Tuesday, August 12, 2014

नया भारत : अंधेरे को छांटती आशा की किरणें

सन 2009 में ब्रिटेन के रियलिटी शो ‘ब्रिटेन गॉट टेलेंट’ में स्कॉटलैंड की 47 वर्षीय सूज़न बॉयल ने ऑडीशन दिया। पहले दिन के पहले शो से उसकी प्रतिभा का पता लग गया। पर वह 47 साल की थी ग्लैमरस नहीं थी। वह व्यावसायिक गायिका नहीं थी। पूरा जीवन उसने अपनी माँ की सेवा में लगा दिया। चर्च में या आसपास के किसी कार्यक्रम में गाती थी। उसके बेहतर प्रदर्शन के बावज़ूद दर्शकों का समर्थन नहीं मिला। ग्लैमरस प्रस्तोता दर्शकों पर हावी थे। पर सुधी गुण-ग्राहक भी हैं। सूज़न बॉयल को मीडिया सपोर्ट मिला। बेहद सादा, सरल, सहज और बच्चों जैसे चेहरे वाली इस गायिका ने जब फाइनल में ‘आय ड्रैम्ड अ ड्रीम’ गाया तो सिर्फ सेट पर ही नहीं, इस कार्यक्रम को देख रहे एक करोड़ से ज्यादा दर्शकों में खामोशी छा गई। तमाम लोगों की आँखों में आँसू थे। जैसे ही उसका गाना खत्म हुआ तालियों का समाँ बँध गया।

‘आय ड्रैम्ड अ ड्रीम’ हारते लोगों का सपना है। यह करोड़ों लोगों का दुःस्वप्न है, जो हृदयविदारक होते हुए भी हमें भाता है। कुछ साल पहले फेसबुक पर नाइजीरिया के किसी टेलेंट हंट कांटेस्ट का पेज देखने को मिला। उसका सूत्र वाक्य था, आय थिंक आय कैन’। एक सामान्य व्यक्ति को यह बताना कि तुम नाकाबिल नहीं हो। उसकी हीन भावना को निकाल कर फेंकने के लिए उसके बीच से निकल कर ही किसी को रोल मॉडल बनना होता है।

हाल में अमिताभ बच्चन के कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम की आठवीं श्रृंखला का एक प्रोमो देखने को मिला, जिसमें विज्ञापन में अमिताभ बच्चन प्रतिभागी पूर्णिमा से एक प्रश्न पूछते हैं कि कोहिमा किस देश में है? यह सवाल जिस लड़की से पूछा गया है, वह खुद कोहिमा की रहने वाली है। बहरहाल वह इस सवाल पर ऑडियंस पोल लेती है। सौ प्रतिशत जवाब आता है ‘इंडिया।’ अमिताभ ने पूछा इतने आसान से सवाल पर तुमने लाइफ लाइन क्यों ली?  तुम नहीं जानतीं कि कोहिमा भारत में है जबकि खुद वहीं से हो। उसका जवाब था, जानते सब हैं, पर मानते कितने हैं? पिछले दिनों दिल्ली शहर में पूर्वोत्तर के छात्रों का आक्रोश देखने को मिला। जैसे-जैसे अंतर्विरोध खुल रहे हैं वैसे-वैसे नया भारत परिभाषित होता जा रहा है।

सख़्त ज़मीन पर आया मोदी-रथ

भाजपा की राष्ट्रीय परिषद में नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को ‘मैन ऑफ द मैच’ घोषित किया और उसके अगले ही रोज आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, एनडीए की सरकार बनाने का श्रेय किसी पार्टी या शख्स को नहीं, बल्कि आम जनता को जाता है.'' यह बदलाव तब हुआ जब देश की जनता ने इसका फैसला किया. क्या यह नरेंद्र मोदी को तुर्की-ब-तुर्की जवाब है या अनायास कही गई बात है? भाजपा के शिखर पर मोदी और अमित शाह की जोड़ी नम्बर वन पूरी तरह स्थापित हो जाने के बाद मोहन भागवत का यह बयान क्या किसी किस्म का संतुलन बैठाने की कोशिश है या संघ के मन में किसी किस्म का भय पैदा हो गया है? मोदी की राजनीति के लिए अगला हफ़्ता काफी महत्वपूर्ण साबित होने वाला है, क्योंकि लोकसभा चुनाव की कुछ तार्किक परिणतियाँ इस हफ्ते देखने को मिलेंगी.

आर्थिक नज़र से देखें तो मॉनसून की अनिश्चितता की वजह से खाने-पीने की चीजों की महंगाई बढ़ने वाली है. बावजूद इसके रिज़र्व बैंक को उम्मीद है कि सरकारी नीतियों से आने वाले महीनों में आपूर्ति में सुधरेगी. अलबत्ता उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जून में लगातार दूसरे महीने कम हुई है. आरबीआई उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति को जनवरी 2015 तक 8 प्रतिशत पर और जनवरी 2016 तक 6 प्रतिशत तक सीमित करने के लक्ष्य के प्रतिबद्ध है. राजनीति के लिहाज से कमोबेश माहौल ठीक है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों की निगाहें अब चार राज्यों के विधानसभा चुनावों और उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए 12 उप चुनावों पर हैं. संसद का यह सत्र 14 अगस्त तक है और बीमा विधेयक पर पीछे हटने के बाद मोदी सरकार अब कठोर ज़मीन पर आ गई है.

