Monday, November 19, 2012

दिल्ली धमाका! तैयारी विंटर सेल की!


यह हफ्ता काफी नाज़ुक साबित होने वाला है। कांग्रेस पार्टी ने देर से, लेकिन अपेक्षाकृत व्यवस्थित तरीके से महीने की शुरूआत की है, पर 22 तारीख से शुरू हो रहे संसद के सत्र में साफ हो जाएगा कि अगले लोकसभा चुनाव 2014 में होंगे या 2013 में। मनमोहन सिंह ने डिनर पर मुलायम सिंह से और लंच पर मायावती से मुलाकात कर ली है। किसी को भी समझ में आता है कि बात लोकसभा के फ्लोर मैनेजमेंट को लेकर हुई होगी। मतदान की नौबत आई तो क्या करेंगे? संगठन के स्तर पर भी बात हुई होगी। पर प्रधानमंत्री की मुलाकात का मतलब समझ में आता है। उन्होंने सरकारी नीतियों को स्पष्ट किया होगा या गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश की होगी। सपा और बसपा पर दारोमदार है। सहयोगी दलों के अलावा बीजेपी के साथ भी कांग्रेस का बैकरूम संवाद चल रहा है। आर्थिक उदारीकरण के सवाल पर दोनों पार्टियों में वैचारिक सहमति है।

Sunday, November 18, 2012

बाल ठाकरे के बारे में कुछ बातें


नीचे कुछ पैराग्राफ अभय कुमार दुबे की किताब बाल ठाकरे से लिए हैं। यह किताब 1999 में प्रकाशित हुई थी। सात किताबों की सीरीज़ का यह हिस्सा थी। सीरीज़ का नाम था आज के नेता/आलोचनात्मक अध्ययनमाला। यह वह दौर था, जब भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय नेताओं का उठान शुरू हुआ था। इसकी प्रस्तावना में कहा गया था, 'ये लोग आज के नेता तो हां लेकिन आज़ादी के आंदोलन से निकले नेताओं की तरह सभी भारतीयों के नेता नहीं हैं। वे कुछ तबकों, जाति समूहों या किसी एक प्रवृत्ति के प्रतिनिधि नज़र आते हैं।...इनमें से अधिकांश नेताओं का आगमन साठ के दशक के आसपास हुआ था और इसी किस्म के जो नेता सत्तर और अस्सी के दशक में उभरे उनके लिए अनुकूल इतिहास बनाने की शुरूआत भी साठ के ज़माने ने ही कर दी थी।...निश्चय ही ये नेता ज़मीन के जिस टुकड़े से जुड़े हुए हैं उसमें उनकी जड़ें बहुत गहरी हैं।...इनका सौन्दर्यबोध, राजनीति से इतर विषयों की जानकारी और दिलचस्पी नेहरू युग के नेताओं के मुकाबले हीन प्रतीत होती है।...यही नेता हमारी राजनीति के वर्तमान हैं और ये भविष्य का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व नहीं करते, तो भी भविष्य इन्हीं के बीच से निकलने वाला है।' इस सीरीज़ में जिन नेताओं को कवर किया गया था वे थे मुलायम सिंह, ज्योति बसु, लालू यादव,  कांसीराम, कल्याण सिंह, बाल ठाकरे और मेधा पाटकर। यह सीरीज़ आगे बढ़ी या नहीं, मेरे लिए कहना मुश्किल है। बहरहाल बाल ठाकरे का संदर्भ शुरू हुआ है, तो उनसे जुड़ी किताब के कुछ अंश पढ़ें--

Saturday, November 17, 2012

मुलायम क्या जल्दी चुनाव चाहते हैं?

उत्तर प्रदेश की 80 में से 55 लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित करके क्या मुलायम सिंह ने चुनाव का बिगुल बजा दिया है? हालांकि यह बात उनकी राजनीति से असंगत नहीं है और इस साल विधानसभा चुनाव में विजय पाने के बाद उन्होंने कहा था कि जल्द ही लोकसभा चुनाव के लिए तैयार रहें। ऐसा माना जाता है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, अन्ना द्रमुक, अकाली दल जैसे क्षेत्रीय दलों को फायदा मिलेगा। पर जल्द चुनाव के  माने क्या हैं? क्या लोकसभा के इसी सत्र में यह फैसला होगा? या सरकार बजट पेश करने के बाद चुनाव की घोषणा करेगी? करेगी भी तो क्यों करेगी? क्या जल्दी चुनाव कराने से कांग्रेस का कुछ भला होने वाला है?

