Sunday, October 13, 2019

मामल्लापुरम से आगे का परिदृश्य


चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की दो दिन की भारत यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच पैदा हुई कड़वाहट एक सीमा तक कम हुई है। फिर भी इस बातचीत से यह निष्कर्ष नहीं निकाल लेना चाहिए कि हमारे रिश्ते बहुत ऊँचे धरातल पर पहुँच गए हैं। ऐसा नाटकीय बदलाव कभी संभव नहीं। दिसम्बर 1956 में भी चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई इसी मामल्लापुरम में आए थे। उन दिनों हिन्दी-चीनी भाई-भाई का था। उसके छह साल बाद ही 1962 की लड़ाई हो गई। दोनों के हित जहाँ टकराते हैं, वहाँ ठंडे दिमाग से विचार करने की जरूरत है।  विदेश नीति का उद्देश्य दीर्घकालीन राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना होता है।
भारतीय विदेश नीति के सामने इस समय तीन तरह की चुनौतियाँ हैं। एक, राष्ट्रीय सुरक्षा, दूसरे आर्थिक विकास की गति और तीसरे अमेरिका, चीन, रूस तथा यूरोपीय संघ के साथ रिश्तों में संतुलन बनाने की। मामल्लापुरम की शिखर वार्ता भले ही अनौपचारिक थी, पर उसका औपचारिक महत्व है। पिछले साल अप्रेल में चीन के वुहान शहर में हुए अनौपचारिक शिखर सम्मेलन से इस वार्ता की शुरुआत हुई है, जिसका उद्देश्य टकराव के बीच सहयोग की तलाश।
दोनों देशों के बीच सीमा इतनी बड़ी समस्या नहीं है, जितनी बड़ी चिंता चीनी नीति में पाकिस्तान की केन्द्रीयता से है। खुली बात है कि चीन न केवल पैसे से बल्कि सैनिक तकनीक और हथियारों तथा उपकरणों से भी पाकिस्तान को लैस कर रहा है। भारत आने के पहले शी चिनफिंग ने इमरान खान को बुलाकर उनसे बात की थी। सही या गलत यह एक प्रकार का प्रतीकात्मक संकेत था। सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और एनएसजी में चीनी अड़ंगा है। मसूद अज़हर को लेकर चीन ने कितनी आनाकानी की।

Friday, October 11, 2019

नए आत्मविश्वास के साथ तैयार भारतीय वायुसेना


इस साल फरवरी में हुए पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को माकूल जवाब देने के लिए कई तरह के विकल्पों पर विचार किया और फिर ऑपरेशन बंदर की योजना बनाई गई। इसकी जिम्मेदारी वायुसेना को मिली। भारतीय वायुसेना ने सन 1971 के बाद पहली बार अपनी सीमा पर करके पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश किया।
सन 1999 के करगिल अभियान के बाद यह अपनी तरह का सबसे बड़ा और जटिल अभियान था। तकनीकी योजना तथा आधुनिक अस्त्रों के इस्तेमाल के विचार से यह हाल के वर्षों में इसे भारत के ही नहीं दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में शामिल किया जाएगा। दिसंबर 2001 में संसद पर हुए हमले के बाद अगस्त 2002 में एक मौका ऐसा आया था, जब वायुसेना ने नियंत्रण रेखा के उस पार पाकिस्तानी ठिकाने पर हवाई हमला और किया था, पर उसका आधिकारिक विवरण सामने नहीं आया। अलबत्ता पिछले वायुसेनाध्यक्ष ने उसका उल्लेख जरूर किया।  
वायुसेना का संधिकाल
भारतीय वायुसेना के सामने बालाकोट अभियान एक बड़ी चुनौती थी, जिसका निर्वाह उसने सफलतापूर्वक किया। वह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से गुजर रही है। एक अर्थ में वह अपने संधिकाल में है। नए लड़ाकू विमान उसे समय से नहीं मिल पाए। पुराने विमान सेवा-निवृत्त होते चले गए। उसके पास लड़ाकू विमानों के 42 स्क्वॉड्रन होने चाहिए, पर उनकी संख्या घटते-घटते 32 के आसपास आ गई है।

Thursday, October 10, 2019

स्विस बैंकों की सूची क्या तोड़ेगी काले धन का जाल?


