Saturday, December 4, 2010

राडिया प्रकरण पर विनोद मेहता



मीडियाकर्मी अपनी परम्परागत भूमिका को निभाते रहें तो किसी नए ज्ञान की ज़रूरत नहीं है। आज के विवाद इसलिए उठे हैं क्योंकि पत्रकार अपनी भूमिका को भूल गए हैं। वे या तो नींद में हैं या नशे में।

प्रेस क्लब में राजदीप

Friday, December 3, 2010

मीडिया की शक्ल क्या बताती है?

मीडिया के नकारात्मक पहलुओं पर विचार करते-करते व्यक्तियों की भूमिका तक पहुँचना स्वाभाविक है। बल्कि पहले हम व्यक्तियों की भूमिका देखते हैं, फिर उसके मीडिया की। कुछ व्यक्ति स्टार हैं। इसलिए उनकी बाज़ार में माँग है।

स्टार वे क्यों हैं? जवाब देने की हिमाकत करने के पहले देखना पड़ेगा कि स्टार कौन हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया के उदय के बाद से ज्यादातर स्टार वे हैं जो प्राइम टाइम खबरें देते हैं, या शो करते हैं या महत्वपूर्ण मौकों पर कवरेज के लिए भेजे जाते हैं। ध्यान से देखें तो अब स्टार कल्टीवेट किए जाते हैं। वे अपने ज्ञान, लेखन क्षमता या वैचारिक समझ के कारण महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि अपनी पहुँच के कारण हैं। कुछ की बनी-बनाई पहुँच होती है। परिवार या दोस्ती की वजह से। और कुछ पहुँच बनाते हैं। जिसकी बन गई उसकी लाटरी और जिसकी नहीं बनी तो उसके लिए कूड़ेदान।

Wednesday, December 1, 2010

पुराने स्टाइल का मीडिया क्या परास्त हो गया है?

आईबीएन सीएनएन ने राडिया लीक्स और विकी लीक्स के बाद अपने दर्शकों से सवाल किया कि क्या पुराने स्टाइल के जर्नलिज्म को नए स्टाइल के मीडिया ने हरा दिया हैं? क्या है नए स्टाइल का जर्नलिज्म? सागरिका घोष की बात से लगता है कि नया मीडिया। यानी सोशल मीडिया, ट्विटर वगैरह।

अब यह भी तो पता लगाइए कि टेप किसने जारी किए


पत्रकारिता और कारोबारियों के बीच रिश्तों को लेकर हाल में जो कुछ हुआ है उससे हम पार हो जाएंगे। पर शायद अपनी साख को हासिल नहीं कर पाएंगे। यह बात काफी देर बाद समझ में आएगी कि साख का भी महत्व है। और यह भी कि पत्रकारिता दो दिन में स्टार बनाने वाला मंच ज़रूर है, पर कभी ऐसा वक्त भी आता है जब चोटी से जमीन पर आकर गिरना होता है। बहरहाल अभी अराजकता का दौर है।