पृष्ठ

Wednesday, May 29, 2024

राफा पर इसराइली हमले और बढ़ती वैश्विक-हताशा


संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने शुक्रवार 24 मई को इसराइल को आदेश दिया है कि वह दक्षिणी गज़ा के राफा शहर पर चल रही कार्रवाई को फौरन रोक दे और वहाँ से अपनी सेना को वापस बुलाए.

यह आदेश दक्षिण अफ्रीका की उस अपील के आधार पर दिया गया है, जिसमें इसराइल पर फलस्तीनियों के नरसंहार का आरोप लगाया गया था. बावजूद इस आदेश के, लगता नहीं कि इसराइली कार्रवाई रुकेगी. इस आदेश के बाद 48 घंटों में इसराइली विमानों ने राफा पर 60 से ज्यादा हमले किए हैं.

उधर पिछले रविवार को फलस्तीनी संगठन हमास ने तेल अवीव पर एक बड़ा रॉकेट हमला करके यह बताया है कि साढ़े सात महीने की इसराइली कार्रवाई के बावजूद उसके हौसले पस्त नहीं हुए हैं. दोनों पक्षों को समझौते की मेज पर लाने में किसी किस्म की कामयाबी नहीं मिल पा रही है.

आईसीजे के प्रति इसराइली हुक्म-उदूली की वजह उसकी फौजी ताकत ही नहीं है, बल्कि उसके पीछे खड़ा अमेरिका भी है, जो उसे रोक नहीं रहा है. दूसरी तरफ मसले के समाधान से जुड़ी जटिलताएं भी आड़े आ रही हैं.

इसराइल के वॉर कैबिनेट मिनिस्टर बेनी गैंट्ज़ ने कहा है कि फैसला सुनाने के बाद आईसीजे के जज तो अपने घर जाकर चैन की नींद सोएंगे, जबकि हमास द्वारा बंधक बनाए गए 125 इसराइली अब भी यातना झेलने को मजबूर हैं. राफा में जारी हमले को तत्काल रोकने का सवाल ही नहीं उठता. जब तक हम बंधकों को छुड़ा कर वापस नहीं ले आते तब तक यह युद्ध जारी रहेगा.

Wednesday, May 22, 2024

‘पीओके’ का जनांदोलन और लोकसभा-चुनाव


आप चाहें, तो दोनों बातों में कॉन्ट्रास्ट या विसंगति देख सकते हैं. दोनों में कोई सीधा रिश्ता नहीं है, पर प्रकारांतर से है. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके’ में चल रहे जनांदोलन को लेकर हमारे यहाँ कुछ लोगों को लगता है कि शायद वहाँ कोई बड़ी बात हो जाए. फिलहाल ऐसा लगता नहीं है, पर कश्मीर को लेकर जब भी विचार करें, तब मुज़फ़्फ़राबाद और मीरपुर पर भी बात करनी होगी.

दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर में चल रहे लोकसभा चुनाव को लेकर सकारात्मक खबरें हैं, जिसके निहितार्थ अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग निकाले हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले फरवरी में पुलवामा प्रकरण हुआ था और माना जाता है कि उस परिघटना का सायास या अनायास असर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ा.

उस चुनाव के कुछ महीनों बाद ही भारत सरकार ने अनुच्छेद-370 हटाने का फैसला किया था. उसके बाद से ही ‘पीओके’ को वापस लेने की बातें देश में हो रही हैं. हाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि केंद्र में नई सरकार बनने के बाद छह महीने के भीतर ‘पीओके’ हमारा होगा.

चुनाव-सभा की इस बात का बहुत ज्यादा राजनीतिक महत्व नहीं है, पर इस बात को मान लीजिए कि जैसे पाकिस्तान के नेता कश्मीर को अपनी शह-रगयानी जुग्युलर-वेन मानते हैं, वैसे ही कश्मीर भी बड़ी संख्या में भारतीयों के दिल में रहता है.

‘पीओके’ को लेकर विदेशमंत्री एस जयशंकर ने हाल में कहा है कि 370 हटा कर जम्मू-कश्मीर को एकीकृत करना पहला पार्ट था, जो पूरा कर लिया गया है. अब हमें दूसरे पार्ट का इंतज़ार करना चाहिए. कुछ इसी आशय की बातें गृहमंत्री अमित शाह ने भी कही हैं. दूसरे पार्ट से आशय है, उसकी भारत में वापसी.

विभाजन का बचा हुआ काम

नब्बे के दशक में जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो बार-बार कह रहीं थीं कि कश्मीर का मसला विभाजन के बाद बचा अधूरा काम है. इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने कहा कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की भारत में वापसी ही अधूरा रह गया काम है. वह समय था जब कश्मीर में हिंसा चरमोत्कर्ष पर थी.

