Thursday, November 12, 2020

चीनी सेना फिंगर 8 पर वापस जाने को तैयार


भारत और चीन के बीच चल रही बातचीत के आठवें दौर के बाद खबर है कि चीनी सेना पैंगोंग झील के फिंगर 8 पर वापस जाने के लिए तैयार हो गई है। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार चीन ने पेशकश की है कि झील के दक्षिणी तट पर दोनों देशों की सेनाएं अपनी अप्रेल से पहले की पुरानी स्थिति पर वापस चली जाएंगी। इस पेशकश में टैंकों तथा तोपखाने की वापसी भी शामिल है। हालांकि इस आशय का समझौता हुआ नहीं है, पर इस पेशकश से जुड़ी बारीकियों पर भारतीय पक्ष में विचार किया जा रहा है। इसके अलावा लद्दाख में टकराव के दूसरे इलाकों पर भी विचार किया जा रहा है।

प्रस्ताव के अनुसार फिंगर 4 से 8 के बीच एक अस्थायी गश्त-विहीन क्षेत्र बनाया जाएगा। दोनों देशों के बीच अभी तक असहमति इस बात पर थी कि भारत चाहता था कि सेनाएं अप्रेल पूर्व की स्थिति पर वापस जाएं और चीन इसपर तैयार नहीं था, खासतौर से झील के उत्तरी तट पर।

Wednesday, November 11, 2020

बिहार चुनाव के निहितार्थ


बिहार के चुनाव परिणामों पर डेटा-आधारित विश्लेषण कुछ समय बाद सामने आएंगे। महत्वपूर्ण राजनीति शास्त्रियों की टिप्पणियाँ भी कुछ समय बाद पढ़ने को मिलेंगी, पर आज (यानी 11 नवंबर 2020) की सुबह इंडियन एक्सप्रेस में परिणामों के समाचार के साथ चार बातों ने मेरा ध्यान खींचा। ये चार बातें चार अलग-अलग पहलुओं से जुड़ी हैं। पहला है तेजस्वी यादव पर वंदिता मिश्रा का विवेचन, दूसरे कांग्रेसी रणनीति पर मनोज जीसी की टिप्पणी, तीसरे बीजेपी की भावी रणनीति पर सुहास पालशीकर का विश्लेषण और चौथा एक्सप्रेस का बिहार के भविष्य को लेकर संपादकीय। किसी एक चुनाव के तमाम निहितार्थ हो सकते हैं। पता नहीं हमारे समाज-विज्ञानी अलग-अलग चुनावों के दौरान होने वाली गतिविधियों के सामाजिक प्रभावों का अध्ययन करते हैं या नहीं, पर मुझे लगता है कि बिहार के बदलते समाज का अध्ययन करने के लिए यह समय अच्छा होता है। बहरहाल इन चारों को विस्तार से आप एक्सप्रेस में जाकर पढ़ें। मैंने सबके लिंक साथ में दिए हैं। अलबत्ता हरेक बात का हिंदी में संक्षिप्त विवरण भी दे रहा हूँ. ताकि संदर्भ स्पष्ट रहे।

नैरेटिव विहीन तेजस्वी

वंदिता मिश्रा ने लिखा है कि बिहारी अंदाज में लमसम (Lumpsum) में कहें, तो एक या दो बातें कही जा सकती हैं। एक नीतीश कुमार का पराभव। मुख्यमंत्री के रूप में उनकी वापसी हो सकती है और नहीं भी हो सकती है, पर वे वही नीतीश कुमार नहीं होंगे। वे अब 2010 के सड़क-पुल-स्कूली लड़कियों के साइकिल हीरो नहीं हैं, जिसने राज्य में व्यवस्था को फिर से कायम किया था।  वे 2015 के सुशासन बाबू भी नहीं हैं, जिसकी दीप्ति कम हो गई थी, फिर भी जिसे काम करने वाला नेता माना जाता था। यह वह राज्य है जहाँ लालू राज ने विकास को पीछे धकेल दिया था, जिसका नारा था-सामाजिक न्याय बनाम विकास।