अंततः भारत सरकार को स्विस बैंकों में जमा धन के बारे में आधिकारिक जानकारियों का सिलसिला शुरू हो गया है. इसी हफ्ते की खबर है कि सरकार को स्विस बैंकों में भारतीय खाता धारकों के ब्यौरे की पहली लिस्ट मिल गई है.  यह सूचना भारत को स्विट्ज़रलैंड सरकार ने ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इनफॉर्मेशन (एईओआई) की नई व्यवस्था के तहत दी है. यह जानकारी केवल भारत के लिए विशेष नहीं है, बल्कि स्विट्जरलैंड के फेडरल टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन ने 75 देशों को दी है. भारत भी इनमें शामिल है.

इस सूची से भारत को कितने काले धन की जानकारी मिलेगी और हम कितना काला धन वसूल कर पाएंगे, ऐसे सवालों का जवाब फौरन नहीं मिलेगा. इन विवरणों की गहराई से जाँच करने की जरूरत होगी. अलबत्ता महत्वपूर्ण वह व्यवस्था है, जिसके तहत यह जानकारी मिली है. यह एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य दुनियाभर में टैक्स चोरी को रोकना तथा काले धन पर काबू पाना है. भारत ने काफी संकोच के बाद 3 जून 2015 को स्विट्ज़रलैंड के साथ इस समझौते पर दस्तखत किए थे और यह व्यवस्था इस साल सितंबर से लागू हुई है.

Monday, October 7, 2019

गांधी की बातें, जो हमने नहीं मानीं


कुछ लोग कहते हैं, मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने और तमाम शहरों की सड़कों को महात्मा गांधी मार्ग बनाने के बावजूद हमें लगता है कि उनकी जरूरत 1947 के पहले तक थी। अब होते भी तो क्या कर लेते? वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर हम उनकी धारणाओं पर विचार करते भी नहीं हैं, पर आज जब समाजवाद के बाद पूँजीवाद के अंतर्विरोध सामने आ रहे हैं, हमें गांधी याद आते हैं। गांधी अगर प्रासंगिक हैं, तो दुनिया के लिए हैं, केवल भारत के लिए नहीं
गांधी उतने अव्यावहारिक नहीं थे, जितना समझा जाता है। हमने उनकी ज्यादातर भूमिका स्वतंत्रता संग्राम में ही देखी। और उन्हें प्रतिरोध के आगे देख नहीं पाते हैं। स्वतंत्र होने के बाद देश के सामने जब प्रशासनिक-राजनीतिक समस्याएं आईं तबतक वे चले गए। फिर भी गांधी की प्रशासनिक समझ का जायजा उनके लेखन और व्यावहारिक गतिविधियों से लिया जा सकता है। देखने की जरूरत है कि कौन से ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें हमने गांधी की सरासर उपेक्षा की है। कम से कम तीन विषय ऐसे हैं, जिनमें गांधी की सरासर उपेक्षा हुई है। 1.स्त्रियाँ, 2.भाषा और 3.शिक्षा।

Sunday, October 6, 2019

चुनाव के पहले लड़खड़ाती कांग्रेस


इस साल हुए लोकसभा चुनाव के बाद के राजनीतिक परिदृश्य का पता इस महीने हो रहे महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनावों से लगेगा। दोनों राज्यों में सभी सीटों पर प्रत्याशियों के नाम तय हो चुके हैं, नामांकन हो चुके हैं और अब नाम वापसी के लिए एक दिन बचा है। दोनों ही राज्यों में एक तरफ भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते हौसलों की और दूसरी तरफ कांग्रेस के अस्तित्व-रक्षा से जुड़े सवालों की परीक्षा है। एक प्रकार से अगले पाँच वर्षों की राजनीति का यह प्रस्थान-बिंदु है।
कांग्रेस के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कहीं न कहीं अपने पैर जमाने होंगे। ये दोनों राज्य कुछ साल पहले तक कांग्रेस के गढ़ हुआ करते थे। अब दोनों राज्यों में उसे अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इन चुनावों में उसकी संगठनात्मक सामर्थ्य के अलावा वैचारिक आधार की परीक्षा भी है। पार्टी कौन से नए नारों को लेकर आने वाली है? क्या वह लोकसभा चुनाव में अपनाई गई और उससे पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में तैयार की गई रणनीति को दोहराएगी?