Sunday, February 28, 2021

अब मोदी की तारीफ की आजाद ने

 

शनिवार को जी-23 के कार्यक्रम में भगवा पगड़ी बाँधे नेता

कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं की अगुवाई करने वाले गुलाम नबी आजाद ने पार्टी नेतृत्व को तीखे तेवर दिखाने के एक दिन बाद रविवार को एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ कर दी। आज़ाद जम्मू कश्मीर में गुज्जर समुदाय के एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे ग़ुलाम नबी आज़ाद के विदाई समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने भी हाल ही में उनकी जमकर तारीफ की थी और वह भावुक भी हो गए थे। इसके पहले आजाद शनिवार को जम्मू में पार्टी के अन्य असंतुष्ट नेता कपिल सिब्बल, राज बब्बर, भूपिंदर सिंह हुड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा के साथ नजर आए थे।

गुलाम नबी आजाद ने एक कार्यक्रम में कहा कि उन्हें बहुत सारे नेताओं की बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें पसंद आती हैं। लोगों को नरेंद्र मोदी से सीख लेनी चाहिए, जो प्रधानमंत्री बन गए लेकिन उन्होंने अपनी जड़ों को नहीं भुलाया। वे ख़ुद को गर्व से 'चायवाला' कहते हैं। उन्होंने कहा, मेरे नरेंद्र मोदी के साथ राजनीतिक मतभेद हैं, लेकिन प्रधानमंत्री जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं। आपने अपनी असलियत छिपाई तो आप एक खयाली और बनावटी दुनिया में रहते हैं। आदमी को अपनी असलियत पर फख्र होना चाहिए।

डिजिटल मीडिया पर नकेल


सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म हमेशा निरंकुश-निर्द्वंद नहीं रह सकते थे। जिस तरह उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में प्रिंट मीडिया के नियमन ने शक्ल ली, उसी तरह नब्बे के दशक में आकाश मीडिया के नियमन की शुरुआत हुई। पहले उसने केबल के रास्ते आकाश मार्ग से प्रवेश किया, फिर उसका नियमन हुआ, उसी तरह नए डिजिटल माध्यमों के विनियमन की जरूरत होगी। इनकी अंतर्विरोधी भूमिका पर भारत में ही नहीं दुनियाभर में चर्चा है। अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में ओटीटी प्लेटफॉर्मों की सामग्री का नियमन होता है और उल्लंघन होने पर सजा देने की व्यवस्था भी है। पर इस विनियमन को युक्तिसंगत भी होना चाहिए। इस मामले में विवेकशीलता नहीं बरती गई, तो लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति का गला घुट सकता है।

पिछले गुरुवार को सरकार ने जो सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 जारी किए हैं, उन्हें आना ही था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस आशय के निर्देश दिए थे और हालात खुद कह रहे हैं कि कुछ करना चाहिए। हाल में अमेरिकी संसद और लालकिले पर हुए हमलों से इसकी जरूरत और पुख्ता हुई है।

मर्यादा रेखाएं

इंटरनेट और डिजिटल मीडिया ने सामाजिक-शक्तियों और राजशक्ति के बीच भी मर्यादा रेखा खींचने जरूरत को रेखांकित किया है। सामान्यतः माना जाता है कि सार्वजनिक हितों की रक्षा करने की जिम्मेदारी राज्य की है। पर जैसे-जैसे तकनीक का दायरा हमें राज्य की राजनीतिक सीमाओं से भौगोलिक रूप से बाहर ले जा रहा है, नए सवाल उठ रहे हैं। नियामक संस्थाओं की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर तक होती है, पर भविष्य में अंतरराष्ट्रीय नियमन की जरूरत भी होगी।

Saturday, February 27, 2021

चीन में गरीबी का खात्मा


आज के बिजनेस स्टैंडर्ड में टीएन नायनन के इस लेख में चीन के इस दावे का विश्लेषण किया गया है कि वहाँ गरीबी को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। इस दावे पर आप यकीन करें या नहीं करें, अलबत्ता टीएन नायनन इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यह सूचना भारतीय संदर्भों में बहुत महत्वपूर्ण है। उनका लेख पढ़ें
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चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के मुताबिक उनके देश ने गरीबी का पूरी तरह खात्मा कर दिया है। इस बयान को चाहे जैसे देखा जाए लेकिन यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। दुनिया के सबसे गरीब समाजों में से एक रहा और भारत के साथ दुनिया के अधिकांश गरीबों वाला चीन अब प्रति व्यक्ति आय के ऐसे स्तर पर (क्रय शक्ति समता के अनुसार) पहुंच गया है जो वैश्विक औसत के करीब है। चीन का दावा है कि उसने 85 करोड़ लोगों को गरीबी से उबारा।

चीन के तमाम आंकड़ों की तरह इसे लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। चीन मानक के रूप में विश्व बैंक द्वारा बताए गए गरीबी के स्तर के आय संबंधी बुनियादी आंकड़ों को अपनाता है जबकि उसे मध्य आय वाले देशों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले उच्च आंकड़ों का इस्तेमाल करना चाहिए। परंतु उस हिसाब से भी देखा जाए तो चीन में गरीबी का आंकड़ा प्रति 20 लोगों में से एक ही निकलता है। भारत की बात करें तो उच्च स्तर के आंकड़ों के मुताबिक आधी आबादी गरीब निकलेगी जबकि निचले स्तर पर भी आबादी का 10 प्रतिशत गरीब है। भारत यह दावा जरूर कर सकता है कि वह दुनिया के सर्वाधिक गरीब लोगों वाला देश नहीं रह गया है। यह दर्जा अब नाइजीरिया को मिल गया है जबकि कॉन्गो दूसरे स्थान पर आ सकता है। यकीनन अगर कोविड (जिसने भारत में गरीबों की संख्या बढ़ाई) नहीं आया होता तो शायद हम भी संयुक्त राष्ट्र के 2030 के पहले गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य के करीब पहुंच चुके होते।

