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Friday, May 25, 2012

आग सिर्फ पेट्रोल में नहीं लगी है

हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून
भारत में पेट्रोल की कीमत राजनीति का विषय है। बड़ी से बड़ी राजनीतिक ताकत भी पेट्रोलियम के नाम से काँपती है। इस बार पेट्रोल की कीमतों में एक मुश्त सबसे भारी वृद्धि हुई है। इसके सारे राजनीतिक पहलू एक साथ आपके सामने हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि कोई एक राजनीतिक पार्टी ऐसी नहीं है जिसने इस वृद्धि की तारीफ की हो। और जिस सरकार ने यह वृद्धि की है वह भी हाथ झाड़कर दूर खड़ी है कि यह तो कम्पनियों का मामला है। इसमें हमारा हाथ नहीं है। जून 2010 से पेट्रोल की कीमतें फिर से बाजार की कीमतॆं से जोड़ दी गई हैं। बाजार बढ़ेगा तो बढ़ेंगी और घटेगा तो घटेंगी। इतनी साफ बात होती तो आज जो पतेथर की तरह लग रही है वह वद्धि न होती, क्योंकि जून 2010 से अबतक छोटी-छोटी अनेक वृद्धियाँ कई बार हो जातीं और उपभोक्ता को नहीं लगता कि एक मुश्त इतना बड़ा इज़ाफा हुआ है।

Monday, May 21, 2012

वैश्विक आर्थिक संकट और अफगानिस्तान

जिस वक्त आप ये पंक्तियाँ पढ़ रहे हैं उस वक्त तक अफगानिस्तान में पाकिस्तान के रास्ते नेटो सेना की रसद सप्लाई पर लगी रोक हट चुकी होगी या हटाने की घोषणा हो चुकी होगी। या उसका रास्ता साफ हो चुका होगा। शिकागो में नेटो का शिखर सम्मेलन शुरू हो गया है जिसमें पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी शिरकत कर रहे हैं। विदेश मंत्री हिना रब्बानी खर उनके साथ हैं। पाकिस्तानी राजनीति अमेरिका के साथ रिश्तों को आज भी ठीक से परिभाषित नहीं कर पाई है, पर किसी में हिम्मत नहीं है कि अमेरिका के रिश्ते पूरी तरह तोड़ सके। पिछले साल नवंबर में नेटो सेना के हैलिकॉप्टरों ने कबायली इलाके मोहमंद एजेंसी में पाकिस्तानी फौजी चौकियों पर हमला किया था, जिसमें 24 सैनिक मारे गए थे। पाकिस्तानी सरकार ने उस हमले का कड़ा विरोध किया था और नेटो सेना की सप्लाई पर रोक लगा दी थी। इन दिनों नेटो के सैकड़ों वाहन पाकिस्तान के विभिन्न इलाकों में अफगानिस्तान जाने का इंतजार कर रहे हैं। समझौते की घोषणा होते ही वे चल पड़ेंगे। हालांकि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में पड़ी खटास का यह दौर फिलहाल खत्म हो जाएगा, पर दोनों देशों के बीच गहरा अविश्वास घर कर चुका है और लम्बे समय तक इसके दूर होने की आशा नहीं है।

Sunday, May 20, 2012

जेंटलमैंस गेम से कल्चरल क्राइम तक क्रिकेट

हिन्दू में केशव का कार्टून

एक ज़माने तक देश के सबसे लोकप्रिय खेल हॉकी और फुटब़ॉल होते थे। आज क्रिकेट है। ठीक है। देश के लोगों को पसंद है तो अच्छी बात है। अब यह सारे मीडिया पर हावी है। क्रिकेट की खबरें, क्रिकेट के विज्ञापन। बॉलीवुड के अभिनेता, अभिनेत्री क्रिकेट में और सारे देश के नेता क्रिकेट में। पिछले हफ्ते की कुछ खबरों को आधार बनाया जाए तो सारे अपराधी क्रिकेट में और सारे अपराध क्रिकेट में। पिछले हफ्ते बुधवार की रात मुम्बई के वानखेड़े स्टेडियम में कोलकाता नाइट रायडर्स टीम के मालिक शाहरुख खान और स्टेडियम के सिक्योरिटी स्टाफ के बीच ऐसी ठनी कि शाहरुख के वानखेड़े स्टेडियम में प्रवेश पर पाँच साल के लिए पाबंदी लगा दी गई। शाहरुख का रुख और बदले में की गई कार्रवाई दोनों के पीछे गुरूर नज़र आता है। लगता है मुफ्त की कमाई ने सबके दिमागों में अहंकार की आग भर दी है।

