Monday, May 6, 2013

इस स्टूडियो-उन्माद को भी बन्द कीजिए


अच्द्दा हुआ कि लद्दाख में चीनी फौजों की वापसी के बाद तनाव का एक दौर खत्म हुआ, पर यह स्थायी समाधान नहीं है। भारत-चीन सीमा उतनी अच्छी तरह परिभाषित नहीं है, जितना हम मान लेते हैं। दूसरे हम पूछ सकते हैं कि हमारी सेना अपनी ही सीमा के अंदर पीछे क्यों हटी? इस सवाल का जवाब बेहतर हो कि राजनयिक स्तर पर हासिल किया जाए। पिछले हफ्ते कई जगह कहा जा रहा था कि भारत सॉफ्ट स्टेट है। सरकार ने शर्मनाक चुप्पी साधी है। बुज़दिल, कायर, दब्बू, नपुंसक। खत्म करो पाकिस्तान के साथ राजनयिक सम्बन्ध। तोड़ लो चीन से रिश्ते। मिट्टी में मिला दी हमारी इज़्ज़त। इस साल जनवरी में जब दो भारतीय सैनिकों की जम्मू-कश्मीर सीमा पर गर्दन काटे जाने की खबरें आईं तब लगभग ऐसी प्रतिक्रियाएं थीं। और फिर जब लद्दाख में चीनी घुसपैठ और सरबजीत सिंह की हत्या की खबरें मिलीं तो इन प्रतिक्रयाओं की तल्खी और बढ़ गई। टीवी चैनलों के शो में बैठे विशेषज्ञों की सलाह मानें तो हमें युद्ध के नगाड़े बजा देने चाहिए। सरबजीत का मामला परेशान करने वाला है, पर मीडिया ने उसे जिस किस्म का विस्तार दिया वह अवास्तविक है। हम भावनाओं में बह गए। सच यह है कि जब सुरक्षा और विदेश नीति पर बात होती है तो हम उसमें शामिल नहीं होते। उसे बोझिल और उबाऊ मानते हैं। और जब कुछ हो जाता है तो बचकाने तरीके से बरताव करने लगते हैं। हमने 1965, 1971 और 1999 की लड़ाइयों में पाकिस्तान के साथ राजनयिक रिश्ते नहीं तोड़े तो आज तोड़ने वाली बात क्या हो गईहम बात-बात पर इस्रायली और अमेरिकी कार्रवाइयों का जिक्र करते हैं। क्या हमारे पास वह ताकत है? और हो भी तो क्या फौरन हमले शुरू कर दें? किस पर हमले चाहते हैं आप?  बेशक हम राष्ट्र हितों की बलि चढ़ते नहीं देख सकते, पर हमें तथ्यों की छान-बीन करने और बात को सही परिप्रेक्ष्य में समझना भी चाहिए। 

Sunday, May 5, 2013

राष्ट्रगान के रिकॉर्ड बनाने से ज्यादा मिलकर काम करें

राष्ट्रगान के विश्व रिकॉर्ड बनाने से काम चलता हो तो भारत को सिर्फ चीन ही पछाड़ पाएगा, पर हमारी प्रतियोगिता पाकिस्तान से चल रही है। 6 मई को हमारे यहाँ नया विश्व रिकॉर्ड बनने जा रहा है। पर क्या इस विश्व रिकॉर्ड के बाद हमारा समाज ज्यादा समझदार, विवेकशील और कल्याणकारी हो जाएगा। हमें सबके लिए अच्छी शिक्षा, सबके लिए अच्छा स्वास्थ्य और सुशासन चाहिए। पर हमारे यहाँ एक के बाद एक खुलते घोटाले कुछ और कहानी कहते हैं। ठीक है राष्ट्रगीत गाइए, पर गीतों की भावना को जीवन में भी उतारिए। वर्ना यह सब पाखंड भर साबित होगा। इस विषय में मैने इसके पहले एक पोस्ट लिखी थी, उसे नीचे पढ़ें


25 जनवरी 2012 औरंगाबाद

20 अक्टूबर 2012 लाहौर

केवल राष्ट्र्गान गाने से काम चलता हो तो पाकिस्तान ने गिनीज़ बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के अंतर्गत विश्व रिकॉर्ड कायम कर लिया है। शनिवार 20 अक्टूबर को लाहौर के नेशनल हॉकी स्टेडियम में 44,200 लोगों ने एक साथ खड़े होकर देश का राष्ट्रगान गाया। पाकिस्तान के लिए एक उपलब्धि यह भी थी कि उसने इस मामले में भारत का रिकॉर्ड तोड़ा था। 25 जनवरी 2012 को महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के डिवीज़नल स्पोर्ट्स ग्राउंड में 15,243 लोगों ने एक साथ खड़े होकर वंदे मातरम गाया था। वह कार्यक्रम लोकमत मीडिया कम्पनी ने आयोजित किया था। उसके पहले 14 अगस्त 2011 को पाकिस्तान के कराची शहर में 5,857 लोगों ने एक साथ अपना राष्ट्रगान गाया था। इस रिकॉर्ड को कायम करने के लिए फेसबुक और ट्विटर की मदद ली गई थी।

