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Tuesday, March 30, 2021

स्वेज़ में जहाज फँसने से उठते सवाल


मिस्र की स्वेज़ नहर में जाम खुल गया है। क़रीब एक हफ़्ते से वहां फँसे विशाल जहाज़ को बड़ी मुश्किल से रास्ते से हटाया जा सका। टग बोट्स और ड्रैजर की मदद से 400 मीटर (1,300 फुट) लंबे 'एवर गिवेन' जहाज़ को निकाला गया। जहाज़ को हटाने में मदद करने वाली कंपनी, बोसकालिस के सीईओ पीटर बर्बर्सकी ने कहा, "एवर गिवेन सोमवार को स्थानीय समयानुसार 15:05 बजे फिर पानी पर उतराने लगा था। जिसके बाद स्वेज़ नहर का रास्ता फिर से खोलना संभव हुआ।" जहाज निकल गया, पर दुनिया के लिए कई तरह के सबक छोड़ गया है। 

एवर गिवन जहाज काफी बड़े आकार का है, लेकिन उससे भी बड़े जहाज इससे गुजरते रहे हैं। इसकी लंबाई करीब 400 मीटर, चौड़ाई 60 मीटर और गहराई 14.5 मीटर है। यह कुल दो लाख टन का वजन उठा सकता है। इसके चालक दल के सभी सदस्य भारतीय हैं। पर नहर पार करने का जिम्मा मिस्रवासी पायलट के पास था। यह जहाज 20,000 कंटेनर लेकर शंघाई से रोटरडैम के सफर पर निकला था।

इस अटपटी परिघटना के बाद सवाल है कि जब 19वीं सदी में बने एक ढांचे में 21वीं सदी की तकनीक का इस्तेमाल होने लगता है तब क्या ऐसा ही होता है? एक अहम समुद्री परिवहन मार्ग के अवरुद्ध होने से कुछ ऐसा ही हुआ है। इस घटना के बड़े दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। मंगलवार 23 मार्च की सुबह कंटेनर ढोने वाला जहाज 'एवर गिवन' स्वेज़ नहर से गुजर रहा था। उसी समय वह थोड़ा टेढ़ा होकर किनारे से जा लगा और पूरी नहर ही अवरुद्ध हो गई। 

स्वेज़ नहर के रास्ते होने वाली आवाजाही पूरी तरह बाधित हो गई। इसकी वजह से नहर के मुहाने पर इंतजार कर रहे जहाजों की लंबी कतार लग गई। जहाज के फँसने वाली जगह पर नहर की चौड़ाई करीब 300 मीटर है। उलटे शंकु वाले आकार में बनी स्वेज नहर की तली सतह से कम चौड़ी है और दोनों किनारों पर ढलान बनी हुई है। एवर गिवन जहाज नहर के पूर्वी किनारे पर जाकर मिट्टी में धंस गया था।

Sunday, March 28, 2021

महाराष्ट्र में कुछ होने वाला है

 


महाराष्ट्र की राजनीति में फिर कुछ होने वाला है। ऐसा अनुमान शिवसेना के मुखपत्र सामना में प्रकाशित सांसद संजय राउत के लेख से निकाला जा रहा है। इसके अलावा शरद पवार की अमित शाह से मुलाकात के बाद ये कयास और बढ़ गए हैं।

मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की चिट्ठी के बाद शिवसेना और एनसीपी में भितरखाने संग्राम चल रहा है। उधर संजय राउत ने रविवार को कहा कि अनिल देशमुख महाराष्ट्र के गृहमंत्री दुर्घटनावश बने थे। जयंत पाटिल और दिलीप वालसे-पाटिल जैसे वरिष्ठ राकांपा नेताओं के इनकार के बाद उन्हें यह पद मिला।

संजय राउत के इस बयान के साथ-साथ आज मीडिया में खबरें हैं कि शरद पवार तथा प्रफुल्ल पटेल की अहमदाबाद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई है। इस मुलाकात के बारे में मीडिया कर्मियों ने जब दिल्ली में अमित शाह से सवाल किया तो उन्होंने यह कहकर विषय को टाल दिया कि कुछ बातें सार्वजनिक नहीं होतीं। गृहमंत्री अमित शाह के इस जवाब से अटकलों को और बल मिला है। उन्होंने मुलाकात की बात से इनकार नहीं किया है। ऐसे में अब इस पर सस्पेंस बढ़ गया है कि तीनों नेताओं की मुलाकात में आखिर क्या बात हुई है? मीटिंग का एजेंडा क्या था?

नीचे पढ़ें संजय राऊत का सामना में प्रकाशित आलेख

 

महाराष्ट्र के चरित्र पर सवाल… ‘डैमेज कंट्रोल’ की दुर्गति!

मार्च 28, 2021  संजय राऊत / कार्यकारी संपादक , मुंबई

विगत कुछ महीनों में जो कुछ हुआ उसके कारण महाराष्ट्र के चरित्र पर सवाल खड़े किए गए। वाझे नामक सहायक पुलिस निरीक्षक का इतना महत्व  कैसे बढ़ गया? यही जांच का विषय है। गृहमंत्री ने वाझे को 100 करोड़ रुपए वसूलने का टार्गेट दिया था, ऐसा आरोप मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह लगा रहे हैं। उन आरोपों का सामना करने के लिए प्रारंभ में कोई भी आगे नहीं आया! सरकार के पास ‘डैमेज कंट्रोल’ की कोई योजना नहीं है, ये एक बार फिर नजर आया।

पहली वर्षगाँठ, दूसरी लहर


देश में लॉकडाउन की पहली वर्षगाँठ का संदेश बहुत निराशाजनक है। देश में महामारी की एक और लहर कई तरह की चुनौतियों का संदेश दे रही है। साथ ही यह भी बता रही है कि हमने एक साल में कोई सबक नहीं सीखा। जिन  सावधानियों को हमने एक साल पहले अपनाया, उन्हें फौरन भूल गए। खासतौर से जिन पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, वहाँ यह नादानी पूरी शिद्दत से दिखाई पड़ रही है।

शुक्रवार को भारत में कोविड-9 के नए मामलों की संख्या 60 हजार पार कर गई। पहली लहर में देश में एक दिन में अधिकतम नए केसों की संख्या 97,894 तक पहुँची थी, जो पिछले साल 17 सितम्बर को थी। उसके बाद लगातार गिरावट आती चली गई थी। 16 जनवरी से देश में वैक्सीनेशन शुरू होने के बाद उम्मीद थी कि हालात जल्द बेहतर हो जाएंगे। लगता है लोगों ने असावधानी बरतनी शुरू कर दी।

नए स्ट्रीम का हमला

ब्रिटेन से वायरस के म्युटेशन की खबरें सुनाई पड़ीं और देखते ही देखते दुनियाभर से नए स्ट्रीम्स की खबरें आने लगीं। दूसरी लहर के साथ कुछ नए खतरे जुड़े हैं। इसबार का संक्रमण पहली बार के मुकाबले ज्यादा तेज है और दूसरे वायरस-म्युटेशन के कारण उसके कई नए स्ट्रीम हमला बोल रहे हैं। पंजाब में हाल में संक्रमित पाए गए लोगों में कोरोना का जो जीनोम मिला है वह तेज प्रसार वाला ब्रिटिश-प्रारूप है। हो सकता है कि महाराष्ट्र में तेज प्रसार देश में ही विकसित नई किस्म के कारण हो।

Saturday, March 27, 2021

अभ्यास के लिए भारतीय सेना के पाकिस्तान जाने की सम्भावनाएं कम

 


हाल में भारतीय मीडिया में खबरें थीं कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के तत्वावधान में पाकिस्तान के पब्बी इलाके में आतंक-विरोधी युद्धाभ्यास में और भारतीय सेना भी शामिल हो सकती है। यह कयास इसलिए है, क्योंकि भारत और पाकिस्तान दोनों एससीओ के सदस्य हैं। इसे लेकर भारत में ही नहीं, पाकिस्तान में भी काफी चर्चा है। ऐसा हुआ, तो विभाजन के बाद पहली बार भारतीय सेना पाकिस्तान में किसी दोस्ताना अभ्यास में शामिल होगी।

एक वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय सेना इस साल शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) देशों की मिलिट्री एक्सरसाइज़ में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान जा सकती है। पाकिस्तान में युद्धाभ्यास का फैसला इस संगठन की क्षेत्रीय एंटी-टैररिस्ट स्ट्रक्चर कौंसिल की ताशकंद, उज्बेकिस्तान में 18 मार्च को हुई 36वीं बैठक में किया गया। यह अभ्यास इस साल सितम्बर-अक्तूबर में पाकिस्तान के नेशनल काउंटर टैररिज्म सेंटर, पब्बी में होगा, जो खैबर पख्तूनख्वा के नौशेरा जिले में है।  

Friday, March 26, 2021

राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा

 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश-यात्रा के तीन बड़े निहितार्थ हैं। पहला है, भारत-बांग्लादेश रिश्तों का महत्व। दूसरे, बदलती वैश्विक परिस्थितियों के व्यापक परिप्रेक्ष्य में दक्षिण एशिया की भूमिका और तीसरे पश्चिम बंगाल में हो रहे चुनाव में इस यात्रा की भूमिका। इस यात्रा का इसलिए भी प्रतीकात्मक महत्व है कि कोविड-19 के कारण पिछले एक साल से विदेश-यात्राएं न करने वाले प्रधानमंत्री की पहली विदेश-यात्रा का गंतव्य बांग्लादेश है।

यह सिर्फ संयोग नहीं है कि बांग्लादेश का स्वतंत्रता दिवस 26 मार्च उस ‘पाकिस्तान-दिवस’ 23 मार्च के ठीक तीन दिन बाद पड़ता है, जिसके साथ भारत के ही नहीं बांग्लादेश के कड़वे अनुभव जुड़े हुए हैं। हमें यह भी नहीं भुलाना चाहिए कि बांग्लादेश ने अपने राष्ट्रगान के रूप में रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गीत को चुना था।

हालांकि बांग्लादेश का ध्वज 23 मार्च, 1971 को ही फहरा दिया था, पर बंगबंधु मुजीबुर्रहमान ने स्वतंत्रता की घोषणा 26 मार्च की मध्यरात्रि को की थी। बांग्लादेश मुक्ति का वह संग्राम करीब नौ महीने तक चला और भारतीय सेना के हस्तक्षेप के बाद अंततः 16 दिसम्बर, 1971 को पाकिस्तानी सेना के आत्म समर्पण के साथ उस युद्ध का समापन हुआ। बांग्लादेश की स्वतंत्रता पर भारत में वैसा ही जश्न मना था जैसा कोई देश अपने स्वतंत्रता दिवस पर मनाता है। देश के कई राज्यों की विधानसभाओं ने उस मौके पर बांग्लादेश की स्वतंत्रता के समर्थन में प्रस्‍ताव पास किए थे।

विस्तार से पढ़ें पाञ्चजन्य में


अमेरिका के करीब क्यों गया भारत?


