गिरने लगा है। यह संकट शायद बहुत लम्बा नहीं चले, पर दीर्घकालीन खतरे दूसरे हैं।

प्रॉपर्टी कारोबार

हाल में चीन की सबसे बड़ी रियलिटी फर्म एवरग्रैंड के दफ़्तरों के बाहर नाराज़ निवेशकों की भीड़ जमा हो गई। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें भी हुईं। जनता का विरोध? एवरग्रैंड, चीन में सबसे ज़्यादा देनदारियों के बोझ से दबी संस्था बन गई है। कम्पनी पर 300 अरब अमेरिकी डॉलर की देनदारी है। कर्ज़ के बोझ ने कम्पनी की क्रेडिट रेटिंग और शेयर भाव ने उसे रसातल पर पहुँचा दिया। तमाम निर्माणाधीन इमारतों का काम अधूरा है। करीब 10 लाख लोगों ने मकान खरीदने के लिए इस कम्पनी को आंशिक-भुगतान कर दिया था।

एक यही कम्पनी नहीं है। प्रॉपर्टी डेवलपरों के ऊपर 2.8 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है। चीनी समाज में पैसे के निवेश के ज्यादा रास्ते नहीं हैं। काफी लोगों के मन में अच्छे से घर का सपना होता है। इस झटके से उन्हें धक्का लगा है। चीनी अर्थव्यवस्था के तेज विकास के पीछे तेज शहरीकरण का हाथ भी है।

गगनभेदी इमारतों और शानदार राजमार्गों ने एकबारगी पूरी व्यवस्था को चमका दिया, पर इससे रियलिटी सेक्टर पर कर्जे का बोझ बढ़ता चला गया। अब राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस तेज बदलाव को थामने पर जोर दे रहे हैं। दूसरी तरफ उन्होंने प्रदूषण, असमानता और वित्तीय जोखिमों को दूर करने पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है।

अमीरी की विसंगतियाँ

चीनी अर्थव्यवस्था के विस्तार ने कुछ और विसंगतियों को जन्म दिया है। देश में असमानता का स्तर बढ़ा है। एक तरफ तुलनात्मक गरीबी है, वहीं एक नया कारोबारी समुदाय तैयार हो गया है, जो सरकारी नीतियों के बरक्स दबाव-समूहों का काम करने लगा है। निजी कारोबार ने लोगों की आमदनी बढ़ाई है। ऐशो-आराम और मौज-मस्ती का हामी यह समूह कम्युनिस्ट-व्यवस्था से बेमेल है। जनवरी 2021 में पोलित ब्यूरो की बैठक में ‘पूँजी के बेतरतीब विस्तार को रोकने’ की बातें हुईं। शी चिनफिंग कम से कम पाँच मौकों पर इसे रोकने की बात कह चुके हैं।

Monday, October 11, 2021

बिजली-संकट पर क्या राजनीतिक रंग चढ़ेगा?

 


इसमें दो राय नहीं कि देश में कोयले का संकट है, जिसके कारण बिजली संकट पैदा होने का खतरा है, पर क्या यह बात वैसे ही राजनीतिक-विवाद का विषय बनेगी, जैसा इस साल अप्रेल-मई में मेडिकल-ऑक्सीजन की किल्लत के कारण पैदा हुआ था?  शायद उसकी खुशबू आते ही दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार के खिलाफ आवाज बुलन्द करनी शुरू कर दी है।

ऐसा लगता है कि दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार दोनों ने सम्भावित संकट को देखते हुए अभी से पेशबन्दी शुरू कर दी है। दिल्ली के उप-मुख्यमन्त्री मनीष सिसौदिया ने ऑक्सीजन का ही हवाला दिया। उसे देखते हुए केन्द्र सरकार ने फौरन जवाब दिया। सवाल है कि क्या बिजली-संकट पैदा होगा? या केन्द्र सरकार हालात पर काबू पा लेगी?

सारी आशंकाओं को केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने 'निराधार' करार दिया है। उन्होंने रविवार को कहा कि संकट न तो कभी था, न आगे होगा। ऊर्जा मंत्री ने कहा कि 'हमारे पास आज के दिन में कोयले का चार दिन से ज़्यादा का औसतन स्टॉक है, हमारे पास प्रतिदिन स्टॉक आता है। कल जितनी खपत हुई, उतना कोयले का स्टॉक आया।…'हमें कोयले की अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ानी है हम इसके लिए कार्रवाई कर रहे हैं।'

कोयला मंत्रालय ने कहा कि गत 9 अक्तूबर को ताप बिजलीघरों के लिए 19 लाख 20 हजार टन कोयला भेजा गया है, जबकि कुल माँग 18 लाख 70 हजार टन की है। स्थिति बदल रही है और हम अपने भंडारों को फिर से बेहतर बना रहे हैं।