Friday, March 13, 2020

राजनीति में बड़ा मोड़ साबित होगा सिंधिया प्रकरण


ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस पार्टी को छोड़कर जाना पहली नजर में एक सामान्य राजनीतिक परिघटना लगती है. इसके पहले भी नेता पार्टियाँ छोड़ते रहे हैं. पर इसका कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए विशेष महत्व है. वे कांग्रेस के महत्वपूर्ण चेहरों में शामिल रहे और अब बीजेपी की अगली कतार में होंगे. वे देश के महत्वपूर्ण भावी नेताओं में से एक हैं. यह एक नेता का पलायन भर नहीं है. पार्टी के भीतर एक अरसे से सुलग रही आग इस बहाने से भड़क सकती है. उसके भीतर के झगड़े अब खुलकर सामने आ सकते हैं. 
दूसरी तरफ बीजेपी के अंतर्विरोध भी खुलेंगे. ग्वालियर क्षेत्र में उसकी राजनीति केंद्र-बिंदु राजमहल का विरोध था. अब उसे सिंधिया परिवार के महत्व को स्थापित करना होगा. इतना ही नहीं मध्य प्रदेश के स्थानीय क्षत्रप एक नए शक्तिशाली नेता के साथ कैसे सामंजस्य बैठाएंगे, यह भी देखना होगा. एक अंतर है. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व, कांग्रेस के नेतृत्व की तुलना में ज्यादा ताकतवर है. सवाल है, कितना और कब तक? 
अब सवाल केवल मध्य प्रदेश की सरकार का नहीं है, बल्कि कांग्रेस की समूची सियासत और उसके नेतृत्व का है. यह कहना जल्दबाजी होगी कि सत्ता के लोभ में सिंधिया पार्टी छोड़कर भागे हैं. वास्तव में वे पार्टी में खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे. यह प्रकरण इस बात को भी रेखांकित कर रहा है कि कुछ और युवा नेता भी ऐसा ही महसूस कर रहे हैं. इस स्तर के नेता को इस कदर हाशिए पर डालकर नहीं चला जा सकता था.
लोकसभा के लगातार दूसरे चुनाव में भारी पराजय से पीड़ित कांग्रेस जब इतिहास के सबसे बड़े संकट का सामना कर रही थी, इतने बड़े नेता का साथ छोड़ना बड़ा हादसा है. यह पलायन बता रहा है कि पार्टी के भीतर बैठे असंतोष को दूर नहीं किया गया, तो ऐसा ही कुछ और भी हो सकता है. अपनी इस दुर्दशा पर पार्टी अब चिंतन नहीं करेगी, तो कब करेगी?  वह नेतृत्व के सवाल को ही तय नहीं कर पाई है और एक अंतरिम व्यवस्था करके बैठी है.  

Thursday, March 12, 2020

राजनीतिक भँवर में घिरी कांग्रेस


ज्योतिरादित्य सिंधिया के हटने के बाद कांग्रेस के सामने दो बड़े सवाल हैं। एक, पहले से ही जर्जर नेतृत्व की साख को फिर से स्थापित कैसे होगी और दूसरा पार्टी के युवा नेताओं को भागने से कैसे रोका जाएगा? हताशा बढ़ रही है। उत्तर भारत के तीन और महत्वपूर्ण नेता पार्टी छोड़ने की फिराक में हैं। बार-बार मिलती विफलता और मध्य प्रदेश के ड्रामे ने कमर तोड़ दी। ज्योतिरादित्य के साथ 20 से ज्यादा विधायकों ने पार्टी छोड़ी है। राजनीतिक भँवर में घिरी कांग्रेस को यह जबर्दस्त धक्का और चेतावनी है। इस परिघटना का डोमिनो प्रभाव होगा। उधर बैकफुट पर नजर आ रही बीजेपी को मध्य भारत में फिर से पैर जमाने का मौका मिल गया है।
मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के अलावा भाजपा राज्यसभा की एक अतिरिक्त सीट झटकने में भी कामयाब हो सकती है। राजनीतिक दृष्टि से केंद्र में युवा और प्रभावशाली मंत्री के रूप में ज्योतिरादित्य के प्रवेश का रास्ता खुला है। प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी सिंधिया अच्छे वक्ता हैं और समझदार राजनेता। पन्द्रह महीने पहले मध्य प्रदेश और राजस्थान ने कांग्रेस के पुनरोदय की उम्मीदें जगाई थीं, पर अब दोनों राज्य नकारात्मक संदेश भेज रहे हैं। पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व पर सवालिया निशान हैं। इस परिघटना ने कुछ और युवा नेताओं के पलायन की भूमिका तैयार कर दी है। ज्यादातर ऐसे नेता राहुल गांधी के करीबी हैं, जो किसी न किसी वजह से अब नाराज हैं।