Friday, November 16, 2012

चीन एक वैकल्पिक मॉडल भी है

चीनी व्यवस्था को लेकर हम कितनी भी आलोचना करें, दो बातों की अनदेखी नहीं कर सकते। एक 1949 से, जब से नव-चीन का उदय हुआ है, उसकी नीतियों में निरंतरता है। यह भी सही है कि लम्बी छलांग और सांस्कृतिक क्रांति के कारण साठ के दशक में चीन ने भयानक संकटों का सामना किया। इस दौरान देश ने कुछ जबर्दस्त दुर्भिक्षों का सामना भी किया। सत्तर के दशक में पार्टी के भीतर वैचारिक मतभेद भी उभरे। देश के वैचारिक दृष्टिकोण में बुनियादी बदलाव आया। माओ के समवर्ती नेताओं में चाऊ एन लाई अपेक्षाकृत व्यावहारिक थे, पर माओ के साथ उनका स्वास्थ्य भी खराब होता गया। माओ के निधन के कुछ महीने पहले उनका निधन भी हो गया। उनके पहले ल्यू शाओ ची ने पार्टी की सैद्धांतिक दिशा में बदलाव का प्रयास किया, पर उन्हें कैपिटलिस्ट रोडर कह कर अलग-थलग कर दिया गया और अंततः उनकी 1969 में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। उसके बाद 1971 में लिन बियाओ माओ के खिलाफ बगावत की कोशिश में मारे गए। 1976 में माओ जेदुंग के निधन के बाद आए हुआ ग्वो फंग और देंग श्याओ फंग पर ल्यू शाओ ची की छाप थी। कम से कम देंग देश को उसी रास्ते पर ले गए, जिस पर ल्यू शाओ ची जाना चाहते थे। चीन का यह रास्ता है आधुनिकीकरण और समृद्धि का रास्ता। कुछ लोग मानते हैं कि चीन पूँजीवादी देश हो गया है।  वे पूँजीवाद का मतलब निजी पूँजी, निजी कारखाने और बाजार व्यवस्था को ही मानते हैं। पूँजी सरकारी हो या निजी इससे क्या फर्क पड़ता है? यह बात सोवियत संघ में दिखाई पड़ी जहाँ व्यवस्था का ढक्कन खुलते ही अनेक पूँजीपति घराने सामने आ गए। इनमें से ज्यादातर या तो पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं या कम्युनिस्ट शासन से अनुग्रहीत लोग। चीनी निरंतरता का दूसरा पहलू यह है कि 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बावजूद चीन की शासन-व्यवस्था ने खुद को कम्युनिस्ट कहना बंद नहीं किया। वहाँ का नेतृत्व लगातार शांतिपूर्ण तरीके से बदलता जा रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि वहाँ पार्टी का बड़ा तबका प्रभावशाली है, केवल कुछ व्यक्तियों की व्यवस्था नहीं है।

Thursday, November 15, 2012

चीन में नया नेतृत्व

General Secretary of the Central Committee of the Communist Party of China (CPC) Xi Jinping (C) and the other newly-elected members of the Standing Committee of the 18th CPC Central Committee Political Bureau Li Keqiang (3rd R), Zhang Dejiang (3rd L), Yu Zhengsheng (2nd R), Liu Yunshan (2nd L), Wang Qishan (1st R), Zhang Gaoli (1st L) meet with journalists at the Great Hall of the People in Beijing, capital of China, Nov. 15, 2012. Photo: Xinhua 


चीन के पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के सात सदस्यों की घोषणा हो गई है। जैसा अनुमान था इसके सदस्यों की संख्या नौ से घटकर सात हो गई है। ऊपर के चित्र से आपको नेतृत्व के वरिष्ठता क्रम का पता भी लग जाएगा। केन्द्रीय समिति के नेताओं में से तकरीबन आधे सेवा-निवृत्त हो गए  हैं। वर्तमान राष्ट्रपति हू जिंताओ और प्रधानमंत्री वेन जियाओ बाओ के नाम इसमें नहीं हैं। चीनी अखबरा ग्लोबल टाइम्स की खबर के अंश पढ़ें

The Constitution of the Communist Party of China (CPC) has enshrined the "Scientific Outlook on Development," a political guideline that puts people first and calls for balanced and sustainable development, the 18th CPC National Congress announced as the week-long event concluded on Wednesday.

Some 2,270 Party delegates cast votes Wednesday, electing the new CPC Central Committee and the new Central Commission for Discipline Inspection.

Nearly 50 percent of the new Central Committee are newcomers, indicating that the CPC, with 91 years of history and more than 82 million members, has again completed its leadership transition.
Other members of 17th Party leadership, Hu Jintao, Wu Bangguo, Wen Jiabao, Jia Qinglin, Li Changchun, He Guoqiang and Zhou Yongkang, are not in the new Central Committee.