Wednesday, September 30, 2015

विदेश में रहने वाले भारतवंशी मोदी के दीवाने क्यों?

नरेंद्र मोदी अच्छे सेल्समैन की तरह विदेशी जमीन पर भारत का जादू जगाने में कामयाब रहे हैं. पिछले साल सितंबर में अमेरिका की यात्रा से उन्होंने जो जादू बिखेरना शुरू किया था, वह अभी तक हवा में है. उनकी राष्ट्रीय नीतियों को लेकर तमाम सवाल हैं, बावजूद इसके भारत के बाहर वे जहाँ भी गए गहरी छाप छोड़कर आए. यह बात पड़ोस के देश नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और श्रीलंका से शुरू होकर जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस, मध्य एशिया, संयुक्त अरब अमीरात से लेकर आयरलैंड तक साबित हुई. 

मोदी की ज्यादातर यात्राओं के दो हिस्से होते हैं. विदेशी सरकारों से मुलाकात और वहाँ के भारतवंशियों से बातें. भारतवंशियों के बीच जाकर वे सपनों के शीशमहल बनाते हैं साथ ही देशी राजनीति पर चुटकियाँ लेते हैं, जिससे उनके विरोधी तिलमिलाता जाते हैं. उनका यह इंद्रजाल तकरीबन हरेक यात्रा के दौरान देखने को मिला है. उनकी हर कोशिश को लफ्फाजी मानने वाले भी अभी हार मानने को तैयार नहीं हैंं. पर दोनों बातें सच नहीं हो सकतीं. सच इनके बीच में है, पर कितना बीच में?

Tuesday, September 29, 2015

भारतीय बेड़े में अमेरिकी हैलिकॉप्टर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के ठीक पहले भारत ने अमेरिका से बोइंग के 22 अपाचे और 15 शिनूक (चिनूक) हैलिकॉप्टर खरीदने को मंजूरी दी. भारत इनके लिए तकरीबन तीन अरब डॉलर की कीमत चुकाएगा. पिछले कुछ साल में अमेरिका ने भारत के साथ 10 बिलियन से ज्यादा के रक्षा सौदें किए हैं. मंत्रिमंडल की सुरक्षा समिति की बैठक के बाद यह फैसला किया गया. अपाचे हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति का अनुबंध इनकी निर्माता कंपनी बोइंग के साथ होगा, जबकि इनके शस्त्रास्त्र, रेडार और रेडियो-इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का अमेरिकी सरकार के साथ| अनुबंध में इनकी संख्या में बढ़ोतरी का भी प्रावधान है. 11 अपाचे तथा 4 चिनूक हेलिकॉप्टर और ख़रीदे जा सकते हैं. इनके साथ भारत हेलफ़ायर मिसाइल भी खरीदेगा.

Sunday, September 27, 2015

वैश्विक मंच पर भारत की बदलती भूमिका

ग्रुप ऑफ 4 की शिखर बैठक में भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान के राष्ट्राध्यक्षों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की संरचना में सुधार की माँग पर जोर देकर दूसरे विश्व युद्ध के बाद के वैश्विक यथार्थ की ओर सबका ध्यान खींचा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा संयुक्त राष्ट्र महासभा के एजेंडा-2030 सत्र के कारण और दुनिया के बदलते शक्ति संतुलन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य का औपचारिक महत्व ही होता है, पर उससे राष्ट्रीय चिंतन की दिशा का पता जरूर लगता है। साथ ही वैश्विक मंच पर भारत की भावी भूमिका का संकेत भी उससे मिलता है। इस साल महासभा का यह सम्मेलन दुनिया के सतत विकास का एजेंडा-2030 जारी कर रहा है। इसके लिए विशेष सत्र बुलाया गया है। सन 2000 में सन 2015 तक मानव विकास के आठ लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र ने घोषित किए थे, जो पूरे नहीं हो पाए। दुनिया के सामने चुनौती है कि अगले पन्द्रह साल में उन खामियों को दूर किया जाए, जिनके कारण लक्ष्य पूरे नहीं हुए। गरीबी, सार्वजनिक स्वास्थ्य, आवास और मौसम में बदलाव जैसी चुनौतियाँ दुनिया के सामने हैं। वहीं वैश्विक आतंकवाद सिर उठा रहा है। इन विसंगतियों के बीच हमें आने वाले समय में भारत की भूमिका को परिभाषित करना होगा।
नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा उठाते हुए स्पष्ट किया कि भविष्य में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहेगा। शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र में सतत विकास पर आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि सुरक्षा परिषद समेत संयुक्त राष्ट्र के तमाम अंगों में बदलाव की जरूरत है। पर अभी हमें कुछ और घटनाक्रमों पर नजर रखनी है। रविवार को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाषण का। इसके बाद संयुक्त महासभा की सामान्य चर्चा 30 सितम्बर को है, जिसमें दोनों देशों के नेताओं के भाषण महत्वपूर्ण होंगे।