बढ़ती हुई आतंकवादी हिंसा के मद्देनज़र भारतीय संसद के दोनों सदनों ने 22 फरवरी 1994 को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया और इस बात पर जोर दिया कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इसलिए पाकिस्तान को अपने कब्जे वाले राज्य के हिस्सों को खाली करना होगा. पाकिस्तान बल पूर्वक कब्जाए हुए भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों को खाली करे.

Wednesday, May 15, 2024

चीन का चांग’ई-6 और तेजी पकड़ती स्पेस-रेस

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव

चीन का नवीनतम चंद्रमा-मिशन चांग’ई-6 तीन कारणों से महत्वपूर्ण है. एक तो यह चंद्रमा की अंधेरी सतह यानी दक्षिणी ध्रुव के एटकेन बेसिन से पत्थरों और मिट्टी के दो किलो नमूने जमा करके धरती पर लाएगा. किसी भी देश ने चंद्रमा के इस सुदूर इलाके से नमूने एकत्र नहीं किए हैं. वस्तुतः चांगई मिशन चीन के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष-अभियान का एक शुरूआती कदम है.

इस अभियान में पाकिस्तान का एक नन्हा सा उपग्रह भी शामिल है, जो वैज्ञानिक-दृष्टि से भले ही मामूली हो, पर उससे पाकिस्तानी अंतरिक्ष-विज्ञान पर रोशनी पड़ती है. तीसरे यह अमेरिका और चीन के बीच एक नई अंतरिक्ष-स्पर्धा की शुरुआत है. 

चीनी अंतरिक्ष एजेंसी ने चांग’ई-6 रोबोटिक लूनर एक्सप्लोरेशन मिशन को वेनचांग अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से शुक्रवार 3 मई की सुबह लॉन्च किया. यह करीब 53 दिन तक काम करेगा. चांग’ई-6 में पाकिस्तान के अलावा फ्रांस, इटली और स्वीडन के भी उपकरण शामिल हैं. पौराणिक आख्यान में चैंगई को चंद्रमा की देवी माना जाता है.

दक्षिणी ध्रुव

पृथ्वी से चंद्रमा का सुदूर भाग कभी दिखाई नहीं देता है. हम हमेशा चंद्रमा के एक ही तरफ के आधे हिस्से को देख पाते हैं. चांग'ई-6 का लक्ष्य दक्षिणी ध्रुव के एटकेन-बेसिन से नमूने एकत्र करना है. भारत का चंद्रयान-3 भी इसी क्षेत्र के पास उतरा था.

Wednesday, May 8, 2024

चीनी इशारों पर किस हद तक चलेगा मालदीव?

 


देस-परदेस

इस हफ्ते 10 मई तक मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी पूरी हो जाएगी. पिछले दो महीनों में मालदीव से भारतीय सैन्यकर्मियों के दो बैच वापस आ चुके हैं और उनकी जगह असैनिक विशेषज्ञों को तैनात कर दिया है. शेष कर्मियों की तैनाती इस हफ्ते हो जाएगी.

बावजूद इसके लगता नहीं है कि दोनों देशों के रिश्तों में सुधार हो जाएगा, बल्कि गिरावट ही आ रही है. इसके पीछे चीन की भूमिका है, जिसने मालदीव के कुछ प्रभावशाली राजनीतिक नेताओं को लालच में फँसा लिया है और फिलहाल वहाँ की राजनीति ने उसे स्वीकार कर लिया है।

बात केवल चीन तक सीमित नहीं है. मालदीव भारत-विरोधी रास्तों को खोजता दिखाई पड़ रहा है. हाल में उसने तुर्की से कुछ ड्रोन और दूसरे शस्त्रास्त्र की खरीद की है. कश्मीर और पाकिस्तान से जुड़ी नीतियों के कारण तुर्की का भारत-विरोधी नज़रिया साफ है.

भारत-विरोधी प्रतीकों का मालदीव बार-बार इस्तेमाल कर रहा है. हाल में तुर्की कोस्टगार्ड के एक पोत का मालदीव में पोर्ट-विज़िट ऐसी ही एक प्रतीकात्मक-परिघटना है. 

विदेशमंत्री की यात्रा

एक खबर यह भी है कि मालदीव के विदेशमंत्री मूसा ज़मीर इस हफ्ते, 9 मई को भारत का दौरा करने वाले हैं. 9 मई को ही उनकी विदेशमंत्री एस जयशंकर से मुलाकात होगी. तारीख का महत्व केवल इतना है कि 10 मई से मालदीव में सहायता कार्य कर रहे भारतीय विमानों का संचालन सैनिकों की जगह भारत की ही एक असैनिक तकनीकी-टीम करने लगेगी.

