Thursday, January 9, 2020

निर्भया-प्रसंग ने हमारे सामाजिक दोषों को उघाड़ा

निर्भया दुष्कर्म मामले के दोषियों को फाँसी पर लटकाने का दिन और वक्त तय हो गया है. दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने चारों दोषियों के डैथ वारंट जारी कर दिए हैं. आगामी 22 जनवरी की सुबह 7 बजे उन्हें तिहाड़ जेल में फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा. गणतंत्र दिवस के ठीक पहले होने वाली इस परिघटना का संदेश क्या है? इसके बाद अब क्या? क्या यह हमारी न्याय-व्यवस्था की विजय है? या जनमत के दबाव में किया गया फैसला है? कहना मुश्किल है कि उपरोक्त तिथि को फाँसी होगी या नहीं. ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि इस समस्या के मूल में क्या बात है? यह सामान्य अपराध का मामला नहीं है, बल्कि उससे ज्यादा कुछ और है.


इस मामले में अभियुक्तों के पास अभी कुछ रास्ते बचे हैं. कानून विशेषज्ञ मानते हैं कि वे डैथ वारंट के खिलाफ अपील कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में उपचार याचिका दायर कर सकते हैं और राष्ट्रपति के सामने दया याचिका पेश कर सकते हैं. अभियुक्तों के वकील का कहना है कि मीडिया और राजनीति के दबाव के कारण सजा देने की प्रक्रिया में तेजी लाई जा रही है.

Tuesday, January 7, 2020

देश के भव्य रूपांतरण की महत्वाकांक्षी परियोजना



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में आधारभूत संरचना पर 100 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही थी. इसके बाद एक कार्यबल बनाया गया था, जिसने 102 लाख करोड़ की परियोजनाओं की पहचान की है. नए साल पर अब केंद्र सरकार ने अब इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की इस महत्वाकांक्षी परियोजना की घोषणा की है. यह परियोजना न केवल देश की शक्ल बदलेगी, बल्कि सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति भी प्रदान करेगी. मंगलवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) की घोषणा की, जिसके तहत अगले पांच साल में 102 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को पूरा किया जाएगा.
ये परियोजनाएं ऊर्जा, सड़क, रेलवे और नगरों से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की हैं. इनमें से 42 फीसदी परियोजनाओं पर पहले से ही काम चल रहा है, 19 फीसदी विकास की स्थिति में और 31 फीसदी अवधारणा तैयार करने के स्टेज पर हैं. अच्छी बात यह है कि एनआईपी टास्क फोर्स ने एक-एक परियोजना की संभाव्यता जाँच की है और राज्यों के साथ उनपर विचार किया है. इस प्रकार एनआईपी अब भविष्य की एक खिड़की के रूप में काम करेगी, जहाँ से हम अपने इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर नजर रख सकेंगे. समय-समय पर इसकी समीक्षा होती रहेगी, जिससे हम इसकी प्रगति या इसके सामने खड़ी दिक्कतों को देख पाएंगे. यानी कि यह केवल परियोजनाओं की सूची मात्र नहीं है, बल्कि उनकी प्रगति का सूचकांक भी है.

Monday, January 6, 2020

यह साल कांग्रेस को मौके देगा


पिछले साल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की भारी पराजय और उसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में मिली आंशिक सफलता दो तरह के संदेश दे रही है। पराजय के बावजूद उसके पास वापसी का विकल्प भी मौजूद है। सन 2014 के बाद से कई बार कहा जा रहा है कि कांग्रेस फीनिक्स पक्षी की भांति फिर से जीवित होकर बाहर निकलेगी। सवाल है कि कब और कैसे?
देश के पाँच राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री हैं और दो में वह गठबंधन में शामिल है। चिंता की बात यह है कि वह उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में उसकी उपस्थिति कमजोर है। इस साल बिहार, दिल्ली और तमिलनाडु में चुनाव होने वाले हैं। इन तीनों राज्यों में अपनी स्थिति को सुधारने का उसके पास मौका है। बिहार और तमिलनाडु में उसके प्रमुख गठबंधन सहयोगी काफी हद तक तय हैं। क्या दिल्ली में वह आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करेगी? आप भी क्या अब उसके साथ गठबंधन के लिए तैयार होगी?
पर ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि पार्टी के नेतृत्व का स्वरूप क्या बनेगा? सोनिया गांधी अस्थायी रूप से कार्यकारी अध्यक्ष का काम कर रहीं हैं, पर पार्टी को उनके आगे के बारे में सोचना है। क्या इस साल कोई स्थायी व्यवस्था सामने आएगी? पार्टी की अस्तित्व रक्षा के लिए यह सबसे बड़ा सवाल है। पिछले साल 26 मई को जब राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफे की घोषणा की थी, तो काफी समय तक पार्टी ने इस खबर को बाहर आने ही नहीं दिया। यह बात नेतृत्व को लेकर उसकी संवेदनशीलता और असुरक्षा को रेखांकित करती है।

