Tuesday, October 27, 2020

भारत-अमेरिकी रक्षा सहयोग का नया दौर


जैसी कि उम्मीद थी भारत और अमेरिका के बीच टू प्लस टू वार्ता के दौरान बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बेका) हो गया। यह समझौता सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें दोनों देश सामरिक दृष्टि से बेहद गोपनीय जानकारियाँ एक-दूसरे को उपलब्ध कराएंगे। हालांकि यह समझौता भारत और चीन के बीच खराब होते रिश्तों की पृष्ठभूमि में हुआ है, पर इसका तात्कालिक कारण यह नहीं है। इस समझौते की रूपरेखा वर्षों से तैयार हो रही थी और 2002 में इसकी शुरुआत हो गई थी। भारत का धीरे-धीरे अमेरिका के करीब जाना पाकिस्तान-चीन के आपसी रिश्तों की निकटता से भी जुड़ा है।  

नब्बे का दशक और इक्कीसवीं सदी का प्रारम्भ भारतीय विदेश-नीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है। नब्बे के दशक की शुरुआत कश्मीर में पाकिस्तान के आतंकी हमले से हुई थी, जिसकी पृष्ठभूमि 1989 में तैयार हो गई थी। इसके कुछ वर्ष बाद ही भारत और इसरायल के राजनयिक संबंध स्थापित हुए। इसी दौर में नई आर्थिक नीति के भारत सहारे तेज आर्थिक विकास की राह पर बढ़ा था।

अमेरिका में 'अर्ली वोटिंग' की आँधी


अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में अब सात दिन रह गए हैं और वहाँ डाक से वोट पड़ने वाले वोटों की आँधी आ गई है। नवीनतम सूचना के अनुसार करीब 6.2 करोड़ वोटर अपने अधिकार का इस्तेमाल कर चुके हैं। अर्ली वोटिंग का एक नया रिकॉर्ड अभी कायम हो चुका है। समय से पहले इतने वोट पहले कभी नहीं पड़े थे। डाक से इतनी भारी संख्या में वोटिंग का मतलब है कि अमेरिकी मतदाता कोरोना के कारण बाहर निकलने से घबरा रहा है।

अमेरिका में वोटरों की संख्या करीब 23 करोड़ है। सन 2016 के चुनाव में करीब 14 करोड़ ने वोट दिया था। पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि इसबार 15 से 16 करोड़ के बीच वोट पड़ेंगे। सामान्यतः अमेरिका में 65 से 70 फीसदी मतदान होता है। सवाल यह भी है कि क्या इसबार 80 फीसदी तक मतदान होगा?  ज्यादा मतदान का फायदा किसे होगा? अभी तक का चलन यह रहा है कि अर्ली वोट में डेमोक्रेट आगे रहते हैं और चुनाव के दिन के वोट में रिपब्लिकन। इसबार जो बिडेन ने लोगों से अपील की है कि वे अर्ली वोट करें। दूसरी तरफ ट्रंप ने डाक से आए वोटों को लेकर अंदेशा व्यक्त किया है।

Monday, October 26, 2020

पश्चिमी देशों में संक्रमण की एक और लहर

 

भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार 20 अक्तूबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट जारी की, जिसके मुताबिक यूके, यूएस, स्पेन, फ्रांस समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो चुकी है। यहां संक्रमितों की संख्या में तेजी देखी गई है। न्यू एंड इमर्जिंग रेस्पिरेटरी वायरस थ्रैट्स एडवाइजरी ग्रुप के अध्यक्ष एवं ब्रिटेन सरकार के सलाहकार पीटर हॉर्बी ने कहा है कि बढ़ते मामले को देखते हुए एक बार फिर राष्ट्रीय लॉकडाउन लगाया जा सकता है।

स्पेन ने कोविड-19 संक्रमण की नई लहर को नियंत्रित करने के लिए रात के वक़्त में कर्फ़्यू लगा दिया है और राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी है।स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज़ ने कहा कि रात 11 बजे से अगली सुबह छह बजे तक कर्फ़्यू लागू रहेगा यानी लोगों के घर से बाहर निकलने पर रोक रहेगी।  ये प्रतिबंध रविवार से लागू हो गए हैं। सांचेज़ ने यह भी कहा कि आपातकाल के तहत स्थानीय प्रशासन विभिन्न क्षेत्रों में आने-जाने पर भी प्रतिबंध लगा सकते हैं। उन्होंने कहा कि वे संसद से नए नियमों की समयावधि बढ़ाकर छह महीने करने के लिए कहेंगे, जो फिलहाल 15 दिन है।