Sunday, May 5, 2024

बीजेपी को क्यों दिखाई पड़ी कांग्रेसी एजेंडा में मुस्लिम लीग की छाप?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के चुनाव-घोषणापत्र जो तीखा हमला बोला, वह कई मायनों में विस्मयकारी है। प्रतिस्पर्धी पार्टी के घोषणापत्र की आलोचना एक बात होती है, पर इस घोषणापत्र पर उन्होंने मुस्लिम लीग की छाप बताकर बहस का एक आधार तैयार कर दिया है। यह मुद्दा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उठाया। सबसे पहले मेरठ की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में मुस्लिम लीग की छाप है। उन्होंने कहा कि जो चीजें बच गई थीं उनपर वामपंथी हावी हो गए। अलग-अलग राज्यों में हुई चुनावी रैलियों में भी प्रधानमंत्री ने यह मुद्दा उठाया। चुनाव के समय संजीदा और गैर-संजीदा बातें एकसाथ उठती हैं और साथ-साथ ही भुला दी जाती हैं। यह चर्चा भी दो-चार दिन तक चली और फिर गायब हो गई। यों भी चुनाव घोषणापत्र किसी को याद नहीं रहते।

कांग्रेस पार्टी के आर्थिक-कार्यक्रमों में टॉमस पिकेटी, क्रिस्तॉफ जैफ्रेलो और ज्याँ द्रेज़ जैसे विशेषज्ञों के विचार भी दिखाई पड़ रहे हैं। राहुल गांधी खुद को सबसे बड़ा वामपंथी साबित करना चाहते हैं। हाल के वर्षों में कांग्रेस पार्टी की सरकार की सबसे बड़ी भूमिका 1991 के आर्थिक सुधारों के रूप में रही है। पार्टी अब पहिया उल्टी दिशा में घुमाने को आतुर है। पश्चिमी देशों के विशेषज्ञ सायास या अनायास हिंदू समाज-व्यवस्था पर हमले बोल रहे हैं और जो सुझाव दे रहे हैं, उनसे सामाजिक-व्यवस्था के विखंडन का खतरा पैदा हो रहा है।

Friday, May 3, 2024

रायबरेली से राहुल के उतरने का मतलब


अमेठी और रायबरेली से कांग्रेस के प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद जो सवाल पूछे जाएंगे और उनके जो भी संभावित उत्तर हैं, उनसे कांग्रेस और उसके नेतृत्व की मनोदशा का अनुमान लगाया जा सकेगा। पहला सवाल है कि राहुल गांधी ने अमेठी को क्यों छोड़ा और रायबरेली क्यों गए? इन दोनों सवालों का एक जवाब यह भी हो सकता है कि उन्होंने रायबरेली की विरासत संभालने के काम को वरीयता दी है। पर समझने वाले यह भी मानेंगे कि वे अमेठी के परिणाम को लेकर आश्वस्त नहीं थे और उन्हें लगता था कि यदि वे पराजित हुए, तो उससे राजनीतिक नुकसान होगा। सबसे बड़ा नुकसान इस मामले को अंत समय तक लटकाए रखने के कारण होगा। यह कैसी पार्टी है, जिसमें इतने मामूली फैसलों पर असमंजस रहता है?

Wednesday, May 1, 2024

मतदाता कर पाएगा ‘डिफिडेंस’ और ‘कॉन्फिडेंस’ का फर्क?


 देस-परदेस

पिछले हफ्ते हैदराबाद के एक कार्यक्रम में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने कहा कि 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने कुछ भी नहीं करने का फैसला किया था. यह मान लिया गया कि पाकिस्तान पर हमला करने के मुकाबले हमला नहीं करना सस्ता पड़ेगा.

तत्कालीन सरकार के सुरक्षा सलाहकार ने लिखा है कि हमने इस विषय पर विचार-विमर्श किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि पाकिस्तान पर हमला करने की कीमत ज्यादा होगी. एस जयशंकर के इस बयान को राजनीतिक चश्मे से, खासतौर से लोकसभा-चुनाव के संदर्भ में देखने की जरूरत है.

जयशंकर के शब्दों में भारतीय विदेश-नीति डिफिडेंस (असमंजस) के दौर से निकल करकॉन्फिडेंस (आत्मविश्वास) के दौर में आ गई है. आज हम अमेरिका के सामने पहले की तुलना में बेहतर आत्मविश्वास के साथ बात कर सकते हैं. इस बात को किसी भी दृष्टि से देखे, पर सच यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने विदेश-नीति को भी अपने चुनाव-अभियान में अच्छी खासी जगह दी है.