Thursday, August 8, 2013

कैसा 'माकूल जवाब' दे सकती है सरकार?

 गुरुवार, 8 अगस्त, 2013 को 07:09 IST तक के समाचार
जम्मू-कश्मीर में पाँच भारतीय सैनिकों की हत्या के मामले में रक्षामंत्री एके एंटनी का मंगलवार को राज्यसभा में दिया गया वक्तव्य विवाद का विषय बना, तो इसमें विस्मय की बात नहीं है.
सीमा पर घट रही घटनाओं पर भाजपा का रोष या उत्तेजना एक सहज प्रतिक्रिया है. वह इसका भरपूर राजनीतिक लाभ भी लेना चाहेगी.
पर क्या क्लिक करेंएंटनी के पास कोई ऐसी जानकारी है, जिसे उन्होंने बताया नहीं या बताना नहीं चाहते? हमलावरों को पाकिस्तानी फ़ौजी मानने में उन्हें किस बात का संशय है? क्या उन्हें पाकिस्तान सरकार के इस बयान पर पक्का भरोसा है कि यह हमला उसकी सेना ने नहीं किया?
इस विश्वास की भी कोई वजह होगी. पर यह मान लेने पर कि हमला आतंकवादियों ने किया है, हमें उसके तार्किक निहितार्थ समझने होंगे. इसका मतलब क्या है?
यानी आतंकवादी गिरोह पहले से ज्यादा ताकतवर और गोलबंद हैं और वे हमारी सेना पर आसानी से हमला बोल सकते हैं.
साथ ही पाकिस्तानी सेना या तो उन्हें रोक नहीं सकती या उसकी इनके साथ मिलीभगत है. या यहक्लिक करेंसीमा पर पिछले कुछ समय से चल रही छिटपुट वारदात की परिणति है, जिन पर हमने ध्यान नहीं दिया

Wednesday, August 7, 2013

संसद का बदलता परिदृश्य

 बुधवार, 7 अगस्त, 2013 को 13:35 IST तक के समाचार
भारतीय संसद
मॉनसून सत्र के दूसरे दिन भी विपक्ष के सरकार पर हमले जारी हैं
संसद के मॉनसून सत्र में तेलंगाना राज्य के गठन, उत्तराखंड की आपदा, रिटेल में विदेशी पूंजी निवेश, दुर्गाशक्ति नागपाल या महंगाई के सवाल पर हंगामा होता, उसके पहले ही जम्मू-कश्मीर सीमा पर पाँच भारतीय सैनिकों की हत्या ने सनसनी फैला दी है.
आज सम्भव है प्रधानमंत्री को इस मसले पर संसद में सफाई पेश करनी पड़े. सरकार पर ‘माकूल जवाब’ देने का दबाव है. पर माकूल जवाब के माने क्या हैं?
अगले कुछ दिन संसद के भीतर और बाहर यह मसला हावी रहे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल

राष्ट्रीय सुरक्षा भारत में एक बड़ा राजनीतिक मसला है. आज सरकार को विपक्ष के वार झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए.
रक्षा मंत्री एके एंटनी का वक्तव्य सरकार के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है, क्योंकि उन्होंने सैनिकों की हत्या के लिए पाकिस्तानी सेना को सीधे दोषी नहीं ठहराया.
भाजपा कार्यकर्ताओं ने मंगलवार की शाम से ही एंटनी के घर के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिए.
मंगलवार की सुबह लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने पर अध्यक्ष मीरा कुमार ने जैसे ही प्रश्नकाल शुरू करने की घोषणा की, भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने नियंत्रण रेखा पर भारतीय सैनिकों की हत्या का मामला उठाया.
दोनों सदनों में दिनभर यह मसला किसी न किसी रूप में छाया रहा.
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Tuesday, August 6, 2013

हिन्दी अखबार कैसा हो और क्यों हो?

