Sunday, April 4, 2021

औद्योगिक विनिवेश क्यों और कैसे?


चार दिन पहले नया वित्तवर्ष शुरू हो गया है और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की गतिविधियों ने तेजी पकड़ी है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने इसपर पलीता लगाने का इशारा भी किया है। विश्व बैंक का ताजा अनुमान है कि 2021-22 के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर 7.5 से 12.5 फीसदी रह सकती है। बैंक भी भ्रम की स्थिति में है, इसीलिए 7.5 फीसदी से लेकर 12.5 फीसदी की रेंज दी गई है।

अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए सामाजिक कल्याण और इंफ्रास्ट्रक्चर पर भारी निवेश की जरूरत है। ये संसाधन केवल कर-राजस्व से पूरे नहीं होंगे। यों भी आमतौर पर बजट के कर-राजस्व अनुमान सही साबित नहीं होते। इस साल के बजट में 22.17 लाख करोड़ रुपये के कर-राजस्व का लक्ष्य रखा गया है, जबकि इसके पिछले साल के यह लक्ष्य 24.23 लाख करोड़ का था। महामारी के कारण उस लक्ष्य में 22 फीसदी की कमी करके उसे 19 लाख करोड़ करना पड़ा। वास्तव में कर संकलन कितना हुआ, उसकी जानकारी आने दीजिए।

संसाधन कहाँ से आएंगे?

संसाधन जुटाने का दूसरा तरीका सार्वजनिक सम्पत्तियों के विनिवेश का है। इसबार के बजट में सरकार ने 1.75 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य रखा है। यह विशाल लक्ष्य है। क्या सरकार इसे पूरा कर पाएगी? पिछले साल का लक्ष्य इससे भी बड़ा 2.1 लाख करोड़ का था। महामारी के कारण सरकार ने हाथ खींच लिए और लक्ष्य बदल कर 32 हजार करोड़ कर दिया गया। बहरहाल 31 मार्च तक सरकार ने इस मद में 32,835 करोड़ रुपये जुटाए।

नब्बे के दशक में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद सार्वजनिक उद्योगों के विनिवेश की बहस निर्णायक दौर में है। सरकारें निजीकरण शब्द का इस्तेमाल करने से घबराती रही हैं। इसके लिए विनिवेश शब्द गढ़ा गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने कहा था, सरकार का काम व्यापार करना नहीं है। सन 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल में भी उन्होंने यही बात कही थी। दूसरी तरफ कमांड-अर्थव्यवस्था के समर्थक इसका विरोध कर रहे हैं। हाल में बैंक कर्मचारियों ने दो दिन का आंदोलन करके आंदोलन का बिगुल बजा दिया है।

Saturday, April 3, 2021

नए वैश्विक-सच से पाकिस्तान का सामना


फरवरी 2019 में पुलवामा कांड से लेकर उसी साल अगस्त में अनुच्छेद 370 की वापसी ने भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को जिस ढलान पर उतार दिया था, वहाँ से पहिया उल्टी दिशा में घूमने लगा है। गत 26 फरवरी को दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी रोकने के सन 2003 के समझौते को पुख्ता तरीके से लागू करने की घोषणा की थी। पता लगा कि तीन महीनों से दोनों देशों के बीच बैक-चैनल बात चल रही है।

पाकिस्तान ने बुधवार को भारत के साथ आंशिक-व्यापार फिर से शुरू करने की घोषणा करके इस उम्मीद को बल दिया था कि रिश्ते सुधरेंगे। उसके अगले ही दिन वहाँ की कैबिनेट ने इस फैसले को बदल दिया और कहा कि जब तक 370 की वापसी नहीं होगी, तब तक भारत के साथ व्यापार नहीं होगा।  इसके पहले इमरान खान और उनके सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने कहा था कि रिश्तों में सुधार होना चाहिए। इन बयानों के बाद नरेंद्र मोदी और इमरान खान के बीच एक रस्मी पत्राचार हुआ, जिसके बड़े डिप्लोमैटिक निहितार्थ दिखाई पड़ रहे हैं।

