सुप्रीम कोर्ट ने
शुक्रवार को दिए गए एक फैसले में कहा कि देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक
संहिता लागू करने के लिए पिछले 63 साल में कोई प्रयास नहीं किया गया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में कई बार कहा
है। अदालत ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने भाग 4 में नीति निर्देशक तत्वों का
विवरण देते हुए अनुच्छेद 44 के माध्यम से उम्मीद जताई थी कि देश के सभी हिस्सों
में समान नागरिक संहिता लागू करने के प्रयास किए जाएंगे। हालांकि हिन्दू पर्सनल लॉ
को 1956 में कानून की शक्ल दी गई, लेकिन उसके बाद समान नागरिक संहिता लागू करने के
लिए कोई कदम नहीं उठाए गए।
शाहबानो और सरला मुदगल
के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में समान संहिता की सिफारिशों के बाद भी कुछ
नहीं हुआ। अदालत की इस टिप्पणी के बाद फिर से कुछ संवदेनशील मामलों पर देश में बहस
शुरू होगी, जिनका संबंध धार्मिक मान्यताओं से है, और जो आधुनिक भारतीय
राष्ट्र-राज्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार को इससे
नैतिक और राजनीतिक सहारा भी मिलेगा, जो इस सिलसिले में लगातार प्रयत्नशील है।