आरक्षण पर बहस का पिटारा फिर खुला

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण के बारे में जो राय व्यक्त की है उसका उद्देश्य यदि इस अवधारणा के राजनीतिक दुरुपयोग पर प्रहार करना है तो इससे ज्यादा गलत समय कोई और नहीं हो सकता था। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने फौरन ही अपने आप को इस बयान से अलग कर लिया है, पर राजनीतिक स्तर पर जो नुकसान होना था, वह हो चुका। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी स्पष्ट किया है कि इस बयान का लक्ष्य मौजूदा आरक्षण नीति पर टिप्पणी करना नहीं है। पर उन्होंने जिस बात की ओर इशारा किया था उसका निहितार्थ फौरन सामने है। राजद सुप्रीमो लालू यादव ने फौरन ट्वीट किया, ‘तुम आरक्षण खत्म करने की कहते हो,हम इसे आबादी के अनुपात में बढ़ाएंगे। माई का दूध पिया है तो खत्म करके दिखाओ। किसकी कितनी ताकत है पता लग जाएगा।’
लालू यादव ने आबादी के अनुपात में आरक्षण का संकेत देकर इस बहस की भावी दिशा को भी निर्धारित कर दिया है। एक दशक पहले चली ओबीसी आरक्षण पर राष्ट्रीय बहस में हमारे पास कोई जनगणना के जातीय आँकड़े नहीं थे। मंडल आयोग ने 1931 की जनगणना के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि 52 प्रतिशत लोग ओबीसी वर्ग में आते हैं। इसके बाद नेशनल सैंपल सर्वे से पता लगा कि करीब 41 प्रतिशत लोग ओबीसी वर्ग में हैं। ओबीसी आरक्षण को जातीय आधार पर स्वीकार कर लेने के बाद यह स्वाभाविक माँग होगी कि यदि अजा-जजा आरक्षण जनसंख्या के आधार पर है तो फिर यही नियम ओबीसी पर लागू होना चाहिए। बिहार चुनाव में जो होगा सो होगा। मोहन भागवत चाहें या न चाहें, जातीय जनगणना के आँकड़े सामने आने के बाद बहस यों भी आगे बढ़ेगी। 

Friday, September 25, 2015

सायबर कानून में हड़बड़ी के खतरे

सरकार ने चौबीस घंटे के भीतर राष्ट्रीय एनक्रिप्शन (कूटलेखन) नीति का मसौदा वापस लेकर नया रिकॉर्ड कायम किया है। प्रस्तावित नीति की सोशल मीडिया पर हुई आलोचना को देखते हुए सरकार ने फौरन अपने कदम खींच लिए। प्रस्तावित दस्तावेज की भाषा को लेकर सरकार सांसत में आ गई थी। अंततः जिम्मेदारी दस्तावेज तैयार करने वालों पर डाल दी गई। सरकार के लिए सांसत की बात इसलिए थी कि यह मामला ठीक ऐसे मौके पर उठा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की सिलिकॉन वैली जाने वाले हैं। वे फेसबुक के मुख्यालय से सीधे लोगों के सवालों के जवाब देंगे। बहरहाल दस्तावेज को फौरन वापस लेने के सरकारी फैसले की तारीफ भी होनी चाहिए। इस बात को भी मान लिया जाना चाहिए कि एनक्रिप्शन नीति पर गहराई से विचार करने की जरूरत है, क्योंकि वैश्विक सुरक्षा को देखते हुए इसे यों ही छोड़ा नहीं जा सकता।