Sunday, June 10, 2018

नागपुर में किसे, क्या मिला?

लालकृष्ण आडवाणी इसे अपने नज़रिए से देखते हैं, पर उनकी इस बात से सहमति व्यक्त की जा सकती है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मंच से पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का भाषण ऐतिहासिक था। एक अरसे से देश में राष्ट्रवाद, देशभक्ति और विविधता में एकता की बातें हो रहीं हैं, पर किसी एक मंच से दो अंतर्विरोधी-दृष्टिकोणों का इतने सहज-भाव से आमना-सामना नहीं हुआ होगा। इन भाषणों में नई बातें नहीं थीं, और न ऐसी कोई जटिल बात थी, जो लोगों को समझ में नहीं आती हो। प्रणब मुखर्जी और सरसंघचालक मोहन भागवत के वक्तव्यों को गहराई से पढ़ने पर उनका भेद भी समझा जा सकता है, पर इस भेद की कटुता नजर नहीं आती। सवाल यह है कि इस चर्चा से हम क्या निष्कर्ष निकालें? क्या संघ की तरफ से अपने विचार को प्रसारित करने की यह कोशिश है? या प्रणब मुखर्जी के मन में कोई राजनीतिक भूमिका निभाने की इच्छा है? 

Saturday, June 9, 2018

दादा किसे दिखा गए आईना?

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मंच पर जाकर क्या बोला, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि वे उस मंच पर गए। यह बात अब इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो चुकी है। इस सिलसिले में जो भ्रम पहले था, वह अब भी कायम है। प्रणब दा इस कार्यक्रम में क्यों गए? उनकी मनोकामना क्या है? क्या इसके पीछे कोई राजनीति है या सदाशयता? राष्ट्रवाद पर उनके विचारों का प्रसार करने के लिए क्या यह उपयोगी मंच था? था भी तो कुल मिलाकर क्या निकला?
प्रणब दा ने भारतीय समाज की बहुलता, विविधता, सहिष्णुता और अनेकता में एकता जैसी बातें कहीं। मोहन भागवत ने कहा, यह हमारे हिन्दू समाज की विशेषता है। हम तो अनेकता के कायल हैं। उनके भाषण में गांधी हत्या का उल्लेख होता, गोडसे का नाम होता और गोरक्षकों के उत्पात का जिक्र होता, तो इस वक्तव्य का स्वरूप राजनीतिक हो जाता। पर प्रणब मुखर्जी ने सायास ऐसा नहीं होने दिया।

Thursday, June 7, 2018

क्या ‘आप’ से हाथ मिलाएगी कांग्रेस?


सतीश आचार्य का कार्टून साभार
भाजपा-विरोधी दलों की राष्ट्रीय-एकता की खबरों के बीच एक रोचक सम्भावना बनी है कि क्या राष्ट्रीय राजधानी में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का भी गठबंधन होगा? हालांकि दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन ने ऐसी किसी सम्भावना से इंकार किया है, पर राजनीति में ऐसे इंकारों का स्थायी मतलब कुछ नहीं होता.

पिछले महीने कर्नाटक में जब एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में अरविंद केजरीवाल और सोनिया-राहुल एक मंच पर खड़े थे, तभी यह सवाल पर्यवेक्षकों के मन में कौंधा था. इसके पहले सोनिया गांधी विरोधी दलों की एकता को लेकर जो बैठकें बुलाती थीं, उनमें अरविन्द केजरीवाल नहीं होते थे. कर्नाटक विधान-सौध के बाहर लगी कुर्सियों की अगली कतार में सबसे किनारे की तरफ वे भी बैठे थे.

Wednesday, June 6, 2018

संघ से क्या कहेंगे प्रणब मुखर्जी?


पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नागपुर में होने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम के संदर्भ में यह कहकर पहेली को जन्म दे दिया है, कि जो कुछ भी मुझे कहना है, मैं नागपुर में कहूंगा. अब कयास इस बात के हैं कि प्रणब दादा क्या कहेंगे? वे जो भी कहेंगे दो कारणों से महत्वपूर्ण होगा. एक, संघ के बारे में उनकी धारणा स्पष्ट होगी. दूसरे, राष्ट्रपति का पद छोड़ने के बाद वे दलगत राजनीति से बाहर हैं. क्या उनके जैसे वरिष्ठ राजनेता के लिए देश में ऐसा कोई स्पेस है, जहाँ से वे अपनी स्वतंत्र राय दे सकें?  

Sunday, June 3, 2018

बंगाल में राजनीतिक हिंसा

हाल में जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव का प्रचार चल रहा था, पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव हो रहे थे। मीडिया पर कर्नाटक छाया था, बंगाल पर ध्यान नहीं था। अब खबरें आ रहीं हैं कि बंगाल में लोकतंत्र के नाम हिंसा का तांडव चल रहा था। पिछले हफ्ते पुरुलिया जिले में बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या का मामला सामने आने पर इसकी वीभत्सता का एहसास हुआ है। 20 साल के त्रिलोचन महतो की लाश घर के पास ही नायलन की रस्सी ने लटकती मिली। महतो ने जो टी-शर्ट पहनी थी, उसपर एक पोस्टर चिपका मिला जिसपर लिखा था, बीजेपी के लिए काम करने वालों का यही अंजाम होगा। जाहिर है कि इस हत्या की प्रतिक्रिया भी होगी। वह बंगाल, जो भारत के आधुनिकीकरण का ध्वजवाहक था। जहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर और शरत चन्द्र जैसे साहित्यकारों ने शब्द-साधना की। कला, संगीत, साहित्य, रंगमंच, विज्ञान, सिनेमा जीवन के तमाम विषयों पर देश का ऐसा कोई श्रेष्ठतम कर्म नहीं है, जो बंगाल में नहीं हुआ हो। क्या आपने ध्यान दिया कि उस बंगाल में क्या हो रहा है?