अमेरिका के दंडात्मक ‘पारस्परिक टैरिफ’ से बचने की 9 जुलाई की समय-सीमा जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, भारत-अमेरिका व्यापार-समझौते की संभावनाएँ बढ़ रही हैं. इसमें सबसे बड़ी बाधा भारत के किसानों और पशुपालकों के हितों की लक्ष्मण रेखा है.
पिछले सप्ताह राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के इस
बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कि नई दिल्ली के साथ होने वाला अंतरिम
द्विपक्षीय व्यापार समझौता (बीटीए) अमेरिका के लिए भारतीय बाजार को ‘खोल देगा’,
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है, हाँ, हम
समझौता करना चाहेंगे.
ट्रंप की टिप्पणी ऐसे समय में आई, जब मुख्य
वार्ताकार राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में एक भारतीय दल 26 जून को ही अमेरिका के साथ
अगले दौर की व्यापार वार्ता के लिए वाशिंगटन पहुँचा. अग्रवाल वाणिज्य विभाग में
विशेष सचिव हैं.
भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता के अंतिम चरण में पहुंचने के साथ ही राष्ट्रपति ट्रंप ने बुधवार को कहा कि यह समझौता ऐसा होगा, जिसमें अमेरिका की कंपनियां ‘‘आगे बढ़कर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगी’’ क्योंकि यह समझौता ‘‘बहुत कम शुल्क’’ सुनिश्चित करेगा.
एयरफोर्स वन में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा: "मुझे लगता है कि हम भारत के साथ एक समझौता करने जा रहे हैं। और यह एक अलग तरह का समझौता होगा. यह एक ऐसा समझौता होगा जिसमें हम शामिल होकर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे. अभी भारत किसी को भी स्वीकार नहीं करता. मुझे लगता है कि भारत ऐसा करने जा रहा है, और अगर वे ऐसा करते हैं, तो हम बहुत कम टैरिफ पर एक समझौता करने जा रहे हैं..."
राष्ट्रपति की यह टिप्पणी अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट द्वारा मंगलवार को दिए गए बयान के कुछ घंटों बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका और भारत दक्षिण एशियाई देश में अमेरिकी आयात पर शुल्क कम करने तथा भारत को अगले सप्ताह तेजी से बढ़ने वाले ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए जाने वाले शुल्कों से बचने में मदद करने के लिए एक समझौते के करीब पहुंच रहे हैं.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में कहा था, "हम एक बहुत ही जटिल व्यापार वार्ता के बीच में हैं - उम्मीद है कि बीच से भी ज़्यादा बीच में." "ज़ाहिर है, मेरी उम्मीद है कि हम इसे एक सफल निष्कर्ष पर ले जाएँगे। मैं इसकी गारंटी नहीं दे सकता, क्योंकि उस चर्चा में एक और पक्ष भी है."
पहला चरण
अमेरिका ने 2 अप्रैल को घोषित उच्च टैरिफ को 9
जुलाई तक निलंबित कर दिया था. इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भारत के साथ समझौता
उसके पहले हो जाएगा. यह दीर्घकालीन व्यापार-समझौते का पहला चरण होगा.
इस समझौते से भारतीय अर्थव्यवस्था की बदलती दिशा
का पता लगेगा. नब्बे के दशक के आर्थिक-उदारीकरण, के बाद आंतरिक-राजनीति में फिर से
नई लहरें पैदा होंगी. अमेरिका के सस्ते कृषि-उत्पादों के भारत आने का मतलब है, खेतों
और गाँवों में हलचल.
भारत चाहता है कि अमेरिकी कृषि-उत्पादों की सब्सिडी
पर भी बात हो. अब लगता है कि दोनों देश, व्यापार-समझौते के पहले चरण पर जल्द ही
पहुँचेंगे, शायद काफी हद तक अमेरिकी शर्तों पर, लेकिन भविष्य में भारतीय चिंताओं को संबोधित करते हुए संभावित समायोजन के
साथ.
भारतीय विदेश-नीति के लिहाज से यह हफ्ता काफी महत्वपूर्ण होगा. अगले कुछ समय में अमेरिका के साथ व्यापार-समझौते के अलावा यूरोप और चीन के साथ रिश्तों को लेकर भी महत्वपूर्ण गतिविधियाँ होने वाली हैं.