Tuesday, August 30, 2016

जब 2010 में कश्मीर गया था सर्वदलीय शिष्टमंडल

कश्मीर में 52 दिन से लगा कर्फ़्यू हट जाने के बाद ज्यादा बड़ा सवाल सामने है कि अब क्या किया जाए? हिंसा का रुक जाना समस्या का समाधान नहीं है। वह किसी भी दिन फिर शुरू हो सकती है। इसका स्थायी समाधान क्या है? कई महीनों से सुनाई पड़ रहा है कि यह राजनीतिक समस्या है और कश्मीर के लोगों से बात करनी चाहिए। बहरहाल शांति बहाली और सभी पक्षों से वार्ता करने के लिए सभी दलों के प्रतिनिधि 4 सितंबर को कश्मीर जाएंगे। इस दल का नेतृत्व गृहमंत्री राजनाथ सिंह करेंगे। इसके सामने भी सवाल होगा कि किससे करें और क्या बात करें? इसके पहले सन 20 सितम्बर 2010 को इसी प्रकार का एक संसदीय दल कश्मीर गया था। उसने वहाँ किस प्रकार की बातें कीं, यह जानना रोचक होगा। 4 सितम्बर की यात्रा के पहले एक नजर सन 2010 के कश्मीर के हालात पर डालना भी उपयोगी होगा।

इस प्रतिनिधि मंडल की यात्रा की खबर पढ़ें हिन्दू की वैबसाइट में यहाँ। 20 सितम्बर 2010 की यह खबर टाइम्स ऑफ इंडिया की वैबसाइट में छपी है, जिसके मुख्य अंश इस प्रकार हैंः-

All-party delegation in Kashmir interacts with 'open mind'
SRINAGAR: Union Home Minister P Chidambaram on Monday said the all-party delegation has come to Jammu and Kashmir with an 'open mind' and hopes to 'carve out a path for taking the region out of its present cycle of violence'.
"The team has come with an open mind and the main purpose was to interact with people, listen to them patiently," said Chidambaram.
"We are here to listen to your views, we will give you a patient hearing, what you think we need to do, in order to bring to the people of Jammu and Kashmir, the hope and the belief that their honour and dignity and their future are secure as part of India," he added.
PDP President Mehbooba Mufti did not meet the delegation but sent senior leader Nizamuddin Bhatt. who told reporters later 'although we were given just 15 minutes to put our point' , we have told the delegation that "all suggestions from the mainstream or separatist quarters should be considered."

Sunday, August 28, 2016

कश्मीरी अराजकता पर काबू जरूरी

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 22 सांसदों को अपने देश का दूत बनाकर दुनिया के देशों में भेजने का फैसला किया है जो कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का पक्ष रखेंगे। हालांकि चीन को छोड़कर दुनिया में ऐसे देश कम बचे हैं जिन्हें पाकिस्तान पर विश्वास हो, पर मानवाधिकार के सवालों पर दुनिया के अनेक देश ऐसे हैं, जो इस प्रचार से प्रभावित हो सकते हैं। पिछले एक साल से कश्मीर में कुछ न कुछ हो रहा है। हमारी सरकार ने बहुत सी बातों की अनदेखी है। कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी सरकार को इस बीच जो भी मौका मिला उसका फायदा उठाने के बजाए दोनों पार्टियाँ आपसी विवादों में उलझी रहीं। 

जरूरत इस बात की है कश्मीर की अराजकता को जल्द से जल्द काबू में किया जाए। इसके लिए कश्मीरी आंदोलन से जुड़े नेताओं से संवाद की जरूरत भी होगी। यह संवाद अनौपचारिक रूप से ही होगा। सन 2002 में ही स्पष्ट हो गया था कि हुर्रियत के सभी पक्ष एक जैसा नहीं सोचते। जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी ने इस पक्ष की उपेक्षा करके गलती की है, जबकि इन दोनों की पहल से ही अब तक का सबसे गम्भीर संवाद कश्मीर में हुआ था।  

Saturday, August 27, 2016

संवाद




गांधी!
सावरकर!