Monday, December 30, 2019

एसपीजी सुरक्षा को लेकर निरर्थक राजनीतिक विवाद


हमारे देश में राजनेताओं की हैसियत का पता उनके आसपास के सुरक्षा घेरे से लगता है। एक समय था, जब देश में बड़े से बड़े राजनेता और जनता के बीच दूरियाँ नहीं होती थीं, पर अस्सी के दशक में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ने के बाद नेताओं तथा अन्य विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के बारे में सोचा जाने लगा और उसके लिए विशेष सुरक्षा बल गठित किए गए। यह सब सहज भाव से हुआ था, पर सुरक्षा के अनेक प्रकार के घेरों के कारण यह रुतबे और रसूख का प्रतीक बन गया। राजनेताओं की ऐसी जमात तैयार हो गई, जिन पर खतरा हो या न हो, उन्हें सुरक्षा चाहिए। ऐसे अनेक मौके आए, जब राजनेताओं ने माँग की कि हमें अमुक प्रकार की सुरक्षा दी जाए।
सन 2007 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र सरकार से कहा कि मुझे भी खतरा है, मुझे भी विशेष संरक्षा समूह यानी एसपीजी (स्पेशल प्रोटेक्‍शन ग्रुप) की सुरक्षा दी जाए। यह माँग उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से बाकायदा औपचारिक तरीके से की गई थी। इसे लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच विचार-विमर्श के कई दौर चले और अंततः जनवरी 2008 में केंद्र सरकार ने औपचारिक रूप से उत्तर प्रदेश को सूचित किया कि एसपीजी सुरक्षा केवल वर्तमान प्रधानमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्रियों तथा उनके निकटवर्ती पारिवारिक सदस्यों को ही दी जाती है। कानूनन यह सम्भव नहीं है।

Sunday, December 29, 2019

विदेशमंत्री जयशंकर ने अमेरिका में क्यों की प्रमिला जयपाल की अनदेखी?


नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जितनी लहरें देश में उठ रही हैं, तकरीबन उतनी ही विदेश में भी उठी हैं। भारतीय राष्ट्र-राज्य में मुसलमानों की स्थिति को लेकर कई तरह के सवाल हैं। इस सिलसिले में अनुच्छेद 370 और 35ए को निष्प्रभावी बनाए जाने से लेकर पूरे जम्मू-कश्मीर में संचार-संपर्क पर लगी रोक और अब नागरिकता कानून के विरोध में शिक्षा संस्थानों तथा कई शहरों में हुए विरोध प्रदर्शनों की गूँज विदेश में भी सुनाई पड़ी है। गत 18 से 21 दिसंबर के बीच क्वालालम्पुर में इस्लामिक देशों का शिखर सम्मेलन अपने अंतर्विरोधों का शिकार न हुआ होता, तो शायद भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सुर्खियाँ बन चुकी होतीं।
हुआ क्या था?
सवाल यह है कि भारत अपनी छवि को सुधारने के लिए राजनयिक स्तर पर कर क्या कर रहा है? यह सवाल भारत में नहीं अमेरिका में उठाया गया है। भारत और अमेरिका के बीच ‘टू प्लस टू’ श्रृंखला की बातचीत के सिलसिले में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेशमंत्री एस जयशंकर अमेरिका गए हुए थे। गत 18 अक्तूबर को दोनों देशों ने इसके तहत सामरिक और विदेश-नीति के मुद्दों पर चर्चा की। इसी दौरान जयशंकर ने कई तरह के प्रतिनिधियों से मुलाकातें कीं। इनमें एक मुलाकात संसद की फॉरेन अफेयर्स कमेटी के साथ भी होनी थी, जिसमें डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद प्रमिला जयपाल का नाम भी था।