काफी समय तक लगता था कि भारतीय विदेश-नीति की नैया रूस और अमेरिका के बीच संतुलन बैठाने के फेर में डगमग हो रही है। अब पहली बार लग रहा है कि हमारा झुकाव अमेरिका की तरफ है। विदेशी मामलों को लेकर भारत में ज्यादातर पाँच देशों के इर्द-गिर्द बातें होती हैं। एक, पाकिस्तान, दूसरा चीन, फिर अमेरिका, रूस और ब्रिटेन। पिछले कुछ वर्षों से फ्रांस इस सूची में छठे देश के रूप में जुड़ा है। हाल में क्वाड समूह की शक्ल साफ होते-होते इसमें जापान और ऑस्ट्रेलिया के नाम भी शामिल हो गए हैं।

लम्बे अरसे तक हम गुट-निरपेक्षता की राह चलते रहे, पर उस राह में भी हमारा झुकाव रूस की ओर था। सच यह है कि भारत की विदेश-नीति स्वतंत्र थी और भविष्य में भी स्वतंत्र ही रहेगी। अपने हितों के बरक्स हमें फैसले करने ही चाहिए। अमेरिका के साथ जो विशेष रिश्ते बने हैं, उनके पीछे वैश्विक घटनाक्रम है। पिछले साल 'बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट फॉर जियो-स्पेशियल कोऑपरेशन’(बेका) समझौता होने के बाद ये रिश्ते ठोस बुनियाद पर खड़े हो गए हैं। अमेरिका अपने रक्षा सहयोगियों के साथ चार बुनियादी समझौते करता है। भारत के साथ ये चारों समझौते हो चुके हैं।

चीन को काबू करने की जरूरत

चीन की सिल्करोड परियोजना

हाल में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी कि चीन के पास
दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य-शक्ति है। रक्षा से जुड़ी वैबसाइट मिलिट्री डायरेक्ट के एक अध्ययन के चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य-शक्ति है। इस अध्ययन में चीनी सैन्य-बल को 82 अंक दिए गए हैं। उसके बाद दूसरे स्थान पर अमेरिका को रखा गया है, जिसे इस स्टडी में 74 अंक दिए गए हैं। 69 अंक के साथ रूस तीसरे और 61 अंक के साथ भारत चौथे स्थान पर है।

इस अध्ययन की पद्धति जो भी रही हो और इससे आप सहमत हों या नहीं हों, पर इतना तो मानेंगे कि आकार और नई तकनीक के मामले में चीनी सेना का काफी विस्तार हुआ है। पनडुब्बियों और विमानवाहक पोतों के कारण उसकी नौसेना ब्लू वॉटर नेवी है। उसके पास पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं और एंटी-सैटेलाइट मिसाइलें हैं। साइबर-वॉर के मामले में भी वह बड़ी ताकत है। जितनी ताकत है, उसके अनुपात में चीन शालीन और शांत-प्रवृत्ति का देश नहीं है। चीनी भाषा में चीन को मिडिल किंगडम कहा जाता है। यानी दुनिया का केंद्र।

Thursday, March 25, 2021

चीन को घेरने की वैश्विक रणनीति


पिछला साल कोविड-19 के कारण पूरी दुनिया को परेशान करता रहा। इस दौरान एक बड़े बदलाव की सम्भावना व्यक्त की जा रही थी, जो किस रूप में होगा यह देखने की घड़ी आ रही है। देखना होगा कि क्या यह साल चीनी पराभव की कहानी लिखेगा? खासतौर से ऐसे माहौल में जब चीनी आक्रामकता चरम पर है।

अमेरिका में जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद ज्यादातर लोगों के मन में सवाल था कि चीन के बरक्स अमेरिका की नीति अब क्या होगी? आम धारणा थी कि डोनाल्ड ट्रंप का रुख चीन के प्रति काफी कड़ा था। शायद बाइडेन का रुख उतना कड़ा नहीं होगा। यह धारणा गलत थी। बाइडेन प्रशासन का चीन के प्रति रुख काफी कड़ा है और लगता नहीं कि उसमें नरमी आएगी। कम से कम चार घटनाएं इस बात की ओर इशारा कर रही हैं।

अलास्का-वार्ता से शुरुआत

अलास्का में अमेरिकी और चीनी प्रतिनिधिमंडलों के बीच 18 और 19 मार्च को दो दिन की वार्ता बेहद टकराव के माहौल में हुई। पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह बैठक कुछ वैसी रही, जैसी शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ की शुरुआती बैठकें होती थीं। कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ‘पीपुल्स डेली’ ने अपनी खबर में इस वार्ता को लेकर शीर्षक दिया—‘दूसरों को नीचा दिखाने वाली हैसियत से अमेरिका को चीन से बात करने का अधिकार नहीं है।’ चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लीजियन ने कहा, ‘अमेरिकी पक्ष ने चीन की घरेलू तथा विदेश नीतियों पर हमला करके उकसाया। इसे मेजबान की अच्छी तहजीब नहीं माना जाएगा।’

इस वार्ता में चीन का प्रतिनिधित्व विदेशमंत्री वांग यी और कम्युनिस्ट पार्टी के विदेशी मामलों के सेंट्रल कमीशन के निदेशक यांग जिएशी ने किया। अमेरिका की ओर से विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकेन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलीवन थे। इस बैठक से ठीक पहले अमेरिका ने हांगकांग और चीन के 24 अधिकारियों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए प्रतिबंधों की घोषणा की थी।

क्या ‘क्वाड’ बड़े क्षेत्रीय-सहयोग संगठन के रूप में विकसित होगा?


अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के शीर्ष-नेताओं की 12 मार्च को हुई वर्चुअल बैठक को बदलते वैश्विक परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिघटना के रूप में देखा गया है। क्वाड नाम से चर्चित इस समूह को चीन-विरोधी धुरी के रूप में देखा जा रहा है। खासतौर से भारत की विदेश-नीति को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। क्या अब हमारी विदेश-नीति स्वतंत्र नहीं रह गई है? क्या हम अमेरिकी खेमे में शामिल हो गए हैं? क्या हम अपने दीर्घकालीन मित्र रूस का साथ छोड़ने को तैयार हैं? क्या पश्चिमी देशों की राजनीति नेटो से हटकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित होने वाली है? ऐसा क्यों हो रहा है? इस सिलसिले में सबसे बड़ा सवाल चीन को लेकर है। क्या वह अमेरिका और पश्चिम को परास्त करके दुनिया की सबसे बड़ी ताकत के रूप में स्थापित होने जा रहा है?

चीन ने इस बैठक को लेकर अपनी आशंकाएं व्यक्त की हैं। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बैठक से ठीक पहले कहा कि देशों के बीच विचार-विमर्श और सहयोग की प्रक्रिया चलती है, लेकिन इसका मकसद आपसी विश्वास और समझदारी बढ़ाने का होना चाहिए, तीसरे पक्ष को निशाना बनाने या उसके हितों को नुकसान पहुंचाने का नहीं। क्वाड की शिखर बैठक में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया था कि उसे किसी खास देश के खिलाफ न माना जाए।

इतना ही नहीं, इसे अब सुरक्षा-व्यवस्था की जगह आपसी सहयोग का मंच बनाने की कोशिशें भी हो रही हैं। अब वह केवल सुरक्षा-समूह जैसा नहीं है, बल्कि उसके दायरे में आर्थिक और सामाजिक सहयोग से जुड़े कार्यक्रम भी शामिल हो गए हैं। क्वाड देशों के नेताओं ने शिखर-वार्ता में जिन विषयों पर विचार किया, उनमें वैक्सीन की पहल और अन्य संयुक्त कार्य समूहों के साथ महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन पर सहयोग करना शामिल था।

Wednesday, March 24, 2021

क्या किसान आंदोलन को दलितों का समर्थन मिलेगा?

