Saturday, July 13, 2019

राहुल की चिट्ठी के अंतर्विरोध


राहुल गांधी के जिस इस्तीफे पर एक महीने से अटकलें चल रही थीं, वह वास्तविक बन गया है। पहला सवाल यही है कि उसे इतनी देर तक छिपाने की जरूरत क्या थी? पार्टी ने इस बात को छिपाया जबकि वह एक महीने से ज्यादा समय से यह बात हवा में है। राहुल गांधी ने चार पेज का जो पत्र लिखा है उसे गौर से पढ़ें, तो उसकी ध्वनि है कि में इस्तीफा तो दे रहा हूँ, पर गलती न तो मेरी है और न मेरी पार्टी की। व्यवस्था ही खराब है। दोष आँगन का है नाचने वाले का नहीं। 

उन्होंने पत्र की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया कि ‘कांग्रेस प्रमुख के तौर पर 2019 के लोकसभा चुनाव में हार की ज़िम्मेदारी मेरी है। भविष्य में पार्टी के विस्तार के लिए जवाबदेही काफ़ी अहम है। यही कारण है कि मैंने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दिया है। पार्टी को फिर से बनाने के लिए कड़े फ़ैसले की ज़रूरत है। 2019 में हार के लिए कई लोगों की जवाबदेही तय करने की ज़रूरत है। यह अन्याय होगा कि मैं दूसरों की जवाबदेही तय करूं और अपनी जवाबदेही की उपेक्षा करूं।’

इसके बाद पत्र का काफी बड़ा हिस्सा इस बात को समर्पित है कि हार के पीछे उनकी जिम्मेदारी नहीं है। उन्होंने बीजेपी की विचारधारा को पहला निशाना बनाया है। उन्होंने लिखा है, ‘हमें कुछ कड़े फैसले करने होंगे और चुनाव में हार के लिए कुछ लोगों को जिम्मेदार ठहराना होगा। सत्ता के अपने मोह को छोड़े बिना और एक गहरी विचारधारा की लड़ाई लड़े बिना हम अपने विरोधियों को नहीं हरा सकते।’

Friday, July 12, 2019

हमारी बेरुखी से जन्मी है पानी की समस्या


विडंबना है कि मॉनसून के बादल घिरे होने के बावजूद देश में पानी सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आया है. इस संकट के शहरों और गाँवों में अलग-अलग रूप हैं. गाँवों में यह खेती और सिंचाई के सामने खड़े संकट के रूप में है, तो शहरों में पीने के पानी की किल्लत के रूप में. पेयजल की समस्या गाँवों में भी है, पर चूंकि मीडिया शहरों पर केन्द्रित है, इसलिए शहरी समस्या ज्यादा भयावह रूप में सामने आ रही है. हम पेयजल के बारे में ही सुन रहे हैं, इसलिए खेती से जुड़े मसले सामने नहीं आ रहे हैं, जबकि इस समस्या का वास्तविक रूप इन दोनों को साथ रखकर ही समझा जा सकता है.
शहरीकरण तेजी से हो रहा है और गाँवों से आबादी का पलायन शहरों की ओर हो रहा है, उसे देखते हुए शहरों में पानी की समस्या पर देश का ध्यान केन्द्रित है. हाल में चेन्नई शहर से जैसी तस्वीरें सामने आई हैं, उन्हें देखकर शेष भारत में घबराहट है. संयोग से हाल में पेश केन्द्रीय बजट में भारत सरकार ने घोषणा की है कि सन 2024 तक देश के हर घर में नल से जल पहुँचाया जाएगा. सरकार ने झल शक्ति के नाम से नया मंत्रालय भी बनाया है. सम्भव है कि हर घर तक नल पहुँच जाएं, पर क्या उन नलों में पानी आएगा?
नीति आयोग की पिछले साल की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के क़रीब 10 करोड़ लोगों के पानी का संकट है. देश के 21 प्रमुख शहरों में ज़मीन के नीचे का पानी तकरीबन खत्म हो चुका है. इनके परम्परागत जल स्रोत सूख चुके हैं, कुएं और तालाब शहरी विकास के लिए पाटे जा चुके हैं. देश में पानी का संकट तो है ही साथ ही पानी की गुणवत्ता पर भी सवाल हैं. नीति आयोग की पिछले साल की रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि पानी की गुणवत्ता के वैश्विक सूचकांक में भारत का स्थान दुनिया के 122 देशों में 120 वाँ था. यह बात भी चिंताजनक है.

Sunday, July 7, 2019

कौन लाया कांग्रेस को मँझधार में?


