Monday, November 4, 2019

वॉट्सएप जासूसी के पीछे कौन?


वॉट्सएप मैसेंजर पर स्पाईवेयर पेगासस की मदद से दुनिया के कुछ लोगों की जासूसी की खबरें आने के बाद से इस मामले के अलग-अलग पहलू एकसाथ उजागर हुए हैं। पहला सवाल है कि यह काम किसने किया और क्यों? जासूसी करना-कराना कोई अजब-अनोखी बात नहीं है। सरकारें भी जासूसी कराती हैं और अपराधी भी कराते हैं। दोनों एक-दूसरे की जासूसी करते हैं। राजनीतिक उद्देश्यों को लिए जासूसी होती है और राष्ट्रीय हितों की रक्षा और मानवता की सेवा के लिए भी। यह जासूसी किसके लिए की जा रही थी? और यह भी कि इसकी जानकारी कौन देगा?
इसका जवाब या तो वॉट्सएप के पास है या इसरायली कंपनी एनएसओ के पास है। बहुत सी बातें सिटिजन लैब को पता हैं। कुछ बातें अमेरिका की संघीय अदालत की सुनवाई के दौरान पता लगेंगी। इन सवालों के बीच नागरिकों की स्वतंत्रता और उनके निजी जीवन में राज्य के हस्तक्षेप का सवाल भी है। सबसे बड़ा सवाल है कि तकनीकी जानकारी के सदुपयोग या दुरुपयोग की सीमाएं क्या हैं? फिलहाल इस मामले के भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संदर्भ अलग-अलग हैं।

Sunday, November 3, 2019

अमेरिका में भारत की किरकिरी


भारतीय विदेश नीति के नियंता मानते हैं कि भारत का नाम दुनिया में इज्जत से लिया जाता है और पाकिस्तान की इज्जत कम है। इसकी बड़ी वजह भारतीय लोकतंत्र है। हमारी सांविधानिक संस्थाएं कारगर हैं और लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता परिवर्तन होता है। अक्सर जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव होता है, तो हम कहते हैं कि पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है। हम यह भी मानते हैं कि कश्मीर समस्या भारत-पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मामला है और दुनिया इसे स्वीकार करती है। और यह भी कि पाकिस्तान कश्मीर समस्या के अंतरराष्ट्रीयकरण का प्रयास करता है, पर वह इसमें विफल है।
उपरोक्त बातें काफी हद तक आज भी सच हैं, पर 5 अगस्त के बाद दुनिया की समझ में बदलाव आया है। हमारी खुशफहमियों को धक्का लगाने वाली कुछ बातें भी हुईं हैं, जिनसे देश की छवि को बहुत गहरी न सही किसी न किसी हद तक ठेस लगी है। विदेश-नीति संचालकों को इस प्रश्न पर ठंडे दिमाग से विचार करना चाहिए। बेशक जब हम कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए थे, तब उसका अंतरराष्ट्रीयकरण हो गया था, पर अब उससे कुछ ज्यादा हो गया है। पिछले तीन महीने के घटनाक्रम पर नजर डालें, तो कुछ निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं:-
·      हम कुछ भी कहें, पाकिस्तान अलग-थलग नहीं पड़ा है। चीन, तुर्की और मलेशिया ने पहले संरा में और उसके बाद एफएटीएफ में उसे खुला समर्थन दिया है। चीन और रूस के सामरिक रिश्ते सुधरते जा रहे हैं और इसका प्रभाव रूस-पाकिस्तान रिश्तों में नजर आने लगा है। यह सब अलग-थलग पड़ने की निशानी नहीं है।
·      हाल में ब्रिटिश शाही परिवार के प्रिंस विलियम और उनकी पत्नी केट मिडल्टन की पाकिस्तान यात्रा से भी क्या संकेत मिलता है?  ब्रिटिश शाही परिवार का पाकिस्तान दौरा 13 साल बाद हुआ है। इससे पहले प्रिंस ऑफ वेल्स और डचेस ऑफ कॉर्नवेल कैमिला ने 2006 में देश का दौरा किया था।
·      इसके पहले ब्रिटेन के मुख्य विरोधी दल लेबर पार्टी ने कश्मीर पर एक आपात प्रस्ताव पारित करते हुए पार्टी के नेता जेरेमी कोर्बिन से कहा था कि वे कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को भेजकर वहाँ की स्थिति की समीक्षा करने का माँग करें और वहाँ की जनता के आत्म-निर्णय के अधिकार की मांग करें।
·      अमेरिका में हाउडी मोदी के बावजूद डोनाल्ड ट्रंप ने इमरान खान की न केवल पर्याप्त आवभगत की, बल्कि बार-बार कहा कि मैं तो कश्मीर मामले में मध्यस्थता करना चाहता हूँ, बशर्ते भारत माने। ह्यूस्टन की रैली में नरेंद्र मोदी ने ट्रंप का समर्थन करके डेमोक्रेट सांसदों की नाराजगी अलग से मोल ले ली है।
·      भारत की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और बहुलवादी व्यवस्था को लेकर उन देशों में सवाल उठाए जा रहे हैं, जो भारत के मित्र समझे जाते हैं। इसका सबसे ताजा उदाहरण है दक्षिण एशिया में मानवाधिकार विषय पर अमेरिकी संसद में हुई सुनवाई, जिसमें भारत पर ही निशाना लगाया गया।
·      इस सुनवाई में डेमोक्रेटिक पार्टी के कुछ सांसदों की तीखी आलोचना के कारण भारत के विदेश मंत्रालय को सफाई देनी पड़ी। मोदी सरकार के मित्र रिपब्लिकन सांसद या तो इस सुनवाई के दौरान हाजिर नहीं हुए और जो हाजिर हुए उन्होंने भारतीय व्यवस्था की आलोचना की।