इस सवाल को भारतीय राजनीति ने गम्भीरता से नहीं लिया कि पंजाब और हरियाणा का किसान आंदोलन बड़ी जोत वाले किसानों (कुलक) के हितों की रक्षा के लिए खड़ा हुआ है या गाँव से जुड़े पूरे खेतिहर समुदाय से, जिनमें खेत-मजदूर भी शामिल हैं? किसान आंदोलन के सहारे वामपंथी विचारधारा उत्तर भारत में अपनी जड़ें जमाने का प्रयास करती नजर आ रही है। लम्बे अरसे तक साम्यवादियों ने किसानों को क्रांतिकारी नहीं माना। चीन के माओ जे दुंग ने उनके सहारे राज-व्यवस्था पर कब्जा किया, जबकि यूरोप में साम्यवादी क्रांति नहीं हुई, जहाँ औद्योगिक-क्रांति हुई थी। बहरहाल साम्यवादी विचारों में बदलाव आया है और भारत की राजनीति में वे अब आमूल बदलाव के बजाय सामाजिक-न्याय और जल, जंगल और जमीन जैसे सवालों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

हरियाणा के कैथल से खबर है कि जवाहर पार्क में रविवार को एससी बीसी संयुक्त मोर्चा कैथल द्वारा बहुजन महापंचायत एवं सामाजिक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने शिरकत की और लोगों को सम्बोधित किया। गुरनाम चढूनी ने कहा कि ये आंदोलन केवल किसानों का आंदोलन नहीं है। ये आंदोलन किसानों ने शुरू किया है, अब यह जनमानस का आंदोलन है, क्योंकि इन तीन कृषि कानूनों का केवल किसानों को ही नुकसान नहीं है बल्कि देश के हर वर्ग को इन कृषि कानूनों का नुकसान है, क्योंकि पूरे देश का भोजन चंद लोगों के खजाने में जाकर कैद हो जाएगा. उन्होंने कहा कि आज की पंचायत को हमने दलित सम्मेलन के नाम से बुलाया है। अब हम सभी एक साथ मिलकर इस आंदोलन को लड़ेंगे क्योंकि यह देश चंद लोगों के हाथों में बिक रहा है।

Tuesday, March 23, 2021

पाकिस्तान के साथ शांति स्थापना की ठोस वजह


भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों में सुधार की सम्भावनाओं पर कुछ लेख मेरे सामने आए हैं, जिन्हें पढ़ने का सुझाव मैं दूँगा। इनमें पहला लेख है शेखर गुप्ता का, जिन्होंने लिखा है:

पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल कमर अहमद बाजवा ने बीते गुरुवार को इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग में 13 मिनट का जो भाषण दिया, उस पर भारत के जानकार लोगों की पहली प्रतिक्रिया तो उबासी की ही रही होगी। वह बस यही कह रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान को अपने अतीत को दफनाकर नई शुरुआत करनी चाहिए, शांति दोनों देशों के लिए जरूरी है ताकि वे अपनी अर्थव्यवस्था पर ध्यान दे सकें वगैरह...वगैरह। हर पाकिस्तानी नेता ने चाहे वह निर्वाचित हो या नहीं, कभी न कभी ऐसा ही कहा है। इसके बाद वे पीछे से वार करते हैं तो इसमें नया क्या है?

म्यूचुअल फंड के विज्ञापनों में आने वाले स्पष्टीकरण से एक पंक्ति को लेकर उसे थोड़ा बदलकर कहें तो यदि अतीत भविष्य के बारे में कोई संकेत देता है तो पाकिस्तान के बारे में बात करना निरर्थक है। बेहतर है कि ज्यादा तादाद में स्नाइपर राइफल खरीदिए और नियंत्रण रेखा पर जमे रहिए। तो यह गतिरोध टूटेगा कैसे?

बमबारी करके उन्हें पाषाण युग में पहुंचाना समस्या का हल नहीं है। करगिल, ऑपरेशन पराक्रम और पुलवामा/बालाकोट के बाद हम यह जान चुके हैं। कड़ा रुख रखने वाले अमेरिकी सुरक्षा राजनयिक रिचर्ड आर्मिटेज जिन्होंने 9/11 के बाद इस धमकी के जरिए पाकिस्तान पर काबू किया था, वह जानते थे कि यह बड़बोलापन है। तब से 20 वर्षों तक अमेरिका ने अफगानिस्तान के बड़े हिस्से को बमबारी कर पाषाण युग में पहुंचा दिया। लेकिन अमेरिका हार कर लौट रहा है। सैन्य, कूटनयिक, राजनीतिक या आर्थिक रूप से कुछ भी ताकत से हासिल नहीं होगा। जैसा कि पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने पिछले दिनों मुझसे बातचीत में कहा भी कि आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर या अक्साई चिन को सैन्य बल से हासिल करना संभव नहीं है। जहां तक क्षमता का प्रश्न है ऐसा कोई भी प्रयास वैश्विक चिंता पैदा करेगा और बहुत जल्दी युद्ध विराम करना होगा। बहरहाल, ये मेरे शब्द हैं न कि उनके।

बिजनेस स्टैंडर्ड में पढ़ें पूरा आलेख

पाकिस्तानी जनरल बाजवा का बयान

दुनियाभर में आतंकवाद पर घिरे और आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान के सुर बदलने लगे हैं। इमरान सरकार के बाद अब इस देश की शक्तिशाली सेना ने भी शांति का राग अलापा है। सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कहा कि अतीत को भूलकर भारत और पाकिस्तान आगे बढ़ना चाहिए। उनका कहना है कि दोनों देशों के बीच शांति से क्षेत्र में संपन्नता और खुशहाली आएगी। इतना ही नहीं भारत के लिए मध्य एशिया तक पहुंच आसान हो जाएगा।

Monday, March 22, 2021

परमबीर सिंह के पत्र कांड पर शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' की कवरेज


मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नाम चिट्ठी की खबर आने के बाद से इस मामले ने राजनीतिक रंग पकड़ लिया है। हालांकि शिवसेना ने अभी तक अपनी स्थिति को स्पष्ट नहीं किया था, पर उसके मुखपत्र सामना में आज के संपादकीय से स्थिति स्पष्ट होती है। इसके अलावा अखबार की कवर स्टोरी से भी लगता है कि शरद पवार के साथ पार्टी की सहमति है। सामना के संपादकीय में लिखा है, 'परमबीर सिंह के निलंबन की मांग कल तक महाराष्ट्र का विपक्ष कर रहा था। आज परमबीर सिंह विरोधियों की ‘डार्लिंग’ बन गए हैं और परमबीर सिंह के कंधे पर बंदूक रखकर सरकार पर निशाना साध रहे हैं। महा विकास आघाड़ी सरकार के पास आज भी अच्छा बहुमत है। बहुमत पर हावी होने की कोशिश करोगे तो आग लगेगी, यह चेतावनी न होकर वास्तविकता है। किसी अधिकारी के कारण सरकार बनती नहीं और गिरती भी नहीं है, यह विपक्ष को भूलना नहीं चाहिए!'

सामना की खबर में कहा गया है कि मुकेश अंबानी के घर के बाहर खड़ी कार की जांच एनआईए कर रही है। दूसरी तरफ मनसुख हिरेन प्रकरण की जांच एटीएस कर रही है। इन सब हलचलों के बीच नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने दिल्ली का दौरा किया और उसके तुरंत बाद ही परमबीर सिंह का पत्र मीडिया के सामने आया। यह कहते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने ‘लेटर बम’ की ‘टाइमिंग’ पर ध्यान आकर्षित किया। गृहमंत्री अनिल देशमुख पर लगाए गए आरोप गंभीर हैं। इस मामले को लेकर आज, सोमवार को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से चर्चा होगी। गृहमंत्री देशमुख का भी पक्ष सुना जाएगा, ऐसा पवार ने बताया।

गृहमंत्री अनिल देशमुख ने हर महीने 100 करोड़ रुपए जुटाने का टारगेट परमबीर सिंह को दिया था। मुंबई पुलिस आयुक्त पद से तबादला होने के बाद सिंह ने ई-मेल से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र भेजकर इस तरह का आरोप लगाया। इस पत्र के कारण राज्यभर में खलबली मची हुई है। कल भाजपा ने गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग को लेकर आंदोलन किया। इस पृष्ठभूमि पर शरद पवार ने नई दिल्ली स्थित अपने आवास पर एक पत्रकार परिषद का आयोजन किया।

सबूत कहां हैं?

परमबीर सिंह के पत्र के पहले पेज पर देशमुख पर आरोप लगाए गए हैं तो दूसरे पेज पर आत्महत्या कर चुके सांसद मोहन डेलकर का उल्लेख है। सिंह द्वारा लगाए गए आरोप सही में बेहद गंभीर हैं लेकिन उनके द्वारा बताए गए 100 करोड़ रुपए की टारगेट के पैसे कहां जाते हैं, उसका कहीं जिक्र नहीं है।

सरकार अस्थिर करने का प्रयास

शरद पवार ने स्पष्ट किया कि इस मामले के पीछे राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार अस्थिर करने का विरोधियों का प्रयास है। लेकिन विपक्ष चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, राज्य सरकार को कोई खतरा नहीं है।

यूएई के प्रयास से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सुधारने की खुफिया कोशिश


भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में सुधार की कोशिशों को लेकर ब्लूमबर्ग ने खबर दी है कि पिछले महीने दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा पर शांति बनाने की जो घोषणा की है, उसके पीछे संयुक्त अरब अमीरात का एक खुफिया रोडमैप है। इसकी झलक गत 25 फरवरी को विदेशमंत्री एस जयशंकर और यूएई के विदेशमंत्री शेख अब्दुल्ला बिन ज़ायेद के संयुक्त घोषणापत्र में देखी जा सकती है।

खबर के अनुसार यूएई के महीनों के खुफिया प्रयासों से नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम संभव हो पाया। अपना उल्लेख न करने का आग्रह करते हुए जिस अधिकारी ने यह जानकारी दी है, उसके अनुसार यह युद्धविराम उस लंबी प्रक्रिया की शुरुआत मात्र है, जो इस शांति-स्थापना का काम करेगी।

इस प्रक्रिया का अगला चरण है दोनों देशों के उच्चायुक्तों की बहाली। अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी के बाद पाकिस्तान ने अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया था। जवाब में भारतीय उच्चायुक्त भी बुला लिए गए थे।

