tag:blogger.com,1999:blog-9736359.post6464470198177263731..comments2024-03-19T11:38:51.284+05:30Comments on जिज्ञासा: डीडी अपनी ताकत को क्यों नहीं पहचानता?Pramod Joshihttp://www.blogger.com/profile/01032625006857457609noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-66082900777663544782010-10-16T13:34:42.167+05:302010-10-16T13:34:42.167+05:30प्रमोद जी, दूरदर्शन सरकारी बाबुओं के कब्जे में है।...प्रमोद जी, दूरदर्शन सरकारी बाबुओं के कब्जे में है। और इन बाबुओं की दृष्टि बेहद मायोपिक, अपनीनौकरी बचाने तक सीमित और तदर्थवादी-यथास्थितिवादी है। ऐसे में डीडी से बेहतर की उम्मीद नही की जा सकती। डीडी ने इस बार ठीक-ठाक सा प्रसारण कियी भी तो इसलिए क्योंकि इसने बाहरी पेशेवरों को किराए पर लिया था।Manjit Thakurhttps://www.blogger.com/profile/09765421125256479319noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-53038392784165024282010-10-15T07:40:17.274+05:302010-10-15T07:40:17.274+05:30कामता जी किसी से भी तुलना और अपेक्षा बेमानी है तब ...कामता जी किसी से भी तुलना और अपेक्षा बेमानी है तब फिर कोई बात क्या की जाय। जैसा चल सकता था, वैसा ही चल रहा है। हमारी कौन सी व्यवस्था पश्चिम से प्रभावित नहीं है? गांधीवादी, आम्बेडकरवादी, भगवावादी और मार्क्सवादी विचार सहित। कोई थोरो और प्रूधो से प्रभावित है, कोई अमेरिकी लिबरल्स से और कोई हिटलर के नाज़ी विचार से। <br /><br />जहाँ हम हैं, वहाँ से आगे जाने का कोई रास्ता कोई तो बताए। मैं केवल सूचना और विचार के आवागमन के बेहतर तरीके की बात कर रहा हूँ। कम से कम दूरदर्शन सिद्धांततः जनता के निर्णय के दायरे में है। दुनिया के किसी देश में न तो राज्य खत्म हुआ है और न उसकी भूमिका अभी खत्म हुई है। आपके पास कोई रास्ता हो तो बताएं।Pramod Joshihttps://www.blogger.com/profile/01032625006857457609noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-92130254557593352452010-10-14T22:29:31.206+05:302010-10-14T22:29:31.206+05:30तु भी रानी मैं भी रानी कौन भरे कुंए का पानी...
ऐसे...तु भी रानी मैं भी रानी कौन भरे कुंए का पानी...<br />ऐसे में दूरदर्शन क्या करेगा. फिर किसी बाबू की कोई ज़िम्मेदारी भी तो तय नहीं है.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-25222403112606072010-10-14T19:57:35.866+05:302010-10-14T19:57:35.866+05:30जोशी जी, गुजारे जमाने का साम्राज्यवादी देश और अब ...जोशी जी, गुजारे जमाने का साम्राज्यवादी देश और अब अमेरिका का पिछलगुआ ब्रिटेन भारत के मुकाबले काफी मालदार है और वहां का मानस भी धार्मिक सुधार,पुनर्जागरण-प्रबोधन की भट्ठी में तपकर निकला हुआ है। इसलिए तुलना और अपेक्षा दोनों बेमानी है। अब आते हैं सूचना विभाग के अफसरों पर। तो, अधिशेष्ा विनियोजित करने वाले शोषकों की सरकार की सेवा करने वाले अफसरों से यह उम्मीद सरासर नादानी है कि वे संस्कृति कर्म करने लगेंगे और जनता के मानसिक-सांस्कृतिक स्तरानोन्नयन को ध्यान में रखकर कार्यक्रम बनाएंगे-बनवाएंगे। उदारीकरण के पहले वाले दौर की जो आप याद कर रहे हैं तो वह भ्रमों में लिपटा हुआ दौर था लेकिन अब तो श्रम और पूंजी बिल्कुल आमने-सामने आ गये हैं और झीना से परदा भी तार-तार हो चुका है।