बीजेपी की रणनीतिक सफलता

बिहार के विधानसभा चुनावों के अलावा कुछ राज्यों के उप चुनावों के परिणामों के रुझान से एक स्पष्ट निष्कर्ष है कि भारतीय जनता पार्टी अपनी ताकत बढ़ाने में सफल हुई है। वह भी ऐसे मौके पर जब राज्य में 15 साल की एंटी-इनकंबैंसी है और कोरोना की महामारी ने घेर रखा है। इस सफलता ने उसकी रणनीति को धार प्रदान की है। बिहार में नीतीश के नेतृत्व को नहीं, बीजेपी को सफलता मिली है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अंतिम परिणाम नहीं आए थे, बल्कि बुधवार 11 नवंबर की सुबह तक भी चुनाव आयोग ज्यादातर क्षेत्रों में मतगणना जारी का ही संकेत दे रहा है। अलबत्ता इतना स्पष्ट हो चुका है कि एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिल गया है। यों मंगलवार की रात राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता ने परिणाम घोषित करने की प्रक्रिया को लेकर आपत्ति व्यक्त की थी। शायद वह अपनी हार की पेशबंदी थी। इस चुनाव ने बीजेपी की संगठनात्मक क्षमता का परिचय जरूर दिया है, साथ ही जेडीयू के साथ उसके कुछ अंतर्विरोधों को भी उभारा है। चिराग पासवान की पार्टी लोजपा ने अपना नुकसान तो किया ही नीतीश कुमार को भी भारी नुकसान पहुँचाया। उनकी इस रणनीति के रहस्य पर से परदा उठाने की जरूरत है। 

Tuesday, November 10, 2020

कट्टरपंथी कवच में पड़ती दरार

फ्रांस और ऑस्ट्रिया में हुई आतंकी घटनाओं के बाद मुस्लिम देशों की प्रतिक्रियाएं कुछ विसंगतियों की ओर इशारा कर रही हैं। अभी तक वैश्विक मुस्लिम समाज की आवाज सऊदी अरब और उनके सहयोगी देशों की तरफ से आती थी, पर इसबार तुर्की, ईरान और पाकिस्तान सबसे आगे हैं। जबकि सऊदी अरब ने संतुलित रुख अपनाया है। संयुक्त अरब अमीरात ने फ्रांस सरकार का समर्थन किया है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इसे 'इस्लामिक आतंकवादी' हमला कहा था और यह भी कहा कि इस्लाम संकट में है। उन्होंने इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनों पर कार्रवाई का भी ऐलान किया है।

भारतीय दृष्टिकोण से इन बातों के सकारात्मक पक्ष भी हैं। आतंकवाद के विरुद्ध किसी भी लड़ाई में भारत की भूमिका होगी, क्योंकि भारत इसका शिकार है। इन गतिविधियों में पाकिस्तानी शिरकत दुनिया के सामने खुल चुकी है। उसका हिंसक रूप सामने है। उसे अब सऊदी अरब जैसे देश और इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) का सहारा भी मिलने नहीं जा रहा है। इस्लामिक जगत में उसने अब तुर्की का दामन थामा है, जिसकी अर्थव्यवस्था पतनोन्मुख है। पाकिस्तान के भीतर विरोधी दलों ने इमरान सरकार के खिलाफ मुहिम चला रखी है। पहली बार सेना के खिलाफ राजनीतिक दल खुलकर सामने आए हैं।

तुर्क पहलकदमी

इस्लामी देशों की प्रतिक्रिया पर ध्यान दें, तो पाएंगे कि विरोध की कमान तुर्की ने अपने हाथ में ले ली है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान उनसे सुर मिला रहे हैं। मैक्रों के बयान की प्रत्यक्षतः मुस्लिम देशों ने भर्त्सना की है, पर तुर्की, ईरान और पाकिस्तान को छोड़ दें, तो शेष इस्लामिक मुल्कों की प्रतिक्रियाएं औपचारिक हैं। जनता का गुस्सा सड़कों पर उतरा जरूर है, पर सरकारी प्रतिक्रियाओं में अंतर है।

Monday, November 9, 2020

पाकिस्तान में विरोधी आंदोलन का अगला दौर

इस्लामाबाद में मौलाना फजलुर्रहमान

पाकिस्तान के विरोधी दलों के आंदोलन पीडीएम का अगला दौर अब 13 नवंबर से शुरू होगा, जब 11 दलों का यह गठबंधन इस्लामाबाद में बैठक करने के बाद एक माँग-पत्र जारी करेगा। रविवार 8 नवंबर को पीडीएम के अध्यक्ष मौलाना फजलुर्रहमान ने इस्लामाबाद में कहा कि सभी दल अपने-अपने प्रस्ताव उस बैठक में रखेंगे, जिसके बाद उसके अगले दिन सभी दलों के प्रमुखों की बैठक में उस माँग-पत्र को अंतिम रूप दिया जाएगा।

मौलाना फजलुर्रहमान ने इस्लामाबाद में इन दलों की बैठक के बाद इस आंदोलन की भावी दिशा के संकेत दिए। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य देश में वास्तविक सांविधानिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू करना है। इस बैठक में पाकिस्तान मुस्लिम लीग नून के अध्यक्ष नवाज शरीफ और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सह-अध्यक्ष आसिफ अली ज़रदारी क्रमशः लंदन और कराची से वीडियो लिंक के माध्यम से शामिल हुए थे। पीपीपी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो ज़रदारी गिलगित-बल्तिस्तान में 15 नवंबर को होने वाले चुनाव के सिलसिले में वहाँ व्यस्त हैं।