Wednesday, February 12, 2020

राष्ट्रीय राजनीति को बदलेंगे दिल्ली के परिणाम


दिल्ली के चुनाव परिणाम के अनेक संकेत हैं, पर सबसे बड़ा संदेश है शहरी गरीब वोटर की महत्वपूर्ण होती भूमिका. मोटे तौर पर इन परिणामों में बीजेपी, कांग्रेस और आप तीनों के लिए कुछ संदेश छिपे हैं. आप और बीजेपी दोनों अपनी सफलता का दावा कर सकती हैं. बेशक आप की सरकार लगातार तीसरी बार बनेगी और केजरीवाल मुख्यमंत्री बनेंगे, पर उसकी सीटें कम हुई हैं और वोट प्रतिशत भी घटा है. ऐसा तब हुआ है, जब कांग्रेस का काफी वोट आप को ट्रांसफर हुआ.
बीजेपी की सीटों और वोट प्रतिशत दोनों में वृद्धि हुई है, पर वह आप को अपदस्थ करने में विफल हुई है. सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का हुआ है, जो वोट प्रतिशत के आधार पर इतिहास के सबसे निचले स्तर पर आ गई है. बहरहाल इतना तय है कि ये परिणाम आने वाले समय में राष्ट्रीय राजनीति की धारा को बदलेंगे जरूर.

केजरीवाल की गुगली से भ्रमित भाजपा

केजरीवाल की चतुर रणनीति, लोकसभा चुनाव परिणामों से आत्म मुग्ध भारतीय जनता पार्टी की अंतिम क्षणों में हड़बड़ी और सदा की भांति कांग्रेस की आत्मघाती राजनीति, जिसे इस बात पर संतोष होगा कि बीजेपी भी तो हारी। इस चुनाव ने आम आदमी पार्टी को फिर से सत्तानशीन कर दिया है, साथ ही भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को आत्ममंथन का मौका दिया है।

इन परिणामों का एक बड़ा संदेश है कि अब आप शहरी गरीब वोटर पर भी ध्यान दें। बीजेपी की लोकसभा चुनाव में भारी विजय के पीछे पुलवामा वगैरह के अलावा ग्रामीण गरीबों के कल्याण की गई उसकी योजनाएं भी थीं। पर वे योजनाएं ग्राम केंद्रित थीं। अब शहरों पर भी ध्यान देना होगा। अगले एक दशक में ग्रामीण आबादी का भारी पलायन शहरों की ओर होगा या बड़े गाँव शहरों की शक्ल लेंगे। दिल्ली में मुफ्त बिजली-पानी का जादू सबने देख लिया है।

Sunday, February 9, 2020

क्या बताने वाले हैं दिल्ली के परिणाम?


दिल्ली विधानसभा चुनाव का शोर-शराबा खत्म हो चुका है, अब परिणाम का इंतजार है। पहली उत्सुकता परिणामों को लेकर ही है। किसकी जीत होगी और किसकी हार? एक्ज़िट पोल बता रहे हैं कि परिणाम कमोबेश 2015 जैसे होंगे, शायद बीजेपी कुछ सीटें बढ़ाने में कामयाब होगी। चुनाव की घोषणा के पहले से कहा जा रहा था कि आम आदमी पार्टी की बढ़त है, पर अंतिम क्षणों में खबरें आईं कि परिणाम आश्चर्यजनक होंगे। वे उतने एकतरफा नहीं होंगे, जितने समझे जा रहे हैं। यानी कि भारतीय जनता पार्टी भी मुकाबले में है। उधर कांग्रेस पार्टी सायास या अनायास इस मुकाबले से बाहर नजर आ रही है। वह मुकाबले में क्यों नहीं है?
तमाम सवालों के जवाब इन परिणामों में छिपे हैं, पर ज्यादा बड़ा सवाल है कि क्या नागरिकता कानून के कारण साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ है? क्या 2024 के लोकसभा चुनाव का यह प्रस्थान-बिंदु है? दिल्ली पूरी तरह राज्य भी नहीं है। राष्ट्रीय राजनीति में उसकी कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं है, फिर भी पिछले कुछ वर्षों से किसी न किसी वजह से दिल्ली की राजनीति राष्ट्रीय चर्चा में रहती है। इसका एक बड़ा कारण सन 2011 का अन्ना आंदोलन है, जिसने भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में खड़ा कर दिया था। उसकी परिणति आम आदमी पार्टी के रूप में एक राजनीतिक दल में हुई, जिसे 2013 के चुनाव में पहले आंशिक सफलता मिली और फिर 2015 में भारी। इन दोनों परिघटनाओं के बीच आम आदमी पार्टी और उसकी राजनीति के अंतर्विरोध सामने आते चले गए।

