Tuesday, September 27, 2016

Google birthday doodle amid some confusion


Telegraph Reporters 
27 SEPTEMBER 2016 • 1:35AM
Google is now officially an adult. The internet giant is celebrating its 18th birthday on Tuesday with an animated Doodle shown to web browsers around the world.

The company, founded by Larry Page and Sergey Brin in 1998, traditionally marks its birthday on the Google homepage on September 27.

However, not even Google seems to really know when it was formed. Since 2006, it has celebrated its birthday on September 27, but the year before that, had it as September 26.

In 2004, its 6th birthday Doodle went online on September 7 and in the year before that, it was September 8.

In fact, none of these dates seem to have any particular relevance. The company's own history lists its incorporation date in 1998 - the nearest thing to a corporate birthday - as September 4.

And the idea for Google began years earlier in 1996, as a research project at Stanford University, when Page and Brin had a new idea for a search engine that would rank pages by how many other sites linked to it, rather than the crude format others used at the time - ranking them by how often the search term appeared on the page.

Google alluded to confusion over its birthday in 2013, admitting it had celebrated its birthday on four different dates, but September 27 now seems to have stuck. The company may have just chosen the date because it was what the first birthday Doodle in 2002 used.

Read full report here

Sunday, September 25, 2016

स्टूडियो उन्माद से हासिल कुछ नहीं होगा



पाकिस्तानी कार्टून


मीडिया का सबसे पसंदीदा विषय भारत-पाक तनाव है। जम्मू-कश्मीर के उड़ी इलाके में फौजी कैम्प पर हुए आतंकवादी हमले की खबर आई नहीं कि दिनभर चैनलों पर तय होने लगा कि भारत को करना क्या चाहिए। डिप्लोमैटिक दबाव डालें या फौजी हमला करें? सिंधु संधि को रद्द कर दें? नदियों का रुख बदल दें? एक पूर्व जनरल ने सलाह दी कि अपने फिदायीन दस्ते बनाएं। कुछ मीडिया नरेशों का सुझाव था कि जैसे म्यांमार में नगा विद्रोहियों पर धावा बोला गया था वैसे ही लश्करे तैयबा के कैम्पों पर हमला करना चाहिए।

Saturday, September 24, 2016

अरुणाचल की फूहड़ कॉमेडी

अरुणाचल में उठा-पटक ने नए किस्म की राजनीति का मुज़ाहिरा किया है। इसके अच्छे या बुरे परिणामों के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। बीजेपी को खुशी होगी कि उसने एक और प्रदेश को कांग्रेस मुक्त कर दिया, पर यह ढलान पर उतरती राजनीति का एक पड़ाव है। अभी तक बीजेपी इसमें प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं है और इसे कांग्रेस की गलतियों का परिणाम बता रही है, पर वह अपने हाथ को छिपा नहीं पाएगी। इससे पूर्वोत्तर में बीजेपी का रास्ता और आसान हो गया है, पर जिस हास्यास्पद तरीके से यह हुआ है, उससे भविष्य को लेकर शंकाएं पैदा होती हैं।

कोझीकोड बीजेपी बैठक पर उड़ी की छाया

प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए


भारतीय जनता पार्टी ने कोझीकोड में राष्ट्रीय परिषद की बैठक की योजना तब बनाई थी जब राजनीतिक बिसात पर मोहरे दूसरे थे. पाटी की नज़र अगले साल के विधानसभा चुनावों पर थी, पर उड़ी हमले से कहानी बदल गई है.
देश का ध्यान अब इस बात पर है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शनिवार की रैली में पाकिस्तान को क्या संदेश देंगे. और पार्टी की नजरें इस बात पर हैं कि इस घटनाक्रम को चुनावों से किस तरह जोड़ा जाए. पाकिस्तान के साथ टकराव अक्सर केन्द्र की सरकारों की मदद करता रहा है.
परम्परा है कि राष्ट्रीय नेता सम्मेलन के समापन पर भाषण देता है, पर यहाँ मोदी के संदेश के साथ विषय प्रवर्तन होगा. प्रधानमंत्री वहाँ दो दिन रुकेंगे और रविवार को भी पार्टी के नेताओं को संबोधित करेंगे.
क़यास लग रहे हैं कि हम युद्ध की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं. बहरहाल अगले दो दिन कोझीकोड राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में रहेगा. और भारतीय जनता पार्टी केरल को जताने की कोशिश करेगी कि हमने यहाँ पक्का खूँटा गाड़ दिया है.

Tuesday, September 20, 2016

Censorship of Facebook

Censoring the terrors of war
Who decides whether or not an image is fit for human consumption, and on what grounds?
Credit: Flickr/Tommy Japan. Creative Commons 2.0. Some rights reserved.
On the 8th September 2016, Aftenposten, Norway’s largest newspaper, published a front page rebuttal of Facebook’s request to remove an image from its own Facebook page that was written by its editor-in-chief and CEO, Espen Egil Hansen. The rebuttal was written in response to the censorship of Nick Ut’s Pulitzer Prize winning photograph ‘The Terror of War,’ which depicted children fleeing a napalm strike in Vietnam and was posted on Facebook as part of Norwegian author Tom Egeland’s entry about seven images that changed the history of warfare. 
Hansen was right to draw attention to the fact that “The napalm-girl is by far the most iconic documentary photography from the Vietnam war. The media played a decisive role in reporting different stories about the war than the men in charge wanted them to publish. They brought about a change of attitude which played a role in ending the war. They contributed to a more open, more critical debate. This is how a democracy must function.”