राजनयिक रिश्तों की बहाली के बाद व्यापारिक रिश्तों की बहाली होगी और कश्मीर के स्थायी समाधान पर बातचीत की शुरुआत होगी। हालांकि सरकारी अधिकारी मानते हैं कि कारोबार और उच्चायुक्तों की बहाली के बाद की प्रक्रिया आसान नहीं है। अलबत्ता पंजाब के ज़मीनी रास्ते से व्यापार फिर शुरू हो सकता है।

भारत और रूस के बीच बढ़ती दूरियाँ


भारत और पाकिस्तान से जूड़े मामलों के पूर्व रूसी प्रभारी ग्लेब इवाशेंत्सोव ने तीन साल पहले एक वीडियो कांफ्रेंस में कहा था कि इस्लामाबाद के साथ बढ़ते रूसी सामरिक रिश्तों को अब रोका नहीं जा सकेगा। ऐसा करना हमारे हित में नहीं होगा। पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण देश है, जिसकी क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका है। पाकिस्तान के साथ रूस की बढ़ती नजदीकी के समांतर भारत के साथ उसकी बढ़ती दूरी भी नजर आने लगी है। भले ही यह अलगाव अभी बहुत साफ नहीं है, पर अनदेखी करने लायक भी नहीं है। इसे अफगानिस्तान में चल रहे शांति-प्रयासों और हाल में हुए क्वाड शिखर सम्मेलन की रोशनी में देखना चाहिए। और यह देखते हुए भी कि अफगानिस्तान में रूस की दिलचस्पी काफी ज्यादा है।  

पिछले साल तालिबान के साथ हुए समझौते के तहत अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी की तारीख 1 मई करीब आ रही है। अमेरिका में प्रशासनिक परिवर्तन हुआ है। राष्ट्रपति जो बाइडेन की नीति बजाय एकतरफा वापसी के सामूहिक पहल के सहारे समाधान खोजने की है। हमारी दृष्टि से महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के झंडे-तले एक पहल शुरू की है, जिसमें भारत को भी भागीदार बनाया है।

हिंद-प्रशांत गठजोड़

इस सिलसिले में हाल में अमेरिका के विशेष दूत जलमय खलीलज़ाद अफगानिस्तान आए थे, वहाँ से उन्होंने भारत के  विदेशमंत्री एस जयशंकर के साथ फोन पर बातचीत की। इस बीच 19 से 21 मार्च तक अमेरिकी रक्षामंत्री जनरल लॉयड ऑस्टिन भारत-यात्रा पर आ रहे हैं। इस दौरान न केवल अफगानिस्तान, बल्कि हिंद-प्रशांत सुरक्षा के नए गठजोड़  पर बात होगी। इन दोनों बातों का संबंध भारत-रूस रिश्तों से भी जुड़ा है।

Sunday, March 21, 2021

मुम्बई का ‘वसूली’ मामला कहाँ तक जाएगा?


मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के पत्र ने केवल महाराष्ट्र की ही नहीं, सारे देश की राजनीति में खलबली मचा दी है। देखना यह है कि इस मामले के तार कहाँ तक जाते हैं, क्योंकि राजनीति और पुलिस का यह मेल केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है। कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख को हटा दिया जाएगा। इस तरह से महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) की सरकार बची रहेगी और धीरे-धीरे लोग इस मामले को भूल जाएंगे। पर क्या ऐसा ही होगा? इस मामले के राजनीतिक निहितार्थ गम्भीर होने वाले हैं और कोई आश्चर्य नहीं कि राज्य के सत्ता समीकरण बदलें। संजय राउत ने एमवीए के सहयोगी दलों से कहा है कि वे आत्ममंथन करें। इस बीच इस मामले से जुड़े मनसुख हिरेन की मौत से जुड़े मामले को केंद्रीय गृम मंत्रालय ने एनआईए को सौंपने की घोषणा की ही थी कि मुम्बई पुलिस के एंटी टेररिज्म स्क्वाड (एटीएस) ने कहा कि इस मामले की हमने जाँच पूरी कर ली है। घूम-फिरकर यह मामला राजनीति का विषय बन गया है। 

इस वसूली के छींटे केवल एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना तक ही सीमित नहीं रहेंगे। इसके सहारे कुछ और रहस्य भी सामने आ सकते हैं। अलबत्ता इन बातों से इतना स्पष्ट जरूर हो रहा है कि देश के राजनीतिक दल पुलिस सुधार क्यों नहीं करना चाहते। पिछले कुछ दिनों से मुंबई पुलिस कई कारणों से मीडिया में छाई हुई है। पहले मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक रखने के आरोप में पुलिस अधिकारी सचिन वझे फँसे। बात बढ़ने पर पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को पद से हटा दिया गया। इसपर परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखी।

सवाल है कि परमबीर सिंह को यह चिट्ठी लिखने की सलाह किसने दी और क्यों दी? उन्हें जब यह बात पता थी, तब उन्होंने इसकी जानकारी दुनिया को देने में देरी क्यों की? सच्चे पुलिस अधिकारी का कर्तव्य था कि वे ऐसे गृहमंत्री के खिलाफ केस दायर करते। पर क्या भारत में ऐसा कोई पुलिस अफसर हो सकता है? विडंबना है कि हम इस वसूली के तमाम रहस्यों को सच मानते हैं। हो सकता है कि काफी बातें गलत हों, पर वसूली नहीं होती, ऐसा कौन कह सकता है? 

 सवाल यह भी है कि मुकेश अम्बानी के घर के पास मोटर वाहन से विस्फोट मिलने के पीछे रहस्य क्या है? सचिन वझे इस पूरे प्रकरण में मामूली सा मोहरा नजर आता है। असली ताकत कहीं और है। बेशक वह पुलिस कमिश्नर और शायद गृहमंत्री से भी ऊँची कोई ताकत है। यहाँ यह साफ कर देने की जरूरत है कि कोई भी राजनीतिक दल दूध का धुला नहीं है। 

बीजेपी का अश्वमेध यज्ञ

अगले शनिवार को असम और बंगाल में विधानसभा चुनावों के पहले दौर के साथ देश की राजनीति का रोचक पिटारा खुलेगा। इन दो के अलावा 6 अप्रेल को पुदुच्चेरी, तमिलनाडु और केरल में चुनाव होंगे, जहाँ की एक-एक सीट का राजनीतिक महत्व है। इन पाँचों से कुल 116 सदस्य लोकसभा में जाते हैं, जो कुल संख्या का मोटे तौर पर पाँचवां हिस्सा हैं। यहाँ की विधानसभाएं राज्यसभा में 51 सदस्यों (21%) को भी भेजती हैं।

इस चुनाव को भारतीय जनता पार्टी के अश्वमेध यज्ञ की संज्ञा दी जा सकती है। सन 2019 के चुनाव में हालांकि भारतीय जनता पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिली, पर उसे मूलतः हिंदी-पट्टी की पार्टी माना जाता है। पुदुच्चेरी में उसका गठबंधन सत्ता पाने की उम्मीद कर रहा है, जो तमिलनाडु का प्रवेश-द्वार है। पूर्वांचल में उसने असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में पैठ बना ली है, पर उसका सबसे महत्वपूर्ण मुकाबला पश्चिम बंगाल में हैं, जहाँ विधानसभा की कुल 294 सीटें हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने यहां 211 सीटें जीती थीं। लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन को 70 और बीजेपी को सिर्फ तीन। फिर भी वह मुकाबले में है, तो उसके पीछे कुछ कारण हैं।  

लोकसभा 2019 के चुनाव में भाजपा ने बंगाल में भी झंडे गाड़े। राज्य के तकरीबन 40 फ़ीसदी वोटों की मदद से 18 लोकसभा सीटें उसे हासिल हुईं। तृणमूल ने 43 फ़ीसदी वोट पाकर 22 सीटें जीतीं। दो सीटें कांग्रेस को मिलीं और 34 साल तक बंगाल पर राज करने वाली सीपीएम का खाता भी नहीं खुला। पिछले कई वर्षों से बीजेपी इस राज्य में शिद्दत से जुटी है। अब पहली बार उसकी उम्मीदें आसमान पर हैं। अमित शाह का दावा है, अबकी बार 200 पार। क्या यह सच होगा?

बंगाल का महत्व

बंगाल का महत्व कितना है, इसे समझने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों पर ध्यान दें। गत 18 मार्च को उन्होंने पुरुलिया को संबोधित किया। यह रैली शनिवार 20 मार्च को होनी थी लेकिन इसे दो दिन पहले ही आयोजित कराया गया। 20 मार्च को खड़गपुर में रैली हुई। आज बांकुड़ा में और 24 को कांटी मिदनापुर में रैलियाँ होंगी। पार्टी पहले चरण से ही माहौल बनाने की कोशिश में है। इससे पहले मोदी 7 मार्च को बंगाल आए थे। तब उन्होंने कोलकाता के बिग्रेड मैदान में जनसभा को संबोधित कर ममता पर निशाना साधा था।

Saturday, March 20, 2021

मोदी की बांग्लादेश यात्रा से भी जुड़ा है पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव

पिछले साल मतुआ समाज की बोरो मां वीणापाणि देवी से आशीर्वाद लेते नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते बांग्लादेश की दो दिन की यात्रा पर जा रहे हैं। इस यात्रा का दो देशों के रिश्तों से जितना वास्ता है, उतना ही पश्चिमी बंगाल में हो रहे विधानसभा चुनाव से भी है। हो सकता है कि भविष्य के तीस्ता जैसे समझौतों से भी हो। बांग्लादेश में इस साल मुजीब वर्ष यानी शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। इसके साथ ही बांग्लादेश की मुक्ति और स्वतंत्रता संग्राम के 50 वर्ष भी इस साल पूरे हो रहे हैं। दोनों देशों के राजनयिक संबंधों के 50 साल भी।