नवभारत टाइम्स के लखनऊ संस्करण में मेरी दिलचस्पी इस कारण भी है, क्योंकि यह देश के सबसे बड़े प्रकाशन समूह का हिन्दी अखबार है। एक समय तक दिल्ली में टाइम्स ऑफ इंडिया से भी ज्यादा प्रसारित होता था। नब्बे के दशक में इसकी कीमत घटाकर एक रुपया कर देने के बाद दिल्ली में अंग्रेजी अखबार पढ़ने वाले पाठक बड़ी संख्या में इसकी ओर आकृष्ट हुए। उसके बाद इसके मनोरंजन परिशिष्टों ने युवा पीढ़ी का ध्यान खींचा। मुझे याद है सन 1998 में मेरी एकबार अमर उजाला के तत्कालीन प्रमुख अतुल माहेश्वरी से काफी लम्बी मुलाकात हुई। वे समीर जैन की व्यावसायिक समझ की बेहद प्रशंसा कर रहे थे।

Monday, August 5, 2013

NBT@ लखनऊ


सन 1983 में लखनऊ से नवभारत टाइम्स का औपचारिक रूप से पहला अंक अक्टूबर में निकल गया था, टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ। पर वास्तव में पहला अंक नवम्बर में निकला था। उस वक्त तक नवभारत भारत टाइम्स को लेकर टाइम्स ग्रुप में कोई बड़ा उत्साह नहीं था। हिन्दी की व्यावसायिक ताकत तब तक स्थापित नहीं थी। हालांकि सम्भावनाएं उस समय भी नजर आती थीं। बहरहाल इसी ब्रैंड नाम का अखबार फिर से लखनऊ से निकला है तो जिज्ञासा बढ़ी है। अखबार का अपने समाज से रिश्ता और उसका कारोबार दोनों मेरी दिलचस्पी के विषय हैं। मैं चाहता हूँ कि लखनऊ के मेरे मित्र नवभारत टाइम्स और हिन्दी पत्रकारिता पर मेरी जानकारी बढ़ाएं। आभारी रहूँगा।

पिछले साल अक्टूबर में टाइम्स हाउस ने कोलकाता से एई समय नाम से बांग्ला अखबार शुरू किया था। हिन्दी और बांग्ला के वैचारिक परिवेश को परखने में टाइम्स हाउस की व्यावसायिक समझ एकदम ठीक ही होगी। मेरा अनुमान है कि लखनऊ में टाइम्स हाउस ने पत्रकारिता को लेकर उन जुम्लों का इस्तेमाल नहीं किया होगा, जो कोलकाता में किया गया। हिन्दी इलाके के लोगों के मन में अपनी भाषा, संस्कृति, साहित्य और पत्रकारिता के प्रति चेतना दूसरे प्रकार की है। वे भविष्य-मुखी, करियर-मुखी और चमकदार जीवन-पद्धति के कायल हैं। कोलकाता में एई समय से पहले आनन्द बाजार पत्रिका ने एबेला नाम से एक टेब्लॉयड शुरू किया था। इसकी वजह वही थी जो लखनऊ में है। कोलकाता में भी टेब्लॉयड संस्कृति जन्म ले रही है। टाइम्स ऑफ इंडिया बांग्ला टेब्लॉयड मनोवृत्ति का पूरी तरह दोहन करे उससे पहले आनन्द बाजार ने चटख अखबार निकाल दिया।

Sunday, August 4, 2013

वेंटीलेटर पर लोकतंत्र

हालांकि चार अलग-अलग प्रसंग हैं, पर सूत्र एक है। लगता है हम लोकतंत्र से भाग रहे हैं। या फिर हम अभी लोकतंत्र के लायक नहीं हैं। या लोकतंत्र हमारे लायक नहीं है। या लोकतंत्र को हम जितना पाक-साफ समझते हैं, वह उतना नहीं हो सकता। उसकी व्यावहारिक दिक्कतें हैं। वह जिस समाज में है, वह खुद पाक-साफ नहीं है। दो साल पहले इन्हीं दिनों जब अन्ना हजारे का आंदोलन चल रहा था तब बार-बार यह बात कही जाती थी कि कानून बनाने से भ्रष्टाचार नहीं खत्म नहीं होगा। इसके लिए बड़े स्तर पर सामाजिक बदलाव की जरूरत है। सामाजिक बदलाव बाद में होगा, कानून ही नहीं बना। किसने रोका उसे? और कैसे होगा बदलाव?