पीछे की कहानी

दोनों के रिश्तों में उतार-चढ़ाव बहुत तेजी से आता है, इसलिए इन संदेशों की शब्दावली में बहुत ज्यादा पढ़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, अलबत्ता पीछे की पटकथा और वैश्विक परिस्थितियों को पढ़ने की जरूरत है। नई बात यह है कि पाकिस्तानी सरकार और सेना एक पेज पर हैं। पाकिस्तान एक कठोर सत्य से रूबरू है। फैसला उसे करना है। अतीत की भारत-पाकिस्तान वार्ताओं में ‘कांफिडेंस बिल्डिंग मैजर्स (सीबीएम)’ का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। इस सीबीएम का रास्ता आर्थिक है। दोनों के आर्थिक-सहयोग की जबर्दस्त सम्भावनाएं हैं, पर पाकिस्तान का ‘कश्मीर कॉज़’ आड़े आता है।

Friday, April 2, 2021

भारत-पाकिस्तान: यू टर्न बनाम यू टर्न


भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में कितनी तेजी से उतार-चढ़ाव आता है इसका नमूना दो दिन में देखने को मिला है। पाकिस्तान ने बुधवार को भारत के साथ आंशिक-व्यापार फिर से शुरू करने की घोषणा करके इस उम्मीद को बल दिया था कि रिश्ते सुधरेंगे। उसके अगले ही दिन वहाँ की कैबिनेट ने इस फैसले को बदल दिया और कहा कि जब तक भारत जम्मू-कश्मीर में 370 की वापसी नहीं करेगा, तब तक उसके साथ व्यापार नहीं होगा। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच रिश्तों की बहाली की ताजा कोशिशों पर फिलहाल ब्रेक लग गया है। अब इंतजार करना होगा कि इस ब्रेक के बाद होता क्या है।

भारत से कपास और चीनी के आयात का फैसला पाकिस्तान के नए वित्त मंत्री हम्माद अज़हर द्वारा बुधवार को की गई उस घोषणा के बाद आया जिसमें उन्होंने बताया कि उनकी अध्यक्षता में हुई आर्थिक समन्वय समिति (ईसीसी) की बैठक में आयात का फैसला किया गया था। इसके बाद गुरुवार को देश के मंत्रिमंडल ने इस फैसले को खारिज कर दिया।

इस मुद्दे के राजनीतिक निहितार्थ को लेकर पाकिस्तान में गुरुवार दोपहर बाद से ही कयास लग रहे थे लेकिन अधिकारी खामोश थे। अंतत: फैसले को लेकर पहली टिप्पणी मानवाधिकार मामलों की मंत्री शीरीन मज़ारी की तरफ से आई जिन्हें कश्मीर को लेकर उनके कट्टर रुख के लिए जाना जाता है। एक बात साफ है कि आयात का फैसला इमरान खान की जानकारी में हुआ था। पर देश के कुछ कट्टरपंथी तबकों के विरोध को देखते हुए उन्होंने पलटी मारना बेहतर समझा। मज़ारी ने कहा कि 20 मार्च को कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद से पहली बार मंत्रिमंडल की बैठक की अध्यक्षता कर रहे प्रधानमंत्री इमरान खान ने, “(यह) स्पष्ट किया (कि) भारत के साथ रिश्ते तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक वे पांच अगस्त 2019 को कश्मीर में की गई कार्रवाई को वापस नहीं ले लेते।”

Thursday, April 1, 2021

बांग्लादेश में भारत-विरोधी हिंसा


प्रधानमंत्री की बांग्लादेश  यात्रा के दौरान हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम संगठन के नेतृत्व में हुई हिंसा ने ध्यान खींचा है। यह संगठन सन 2010 में खड़ा हुआ था और परोक्ष रूप से प्रतिबंधित संगठन जमाते-इस्लामी के एजेंडा को चलाता है।  इस संगठन से जुड़े लोगों ने न केवल सरकारी सम्पत्ति, रेलवे स्टेशन, रेल लाइन, ट्रेन, थानों और सरकारी भवनों को नुकसान पहुँचाया गया। हिंदू-परिवारों पर और मंदिरों पर भी हमले बोले गए। खुफिया रिपोर्ट यह भी बताती हैं कि जमात, हिफाजत और विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी शेख हसीना की सरकार को गिराने की साजिश रच रहे हैं।