बांग्लादेश में मोदी तुंगीपाड़ा स्थित बंगबंधु स्मारक में जाएंगे। इसके अलावा वे ओराकंडी स्थित हरिचंद ठाकुर के मंदिर में भी जाएंगे। नरेंद्र मोदी 27 मार्च को ओराकंडी में मतुआ मंदिर जाएंगे। यह पहली बार है जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री इस मंदिर का दौरा करेगा। वे बारीसाल जिले के शिकारपुर में सुगंध शक्तिपीठ में भी जाएंगे। इसके अलावा वे कुश्तिया में रवीन्द्र कुटी बाड़ी और बाघा जतिन के पैतृक घर में भी जा सकते हैं। इन सभी जगहों का राजनीतिक महत्व है।

ओराकंडी मतुआ समुदाय के गुरु हरिचंद ठाकुर और गुरुचंद ठाकुर का जन्मस्थल है। इसकी स्थापना 1860 में एक सुधार आंदोलन के रूप में की गई थी। इस समुदाय के लोग नामशूद्र कहलाते थे और अस्पृश्य माने जाते थे। हरिचंद ठाकुर ने इनमें चेतना जगाने का काम किया। उनके समुदाय के लोग उन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं। मतुआ धर्म महासंघ समाज के दबे-कुचले तबके के उत्थान के लिए काम करता है। 2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में कुल आबादी के 23.5 प्रतिशत दलित और 5.8 प्रतिशत आदिवासी हैं। बंगाल के दलित एवं आदिवासी मतुआ धर्म महासंघ के स्वाभाविक समर्थक माने जाते हैं।

उत्तर 24 परगना जिले में बनगांव स्थित मतुआ धर्म महासंघ के मुख्यालय में मतुआ माता वीणापाणि देवी के साथ गत वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक की थी। वीणापाणि देवी के दबाव में ही ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार को मतुआ कल्याण परिषद का गठन करना पड़ा। वीणापाणि देवी का गत वर्ष निधन हो गया। अब उनके पुत्र और पौत्र मतुआ आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं।

Friday, March 19, 2021

पाकिस्तान से शांति का संदेश

 


पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने और फिर सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने कहा है, कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार होना चाहिए। प्रधानमंत्री के साथ जनरल बाजवा के बयान का आना भी बड़ा संदेश दे रहा है।

पिछले बुधवार को इमरान खान ने पाकिस्तान के थिंकटैंक नेशनल सिक्योरिटी डिवीजन के दो दिन के इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग का उद्घाटन करते हुए कहा कि हम भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं, पर भारत को इसमें पहल करनी चाहिए। पर उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि उनका आशय क्या है।

इसी कार्यक्रम में बाद में जनरल बाजवा बोले थे। इसमें उन्होंने कहा, ''जब तक कश्मीर मुद्दा हल नहीं हो जाता तब तक उपमहाद्वीप में शांति का सपना पूरा नहीं होगा। अब अतीत को भुला कर आगे बढ़ने का समय आ गया है।" पाकिस्तान की तरफ़ से हाल ही में सीमा पर युद्ध विराम समझौता किया गया है। जिसके बाद सेना प्रमुख जनरल जावेद बाजवा की भारत से बातचीत की पेशकश सामने आई है। उनकी इस पेशकश की सकारात्मक बात यह है कि इसमें कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी और इसी किस्म के विवादास्पद विषयों के नहीं उठाया गया है।

इस सिलसिले में एक और रोचक खबर यह है कि क़मर जावेद बाजवा ने अपनी सेना के जवानों को भारतीय लोकतंत्र की सफलता पर आधारित किताब पढ़ने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि यह जानने की ज़रूरत है कि भारत ने किस तरह से राजनीति को अपनी सेना को अलग रखा है।

Tuesday, March 16, 2021

बंगाल की भगदड़ और मीडिया का यथास्थितिवादी नज़रिया


पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम विधानसभा सीट पर सबकी निगाहें हैं। यहाँ से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मुकाबला उनसे बगावत करके भारतीय जनता पार्टी में आए शुभेंदु अधिकारी से है। इस क्षेत्र का मतदान 1 अप्रेल को यानी दूसरे दौर में होना है। शुरुआती दौर में ही राज्य की राजनीति पूरे उरूज पर है। एक तरफ बंगाल की राजनीति में तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर भागने की होड़ लगी हुई है, वहीं मीडिया के चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों में अब भी ममता बनर्जी की सरकार बनने की आशा व्यक्त की गई है। शायद यह उनकी यथास्थितिवादी समझ है। चुनाव कार्यक्रम को पूरा होने में करीब डेढ़ महीने का समय बाकी है, इसलिए इन सर्वेक्षणों के बदलते निष्कर्षों पर नजर रखने की जरूरत भी होगी।

भारत में चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों का इतिहास अच्छा नहीं रहा है। आमतौर पर उनके निष्कर्ष भटके हुए होते हैं। फिर ममता बनर्जी की पराजय की घोषणा करने के लिए साहस और आत्मविश्वास भी चाहिए। बंगाल का मीडिया लम्बे अर्से से उनके प्रभाव में रहा है। बंगाल के ही एक मीडिया हाउस से जुड़ा एक राष्ट्रीय चैनल इस बात की घोषणा कर रहा है, तो विस्मय भी नहीं होना चाहिए। अलबत्ता तृणमूल के भीतर जैसी भगदड़ है, उसपर ध्यान देने की जरूरत है। मीडिया के विश्लेषण 27 मार्च को मतदान के पहले दौर के बाद ज्यादा ठोस जमीन पर होंगे। पर 29 अप्रैल के मतदान के बाद जो एक्ज़िट पोल आएंगे, सम्भव है उनमें कहानी बदली हुई हो।

भगदड़ का माहौल

सन 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से टीएमसी के 17 विधायक, एक सांसद कांग्रेस, सीपीएम और सीपीआई के एक-एक विधायक अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। यह संख्या लगातार बदल रही है। हाल में मालदा के हबीबपुर से तृणमूल कांग्रेस की प्रत्याशी सरला मुर्मू ने टिकट मिलने के बावजूद तृणमूल छोड़ दी और सोमवार 8 मार्च को भाजपा में शामिल हो गईं। बंगाल में यह पहला मौका है, जब किसी प्रत्याशी ने टिकट मिलने के बावजूद अपनी पार्टी छोड़ी है। बात केवल बड़े नेताओं की नहीं, छोटे कार्यकर्ताओं की है। केवल तृणमूल के कार्यकर्ता ही नहीं सीपीएम के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी को छोड़कर भागे हैं। इसकी वजह पिछले दस वर्षों से व्याप्त राजनीतिक हिंसा है।

Monday, March 15, 2021

सियासी आँधी में घिरे इमरान खान

पाकिस्तानी संसद के ऐवान-ए-बाला यानी सीनेट के चुनाव में हार के बाद प्रधानमंत्री इमरान खान ने वहाँ की राष्ट्रीय असेम्बली में विश्वासमत हासिल कर लिया है। शनिवार 6 मार्च को हुए मतदान में उनके पक्ष में 178 वोट पड़े, जबकि विरोधी दलों ने मतदान का बहिष्कार किया। पर ये 178 वोट खुले मतदान में पड़े हैं, जबकि सीनेट का चुनाव गुप्त मतदान से हुआ था। लगता है कि कुछ सदस्यों को मौके का इंतजार है, पर वे खुलकर सामने आना भी नहीं चाहते।

इस वक़्त सबसे अहम सवाल है कि देश के विरोधी दलों का उगला हदफ़ (निशाना) क्या होगा? पर्यवेक्षकों का कहना है कि एकबार शिगाफ़ (दरार) पड़ जाए, तो बार-बार उसपर वार करना जरूरी होता है। लगता है कि इमरान खान की सत्ता कमज़ोर पड़ रही हैं। अलबत्ता विरोधी दलों ने 26 मार्च को पूरे देश में लांग मार्च का कार्यक्रम बनाया है। इस लांग मार्च के साथ ही देश में फिर से चुनाव कराने की माँग शुरू हो गई है।

फौज किसके साथ?

फिलहाल विपक्ष सीनेट में अपना अध्यक्ष लाने की कोशिश करेगा और उसके बाद पंजाब की सूबाई सरकार को गिराने या बदलवाने की। मरियम नवाज शरीफ का कहना है कि पंजाब में पीटीआई के विधायकों ने अब हमसे सम्पर्क करना शुरू कर दिया है। यानी कहानी अभी खत्म नहीं हुई है, बल्कि उसका अगला अध्याय शुरू होने जा रहा है। सवाल यह भी है कि फौज (जिसे पाकिस्तान में एस्टेब्लिशमेंट या व्यवस्था कहा जाता है) किसके साथ है?