कामता प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/10017796675691176190noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-39101070178673033172010-10-14T17:32:50.846+05:302010-10-14T17:32:50.846+05:30विजय जी दूरदर्शन की कार्यशैली को मैं जितना देख पाय...विजय जी दूरदर्शन की कार्यशैली को मैं जितना देख पाया हूँ उसके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि वहाँ काम करने वाले ज्यादातर लोग अस्थायी या कॉण्ट्रैक्ट पर हैं। नौजवान लड़के-लड़कियाँ अपना पूरा दिन लगाते हैं। उनके समानांतर एक वर्ग है जो पक्की नौकरी में है। वह कैसे काम करता होगा आप समझ सकते हैं। डीडी न्यूज़ भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी चलाते हैं। इनकी भरती मुख्यतः सरकारी प्रचार के लिए होती है। वे फील्ड पब्लिसटी विभाग में काम भी करते हैं। इसमें बुनियादी बदलाव की ज़रूरत है। दूरदर्शन वास्तव में बीबीसी या या जापान के एनएचके की तरह काम करने लगे तो देश के प्राइवेट चैनल डर के मारे रास्ते पर आ जाएंगे। कोई विकल्प लेकर सामने ही नहीं आ रहा है। दर्शक भी क्या करे?Pramod Joshihttps://www.blogger.com/profile/01032625006857457609noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-46568370700578338842010-10-14T13:14:51.217+05:302010-10-14T13:14:51.217+05:30तुलनात्मक रूप से आज भी दूरदर्शन का कंटेंट सबसे अच्...तुलनात्मक रूप से आज भी दूरदर्शन का कंटेंट सबसे अच्छा है, क्योंकि इस पर सरकारी मोहर लगाने वाली बात प्राइवेट चैनल या धन्देबाज ही करते रहे है, ऐसा करने से उनके चंनेलो को फायदा पहुचता है. इसलिए वे तो बदनाम करेंगे ही . सरकार सब्द आज एक विरोध का सब्द बन गया है, यह हर विधा मे है...सरकार माने भर्स्ट, कामचोर , घर्जवाई आदि. दूरदर्शन को स्वायत करने के प्रयास होने चाहिए, अगर सरकार इस पर पहल करे तो भारत की जनता राम जन्म भूमि व कोमन वेल्थ गेम के मुद्दे की तरह अन्य चंनेलो को भी नकार सकती है...यदि इच्छा शक्ति हो तो.jayprakash Panwarhttp://www.channelmountaincommunication.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-85550703650282350092010-10-14T10:00:05.743+05:302010-10-14T10:00:05.743+05:30आपने बहुत सटीक बात कही है जोशी जी. डी डी में मुझे ...आपने बहुत सटीक बात कही है जोशी जी. डी डी में मुझे लगता है कि वह सभी गुण/अवगुण मौजूद हैं जो हमारे सरकारी विभागों और सार्वजनिक संस्थानों में हैं-साहेब लोगों की अनदेखी और कर्मचारियों की काफी हद तक अकर्मण्यता. दोनों ही बढ़िया काम करना जानते हैं पर सी डब्लू जी जैसे इवेंट के होने पर ही. प्राइवेट चैनल में भले ही बाजीगरी हो पर नौकरी जाने के भय से शायद काम तो होता ही है.V.K. Joshihttps://www.blogger.com/profile/07596281167596902918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-62943374517279416532010-10-14T09:02:11.917+05:302010-10-14T09:02:11.917+05:30दूरदर्शन यानी डीडी ऐसा मंच हो सकता है, जो गम्भीर व...दूरदर्शन यानी डीडी ऐसा मंच हो सकता है, जो गम्भीर विमर्श को बढ़ा सके और उन जानकारियों को दे, जिनसे प्राइवेट चैनल भागते हैं। वह संज़ीदा दर्शकों का वैकल्पिक मार्केट खड़ा कर सकता है।<br /><br />आपके इन विचारों से मैं भी सहमत हूँ ..डीडी अगर ऐसा करता है तो देश और समाज में क्रांतीकारी सुधार हो सकेगा...शानदार प्रस्तुती...honesty project democracyhttps://www.blogger.com/profile/02935419766380607042noreply@blogger.com