रविवार के इंडियन एक्सप्रेस का एंकर सलमान खान पर था। यह सलमान बॉलीवुड का सितारा नहीं है, पर अमेरिका में सितारा बन गया है। बंग्लादेशी पिता और भारतीय माता की संतान सलमान ने सिर्फ अपने बूते दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाइन स्कूल स्थापित कर लिया है। हाल में गूगल ने अपने 10100 कार्यक्रम के तहत सलमान को 20 लाख डॉलर की मदद देने की घोषणा की है। इस राशि पर ध्यान दें तो और सिर्फ सलमान के काम पर ध्यान दें तो उसमें दुनिया को बदल डालने का मंसूबा रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण संदेश छिपे हैं।
सलमान खान की वैबसाइट खान एकैडमी पर जाएं तो आपको अनेक विषयों की सूची नज़र आएगी। इनमें से ज्यादातर विषय गणित, साइंस और अर्थशास्त्र से जुड़े हैं। सलमान ने अपने प्रयास से इन विषयों के वीडियो बनाकर यहाँ रखे हैं। छात्रों की मदद के लिए बनाए गए ये वीडियो बगैर किसी शुल्क के उपलब्ध हैं। सलमान ने खुद एमआईटी और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से डिग्रियाँ ली हैं। शिक्षा को लालफीताशाही की जकड़वंदी से बाहर करने की उसकी व्यक्तिगत कोशिश ने उसे गूगल का इनाम ही नहीं दिलाया, बिल गेट्स का ध्यान भी खींचा है। बिल गेट्स का कहना है कि मैने खुद और मेरे बच्चों ने इस एकैडमी में प्राप्त शिक्षा सामग्री मदद ली है। पिछले साल सलमान को माइक्रोसॉफ्ट टेक एवॉर्ड भी मिल चुका है।
सलमान की इस कहानी का हमारे जैसे देश में बड़ा अर्थ है। इसके पीछे दो बातें है। दूसरों को ज्ञान देना और निशुल्क देना। सलमान का अपना व्यवसाय पूँजी निवेश का था। उसने अपनी एक रिश्तेदार को कोई विषय समझाने के लिए एक वीडियो बनाया। उससे वह उत्साहित हुआ और फिर कई वीडियो बना दिए। और फिर अपनी वैबसाइट में इन वीडियो को रख दिय़ा। सलमान की वैबसाइट पर जाएं तो आपको विषय के साथ एक तरतीब से वीडियो-सूची मिलेगी। ये विडियो उसने माइक्रोसॉफ्ट पेंट, स्मूद ड्रॉ और कैमटेज़िया स्टूडियो जैसे मामूली सॉफ्टवेयरों की मदद से बनाए हैं। यू ट्यूब में उसके ट्यूटोरियल्स को हर रोज 35,000 से ज्यादा बार देखा जाता है।
गूगल ने उसे जो बीस लाख डॉलर देने की घोषणा की है उससे नए वीडियो बनाए जाएंगे और इनका अनुवाद दूसरी भाषाओं में किया जाएगा। सलमान ने सीएनएन को बताया कि स्पेनिश, मैंडरिन(चीनी), हिन्दी और पोर्चुगीज़ जैसी भाषाओं में इनका अनुवाद होगा। सलमान का लक्ष्य है उच्चस्तरीय शिक्षा हरेक को, हर जगह। शिक्षा किस तरह समाज को बदलती है इसका बेहतर उदाहरण यूरोप है। पन्द्रहवीं सदी के बाद यूरोप में ज्ञान-विज्ञान का विस्फोट हुआ। उसे एज ऑफ डिस्कवरी कहते हैं। इस दौरान श्रेष्ठ साहित्य लिखा गया, शब्दकोश, विश्वकोश, ज्ञानकोश और संदर्भ-ग्रंथ लिखे गए। उसके समानांतर विज्ञान और तकनीक का विकास हुआ।
दुनिया में जो इलाके विकास की दौड़ में पीछे रह गए हैं, उनके विकास के सूत्र केवल आर्थिक गतिविधियों में नहीं छिपे हैं। इसके लिए वैचारिक आधार चाहिए। और उसके लिए सूचना और ज्ञान। यह ज्ञान अपनी भाषा में होगा तभी उपयोगी है। हिन्दी के विस्तार को लेकर हमें खुश होने का पूरा अधिकार है। अपनी भाषा में दुनियाभर के ज्ञान का खजाना भी तो हमें चाहिए। हमारे भीतर भी ऐसे जुनूनी लोग होंगे, जो ऐसा करना चाहते हैं, पर बिल गेट्स और गूगल वाले हिन्दी नहीं पढ़ते हैं। हिन्दी पढ़ने वाले और हिन्दी का कारोबार करने वालों को इस बात की सुध नहीं है। यह साफ दिखाई पड़ रहा है कि हिन्दी के ज्ञान-व्यवसाय पर हिन्दी के लोग हैं ही नहीं। जो हैं उन्हें या तो अंग्रेजी