Saturday, November 2, 2019

कांग्रेस को अब चाहिए क्षेत्रीय क्षत्रप


महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव में अपेक्षाकृत बेहतर परिणामों से उत्साहित कांग्रेस पार्टी ने अपने पुनरोदय का एक कार्यक्रम तैयार किया है। इसमें संगठनात्मक बदलाव के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर जनता से जुड़े मुद्दों पर आंदोलन छेड़ने की योजना भी है। हालांकि इन चुनाव परिणामों को बेहतर कहने के पहले कई तरह के किन्तु-परन्तु हैं, पर पार्टी इन्हें बेहतर मानती है। पार्टी का निष्कर्ष यह है कि हमने कुछ समय पहले जनांदोलन छेड़ा होता, तो परिणाम और बेहतर होते। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के लिए यह संतोष का विषय है। उत्तर प्रदेश में पार्टी ने अपना सदस्यता कार्यक्रम लॉन्च करने की घोषणा भी की है।
पार्टी ने अपनी सफलता का नया सूत्र खोजा है क्षेत्रीय क्षत्रपों को बढ़ावा दो। यह कोई नई बात नहीं है। उसे समझना होगा कि क्षेत्रीय क्षत्रप दो रोज में तैयार नहीं होते। अपने कार्यकर्ताओं को बढ़ावा देना होता है। बड़ा सच यह है कि पार्टी ने राहुल गांधी के नेतृत्व को विकसित करने के फेर में अपने युवा नेतृत्व को उस स्तर का समर्थन नहीं दिया, जो उन्हें मिलना चाहिए था। पिछले साल राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्रियों का चयन करते समय यह बात अच्छी तरह साफ हो गई थी। अब क्षेत्रीय क्षत्रपों से पार्टी का आशय क्या है?  पुराने नेता, लोकप्रिय नेता या युवा नेता?
वैचारिक अंतर्मंथन
केवल नेतृत्व की बात ही नहीं है। पार्टी को वैचारिक स्तर पर भी अंतर्मंथन करना होगा। बीजेपी केवल नरेंद्र मोदी के भाषणों के कारण लोकप्रिय नहीं है। उसने सामाजिक स्तर पर भी अपनी जगह बनाई है। बहरहाल कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर सुस्त अर्थव्यवस्था को मुद्दा बनाकर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने जा रही है। इस मोर्चे की घोषणा के साथ खबर यह भी आई है कि पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी फिर विदेश दौरे पर चले गए हैं। वे कहाँ गए हैं, यह जानकारी तो नहीं दी गई है, पर इतना जरूर कहा गया है कि वे 'मेडिटेशन' के लिए गए हैं।