इमरान खान का विश्वासमत हासिल करना भी पाकिस्तान की राजनीति के लिहाज से अटपटा है। अप्रेल 2010 में हुए संविधान के 18वें संशोधन के बाद यह पहला मौका था, जब किसी प्रधानमंत्री ने विश्वासमत हासिल किया है। इसके पहले जरूरी होता था कि नवनियुक्त प्रधानमंत्री अपना पद संभालने के 30 दिन के भीतर विश्वासमत हासिल करे। अब सांविधानिक-व्यवस्था में इसकी जरूरत नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 91 की धारा 7 के अनुसार जब तक बहुमत को लेकर राष्ट्रपति को संदेह नहीं हो, वह अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं करेगा।

इमरान खान को अपनी तरफ से विश्वासमत हासिल करने की कोई जरूरत थी भी नहीं थी। उनसे राष्ट्रपति ने नहीं कहा था। शायद वे असुरक्षा से घिरे हैं और अपना बहुमत साबित करके अपने सुरक्षा-घेरे को मजबूत करना चाहते हैं। इमरान के पक्ष 155 वोट उनकी पार्टी पीटीआई के थे, सात एमक्यूएम (पी) के पाँच-पाँच बलोचिस्तान अवामी पार्टी, और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-क़ायद और एक-एक वोट अवामी मुस्लिम लीग और जम्हूरी वतन पार्टी का था।

Saturday, March 13, 2021

टेक्नो-लोकतंत्र की खुली खिड़की और हवाओं को कैद करने की कोशिशें


डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के विनियमन के लिए केंद्र सरकार की नवीनतम कोशिशों को लेकर तीन तरह की दलीलें सुनाई पड़ रही हैं। पहली यह कि विनियमन न केवल जरूरी है, बल्कि इसे
नख-दंत की जरूरत है। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने भी कही है। दूसरी, विनियमन ठीक है, पर इसका अधिकार सरकार के पास नहीं रहना चाहिए। इस दलील में उन बड़ी तकनीकी कंपनियों के स्वर भी शामिल हैं, जिनके हाथों में डिजिटल (या सोशल) मीडिया की बागडोर है। और तीसरी दलील मुक्त-इंटरनेट के समर्थकों की है, जिनका कहना है कि सरकारी गाइडलाइन न केवल अनैतिक है, बल्कि असांविधानिक भी हैं। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन का यह विचार आगे जाकर आधार, आरोग्य सेतु और  प्रस्तावित डीएनए कानून को भी सरकारी सर्विलांस का उपकरण मानता है।  

लोकतंत्र के तीन स्तम्भ धीरे-धीरे आकार ले रहे हैं। इनमें पहला राज्य है, जिसमें सरकार एक निकाय है, और जिसमें न्यायपालिका और राजनीतिक संस्थाएं शामिल हैं। दूसरे बाजार है, यानी बड़ी तकनीकी कम्पनियाँ। तीसरे स्वयं नागरिक। दुनिया के करीब सात अरब नागरिकों में से हरेक का अपना एजेंडा है। उनके प्रतिनिधित्व का दावा करने वाला एक अलग संसार है।

ग्लोबल ऑडियंस

सूचना के नियमन की कोशिश केवल भारत में ही नहीं है। युवाल नोवा हरारी के शब्दों में वैश्विक समस्याओं के वैश्विक समाधानखोजे जा रहे हैं। हाल में पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए अदालत ने कहा था, बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में ग्लोबल ऑडियंस की तलाश का अधिकार शामिल है। संचार पर भौगोलिक बाधाएं नहीं हैं। एक नागरिक के पास कानून के अनुरूप संचार प्राप्त करने के सर्वोत्तम साधनों का उपयोग करने का मौलिक अधिकार है।

स्वतंत्रता का यह एक नया आयाम है। इंटरनेट ने यह वैश्विक-खिड़की खोली है। नागरिक के जानकारी पाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े अधिकारों को पंख लगाने वाली तकनीक ने उसकी उड़ान को अंतरराष्ट्रीय जरूर बना दिया है, पर उसकी आड़ में बहुत से खतरे राष्ट्रीय सीमाओं में प्रवेश कर रहे हैं। सोचना उनके बारे में भी होगा।

Wednesday, March 10, 2021

पीसी चाको के हटने से कांग्रेस को एक और झटका


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीसी चाको ने पार्टी से नाता तोड़कर कांग्रेस पार्टी की आंतरिक राजनीति को चौराहे पर खड़ा कर दिया है। ऐसा नहीं है कि इस इस्तीफे से केरल में पार्टी की गुटबंदी खत्म हो जाएगा, पर इतना जरूर है कि केंद्रीय नेतृत्व का ध्यान इस ओर जाएगा। चाको ने कहा है कि पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है। इसके पीछे कोई और नहीं, खुद पार्टी है।

पीसी चाको ने अपना इस्तीफा पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा। केरल में 6 अप्रैल को होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले इस इस्तीफे से पार्टी की संभावनाओं पर भी असर पड़ेगा। यों भी माना जा रहा है कि इसबार वाममोर्चे की सरकार बनने जा रही है, जो केरल की राजनीति में एक नई बात होगी। अभी तक का चलन था कि एकबार वामपंथी सरकार बनती थी, तो उसके बाद कांग्रेसी। पर इसबार शायद वामपंथी सरकार लगातार दूसरी बार बनेगी।

चाको ने केरल में कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं रमेश चेन्नीथला और ओमान चैंडी और उनके दो गुटों पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि दोनों नेता हमेशा सीटें और संगठन के बाद आपस में बांट लेते हैं। केरल में केवल उन नेताओं का भविष्य है जो इनमें से किसी ग्रुप का हिस्सा हैं, अन्य को हमेशा दरकिनार कर दिया जाता है। मैं हाईकमान से कहता रहा हूं कि इस पर रोक लगनी चाहिए, लेकिन आलाकमान भी इन समूहों के दिए प्रस्तावों से सहमत है।''

चाको ने पार्टी के भीतर ग्रुप-23 का जिक्र भी किया। उन्होंने कहा, नेताओं ने मुझसे भी सम्पर्क साधा था, पर मैं किसी पत्र-अभियान के पक्ष में नहीं था। अलबत्ता मैं पत्र में उठाए गए सवालों से सहमत था। अफसोस की बात है कि पार्टी पिछले डेढ़ साल में अपने लिए अध्यक्ष नहीं खोज पाई।

Tuesday, March 9, 2021

अफगानिस्तान में बाइडेन की पहल के जोखिम

 


पिछले साल तालिबान के साथ हुए समझौते के तहत अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी की तारीख 1 मई करीब आ रही है। सवाल है कि क्या अमेरिकी सेना हटेगी? ऐसा हुआ, तो क्या देश के काफी बड़े इलाके पर तालिबान का नियंत्रण हो जाएगा? अमेरिका क्या इस बात को देख पा रहा है? ऐसे में भारत की भूमिका किस प्रकार की हो सकती है? ऐसे तमाम सवालों को लेकर आज के इंडियन एक्सप्रेस में सी राजा मोहन का लेख प्रकाशित हुआ है, जिसमें भारतीय नीति के बरक्स इन सवालों का जवाब देने की कोशिश की गई है। इसमें उन्होंने लिखा है:-

इससे न तो 42-साल पुरानी लड़ाई खत्म होगी और न अफगानिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप खत्म हो जाएगा। पर पिछले कुछ दिनों में जो बाइडेन प्रशासन द्वारा शुरू किए गए शांति-प्रयासों से अफगानिस्तान के हिंसक घटनाचक्र में, जिसने दक्षिण एशिया और अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, एक नया अध्याय शुरू हो सकता है।

अफगानिस्तान में अपने हितों को देखते हुए, अमेरिका की नई महत्वाकांक्षी नीतिगत संरचना और उसे लागू करने में सामने आने वाली चुनौतियों के मद्देनज़र भारत की इसमें जबर्दस्त दिलचस्पी होगी।

ताजा पहल के बारे में पिछले सप्ताहांत अमेरिका के विशेष दूत जलमय खलीलज़ाद ने अफगानिस्तान से विदेशमंत्री एस जयशंकर के साथ बातचीत की। उम्मीद है कि इस महीने अमेरिकी रक्षामंत्री जनरल लॉयड ऑस्टिन की यात्रा के दौरान इस सवाल पर और ज्यादा बातचीत होगी।  

ट्रंप प्रशासन द्वारा शुरू की गई शांति-प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए बाइडेन प्रशासन ने भी इस क्षेत्र में चल रही लड़ाई को जल्द से जल्द खत्म करने की मनोकामना को रेखांकित किया है। इस सिलसिले में पाँच खास बातें सामने आती हैं।

पहली, बाइडेन की शांति-योजना में यह संभावना खुली हुई है कि अफगानिस्तान में तैनात करीब 2500 अमेरिकी सैनिक कुछ समय तक और रुक सकते हैं। वॉशिंगटन में बहुत से विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप प्रशासन ने एक निश्चित तारीख की घोषणा करके अमेरिकी पकड़ को ढीला कर दिया है। बाइडेन उसे मजबूत करना चाहेंगे। बाइडेन इस पकड़ को इसलिए बनाए रखना चाहेंगे, क्योंकि तालिबान ने हिंसा के स्तर को कम करने के अपने वायदे को पूरा नहीं किया है। अमेरिका दूसरी तरफ अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ ग़नी पर भी दबाव डालेगा, क्योंकि वह उन्हें भी समस्या का हिस्सा मानता है।

Monday, March 8, 2021

क्या अब पिघलेगी भारत-पाक रिश्तों पर जमी बर्फ?