Sunday, February 2, 2020

निराशा दूर करने की कोशिश


अर्थव्यवस्था में सुस्ती आने और गाँवों से लेकर शहरों तक फैली निराशा के बीच वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बड़ी घोषणाएं करके बताने की कोशिश की है कि सरकार देश की आर्थिक समस्याओं का समाधान करने की पुरजोर कोशिश कर रही है. इस बजट में उन्होंने कोई सेक्टर नहीं छोड़ा. उन्होंने इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि में निवेश घोषणाएं की हैं, साथ ही आय के नए तरीके भी खोजने का प्रयास किया है. मध्य वर्ग और ग्रामीण उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ाने के नए तरीके खोजे गए हैं, ताकि वे खर्च करें और उपभोक्ता वस्तुओं का माँग बढ़े. करदाताओं और कम्पनियों को परेशान न किया जाए, इसके लिए कम्पनी कानून में बदलाव होगा, वहीं टैक्स-पेयर चार्टर बनाने की घोषणा भी की गई है.
सरकार ने धनार्जन को उचित मानते हुए कारोबारियों को संतुष्ट करने की कोशिश की है. खर्च बढ़ाने के बावजूद सरकार ने अगले वित्तवर्ष में राजस्व घाटे को जीडीपी के 3.8 फीसदी तक रखने का वायदा किया है. यह वायदा पूरा होगा या नहीं, यह अगले साल ही पता लगेगा. अलबत्ता सरकार पूरे हौसले के साथ मैदान में उतरी है. वित्तमंत्री ने जो बड़ी घोषणाएं की हैं, उनमें जीवन बीमा निगम और रेलवे के आंशिक निजीकरण से जुड़े फैसले हैं. आयकर और कम्पनी कर ढाँचे में व्यापक सुधार और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने की घोषणा की गई है. जीएसटी के और सरलीकरण का वायदा है. सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए पाँच करोड़ तक के कारोबारियों को लेखा परीक्षा से छूट देने की घोषणा की है.

पुरज़ोर इरादों का बजट


पहली नजर में निर्मला सीतारमण का बजट अर्थव्यवस्था की जड़ता और निराशा को दूर करने का प्रयास करता नजर आता है। इसमें जीडीपी की सुस्ती तोड़ने के सभी फॉर्मूलों को एकसाथ लागू करने की कोशिश की गई है। इसमें उपभोक्ता की क्रय शक्ति को बढ़ाने, बाजार में उपलब्ध की माँग बढ़ाने, कारोबारियों को निवेश बढ़ाने और आयात तथा निर्यात दोनों की माँग बढ़ाने का प्रयास है। सरकार चाहती है कि मेक इन इंडिया के साथ-साथ असेम्बल इन इंडिया की अवधारणा को अपना संबल बनाया जाए। विदेशी माल खरीदें और मूल्य-वर्धन कर उसका निर्यात करें। यह उम्मीदों भरा बजट है, फिर भी सवाल अपनी जगह है कि तब शेयर बाजार ने डुबकी क्यों लगाई? शायद शेयर बाजार की दिलचस्पी रियलिटी और विनिर्माण सेक्टर के सिलसिले में बड़ी घोषणाओं तक सीमित थी।
बजट का सकारात्मक प्रभाव होगा, तो सोमवार के बाद शेयर बाजार में भी बदलाव नजर आने लगेगा। बजट को दो नजरियों से देखना चाहिए। एक, सामान्य आर्थिक गतिविधियों और नीतियों के संदर्भ में और दूसरे अर्थव्यवस्था के दीर्घकालीन स्वास्थ्य को पुष्ट करने में इसके योगदान के नजरिए से। छह महीनों से देश में आर्थिक संवृद्धि को लेकर बहस है। पिछली दो तिमाहियों में जीडीपी के आंकड़ों में तेज गिरावट है। अब इस बजट में अगले साल जीडीपी की निवल (नॉमिनल) संवृद्धि 10 फीसदी होने का अनुमान है। आर्थिक समीक्षा में सकल संवृद्धि 6 से 6.5 फीसदी होने का अनुमान बताया गया है। वापसी हुई, तो मतलब होगा कि सरकार नैया को मँझधार से बाहर निकालने में कामयाब हुई है।