राहुल गांधी के जिस इस्तीफे पर एक महीने से अटकलें चल रही थीं, वह अब जाकर वास्तविक बना। उसे छिपाने की जरूरत क्या थी? पार्टी ने इस बात को छिपाया जबकि वह एक महीने से ज्यादा समय से हवा में है। बहरहाल अब सवाल है कि इसके आगे क्या? क्या कांग्रेस परिवार-मुक्त हो गई या हो जाएगी? क्या भविष्य में उसका संचालन लोकतांत्रिक तरीके से होगा? इस्तीफा देने के बाद राहुल गांधी की भूमिका क्या होगी और उनके उत्तराधिकारी का चयन किस तरीके से होगा?
पार्टी के संविधान में व्यवस्था है कि किसी अनहोनी की स्थिति में पार्टी के वरिष्ठतम महासचिव को अंतरिम अध्यक्ष का काम सौंपा जा सकता है। अलबत्ता पार्टी ने संकेत दिया है कि जबतक कार्यसमिति इस्तीफे को स्वीकार नहीं करती, तबतक राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष हैं। इसके बाद नए अध्यक्ष की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरा होगी। तमाम नाम सामने आ रहे हैं, पर अब सबसे पहले कार्यसमिति की बैठक का इंतजार है।  
राहुल गांधी के चार पेज के इस्तीफे में पार्टी की भावी दिशा के कुछ संकेत जरूर मिलते हैं। इस्तीफे के बाद यह नहीं मान लेना चाहिए कि पार्टी पर परिवार का वर्चस्व खत्म हो गया है, बल्कि उस वर्चस्व की अब औपचारिक पुष्टि होगी। उन्होंने लिखा है कि इस्तीफ़ा देने के तत्काल बाद मैंने कांग्रेस कार्यसमिति में अपने सहकर्मियों को सलाह दी कि वे नए अध्यक्ष को चुनने की ज़िम्मेदारी एक ग्रुप को दें। वही ग्रुप नए अध्यक्ष की खोज शुरू करे। मैं इस मामले में मदद करूंगा और कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन बहुत ही आसानी से हो जाएगा।

Saturday, July 6, 2019

भविष्य के स्वप्नों की तस्वीर

मोदी सरकार के दूसरे दौर के पहले बजट में कुछ बातें अपने नएपन की वजह से ध्यान खींचती हैं। मसलन पहली बार वित्तमंत्री के हाथ में पश्चिमी परम्पराओं का प्रतीक चमड़े का काला बैग नहीं थी, बल्कि लाल रंग के मखमली कपड़े में लिपटा दस्तावेज था। दूसरे ऐसा पहली बार हुआ है कि वित्तमंत्री ने अपने भाषण में आँकड़ों को बहुत ज्यादा बताने से परहेज रखा। उन्होंने बड़े कार्यक्रमों की घोषणा भी नहीं की। नल से जल जैसी योजना को छोड़ दें, तो लोकलुभावन बातें भी नहीं थीं। इसके बावजूद बजट न केवल आकर्षक है, बल्कि भरोसा जगाता है।

इस बजट में भारतवर्ष के भविष्य की न केवल तस्वीर खींची गई है, उसे साकार बनाने के तरीकों की घोषणा की गई है। निर्मला सीतारमण का बजट भाषण सामान्य व्यक्ति को भी उतना ही समझ में आया, जितना कि विशेषज्ञों को। चूंकि बजट के ज्यादातर प्रावधान वही हैं, जो फरवरी में पेश किए गए बजट में थे। बल्कि फरवरी में ही यह भी कहा गया था कि हम भारत को पाँच साल में पाँच ट्रिलियन और आठ साल में दस ट्रिलियन डॉलर की अर्थ-व्यवस्था बनाएंगे। अलबत्ता निर्मला सीतारमण ने वहाँ तक जाने के रास्ते को स्पष्ट किया। इस साल की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि यह काम तभी होगा, जब हमारी सालाना संवृद्धि कम से कम आठ फीसदी की दर से हो। इस बजट में उस दर को हासिल करने की दिशा नजर आती है।

वित्तमंत्री को भरोसा है कि हम इस साल तीन ट्रिलियन की सीमारेखा पार कर जाएंगे। वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में है। हमारी उम्मीदों के तीन बड़े कारण हैं। पेट्रोलियम की कीमतों में गिरावट है, मुद्रास्फीति काबू में है और राजकोषीय घाटा 3.4 से घटकर 3.3 फीसदी पर आ गया है। यानी कि सरकार ने वित्तीय अनुशासन बनाए रखा। राजस्व के मामले में वित्तमंत्री ने आयकर में हो रही रिकॉर्ड वृद्धि का जिक्र किया है। जीएसटी पर अभी अंदेशे हैं। यों इस बजट का मुख्य जोर पूँजी निवेश और तरलता बढ़ाने पर है।

बजट में भविष्य के भारत की तस्वीर


मोदी सरकार के दूसरे दौर के पहले बजट में भविष्य की न केवल तस्वीर खींची गई है, उसे साकार बनाने के तरीकों की घोषणा की गई है. कई मायनों में निर्मला सीतारमण का बजट साफ-सुथरा और स्पष्ट है. फरवरी में पेश किए गए बजट में कहा गया था कि हम भारत को पाँच साल में पाँच ट्रिलियन और आठ साल में दस ट्रिलियन डॉलर की अर्थ-व्यवस्था बनाएंगे. पर इस साल की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि यह काम तभी होगा, जब हमारी सालाना संवृद्धि कम से कम आठ फीसदी की दर से हो.

वित्तमंत्री को भरोसा है कि हम इस साल तीन ट्रिलियन की सीमारेखा पार कर जाएंगे. वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में है. हमारी उम्मीदों के तीन बड़े कारण हैं. पेट्रोलियम की कीमतों में गिरावट है, मुद्रास्फीति काबू में है और राजकोषीय घाटा 3.4 से घटकर 3.3 फीसदी पर आ गया है. यानी कि सरकार ने वित्तीय अनुशासन बनाए रखा. राजस्व के मामले में वित्तमंत्री ने आयकर में हो रही रिकॉर्ड वृद्धि का जिक्र किया है. जीएसटी पर अभी अंदेशे हैं. वित्तमंत्री ने सार्वजनिक उद्यमों के विनिवेश के लिए इस साल का लक्ष्य एक लाख पाँच हजार करोड़ रुपये का रखा है. एयर इंडिया के विनिवेश का जिक्र भी उन्होंने किया. बीएसएनएल और एमटीएनएल के लिए बड़े पैकेज सरकार को देने हैं.