Friday, May 18, 2012

क्रिकेट को धंधा बनने से रोकिए

आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग की खबरे आने के बाद बीसीसीआई को पारदर्शी बनाने की ज़रूरत है। उसके खाते आरटीआई के लिए खुलने चाहिए और साथ ही आईपीएल के तमाशे को कड़े नियमन के अधीन लाया जाना चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो यह मसला तमाम बड़े घोटालों की तरह सरकार के गले की हड्डी बन जाएगा। आईपीएल ने जिस तरह की खेल संस्कृति को जन्म दिया है वह खतरनाक है। उससे ज्यादा खतरनाक है इसकी आड़ में चल रही आपराधिक गतिविधियाँ जिनका अभी अनुमान ही लगया जा सकता है। खेल मंत्री अजय माकन ने ठीक माँग की है कि बीसीसीआई खुद को आईपीएल से अलग करे। अभी जिन पाँच खिलाड़ियों पर कार्रवाई की गई है वह अपर्याप्त है, क्योंकि सम्भव है कि इसमें अनेक मोटी मछलियाँ सामने आएं।

Tuesday, May 15, 2012

पाठ्य पुस्तकों में कार्टून क्या गलत हैं?


कार्टून विवाद हालांकि एक या दो रोज की खबर बनकर रह गया। इसकी बारीकियों पर जाने की कोशिश ज्यादा लोगों ने नहीं की। मुझे इधर-उधर जो भी पढ़ने को मिल रहा है उसके आधार पर कुछ बिन्दु उभरते हैं जो इस प्रकार हैं:-

  • दलित राजनीति से जुड़े एक मामूली से संगठन ने इस सवाल को उठाया। महाराष्ट्र के इस संगठन को इसके बहाने  अपने आप को आगे लाने का मौका नज़र आया। सुहास पालसीकर के घर पर तोड़फोड़ के पीछे भी इस संगठन की मंशा अपने को बढ़ाने की है। 
  • संसद में यह सवाल उठने के पहले मानव संसाधन मंत्री के साथ कुछ सांसदों ने चर्चा की थी। कार्टून को हटाने का फैसला भी हो गया। 
  • यह भी समझ में आता है कि सांसदों का एक ग्रुप बड़े दबाव समूह के रूप में उभर कर आया है। सरकार और विपक्ष से जुड़े बहुसंख्यक सांसद राजनीति लेकर जनता के बढ़ते रोष से परेशान हैं। अन्ना हजारे आंदोलन के दौरान यह रोष मुखर होकर सामने आया। 
  • सरकार केवल आम्बेडकर वाले कार्टून को ही नहीं हटा रही है बल्कि किसी भी प्रकार के कार्टून को पाठ्य पुस्तकों से हटाना चाहती है। 
  • सवाल यह है कि क्या किशोर मन को राजनीति की बारीकियाँ समझ में नहीं आएंगी। या उसे यह सब नही बताया जाना चाहिए। उसके मन में क्या राजनीति के प्रति अनादर का भाव है? 