Sunday, August 10, 2014

मद्धम पड़ते कांग्रेसी चिराग़

कांग्रेस के सामने फिलहाल तीन चुनौतियाँ हैं। पहली नेतृत्व की। दूसरी संसदीय रणनीति की। और तीसरी दीर्घकालीन राजनीति से जुड़ी राजनीति की। जितना समझा जा रहा है संकट उससे भी ज्यादा गहरा है। पार्टी के एक असंतुष्ट नेता जगमीत सिंह बराड़ ने इसका संकेत दे दिया है। हालांकि उन्होंने अपनी बात कह कर वापस भी ले ली। पर राजनीति में बातें इतनी आसानी से वापस नहीं होतीं। जो कह दिया सो कह दिया। उन्होंने राहुल और सोनिया गांधी को दो साल की छुट्टी लेने की सलाह दी थी, जिसे बाद में अपने तरीके से समझा दिया। वे पहले ऐसे कांग्रेसी नेता हैं, जिन्होंने गांधी परिवार को कुछ समय के लिए ही सही लेकिन पद छोड़ने की सलाह दी। उनकी बात का मतलब जो हो, पार्टी आला कमान ने भी पहली बार विरोधों को स्वीकार किया है। नेतृत्व के ख़िलाफ़ उठ रही आवाज़ों के बीच गांधी परिवार के क़रीबी जनार्दन द्विवेदी ने माना कि कार्यकर्ताओं की आवाज़ को तवज्जोह देना चहिए। संवाद दोनों तरफ से हो।

इसे कांग्रेस के आत्म मंथन की शुरुआत तभी माना जा सकता है, जब औपचारिक से विमर्श हो। किसी कार्यकर्ता का बोलना और उसे चुप करा लेना अनुशासन से जुड़ी घटना भर बनकर रह जाता है। कार्यकर्ता के रोष को अनुशासनहीनता माना जा सकता है या विमर्श का मंच न होने की मजबूरी। दिक्कत यह है कि व्यवस्थित विमर्श और अनुशासनहीनता की रेखा खींच पाना भी काफी मुश्किल है। इसीलिए एके एंटनी समिति औपचारिक नहीं है। उसकी सिफारिशों की शक्ल भी औपचारिक नहीं होगी।

Saturday, August 9, 2014

योजना आयोग रहे न रहे, राज्यों की भूमिका बढ़नी चाहिए

यूपीए सरकार और उसकी राजनीति में अंतर्विरोध था। सरकार आर्थिक उदारीकरण पर कटिबद्ध थी और पार्टी नेहरूवादी सोच में कैद थी। मोदी सरकार के सामने भी अंतर्द्वंद है। पर मनमोहन सरकार के मुकाबले वह ज्यादा खुलकर काम कर सकती है। यह बात योजना आयोग को लेकर चल रही अटकलों के संदर्भ में कही जा सकती है। योजना मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने पिछले हफ्ते राज्यसभा में लिखित उत्तर में कहा कि आयोग को फिलहाल खत्म करने या उसके मौजूदा स्वरूप को युक्तिसंगत बनाने का कोई प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है। पर इस बार के बजट का साफ संकेत है कि आयोग के पर कतरे जाएंगे।
योजनागत और गैर-योजनागत व्यय में अंतर पिछली सरकार ने अपने अंतरिम बजट में ही कर दिया था। सरकारी विभागों को दो तरीके से धनराशि आवंटित होती है। एक, वित्त मंत्रालय के जरिए और दूसरे योजना आयोग से। इस विसंगति को दूर किया जा रहा है। यह अवधारणा मोदी सरकार की देन नहीं है। इसकी सिफारिश रंगराजन समिति ने की थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बरसों से इसकी बात करते रहे हैं। उन्होंने अपने विदाई भाषण में लगातार खुलती जा रही अर्थव्यवस्था में योजना आयोग की भूमिका की समीक्षा करने की सलाह दी थी। भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में भी आयोग के पुनर्गठन की बात कही गई है। अलबत्ता वामपंथी दलों को यह विचार पसंद नहीं आएगा।

Friday, August 8, 2014

पानी में फँसा नौजवान, नीतीश कुमार और टाटा

बारिश कम हो तो परेशानी और ज्यादा हो तो और ज्यादा परेशानी। आज के भास्कर के पहले सफे पर एक पिलर के सहारे लटके एक युवक की तस्वीर है, जो तेज बहते पानी के बीच फँसा है। इन दिनों ऐसे दृश्य देश भर से देखने को मिल रहे हैं। मोबाइल फोनों में लगे कैमरों ने अब ऐसी खबरें लेना आसान बना दिया है। राजस्थान पत्रिका ने जयपुर के महिला कॉलेजों में चल रहे छात्रसंघ चुनाव में सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका पर रोचक फीचर छापा है। ऐसी ही कुछ और तस्वीरें दूसरे अखबारों में हैं। एक रोचक खबर बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्र और रतन टाटा के बीच शाब्दिक जिरह को लेकर है। रतन टाटा ने एक रोज पहले कहा था कि मैं दो साल बाद कोलकाता आया हूँ और मुझे राजरहाट इलाके में औद्योगिक विकास नजर नहीं आया। इस पर अमित मित्र ने कहा कि टाटा का दिमाग फिर गया है। सिंगुर मामले के कारण नैनो परियोजना को बंगाल से गुजरात ले जाने वाले टाटा के मन में खलिश है। मित्रा-टाटा संवाद पर आज के टेलीग्राफ ने जोरदार कवरेज की है। आज की एक रोचक खबर बिहार से है जहाँ के मुख्यमंत्री जीतन राम माँझी ने कहा है कि चुनाव के बाद हम जीते तो मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार बनेंगे। जेडीयू, राजद और कांग्रेस के गठबंधन ने बिहार में गठबंधन की योजना बना ली है। चुनाव अभी दूर है। आज की कुछ कतरनें