नेहरू जी!
गुरु जी!


मोदी!
केजरीवाल!


इडली!
ऑमलेट!


रोटी!
बोटी!



पेप्सी!
लस्सी!


 पप्पू!
गप्पू!


कश्मीर!
बलूचिस्तान!


सैमसंग!
आईफोन!


एलोपैथी!
होम्योपैथी!


हॉलीवुड!
बॉलीवुड!


विकास!
सत्यानाश!


रेड!
भगवा!


शांति!
क्रांति!

  
चुप!
धत!


ट्रॉल!
ठुल्ला!


पाजी!
नालायक!


शट अप!
खामोश!


तू!
तड़ाक!


फूँ!
फटाक!


ब्लॉक!
डबल ब्लॉक! !

Tuesday, August 23, 2016

चीन के ओलिम्पिक प्रदर्शन में गिरावट

सन 2016 के ओलिम्पिक खेलों में चीन का प्रदर्शन पहले के मुकाबले खराब रहा। ओलिम्पिक इतिहास में मेडल पाने वाले देशों में उसका स्थान सातवाँ हो गया है। सन 2008 के बीजिंग ओलिम्पिक में चीन को सबसे ज्यादा 100 मेडल मिले थे। उस बार मेडल तालिका में उसका स्थान पहला था। लंदन ओलिम्पिक में उसका स्थान दूसरा हो गया और अब तीसरा। चीन की ओर से इस सिलसिले में कुछ स्पष्टीकरण दिए गए हैं। इनमें से एक यह है कि इस बार हमारे खिलाड़ी कम अनुभवी थे। अलबत्ता बैडमिंटन में उसके अनुभवी खिलाड़ियों का प्रदर्शन पिछली बार से खराब रहा। एक स्पष्टीकरण यह भी है कि प्रतियोगिताओं के नियमों में बदलाव हुआ है। सच यह है कि दुनिया के दूसरे देशों ने भी अपने स्तर में खासा सुधार किया है। ब्रिटेन की टीम लंदन ओलिम्पिक में तीसरे स्थान पर थी, इसबार वह दूसरे स्थान पर आ गई। केवल नीचे दिए गए आँकड़ों से रोचक निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।  

चीन के अंग्रेजी अखबार ग्लोबल टाइम्स की टिप्पणी भी पढ़ें

Monday, August 22, 2016

रियो ने कहा, बेटी को खिलाओ

रियो में भारत की स्त्री शक्ति ने खुद को साबित करके दिखाया. पीवी सिंधु, साक्षी मलिक, दीपा कर्मकार, विनेश फोगट और ललिता बाबर ने जो किया उसे देश याद रखेगा. सवाल जीत या हार का नहीं, उस जीवट का है, जो उन्होंने दिखाया. इसके पहले भी करणम मल्लेश्वरी, कुंजरानी देवी, मैरी कॉम, पीटी उषा, अंजु बॉबी जॉर्ज, सायना नेहवाल, सानिया मिर्जा, फोगट बहनें, टिंटू लूका, द्युति चंद, दीपिका कुमारी, लक्ष्मी रानी मांझी और बोम्बायला देवी इस जीवट को साबित करती रहीं हैं.  
इसबार ओलिम्पिक खेलों को लेकर हमारी अपेक्षाएं ज्यादा थीं. हमने इतिहास का सबसे बड़ा दस्ता भेजा था. उम्मीदें इतनी थीं कि न्यूज चैनलों ने पहले दिन से ही अपने पैकेजों पर गोल्ड रश शीर्षक लगा दिए थे. पहले-दूसरे दिन कुछ नहीं मिला तो तीसरे रोज लेखिका शोभा डे ने ट्वीट मारा जिसका हिन्दी में मतलब है, "ओलिम्पिक में भारत की टीम का लक्ष्य है-रियो जाओ, सेल्फी लो. खाली हाथ वापस आ जाओ. पैसा और मौके दोनों की बरबादी." इस ट्वीट ने एक बहस को जन्म दिया है, जो जारी है.