Monday, May 14, 2012

यूरोज़ोन और पूँजीवाद का वैश्विक संकट

यूरोपीय संघ अपने किस्म का सबसे बड़ा राजनीतिक-आर्थिक संगठन है। इरादा यह था कि यूरोप के सभी देश आपसी सहयोग के सहारे आर्थिक विकास करेंगे और एक राजनीतिक व्यवस्था को भी विकसित करेंगे। 27 देशों के इस संगठन की एक संसद है। और एक मुद्रा भी, जिसे 17 देशों ने स्वीकार किया है। दूसरे विवश्वयुद्ध के बाद इन देशों के राजनेताओं ने सपना देखा था कि उनकी मुद्रा यूरो होगी। सन 1992 में मास्ट्रिख्ट संधि के बाद यूरोपीय संघ के भीतर यूरो नाम की मुद्रा पर सहमति हो गई। इसे लागू होते-होते करीब दस साल और लगे। इसमें सारे देश शामिल भी नहीं हैं। यूनाइटेड किंगडम का पाउंड स्टर्लिंग स्वतंत्र मुद्रा बना रहा। मुद्रा की भूमिका केवल विनिमय तक सीमित नहीं है। यह अर्थव्यवस्था को जोड़ती है। अलग-अलग देशों के बजट घाटे, मुद्रास्फीति और ब्याज की दरें इसे प्रभावित करती हैं। समूचे यूरोप की अर्थव्यवस्था एक जैसी नहीं है। दुनिया की अर्थव्यवस्था इन दिनों दो प्रकार के आर्थिक संकटों से घिरी है। एक है आर्थिक मंदी और दूसरा यूरोज़ोन का संकट। दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं।

Sunday, May 13, 2012

कार्टून विवाद पर फेसबुक से कुछ पोस्ट

हिमांशु पांड्या की यह पोस्ट मैने उनके फेसबुक नोट्स से ली है। इस चर्चा को आगे बढ़ाने में यह मददगार होगी।

अप्रश्नेय कोई नहीं है - गांधी , नेहरू , अम्बेडकर , मार्क्स....
by Himanshu Pandya on Saturday, May 12, 2012 at 1:17pm ·

जिस किताब में छपे कार्टून पर विवाद हो रहा है, उसमें कुल बत्तीस कार्टून हैं। इसके अतिरिक्त दो एनिमेटेड बाल चरित्र भी हैं - उन्नी और मुन्नी। मैं सबसे पहले बड़े ही मशीनी ढंग से इनमें से कुछ कार्टूनों का कच्चा चिट्ठा आपके सामने प्रस्तुत करूँगा, फिर अंत में थोड़ी सी अपनी बात।

इससे बेहतर है कि कार्टून बनाना-छापना बैन कर दीजिए

लगता है कुएं में भाँग पड़ी है। सन 1949 में बना एक कार्टून विवाद का विषय बन गया। संसद में हंगामा हो गया। सरकार ने माफी माँग ली। एनसीईआरटी की किताब बैन कर दी गई। किताब को स्वीकृति देने वाली समिति के विद्वान सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। मानव संसाधन मंत्री ने कहा, '' मैंने एक और फैसला किया है कि जिस पुस्तक में भी इस तरह के कार्टून होंगे, उन्हें आगे वितरित नहीं किया जाएगा।'' बेहतर होता कि भारत सरकार कार्टून बनाने पर स्थायी रूप से रोक लगा दे। साथ ही हर तरह की पाठ्य पुस्तक पर हर तरह की आपत्तिजनक सामग्री हटाने की घोषणा कर दे। उसके बाद किताबों में कुछ पूर्ण विराम, अर्ध विराम, कुछ क्रियाएं और सर्वनाम बचेंगे, उन्हें ही पढ़ाया जाए। इस कार्टून के पहले बंगाल में ममता बनर्जी को लेकर बने एक कार्टून ने भी देश का ध्यान खींचा था, जिसमें कार्टून का प्रसारण करने वाले लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसके पहले कपिल सिब्बल ने इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के खिलाफ कार्रवाई करने की बात जब की थी तब भी मामला मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी आदि के कार्टूनों-मॉर्फ्ड पिक्चरों का था।

Friday, May 11, 2012

कितने सच सामने लाएंगे आमिर खान?

