Saturday, September 7, 2019

सुरक्षा परिषद क्यों नहीं करा पाई कश्मीर समस्या का समाधान?


अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बनने की रेस में शामिल रह चुके वरिष्ठ सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने पिछले हफ्ते कहा कि कश्मीर के हालात को लेकर उन्हें चिंता है। अमेरिकी मुसलमानों की संस्था इस्लामिक सोसायटी ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका के 56वें अधिवेशन में उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिकी सरकार को इस मसले के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव का समर्थन में खुलकर समर्थन करना चाहिए। हालांकि बर्न सैंडर्स की अमेरिकी राजनीति में कोई खास हैसियत नहीं है और यह भी लगता है कि वे मुसलमानों के बीच अपना वोट बैंक तैयार करने के लिए ऐसा बोल रहे हैं, पर उनकी दो बातें ऐसी हैं, जो अमेरिकी राजनीति की मुख्यधारा को अपील करती हैं।
इनमें से एक है कश्मीर में अमेरिकी मध्यस्थता या हस्तक्षेप का सुझाव और दूसरी कश्मीर समस्या का समाधान सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के तहत करने की। पाकिस्तानी नेता भी बार-बार कहते हैं कि इस समस्या का समाधान सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के तहत करना चाहिए। यानी कि कश्मीर में जनमत संग्रह कराना चाहिए। आज सत्तर साल बाद हम यह बात क्यों सुन रहे हैं? सन 1949 में ही समस्या का समाधान क्यों नहीं हो गया? भारत इस मामले को सुरक्षा परिषद में संरा चार्टर के अनुच्छेद 35 के तहत ले गया था। जो प्रस्ताव पास हुए थे, उनसे भारत की सहमति थी। वे बाध्यकारी भी नहीं थे। अलबत्ता दो बातों पर आज भी विचार करने की जरूरत है कि तब समाधान क्यों नहीं हुआ और इस मामले में सुरक्षा परिषद की भूमिका क्या रही है?
प्रस्ताव के बाद प्रस्ताव
सन 1948 से 1971 तक सुरक्षा परिषद ने 18 प्रस्ताव भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर पास किए हैं। इनमें प्रस्ताव संख्या 303 और 307 सन 1971 के युद्ध के संदर्भ में पास किए गए थे। उससे पहले पाँच प्रस्ताव 209, 210, 211, 214 और 215 सन 1965 के युद्ध के संदर्भ में थे। प्रस्ताव 123 और 126 सन 1956-57 के हैं, जो इस इलाके में शांति बनाए रखने के प्रयास से जुड़े थे। वस्तुतः प्रस्ताव 38, 39 और 47 ही सबसे महत्वपूर्ण हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है प्रस्ताव 47 जिसमें जनमत संग्रह की व्यवस्था बताई गई थी।

Friday, September 6, 2019

डिजिटल तकनीक तभी बढ़ेगी, जब सायबर अपराध रुकेंगे


सायबर खतरे-1
इसी हफ्ते की बात है दिल्ली पुलिस के एक जॉइंट कमिश्नर क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी के शिकार हो गए।  उनके क्रेडिट कार्ड से किसी ने करीब 28 हजार रुपये निकाल लिए। इस धोखाधड़ी की जाँच दिल्ली पुलिस की सायबर क्राइम यूनिट कर रही है। शायद अपराधी पकड़े जाएं। पिछले कुछ समय से सायबर अपराधियों की पकड़-धकड़ की खबरें आ भी रही हैं, पर सायबर अपराध भी हो रहे हैं।  
जैसे-जैसे कंप्यूटर और इंटरनेट का जीवन में इस्तेमाल बढ़ रहा है सायबर अपराध, सायबर जोखिम, सायबर हमला, सायबर लूट और सायबर शत्रु जैसे शब्द भी हमारे जीवन में प्रवेश करने लगे हैं। इसमें विस्मय की बात नहीं, क्योंकि आपराधिक मनोवृत्तियाँ नहीं बदलीं, उनके औजार बदले हैं। एक जमाने में घरों में सोना दुगना करने वाले आते थे। लोग जानते हैं कि सोना दुगना नहीं होता, पर कुछ लोग उनके झाँसे में आ जाते थे।
सावधानी हटी, दुर्घटना घटी
सायबर जोखिम मामूली अपराधों से अलग हैं, पर मूल कामना लूटने की ही है। यह सब कई सतह पर हो रहा है और सबके कारण अलग-अलग हैं। मसलन उपरोक्त पुलिस अधिकारी के साथ हुई धोखाधड़ी उनकी असावधानी के कारण हुई। घटना के एक दिन पहले उनके मोबाइल पर एक लिंक वाला मैसेज आया था, जिसमें कहा गया था कि कार्ड का क्रेडिट स्कोर बढ़ाने के लिए भेजे गए लिंक पर अपनी जानकारी अपडेट करें। वे ठगों के झाँसे में आ गए और लिंक पर जानकारी अपडेट करा दी। दूसरे ही दिन उनके रुपये निकल गए।