Sunday, March 8, 2020

संसदीय मर्यादा को बचाओ


गुरुवार को कांग्रेस के सात लोकसभा सदस्यों के निलंबन के बाद संसदीय मर्यादा को लेकर बहस एकबार फिर से शुरू हुई है। सातों सदस्यों को सदन का अनादर करने और ‘घोर कदाचार' के मामले में सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित किया गया है। इस निलंबन को कांग्रेस ने बदले की भावना से उठाया गया कदम करार दिया और दावा किया,यह फैसला लोकसभा अध्यक्ष का नहीं, बल्कि सरकार का है। जबकि पीठासीन सभापति मीनाक्षी लेखी ने कहा कि कांग्रेस सदस्यों ने अध्यक्षीय पीठ से बलपूर्वक कागज छीने और उछाले। ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण आचरण संसदीय इतिहास में संभवतः पहली बार हुआ है।

Thursday, March 5, 2020

मोदी का ट्वीट और उससे उपजी एक बहस


सोशल मीडिया की ताकत, उसकी सकारात्मक भूमिका और साथ ही उसके नकारात्मक निहितार्थों पर इस हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक ट्वीट ने अच्छी रोशनी डाली. हाल में दिल्ली के दंगों को लेकर सोशल मीडिया पर कड़वी, कठोर और हृदय विदारक टिप्पणियों की बाढ़ आई हुई थी. ऐसे में प्रधानमंत्री  के एक ट्वीट ने सबको चौंका दिया. उन्होंने लिखा, 'इस रविवार को सोशल मीडिया अकाउंट फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब छोड़ने की सोच रहा हूं.' उनके इस छोटे से संदेश ने सबको स्तब्ध कर दिया. क्या मोदी सोशल मीडिया को लेकर उदास हैं?   क्या वे जनता से संवाद का यह दरवाजा भी बंद करने जा रहे हैं? या बात कुछ और है?
इस ट्वीट के एक दिन बाद ही प्रधानमंत्री ने अपने आशय को स्पष्ट कर दिया, पर एक दिन में कई तरह की सद्भावनाएं और दुर्भावनाएं बाहर आ गईं. जब प्रधानमंत्री ने अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया है, तब भी जो टिप्पणियाँ आ रही हैं उनमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के दृष्टिकोण शामिल हैं. उनके समर्थक हतप्रभ थे और उनके विरोधियों ने तंज कसने शुरू कर दिए. इनमें राहुल गांधी से लेकर कन्हैया कुमार तक शामिल थे. कुछ लोगों ने अटकलें लगाईं कि कहीं मोदी अपना मीडिया प्लेटफॉर्म लांच करने तो नहीं जा रहे हैं? क्या ऐसा तो नहीं कि अब उनकी जगह अमित शाह जनता को संबोधित करेंगे? 

Monday, March 2, 2020

किसका दंगा, किसकी साजिश?


शुक्रवार को सुप्रीम के एक पीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में वकीलों की हड़ताल से जुड़े एक मामले में टिप्पणी की कि संविधान विरोध और असंतोष व्यक्त करने का अधिकार सबको देता है, पर यह अधिकार दूसरे नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कतर सकता। हालांकि इस टिप्पणी का दिल्ली की हिंसा से सीधा रिश्ता नहीं है, पर प्रकारांतर से है। पिछले ढाई महीने से एक सड़क रोककर शाहीनबाग का आंदोलन चल रहा है। इस आंदोलन की भावना को लेकर अलग बहस है, पर इसे चलाने वालों के अधिकार को लेकर किसी को आपत्ति नहीं है। आखिरकार यह हमारे उस लोकतंत्र की ताकत है, जिसकी बुनियाद में आंदोलनों का लंबा इतिहास है।
महात्मा गांधी ने इन आंदोलनों का संचालन किया और चौरीचौरा की तरह जब भी मर्यादा का उल्लंघन हुआ, उन्होंने आंदोलन वापस ले लिया। सवाल है कि क्या आधुनिक राजनीति उन नैतिक मूल्यों के साथ खड़ी है? इन दंगों ने दिल्ली को दहला कर रख दिया है। एक से एक अमानवीय क्रूर-कृत्यों की कहानियाँ सामने आ रही हैं। लंबे समय से सामाजिक जीवन में घुलता जा रहा जहर बाहर निकलने को आतुर था, और वह निकला। स्थानीय कारणों ने उसे भड़कने में मदद की। मस्जिद पर हमले हुए और स्कूल भी जलाए गए। कई तरह की पुरानी रंजिशों को भुनाया गया। निशाना लगाकर दुकानें फूँकी गईं, गाड़ियाँ जलाई गईं। यह सब अनायास नहीं हुआ। क्रूरता की कहानियाँ इतनी भयानक हैं कि उन्हें सुनकर किसी का भी दिल दहल जाएगा।