हिंसा की शुरुआत ढाका के बैतूल मुकर्रम इलाके से हुई थी, पर सबसे ज्यादा मौतें ब्राह्मणबरिया जिले में हुईं। इसके अलावा चटगाँव में भी हिंसा हुई, जहाँ हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम का मुख्यालय है। ब्राह्मणबरिया प्रशासन, पत्रकारों और चश्मदीदों के मुताबिक़ हिंसा सुबह 11 बजे से शुरू हुई थी। ज़िला मुख्यालय, नगर पालिका परिषद, केंद्रीय पुस्तकालय, नगरपालिका सभागार, भूमि कार्यालय और प्रेस क्लब समेत टी-ए रोड के दोनों तरफ स्थित अनेक सरकारी इमारतों को आग लगा दी गई थी।

Tuesday, March 30, 2021

स्वेज़ में जहाज फँसने से उठते सवाल


मिस्र की स्वेज़ नहर में जाम खुल गया है। क़रीब एक हफ़्ते से वहां फँसे विशाल जहाज़ को बड़ी मुश्किल से रास्ते से हटाया जा सका। टग बोट्स और ड्रैजर की मदद से 400 मीटर (1,300 फुट) लंबे 'एवर गिवेन' जहाज़ को निकाला गया। जहाज़ को हटाने में मदद करने वाली कंपनी, बोसकालिस के सीईओ पीटर बर्बर्सकी ने कहा, "एवर गिवेन सोमवार को स्थानीय समयानुसार 15:05 बजे फिर पानी पर उतराने लगा था। जिसके बाद स्वेज़ नहर का रास्ता फिर से खोलना संभव हुआ।" जहाज निकल गया, पर दुनिया के लिए कई तरह के सबक छोड़ गया है। 

एवर गिवन जहाज काफी बड़े आकार का है, लेकिन उससे भी बड़े जहाज इससे गुजरते रहे हैं। इसकी लंबाई करीब 400 मीटर, चौड़ाई 60 मीटर और गहराई 14.5 मीटर है। यह कुल दो लाख टन का वजन उठा सकता है। इसके चालक दल के सभी सदस्य भारतीय हैं। पर नहर पार करने का जिम्मा मिस्रवासी पायलट के पास था। यह जहाज 20,000 कंटेनर लेकर शंघाई से रोटरडैम के सफर पर निकला था।

इस अटपटी परिघटना के बाद सवाल है कि जब 19वीं सदी में बने एक ढांचे में 21वीं सदी की तकनीक का इस्तेमाल होने लगता है तब क्या ऐसा ही होता है? एक अहम समुद्री परिवहन मार्ग के अवरुद्ध होने से कुछ ऐसा ही हुआ है। इस घटना के बड़े दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। मंगलवार 23 मार्च की सुबह कंटेनर ढोने वाला जहाज 'एवर गिवन' स्वेज़ नहर से गुजर रहा था। उसी समय वह थोड़ा टेढ़ा होकर किनारे से जा लगा और पूरी नहर ही अवरुद्ध हो गई। 

स्वेज़ नहर के रास्ते होने वाली आवाजाही पूरी तरह बाधित हो गई। इसकी वजह से नहर के मुहाने पर इंतजार कर रहे जहाजों की लंबी कतार लग गई। जहाज के फँसने वाली जगह पर नहर की चौड़ाई करीब 300 मीटर है। उलटे शंकु वाले आकार में बनी स्वेज नहर की तली सतह से कम चौड़ी है और दोनों किनारों पर ढलान बनी हुई है। एवर गिवन जहाज नहर के पूर्वी किनारे पर जाकर मिट्टी में धंस गया था।