Tuesday, September 3, 2019

अमेज़न की आग: इंसानी नासमझी की दास्तान


अमेज़न के जंगलों में लगी आग ने संपूर्ण मानवजाति के नाम खतरे का संदेश भेजा है। यह आग केवल ब्राजील और उसके आसपास के देशों के लिए ही खतरे का संदेश लेकर नहीं आई है। संपूर्ण विश्व के लिए यह भारी चिंता की बात है।  ये जंगल दुनिया के पर्यावरण की रक्षा का काम करते हैं। इन जंगलों में लाखों किस्म की जैव और वनस्पति प्रजातियाँ हैं। अरबों-खरबों पेड़ यहां खड़े हैं। ये पेड़ दुनिया की कार्बन डाई ऑक्साइड को जज्ब करके ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे को कम करते हैं। दुनिया की 20 फीसदी ऑक्सीजन इन जंगलों से तैयार होती है। इसे पृथ्वी के फेफड़े की संज्ञा दी जाती है। समूचे दक्षिण अमेरिका की 50 फीसदी वर्ष इन जंगलों के सहारे है। अफसोस इस बात का है कि यह आग इंसान ने खुद लगाई है। उससे ज्यादा अफसोस इस बात का है कि हमारे मीडिया का ध्यान अब भी इस तरफ नहीं गया है। 
जंगलों की इस आग की तरफ दुनिया का ध्यान तब गया, जब ब्राजील के राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (आईएनईपी) ने जानकारी दी कि देश में जनवरी से अगस्त के बीच जंगलों में 75,336 आग की घटनाएं हुई हैं। अब ये घटनाएं 80,000 से ज्यादा हो चुकी हैं। आईएनईपी ने सन 2013 से ही उपग्रहों की मदद से जंगलों की आग का अध्ययन करना शुरू किया है। कई तरह के अनुमान हैं। पिछले एक दशक में ऐसी आग नहीं लगी से लेकर ऐसी आग कभी नहीं लगी तक।
यह आग इतनी जबर्दस्त है कि ब्राजील के शहरों में इन दिनों सूर्यास्त समय से कई घंटे पहले होने लगा है। देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई है। आग बुझाने के लिए सेना बुलाई गई है और वायुसेना के विमान भी आकाश से पानी गिरा रहे हैं। फ्रांस में हो रहे जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन में इस संकट पर खासतौर से विचार किया गया और इसके समाधान के लिए तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने की पेशकश की गई है।
पूरी दुनिया पर खतरा
आग सिर्फ ब्राजील के जंगलों में ही नहीं लगी है, बल्कि वेनेजुएला, बोलीविया, पेरू और पैराग्वे के जंगलों में भी लगी है। वेनेज़ुएला दूसरे नंबर पर है जहां आग की 2600 घटनाएं सामने आई हैं, जबकि 1700 घटनाओं के साथ बोलीविया तीसरे नंबर पर है। ब्राजील में आग की घटनाओं का सबसे अधिक प्रभाव उत्तरी इलाक़ों में पड़ा है। घटनाओं में रोराइमा में 141%, एक्रे में 138%, रोंडोनिया में 115% और अमेज़ोनास में 81% वृद्धि हुई है, जबकि दक्षिण में मोटो ग्रोसो डूो सूल में आग की घटनाएं 114% बढ़ी हैं।

Sunday, September 1, 2019

क्या हासिल होगा बैंकों के महाविलय से?