शनिवार को लाहौर में कायम किए गए विश्व रिकॉर्ड में पाकिस्तान के पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री शाहबाज़ शरीफ भी शामिल थे। राष्ट्रगान और समूहगान हमें एक जुट होने की प्रेरणा देते हैं। हाल में मलाला युसुफज़ई प्रकरण में पाकिस्तान की सिविल सोसायटी ने एकता का परिचय दिया था। इस एकता की दिशा बदहाली और बुराइयों से लड़ने की होनी चाहिए। हम होंगे कामयाब जैसे समूहगान चमत्कारी हो सकते हैं बशर्ते हमारी सामूहिक पहलकदमी में दम हो। सम्भव है कल भारत में कोई इससे भी बड़ी भीड़ से राष्ट्रगान गवाने में कामयाब हो जाए, पर असल बात भावना की है।
राष्ट्रगान के विश्व रिकॉर्ड

छाती पीटने से नहीं होगी राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा


सरबजीत के मामले में भारत सरकार, मीडिया और जनता के जबर्दस्त अंतर्विरोध देखने को मिले हैं। सरबजीत अगस्त 1990 में गिरफ्तार हुआ था और अक्टूबर 1991 में उसे मौत की सजा दी गई थी। इसके बाद यह मामला अदालती प्रक्रियाओं में उलझा रहा और 2006 में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी सजा को बहाल रखा। इस दौरान भारतीय मीडिया ने उसकी सुध नहीं ली। सरबजीत की बहन और गाँव वालों की पहल पर कुछ स्थानीय अखबारों में उसकी खबरें छपती थीं। इसी पहल के सहारे भारतीय संसद में यह मामला पहुँचा और सितम्बर 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के सालाना सम्मेलन के मौके पर पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्ऱफ के सामने इस मसले को रखा।

Friday, May 3, 2013

कांग्रेस की राह के 11 रोड़े


प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून

मई 2009 में जब यूपीए-2 की सरकार आई तब लगा था कि देश में स्थिरता का एक दौर आने वाला है.

सरकार के पास सुरक्षित बहुमत है. सहयोगी दल अपेक्षाकृत सौम्य हैं.

इस घटना के कुछ महीने पहले ही मंदी का पहला दौर शुरू हुआ था. हमारी आर्थिक विकास दर 9 प्रतिशत से घटकर 6 प्रतिशत के करीब आ गई थी. पर उस संकट से हम पार हो गए. अन्न के वैश्विक संकट का प्रभाव हमारे देश पर नहीं पड़ा.

नवम्बर 2009 में भारत ने इंटरनेशनल मॉनीटरी फंड से 200 टन सोना खरीदा. इस खरीद का यों तो कोई खास अर्थ नहीं. पर प्रतीक रूप में महत्व है. इस घटना के 18 साल पहले 1991 में जब हमारा विदेशी मुद्रा रिजर्व घटकर दो अरब डॉलर से भी कम हो गया था, हमें अपने पास रखे रिजर्व सोने में से 67 टन सोना बेचना पड़ा था.

इसके अगले साल यानी 2010 तक देश के उत्साह में कमी नहीं थी. एक अप्रैल 2010 को हमने हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार दिया. आर्थिक इंडिकेटर्स भी ठीक थे. पर जून आते-आते हालात बदल गए. और तब से पिछले तीन साल में कांग्रेस की कहानी में बुनियादी पेच पैदा हुए हैं. स्क्रिप्ट भटक गई है.

सबसे बड़ी बात यह कि लालकृष्ण आडवाणी के पराभव के बाद रसातल की ओर जा रही भारतीय जनता पार्टी को नकारात्मक प्रचार का फ़ायदा मिला और कांग्रेस को नुकसान.

इस दौरान कांग्रेस को केवल एक बड़ी राजनीतिक सफलता मिली है. वह है राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद पर उसके प्रत्याशियों की जीत. इस बात को जानने की कोशिश करें कि वे कौन से बिन्दु हैं जो कांग्रेस को परेशान करते हैं.
पूरा लेख बीबीसी हिन्दी वैबसाइट में पढ़ें

अमेरिका जाने का शौक है तो उसे झेलना भी सीखिए


अमेरिका के हवाई अड्डों से अक्सर भारतीय नेताओं या विशिष्ट व्यक्तियों के अपमान की खबरें आती हैं। अपमान से यहाँ आशय उस सामान्य सुरक्षा जाँच और पूछताछ से है जो 9/11 के बाद से शुरू हुई है। आमतौर पर यह शिकायत विशिष्ट व्यक्तियों या वीआईपी की ओर से आती है। सामान्य व्यक्ति एक तो इसके लिए तैयार रहते हैं, दूसरे उन्हें उस प्रकार का अनुभव नहीं होता जिसका अंदेशा होता है। मसलन एक पाकिस्तानी नागरिक ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि मुझसे तकरीबन 45 मिनट तक पूछताछ की गई, पर किसी वक्त अभद्र शब्दों का इस्तेमाल नहीं हुआ। मेरी पत्नी को मैम और मुझे सर या मिस्टर सिद्दीकी कहकर ही सम्बोधित किया गया। उन्होंने सवाल भी मामूली पूछे, जिनमें मेरा कार्यक्रम क्या है, मैं करता क्या हूँ, अमेरिका क्यों आया हूँ वगैरह थे। दरअसल हमारे देश के नागरिक अपने देश की सुरक्षा एजेंसियों के व्यवहार से इतने घबराए होते हैं कि उन्हें अमेरिकी एजेंसियों के बर्ताव को लेकर अंदेशा बना रहता है।