आती है या धंधे की भाषा।
इंटरनेट के विकास के बाद उसमें हिन्दी का प्रवेश काफी देर से हुआ। हिन्दी के फॉण्ट की समस्या का आजतक समाधान नहीं हो पाया है। गूगल ने ट्रांसलिटरेशन की जो व्यवस्था की है वह पर्याप्त नहीं है। वहरहाल जो भी है, उसका इस्तेमाल करने वाले बहुत कम हैं। दुनिया में जिस गति से ब्लॉगिंग हो रही है, उसके मुकाबले हिन्दी में हम बहुत पीछे हैं। विकीपीडिया पर हिन्दी में लिखने वालों की तादाद कम है। अगस्त 2010 में विकीपीडिया में लिखने वाले सक्रिय लेखकों की संख्या 82794 थी। इनमें से 36779 अंग्रेजी में लिखते हैं। जापानी में लिखने वालों की संख्या 4053 है और चीनी में 1830। हिन्दी में 70 व्यक्ति लिखते हैं। इससे ज्यादा 82 तमिल में और 77 मलयालम में हैं। भारतीय भाषाओं के मुकाबले भाषा इंडोनेशिया में लिखने वाले 244, थाई लिखने वाले 256 और अरबी लिखने वाले 522 हैं।
करोड़ों लोग हिन्दी में बात करते हैं, फिल्में देखते हैं या न्यूज़ चैनल देखते हैं। इनमें से कितने लोग बौद्धिक कर्म में अपना समय लगाते हैं? मौज-मस्ती जीवन का अनिवार्य अंग है। उसी तरह बौद्धिक कर्म भी ज़रूरी है। अपने भीतर जब तक हम विचार और ज्ञान-विज्ञान की लहर पैदा नहीं करेंगे, तब तक एक समझदार समाज बना पाने की उम्मीद न करें। बदले में हमें जो सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था मिल रही है उसे लेकर दुखी भी न हों। यह व्यवस्था हमने खुद को तोहफे के रूप में दी है।
प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग में हिन्दी की किताबें खोजें। नहीं मिलेंगी। गूगल बुक्स में देखें। थोड़ी सी मिलेंगी। हिन्दी की कुछ वैबसाइटों में हिन्दी के कुछ साहित्यकारों की दस से पचास साल पुरानी किताबों का जिक्र मिलता है। कुछ पढ़ने को भी मिल जाती हैं। इनमें हनुमान चालीसा और सत्यनारायण कथा भी हैं। पुस्तकालयों का चलन कम हो गया है। स्टॉल्स पर जो किताबें नज़र आतीं हैं, उनमें आधी से ज्यादा अंग्रेजी में लिखे उपन्यासों, सेल्फ हेल्प या पर्सनैलिटी डेवलपमेंट की किताबों के अनुवाद हैं। सलमान खान के वीडियो देखें तो उनके संदर्भ अमेरिका के हैं। हमारे लिए तो भारतीय संदर्भ के वीडियो की ज़रूरत होगी।
समाज विज्ञान, राजनीति शास्त्र, इतिहास, मनोविज्ञान, मानव विज्ञान से लेकर प्राकृतिक विज्ञानों तक हिन्दी के संदर्भ में किताबें या संदर्भ सामग्री कहाँ है? नहीं है तो क्यों नहीं है? हिन्दी में शायद सबसे ज्यादा कविताएं लिखीं जाती हैं। हिन्दी के पाठक को विदेश व्यापार, अंतरराष्ट्रीय सम्बंध, वैज्ञानिक और तकनीकी विकास, यहाँ तक कि मानवीय रिश्तों पर कुछ पढ़ने की इच्छा क्यों नहीं होती है? हाल में मुझसे किसी ने हिन्दी में शोध परक लेख लिखने को कहा। उसका पारिश्रमिक शोध करने का अवसर नहीं देता। शोध की भी कोई लागत होती है। वह कीमत हबीब के यहाँ एक बार की हजामत और फेशियल से भी कम हो तो क्या कहें? सलमान खान तो हमारे पास भी है, पर वह मुन्नी बदनाम के साथ नाचता है।