शुक्रवार की दोपहर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने राष्ट्रीयकृत बैंकों के विलय की घोषणा के लिए जो समय चुना था, वह सरकार की समझदारी को भी बताता है. इस प्रेस कांफ्रेंस के समाप्त होते ही खबरिया चैनलों के स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज थी कि इस वित्तवर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी की दर घटकर 5 फीसदी हो गई है. बैंकों के विलय की घोषणा ने जो सकारात्मक माहौल पैदा किया था, उसके कारण जीडीपी की खबर से लगने वाला धक्का, थोड़ा धीरे से लगा. बेशक मंदी की खबरें चिंताजनक हैं, पर सरकार यह संदेश देना चाहती है कि हम सावधान हैं और अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल कर रखेंगे. कई बार संकट के बीच से ही समाधान भी निकलते हैं.
वित्तमंत्री ने बैंकों के महाविलय की जो घोषणा की है, उससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या 18 से घटकर 12 रह जाएगी. वित्त मंत्री निर्मला पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का अधिग्रहण करेगा. इसी तरह वहीं केनरा बैंक में सिंडीकेट बैंक का, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक तथा इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक का विलय होगा. अब इन 10 बैंकों के विलय के बाद चार बैंक बन जाएंगे. बैंक ऑफ बड़ौदा और बैंक ऑफ इंडिया के रूप में दो बड़े बैंक पहले से हैं. इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और पंजाब एंड सिंध बैंक पहले की तरह काम करते रहेंगे क्योंकि ये मजबूत क्षेत्रीय बैंक हैं. बैंक-राष्ट्रीयकरण के पचास वर्ष बाद उन्हें लेकर यह सबसे बड़ा फैसला है.  

राहुल का कश्मीर कनफ्यूज़न


कांग्रेस और बीजेपी के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक है। ज्यादातर सरकारी फैसलों के दूसरे पहलू पर रोशनी डालने की जिम्मेदारी कांग्रेस की है, क्योंकि वह सबसे बड़ा विरोधी दल है। पार्टी की जिम्मेदारी है कि वह अपने वृहत्तर दृष्टिकोण या नैरेटिव को राष्ट्रीय हित से जोड़े। उसे यह विवेचन करना होगा कि पिछले छह साल में उससे क्या गलतियाँ हुईं, जिनके कारण वह पिछड़ गई। केवल इतना कहने से काम नहीं चलेगा कि जनता की भावनाओं को भड़काकर बीजेपी उन्मादी माहौल तैयार कर रही है।
कांग्रेसी नैरेटिव के अंतर्विरोध कश्मीर में साफ नजर आते हैं। इस महीने का घटनाक्रम गवाही दे रहा है। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का आदेश पास होने के 23 दिन बाद राहुल गांधी ने कश्मीर के सवाल पर महत्वपूर्ण ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा, सरकार के साथ हमारे कई मुद्दों को लेकर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन साफ है कि कश्मीर हमारा आंतरिक मामला है। पाकिस्तान वहां हिंसा फैलाने के लिए आतंकियों का समर्थन कर रहा है। इसमें पाकिस्तान समेत किसी भी देश के दखल की जरूरत नहीं है।
राहुल गांधी का यह बयान स्वतः नहीं है, बल्कि पेशबंदी में है। यही इसका दोष है। इसके पीछे संयुक्त राष्ट्र को लिखे गए पाकिस्तानी ख़त का मजमून है, जिसमें पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि कश्मीर में हालात सामान्य होने के भारत के दावे झूठे हैं। इन दावों के समर्थन में राहुल गांधी के एक बयान का उल्लेख किया गया है, जिसमें राहुल ने माना कि 'कश्मीर में लोग मर रहे हैं' और वहां हालात सामान्य नहीं हैं। राहुल गांधी को अपने बयानों को फिर से पढ़ना चाहिए। क्या वे देश की जनता की मनोभावना का प्रतिनिधित्व करते हैं?