गुरुवार 25 फरवरी को जब भारत और पाकिस्तान की सेना ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम को लेकर सन 2003 में हुए समझौते का मुस्तैदी से पालन करने की घोषणा की, तब बहुतों ने उसे मामूली घोषणा माना। घोषणा प्रचारात्मक नहीं थी। केवल दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस (डीजीएमओ) ने संयुक्त बयान जारी किया। कुछ पर्यवेक्षक इस घटनाक्रम को काफी महत्वपूर्ण मान रहे हैं। उनके विचार से इस संयुक्त बयान के पीछे दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व की भूमिका है, जो इस बात को प्रचारित करना नहीं चाहता।

दोनों के बीच बदमज़गी इतनी ज्यादा है कि रिश्तों को सुधारने की कोशिश हुई भी तो जनता की विपरीत प्रतिक्रिया होगी। इस घोषणा के साथ कम से कम तीन घटनाक्रमों पर हमें और ध्यान देना चाहिए। एक, अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन की भूमिका, जो इस घोषणा के फौरन बाद अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता के बयान से स्पष्ट दिखाई पड़ती है। अफगानिस्तान में बदलते हालात और तीसरे भारत और चीन के विदेशमंत्रियों के बीच हॉटलाइन की शुरुआत।

उत्साहवर्धक माहौल

सन 2003 के जिस समझौते का जिक्र इस वक्त किया जा रहा है, वह इतना असरदार था कि उसके सहारे सन 2008 आते-आते दोनों देश एक दीर्घकालीन समझौते की ओर बढ़ गए थे। पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री खुर्शीद कसूरी ने अपनी किताब में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में हुई बैठकों का हवाला दिया है। भारतीय मीडिया में भी इस आशय की काफी बातें हवा में रही हैं। नवंबर 2008 के पहले माहौल काफी बदल गया था।

Sunday, March 7, 2021

फ्रीडम-हाउस के अर्धसत्य

वैश्विक स्वतंत्रता पर नज़र रखने वाले अमेरिकी थिंकटैंक 'फ्रीडम हाउस' की नजर में भारत अब ‘पूर्ण-स्वतंत्र’ नहीं ‘आंशिक-स्वतंत्र देश’ है। हालांकि इस रिपोर्ट से आधिकारिक या औपचारिक रूप से देश पर प्रभाव नहीं पड़ता है, पर प्रतिष्ठा जरूर प्रभावित होती है। इसीलिए भारत सरकार ने शुक्रवार को इस रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों का जवाब दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने भी इसकी आलोचना की है।

सालाना जारी होने वाली इस रिपोर्ट में पिछले कुछ वर्षों से भारत की रैंक लगातार गिर रही थी, फिर भी उसे ‘स्वतंत्र’ की श्रेणी में रखा जा रहा था, पर इस साल की रिपोर्ट में ‘आंशिक-स्वतंत्र देश’ का दर्जा देकर इस संस्था ने कुछ सवाल खड़े किए हैं। पिछले तीन साल में भारत को दिए गए अंक 77 से घटकर इस साल 67 पर आ गए हैं। यह अंक स्वतंत्र देश होने के लिए आवश्यक 70 से तीन अंक नीचे है।

‘आंशिक-स्वतंत्रता’

'फ्रीडम हाउस' के आकलन में दो प्रकार की स्वतंत्रताओं के आधार पर किसी देश की स्वतंत्रता का फैसला होता है। एक राजनीतिक स्वतंत्रता और दूसरे नागरिक स्वतंत्रता। राजनीतिक स्वतंत्रता यानी चुनाव और अन्य व्यवस्थाएं, जिसके लिए इस रेटिंग में 40 अंक रखे गए हैं। इसमें भारत को 34 अंक दिए गए हैं। यानी राजनीतिक स्वतंत्रता में भारत दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है, पर नागरिक स्वतंत्रता में 60 में से 33 अंक मिले हैं। इस प्रकार कुल 67 अंक हैं। इनमें इंटरनेट पर लगी बंदिशें भी शामिल हैं, जो अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 की वापसी के बाद कश्मीर की घाटी में लगाई गई थीं।

Saturday, March 6, 2021

इमरान सरकार बची, पर खतरा टला नहीं

युसुफ रजा गिलानी ने सीनेट की सीट जीतकर तहलका मचाया

 सीनेट चुनाव में हार के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने वहाँ की राष्ट्रीय असेम्बली में विश्वासमत हासिल कर लिया है। शनिवार को हुए मतदान में उनके पक्ष में 178 वोट पड़े, जबकि विरोधी दलों ने मतदान का बहिष्कार किया। इमरान और उनकी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ की निगाहें उन नेताओं पर रहीं जिन पर सीनेट चुनाव में पार्टी का साथ छोड़ विपक्ष का दामन थामने का आरोप लगाया गया था। जब वोट पड़े तो सरकार को आसानी से बहुमत मिल गया। 

इस जीत से इमरान सरकार बच तो गई है, पर ऐसा लग रहा है कि सेना ने खुद को तटस्थ बना लिया है। यों विश्वासमत के दो दिन पहले गुरुवार को इमरान देश के सेनाध्यक्ष और आईएसआई के प्रमुख से मिले थे। उसके बाद उन्होंने विश्वासमत हासिल करने की घोषणा की। विरोधी दल जानते हैं कि पीटीआई के पास अभी बहुमत है। उनकी लड़ाई सड़क पर चल रही है। देश पर छाया आर्थिक संकट अभी टला नहीं है। विदेश-नीति में भी इमरान को विशेष सफलता मिली नहीं है। सरकार के पास वैक्सीन खरीदने तक का पैसा नहीं है। उसकी अलोकप्रियता बढ़ती जा रही है। 

Friday, March 5, 2021

'फ्रीडम हाउस' की नजर में भारत अब ‘आंशिक-स्वतंत्र देश’




अमेरिकी थिंकटैंक फ्रीडम हाउस ने भारत को स्वतंत्र से आंशिक-स्वतंत्र देशों की श्रेणी में डाल दिया है। यह रिपोर्ट मानती है कि दुनियाभर में स्वतंत्रता का ह्रास हो रहा है, पर उसमें भारत का खासतौर से उल्लेख किया गया है। फ्रीडम हाउस एक निजी संस्था है और वह अपने आकलन के लिए एक पद्धति का सहारा लेती है। उसकी पद्धति को समझने की जरूरत है। भारत का श्रेणी परिवर्तन हमारे यहाँ चर्चा का विषय नहीं बना है, क्योंकि हमने लोकतंत्र और लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं को महत्व अपेक्षाकृत कम दिया है। हम उसके राजनीतिक पक्ष को आसानी से देख पाते हैं। मेरी समझ से फ्रीडम हाउस के स्वतंत्रता-सूचकांक के भी राजनीतिक निहितार्थ हैं। बेशक मानव-विकास, मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों को लेकर देश के भीतर सरकार के आलोचकों की बड़ी संख्या है, पर स्वतंत्रता हमारी बुनियाद में है।

अंग्रेजी के कुछ अखबारों को छोड़ आमतौर पर भारतीय मीडिया में इस रिपोर्ट को लेकर ज्यादा विवेचन हुआ नहीं है। हिंदी के अखबार यों भी गंभीर मसलों पर टिप्पणियाँ करने से बचते हैं। इस रिपोर्ट से हमारे ऊपर सीधे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, पर संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार से जुड़ी संस्थाओं में भारत को निशाने पर लिया जा सकेगा। ऐसा भी नहीं है कि रिपोर्ट में जिन तथ्यों का उल्लेख किया गया है, वे पूरी तरह आधारहीन हैं, पर उनसे जो निष्कर्ष निकाले गए हैं, उनमें कई प्रकार के छिद्र हैं।

आंतरिक राजनीति की प्रतिच्छाया

भारतीय राष्ट्र-राज्य को निशाने पर लेने वाली इस रिपोर्ट में भारत की आंतरिक राजनीति की प्रतिच्छाया भी नजर आती है। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र तो है कि भारतीय पुलिस ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया है, पर इस बात का जिक्र नहीं है कि देश की अदालतों ने कई मौकों पर देशद्रोह के आरोपों को लेकर सरकार के विरुद्ध टिप्पणियाँ की हैं। तबलीगी जमात को लेकर आरोप लगे, पर अदालतों ने न केवल पुलिस की आलोचना की, साथ ही मीडिया को भी लताड़ बताई है। यह भी सच है कि देश में अनेक कठोर कानून बने हैं, पर उनके पीछे आतंकवादी गतिविधियों का इतिहास है और इन कानूनों का सीधा रिश्ता 2014 के राजनीतिक बदलाव से नहीं है।  

'फ्रीडम हाउस' एक अमेरिकी शोध संस्थान है जो हर साल 'फ्रीडम इन द वर्ल्ड' रिपोर्ट निकालता है। इस रिपोर्ट में दुनिया के अलग-अलग देशों में राजनीतिक आजादी और नागरिक अधिकारों के स्तर की समीक्षा की जाती है। ताजा रिपोर्ट में संस्था ने भारत में अधिकारों और आजादी में आई कमी को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। इस रिपोर्ट को देखने और समझने के पहले इसकी अंक पद्धति पर भी एक नजर डालना उपयोगी होगा। 2021 की रिपोर्ट में 195 देशों और 15 इलाकों में 1 जनवरी 2020 से लेकर 31 दिसंबर 2020 तक हुए घटनाक्रमों का विश्लेषण किया गया है।

पीछे का नजरिया

'फ्रीडम हाउस' की दृष्टि भी भारतीय मीडिया, लेखकों, राजनीति और अमेरिका तथा अन्य देशों में रहने वाले भारतीयों की दृष्टि से प्रभावित होती है। क्या भारत का पूरा मीडिया गोदी-मीडिया है? क्या मीडिया में नागरिक-स्वतंत्रता के सवाल उठने बंद हो गए हैं? भारत के बारे में यह दृष्टि सन 1947 के बाद से ही बन रही है। कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में लेकर जाने के समय से। भारतीय स्वतंत्रता और खासतौर से विभाजन से जुड़ी ब्रिटिश राजनीति में भी उसके बीज छिपे हैं। 'फ्रीडम हाउस' के वैबपेज पर भारत का नक्शा इसकी गवाही देता है। उन्होंने जम्मू कश्मीर और लद्दाख को भारत के नक्शे से ही हटा दिया है। 