Friday, February 26, 2021

तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था संकुचन से बाहर


लगातार दो तिमाही में संकुचन का सामना करने के बाद तीसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था तीसरी तिमाही में संकुचन से बाहर आ गई है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा शुक्रवार को जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था की संवृद्धि दर 0.4 प्रतिशत हो गई है। इस प्रकार इस वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था की संकुचन दर -8 प्रतिशत हो गई है।

सरकार ने पिछली दो तिमाहियों के संवृद्धि अनुमानों में संशोधन भी किया है। पहली तिमाही का अनुमान पहले 24.4 फीसदी था, जो अब -23.9 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में पहले का अनुमान -7.5 प्रतिशत था, जो अब 7.3 प्रतिशत है। इससे लगता है कि इस साल की संवृद्धि पहले के अनुमानों से बेहतर होगी।

तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था की संवृद्धि अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में पहले से बेहतर रही। आंकड़ों से साफ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब मंदी के दौर से निकल आई है। दो तिमाही के बाद जीडीपी ग्रोथ पॉजिटिव ज़ोन में आई है।

देश के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने 7 जनवरी को इस वित्त वर्ष के लिए राष्ट्रीय आय (जीडीपी) का पहला अग्रिम अनुमान (एफएई) जारी किया था, जिसमें केवल कृषि को छोड़कर अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में संकुचन (कांट्रैक्शन) का अनुमान लगाया गया है। एनएसओ के मुताबिक, देश की अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष (2020-21) में 7.7 प्रतिशत के संकुचन का अनुमान है, जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 4.0 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी। इस संकुचन के लिए कोविड-19 वैश्विक महामारी को मुख्य कारण बताया गया है।

भारत-पाक रिश्तों को लेकर सकारात्मक खबर


पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान की ओर बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया था, जिसमें उन्होंने चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के बीच डॉक्टरों, नर्सों और एयर एंबुलेंस की निर्बाध आवाजाही के लिए क्षेत्रीय सहयोग योजना के संदर्भ में कहा कि 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाने के लिए अधिक एकीकरण महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान सहित 10 पड़ोसी देशों के साथ कोविड-19 प्रबंधन, अनुभव और आगे बढ़ने का रास्ता विषय पर एक कार्यशाला में उन्होंने यह बात कही थी। उस बैठक में मौजूद पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने भारत के रुख का समर्थन किया था। बैठक में यह भी कहा गया कि अति-राष्ट्रवादी मानसिकता मदद नहीं करेगी। पाकिस्तान ने कहा कि वह इस मुद्दे पर किसी भी क्षेत्रीय सहयोग का हिस्सा होगा।

यह केवल संयोग नहीं है कि दोनों देशों ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर भारत और पाकिस्तान के बीच गोलीबारी रोकने के सन 2003 के समझौते को पुख्ता तरीके से लागू करने की घोषणा की है। उधर दूसरी खबर यह है कि एफएटीएफ ने पाकिस्तान को जून तक ग्रे लिस्ट में ही रखने का फैसला किया है। पाकिस्तान लगातार अपनी छवि सुधारने का प्रयास कर रहा है। तीसरे भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा पर शांति बनाए रखने की जो बातचीत चल रही है, उसके बहुत से पहलू भारत-पाकिस्तान रिश्तों से भी जुड़ते हैं। चीन की दिलचस्पी भारत से रिश्तों को एकदम खराब करने में नहीं है। यों लगता है कि भारत ने अपने मित्र देशों को घटनाक्रम से परिचित करा रखा होगा। अमेरिका की प्रतिक्रिया से ऐसा लगता है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता का कहना है कि हमने दोनों देशों को आपसी मसलों को सीधे बातचीत से सुलझाने की  सलाह दी है। 

भारतीय प्रतिक्रिया

युद्धविराम की घोषणा के कुछ घंटों के भीतर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि भारत, पाकिस्तान के साथ सामान्य पड़ोसी जैसे रिश्ते चाहता है और शांतिपूर्ण तरीके से सभी मुद्दों को द्विपक्षीय ढंग से सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा, ‘भारत, पाकिस्तान के साथ सामान्य पड़ोसी जैसे रिश्ते चाहता है और शांतिपूर्ण तरीके से सभी मुद्दों को द्विपक्षीय ढंग से सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है।’ दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम को लेकर फैसला बुधवार आधी रात से लागू हो गया।

इन खबरों के पीछे की खबर यह है कि भारत-पाकिस्तान के बीच पिछले तीन महीने से बैक-चैनल बातचीत चल रही थी। इस सिलसिले में भारत के रक्षा सलाहकार अजित डोभाल और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के रक्षा मामलों में विशेष सलाहकार मोईद युसुफ के बीच किसी तीसरे देश में मुलाकात भी हुई है। बताया यह भी जाता है कि अजित डोभाल और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच भी सम्पर्क है। पाकिस्तानी अखबार डॉन ने भी इसकी पृष्ठभूमि पर रोशनी डाली है। इसका मतलब यह भी है कि दोनों देशों के बीच आने वाले समय में कुछ और कदम उठाए जा सकते हैं। हालांकि पाकिस्तानी सूत्रों ने दोनों देशों के रक्षा सलाहकारों के बीच मुलाकात की बातों का खंडन किया है, पर लगता यह है कि दोनों सरकारें इस सम्पर्क को धीरे-धीरे ही सामने लाना चाहती हैं। दोनों तरफ इतनी ज्यादा बदमज़गी फैल चुकी है कि उसे रास्ते पर लाने में समय लगेगा।