सतीश आचार्य का कार्टून साभार
नए रविवारी सीरियल ‘सत्यमेव जयते’ के प्रसारण के साथ ही लाखों-लाख लोगों ने आमिर खान से सम्पर्क किया है। इनमें राजस्थान के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। सत्यमेव जयते की वैबसाइट पर जाकर आप एक पोल में शामिल हो सकते हैं। इसमें पूछा गया है कि क्या राजस्थान में स्त्री भ्रूण हत्या के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना की जानी चाहिए? कुछ लोगों का कहना है कि यह सीरियल नहीं आंदोलन है। इसकी मार्केटिंग पर 20 करोड़ से ज्‍यादा खर्च हुआ है। आखिरी मिनट तक सामान्य दर्शक को नहीं पता था कि इस सीरियल में क्या है। मीडिया विशेषज्ञ इस बात पर निहाल हैं कि कितनी चतुराई से दूरदर्शन द्वारा वर्षों पहले तैयार किए गए स्लॉट का इस्तेमाल कर लिया गया। सीरियल प्रसारण के अगले रोज दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार के सम्पादकीय पेज पर आमिर खान का स्त्री भ्रूण हत्या विषय पर लेख प्रकाशित हुआ। अब हर सोमवार को उनका लेख पढ़ने को मिलेगा। शायद यह भी यह सीरियल की मार्केटिंग रणनीति का हिस्सा है। अखबारों को भी आईबॉल्स जमा करने के लिए के लिए टीवी स्टार चाहिए।

Monday, May 7, 2012

एक और झंझावात से गुजरता नेपाल


दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान और पाकिस्तान से लेकर बर्मा तक और मालदीव से नेपाल तक तकरीबन हर देश में राजनीतिक हलचल है। हालांकि बर्मा को भू-राजनीतिक भाषा में दक्षिण पूर्व एशिया का देश माना जाता है, पर वह अनेक कारणों से हमेशा हमारे करीब रहेगा। भारत इन सभी देशों के बीच में पड़ता है और इस इलाके का सबसे बड़ा देश है। पर हमारा महत्व केवल बड़ा देश होने तक सीमित नहीं है। इन सभी देशों की समस्याएं एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं।

Sunday, May 6, 2012

एनसीटीसी की भैंस चली गई पानी में

सतीश आचार्य का कार्टून
नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर पर शनिवार को हुई बैठक से जिन्होंने उम्मीदें लगा रखी थीं, उन्हें निराशा हाथ लगी। कोई भी पक्ष अपनी बात से हिलता नज़र नहीं आ रहा है। खासतौर से जो इसके विरोधी हैं उनके रुख में सख्ती ही आई है। मसलन ममता बनर्जी और जयललिता चाहती हैं कि पहले इसकी अधिसूचना वापस ली जाए। केन्द्र सरकार ने सावधानी बरती होती तो यह केन्द्र-राज्य सम्बन्धों का मामला नहीं बनता। पर अब बन गया है। फिलहाल इसमें किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं लगती।

Thursday, May 3, 2012

हाईस्पीड रेलगाड़ियाँ यानी तेज रफ्तार शहरीकरण




शहरीकरण समस्या है या समस्याओं का समाधान है? पहली बात यह कि आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र शहर हैं, गाँव नहीं हैं। दूसरे खेती में क्रांति के लिए भी औद्योगिक क्रांति की ज़रूरत है। खेती में विकास दर बढ़ भी जाए, पर गाँवों के विकास का रास्ता दिखाई नहीं पड़ता। गाँवों से शहर आए लोग तमाम दिक्कतों से जूझने के बावजूद गाँव वापस नहीं जाना चाहते। पर शहरीकरण विषमता और तमाम समस्याएं लेकर आता है। हमें मानवीय चेहरे वाले शहरीकरण की ज़रूरत है, जो प्रदूषण मुक्त हो और जहाँ गरीबों को सम्मान और सुख से जीने के साधन मुहैया हों। 

Wednesday, May 2, 2012

क्या मीडिया ने भी आरुषी मामले को उलझाया?




ऐसा लगता है कि आरुषी मामले में मीडिया ने तलवार परिवार को दोषी मान लिया है।बेशक  इस मामले को जटिल और विकृत बनाने में पुलिस और सीबीआई की भूमिका सबसे बड़ी है, पर मीडिया को रिपोर्ट करते वक्त समझदारी से काम भी करना चाहिए।