Thursday, March 4, 2021

‘हिन्दू’ में सोनिया गांधी का लेख


आज के
हिन्दू के सम्पादकीय पेज पर सोनिया गांधी का लेख The distress sale of national assets is unwiseप्रकाशित हुआ है। एक साल के भीतर हिन्दू में सोनिया गांधी का यह दूसरा लेख है। इसके पहले अगस्त, 2020 में उनका एक लेख प्रकाशित हुआ था। यह लेख शुद्ध राजनीति पर नहीं है, बल्कि आर्थिक-नीति से जुड़े विषय पर है। इसमें उन्होंने कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों और बैंकों के पूँजीगत विनिवेश से देश की सार्वजनिक सम्पदा का दीर्घकालीन क्षय होगा। एकबारगी यह बात मन में आती है कि सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी इसके माध्यम से क्या कहना चाहती हैं। हिन्दू में उनके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लेख भी प्रकाशित हुए हैं। मनमोहन सिंह नवंबर 2016 की नोटबंदी को लेकर मोदी सरकार की आलोचना करते रहे हैं। यह आलोचना अब भी जारी है। वे सामान्यतः रोजमर्रा की राजनीति पर टिप्पणी नहीं करते, पर नोटबंदी के बाद उन्होंने हिन्दू में इस विषय पर लेख लिखा। उनकी पार्टी ने नोटबंदी को लेकर बीजेपी पर हमला बोला तो उसमें मनमोहन सिंह को आगे रखा। नवम्बर, 2016 में उन्होंने राज्यसभा में कहा, नोटबंदी का फैसला ‘संगठित लूट और कानूनी डाकाजनी’ (ऑर्गनाइज्ड लूट एंड लीगलाइज्ड प्लंडर) है। उसके बाद प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में मनमोहन सिंह पर ‘रेनकोट पहन कर नहाने’ के रूपक का इस्तेमाल करते हुए हमला बोला था। लगता यह है कि कांग्रेस इन लेखों के माध्यम से अपनी आर्थिक-सामाजिक नीतियों को भी स्पष्ट कर रही है, जो कई कारणों से अब सन 1991 की राह से अलग हैं। इसकी वजह या तो बीजेपी की नीतियों का विरोध है या पार्टी की दीर्घकालीन रणनीति। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में निजीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों के बड़े स्तर पर विनिवेश या निजीकरण की वकालत करके इस बहस को तेज कर दिया है। चूंकि विनिवेश की नीति उनकी सरकार की भी रही है, इसलिए उन्होंने इस बात को रखने में सावधानी बरती है और अपने तरीके का भी उल्लेख कर दिया है। मुझे लगता है कि यह बहस अब आगे बढ़ेगी, जिसका केंद्रीय विषय होगा कि हमारी अर्थव्यवस्था की गति में ठहराव के बुनियादी कारण क्या हैं। सोनिया गांधी के लेख के कुछ महत्वपूर्ण अंश इस प्रकार हैं:-

भारतीय अर्थव्यवस्था के चालू संकट के पीछे 8 नवंबर, 2016 की रात का वह फैसला है। डॉ मनमोहन सिंह ने संसद में कहा था कि इस फैसले से अर्थव्यवस्था में 2 प्रतिशत की गिरावट आएगी, पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी बात नहीं मानी। इसके विपरीत जल्दबाजी में खराब तरीके से बने जीएसटी को लागू किया गया, जिससे बड़ी संख्या में मझोले और छोटे कारोबार और अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्र तबाह हो गया। इन दोनों तबाहियों ने करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी को छीना और अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर धकेल दिया, जो कोविड-19 की महामारी के दौर में उपस्थित हुई।

तेल-टैक्स, निजीकरण

ऐतिहासिक रूप से अंतरराष्ट्रीय तेल-मूल्य में गिरावट होने से सरकार को मौका मिला था कि वह उसका लाभ उपभोक्ता को देकर अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा होने में मदद करती। पर मौके का लाभ उठाने के बजाय मोदी सरकार बढ़े हुए पेट्रोलियम टैक्स और उपकर के मार्फत हरेक परिवार के घटते बजट को निचोड़ती रही। इसके विपरीत 2019 में उसने कम्पनियों का टैक्स कम किया जिससे निवेश तो नहीं बढ़ा, हाँ देश के बजट में 1.45 लाख करोड़ रुपये का छिद्र जरूर हो गया।

Wednesday, March 3, 2021

अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के साथ साझा-सरकार की पेशकश की

जलमय खलीलज़ाद
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की अफगानिस्तान नीति अब स्पष्ट होने लगी है। अफगान मीडिया टोलोन्यूज के अनुसार अमेरिका ने तालिबान सहित देश के सभी गुटों के साथ एक साझा सरकार की पेशकश की है। इसके साथ ही अफगान समस्या को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का सुझाव भी दिया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान के मामलों पर अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि जलमय खलीलज़ाद ने राष्ट्रपति अशरफ गनी और देश के अन्य शीर्ष नेताओं के साथ हाल में बैठकों में इस प्रस्ताव पर चर्चा की। टोलोन्यूज ने खबर यह भी दी है कि हाल में अफ़ग़ान राष्ट्रीय सुरक्षा बल जहाँ से भी हटे हैं, उन जगहों पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है। हाल में सरकार ने कुछ इलाकों से सेना को हटाकर दूसरे इलाकों में तैनात किया है, जिसपर तालिबान ने मौके पा फायदा उठाया है।

खलीलज़ाद हाल में काबुल में थे जहां उन्होंने पिछले साल तालिबान के साथ हुए अमेरिकी समझौते पर चर्चा करने के लिए राष्ट्रपति गनी और अफगानिस्तान हाई काउंसिल ऑफ नेशनल रिकांसिलिएशन के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मुलाकात की। अमेरिकी प्रस्ताव में दोहा में चल रही शांति वार्ता को दरकिनार करने और तालिबान की भागीदारी के साथ एक अंतरिम सरकार का खाका तैयार करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय वार्ता शुरू करना शामिल है, जो अफगानिस्तान के पारंपरिक लोया जिरगा की मंजूरी दे सकती है।

Tuesday, March 2, 2021

जी-23 के कार्यक्रम और होंगे, पर हाईकमान की कार्रवाई फिलहाल नहीं


पिछले शनिवार और रविवार को असंतुष्ट नेताओं के कड़वे बयानों के बावजूद कांग्रेस पार्टी ने कोई कार्रवाई करने का इरादा जाहिर नहीं किया है। दूसरी तरफ जी-23 ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में एक और कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है। इसी तरह की रैलियाँ हिमाचल प्रदेश, पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में हो सकती हैं। कांग्रेस के इस धड़े का आग्रह इस बात पर है कि हम हिन्दू-विरोधी नहीं हैं। दूसरी तरफ पार्टी हाईकमान अपने कदम पर काफी सोच-विचार कर रही है। पर पार्टी का असंतुष्ट तबका खुलकर सामने आ गया है। 

गत शनिवार को जम्मू में हुए गांधी ग्लोबल फैमिली कार्यक्रम में शामिल नेताओं से अभी तक स्पष्टीकरण नहीं माँगा गया है। उधर पार्टी जम्मू-कश्मीर अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर का कहना है कि गुलाम नबी के बयान से राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास डोल गया है। इसके साथ ही जम्मू में पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने आजाद का पुतला भी जलाया है। दूसरी तरफ पार्टी के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली ने अपने आपको जम्मू के इस कार्यक्रम से अलग कर लिया है। उन्होंने पार्टी के आंतरिक मतभेदों के बाहर आने पर चिंता व्यक्त की और साथ ही राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाने का समर्थन किया।

आईएसएफ से गठबंधन

सोमवार को आनंद शर्मा ने पश्चिम बंगाल में इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के साथ गठबंधन को लेकर सवाल खड़े किए। उन्होंने ट्वीट किया कि आईएसएफ जैसी पार्टी के साथ गठबंधन करके कांग्रेस गांधी-नेहरू के धर्मनिरपेक्ष विचारों से दूर जा रही है, जो पार्टी की आत्मा है। इन मसलों पर कांग्रेस कार्यसमिति की अनुमति होनी चाहिए। ऐसे मौके पर पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष की उपस्थिति दर्दनाक और शर्मनाक है।

इसपर बंगाल के प्रभारी जितिन प्रसाद ने ट्वीट किया, गठबंधन के निर्णय पार्टी और कार्यकर्ताओं के हितों को ध्यान में रखकर किए जाते हैं। सबको मिलकर कांग्रेस को मजबूत करना चाहिए। उनके अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ट्वीट किया, आनंद शर्मा जी सीपीएम-नीत वाम मोर्चा पश्चिम बंगाल में सेक्युलर गठबंधन का नेतृत्व कर रहा है। कांग्रेस उसका अभिन्न अंग है। हम भाजपा और सांप्रदायिक शक्तियों को परास्त करने को कृतसंकल्प हैं।

जी-23 के एक सदस्य आनंद शर्मा के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि एक समय तक आनंद शर्मा परिवार के काफी करीब थे, पर पिछले कुछ वर्षों में यह नजदीकी खत्म हो गई है। राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे को नेता और उन्हें उपनेता बनाया गया है। इसका मतलब है कि उन्हें खड़गे के अधीन रहना होगा। खड़गे को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है और वे सोनिया गांधी के भी आनंद शर्मा के मुकाबले ज्यादा करीबी हैं। सोनिया और राहुल गांधी के करीबियों के टकराव के कारण जी-23 का जन्म हुआ है। ये नेता अब जून में होने वाले पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में भी अपना प्रत्याशी खड़ा करेंगे। वे जानते हैं कि यदि राहुल गांधी खड़े हुए तो उनकी जीत तय है, फिर भी जी-23 अपना प्रत्याशी खड़ा करेगा।

हार्दिक पटेल भी निराश

उधर गुजरात के स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद पार्टी में मतभेद उभरे हैं। पाटीदार बहुल इलाकों में मिली हार के बाद प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल की आलोचना भी हो रही है। करीब दो साल पहले कांग्रेस में शामिल हुए युवा पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने अपनी निराशा व्यक्त की है। उन्होंने अपने एक ट्वीट में कहा कि पार्टी उनका सही से प्रयोग नहीं कर पा रही है। पार्टी के भीतर अपने ही नेता उनकी टांग खींचने का काम कर रहे हैं।