रुक्मिणी कैलीमाची और पत्रकारिता की साख

हाल में न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार बेन स्मिथ ने अपने ही अखबार की स्टार रिपोर्टर रुक्मिणी कैलीमाची की रिपोर्टों की कड़ी आलोचना की, तो पत्रकारिता की साख से जुड़े कई सवाल एकसाथ सामने आए। अप्रेल 2018 में जब न्यूयॉर्क टाइम्स में रुक्मिणी कैलीमाची और एंडी मिल्स की कैलीफैट शीर्षक से दस-अंकों की प्रसिद्ध पॉडकास्ट सीरीज शुरू हुई थी, अमेरिका के कई पत्रकारों ने संदेह व्यक्त किया था कि यह कहानी फर्जी भी हो सकती है। संदेह व्यक्त करने वालों में न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार भी थे। इन संदेहों को व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता और ईर्ष्या-प्रेरित मान लिया गया। अब वही अखबार इस बात की जाँच कर रहा है कि कहाँ पर चूक हो गई।

इस विवाद के उभरने के बाद न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने मीडिया रिपोर्टर बेन स्मिथ को पड़ताल का जिम्मा दिया है। बेन स्मिथ मशहूर बाइलाइनों धुलाई करने वाले रिपोर्टर-स्तंभकार माने जाते हैं। विवाद की खबर आने के बाद इसी अखबार के इराक ब्यूरो की पूर्व प्रमुख मार्गरेट कोकर ने ट्वीट किया कि इस सीरीज का नाम अब बदलकर होक्स (झूठ) रख देना चाहिए। यह उनके मन की भड़ास थी। पड़ताल के दिनों में कैलीमाची के साथ मतभेद होने पर उन्होंने इस्तीफा दिया था। न्यूयॉर्क टाइम्स ने अब वरिष्ठ सम्पादकों को इस प्रकरण की जाँच का जिम्मा दिया है।

Sunday, October 25, 2020

कश्मीर में विरोधी दलों का मोर्चा


कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि जबतक अनुच्छेद 370 की वापसी नहीं होगी, तबतक मैं तिरंगा झंडा नहीं फहराऊँगी। उनका कहना है कि जब हमारे झंडे की वापसी होगी, तभी मैं तिरंगा हाथ में लूँगी। उनके इस बयान की आलोचना केवल भारतीय जनता पार्टी ने नहीं की है। साथ में कांग्रेस ने भी की है।

करीब 14 महीने की कैद के बाद हाल में रिहा हुई महबूबा ने शुक्रवार 23 अक्तूबर को कहा कि जबतक गत वर्ष 5 अगस्त को हुए सांविधानिक परिवर्तन वापस नहीं लिए जाएंगे, मैं चुनाव भी नहीं लड़ूँगी। महबूबा की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य का झंडा भी मेज पर रखा था। पिछले साल महबूबा ने कहा था कि यदि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया, तो कोई भी तिरंगा उठाने वाला नहीं रहेगा। अब उन्होंने कहा है कि हमारा उस झंडे से रिश्ता इस झंडे ने बनाया है। वह इस झंडे से अलग नहीं है।

महबूबा मुफ्ती का आशय कश्मीर की स्वायत्तता से है। भारतीय संघ में अलग-अलग इलाकों की सांस्कृतिक, सामाजिक और भौगोलिक विशेषता को बनाए रखने की व्यवस्थाएं हैं। जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता का सवाल काफी हद तक राजनीतिक है और उसका सीधा रिश्ता देश के विभाजन से है। यह सच है कि विभाजन के समय कश्मीर भौगोलिक रूप से पाकिस्तान से बेहतर तरीके से जुड़ा था। गुरदासपुर और फिरोजपुर भारत को न मिले होते तो कश्मीर से संपर्क भी कठिन था। पाकिस्तान का कहना है कि कश्मीर चूंकि मुस्लिम बहुल इलाका है, इसलिए उसे पाकिस्तान में होना चाहिए। इसका क्या मतलब निकाला जाए?