यूरोपियन सांसदों के दौरे के बाद कश्मीर


पाकिस्तान की दिलचस्पी कश्मीर समस्या के अंतरराष्ट्रीयकरण में है. इसके लिए पिछले तीन महीनों में उसने अपनी पूरी ताकत लगा दी है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में खून की नदियाँ बहाने की साफ-साफ धमकी दी थी. हाल में पाक-परस्तों ने सेब के कारोबार से जुड़े लोगों की हत्या करने का जो अभियान छेड़ा है, उससे उनकी पोल खुली है.
पाक-परस्त ताकतों ने भारत की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और बहुलवादी व्यवस्था को लेकर उन देशों में जाकर सवाल उठाए हैं, जो भारत के मित्र समझे जाते हैं. वे जबर्दस्त प्रचार युद्ध में जुटे हैं. ऐसे में हमारी जिम्मेदारी है कि हम कश्मीर के संदर्भ में भारत के रुख से सारी दुनिया को परिचित कराएं और पाकिस्तान की साजिशों की ओर दुनिया का ध्यान खींचें. इसी उद्देश्य से हाल में भारत ने यूरोपियन संसद के 23 सदस्यों को कश्मीर बुलाकर उन्हें दिखाया कि पाकिस्तान भारत पर मानवाधिकार हनन के जो आरोप लगा रहा है, उनकी सच्चाई वे खुद आकर देखें.

Friday, November 1, 2019

राज्य पुनर्गठन के बाद जम्मू-कश्मीर


गत 5 और 6 अगस्त को संसद ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के जिस प्रस्ताव को पास किया था, वह अपनी तार्किक परिणति तक पहुँच चुका है। राज्य का नक्शा बदल गया है और वह दो राज्यों में तब्दील हो चुका है। पर यह औपचारिकता का पहला चरण है। इस प्रक्रिया को पूरा होने में अभी समय लगेगा। कई प्रकार के कानूनी बदलाव अब भी हो रहे हैं। सरकारी अफसरों से लेकर राज्यों की सम्पत्ति के बँटवारे की प्रक्रिया अभी चल ही रही है। राज्य पुनर्गठन विधेयक के तहत साल भर का समय इस काम के लिए मुकर्रर है, पर व्यावहारिक रूप से यह काम बरसों तक चलता है। तेलंगाना राज्य अधिनियम 2013 में पास हुआ था, पर पुनर्गठन से जुड़े मसले अब भी सुलझाए जा रहे हैं।
बहरहाल पुनर्गठन से इतर राज्य में तीन तरह की चुनौतियाँ हैं। पहली पाकिस्तान-परस्त आतंकी गिरोहों की है, जो राज्य की अर्थव्यवस्था पर हमले कर रहे हैं। हाल में ट्रक ड्राइवरों की हत्या करके उन्होंने अपने इरादों को जता भी दिया है, पर इस तरीके से वे स्थानीय जनता की नाराजगी भी मोल लेंगे, जो उनकी बंदूक के डर से बोल नहीं पाती थी। अब यदि सरकार सख्ती करेगी, तो उसे कम से कम सेब के कारोबार से जुड़े लोगों का समर्थन मिलेगा। दूसरी चुनौती राज्य में राजनीतिक शक्तियों के पुनर्गठन की है। और तीसरी चुनौती नए राजनीतिक मुहावरों की है, जो राज्य की जनता को समझ में आएं। ये तीनों चुनौतियाँ कश्मीर घाटी में हैं। जम्मू और लद्दाख में नहीं।