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Friday, November 22, 2019

नागरिकता पर बहस से घबराने की जरूरत नहीं


केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को राज्यसभा में कहा कि पूरे देश में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) लागू किया जाएगा. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म के लोगों को इससे डरने की जरूरत नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि इन दिनों असम में जिस नागरिकता रजिस्टर पर काम चल रहा है उसमें धर्म के आधार पर लोगों को बाहर करने का कोई प्रावधान नहीं है. असम में पहली बार नागरिकता रजिस्टर बनाया गया है, जिसमें असम में रहने वाले 19 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं हैं.
अमित शाह के ताजा बयान ने एकबार फिर से इस बहस को ताजा कर दिया है. अमित शाह ने यह भी कहा है कि हम नागरिकता संशोधन विधेयक भी संसद में पेश करेंगे. इस विषय विचार करने के पहले हमें इसकी पृष्ठभूमि को समझना चाहिए. नागरिकता रजिस्टर का मतलब है, ऐसी सूची जिसमें देश के सभी नागरिकों के नाम हों. ऐसी सूची बनाने पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? वस्तुतः यह मामला असम से निकला है और आज का नहीं 1947 के बाद का है, जब देश स्वतंत्र हुआ था.

Tuesday, November 12, 2019

अब राष्ट्र-राज्य का मंदिर बनाइए


अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विश्लेषण लंबे समय तक होता रहेगा, पर एक बात निर्विवाद रूप से स्थापित हुई है कि भारतीय राष्ट्र-राज्य के मंदिर का निर्माण सर्वोपरि है और इसमें सभी धर्मों और समुदायों की भूमिका है. हमें इस देश को सुंदर और सुखद बनाना है. हमें अपनी अदालत को धन्यवाद देना चाहिए कि उसने एक जटिल गुत्थी को सुलझाया. प्रतीक रूप में ही सही अदालत ने यह फैसला सर्वानुमति से करके एक संदेश यह भी दिया है कि हम एक होकर अपनी समस्याओं के समाधान खोजेंगे. इस फैसले में किसी एक जज की भी राय अलग होती, तो उसके तमाम नकारात्मक अर्थ निकाले जा सकते थे.

एक तरह से यह फैसला भारतीय सांविधानिक व्यवस्था में मील का पत्थर साबित होगा. सुप्रीम कोर्ट के सामने कई तरह के सवाल थे और बहुत सी ऐसी बातें, जिनपर न्यायिक दृष्टि से विचार करना बेहद मुश्किल काम था, पर उसने भारतीय समाज के सामने खड़ी एक जटिल समस्या के समाधान का रास्ता निकाला. इस सवाल को हिन्दू-मुस्लिम समस्या के रूप में देखने के बजाय राष्ट्र-निर्माण के नजरिए से देखा जाना चाहिए. सदियों की कड़वाहट को दूर करने की यह कोशिश हमें सही रास्ते पर ले जाए, तो इससे अच्छा क्या होगा?

Friday, November 8, 2019

दिल्ली के पुलिस-वकील टकराव के सबक


दिल्ली की सड़कों पर मंगलवार को और अदालतों में बुधवार को जो दृश्य दिखाई पड़े, वे देश की कानून-व्यवस्था और न्याय-प्रक्रिया पर बड़े सवाल खड़े करते हैं. देश में सांविधानिक न्याय और कानून-व्यवस्था की रक्षक यही मशीनरी है, तो फिर इसका मतलब है कि हम गलत जगह पर आ गए हैं. यह देश की राजधानी है. यहाँ पर अराजकता का यह आलम है, तो फिर जंगलों में क्या होता होगा? गाँवों और कस्बों की तो बात ही अलग है. कानून के शासन की धज्जियाँ वे लोग उड़ा रहे हैं, जिनपर कानून की रक्षा की जिम्मेदारी है.
दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में एक पुलिसकर्मी और एक वकील के बीच पार्किंग को लेकर मामूली से विवाद ने एक असाधारण राष्ट्रीय समस्या का रूप ले लिया. पार्किक विवाद से शुरू हुआ यह मामला दो समूहों के बीच संघर्ष के रूप में तब्दील हो गया. शनिवार को तीस हजारी कोर्ट में हुए इस संघर्ष में आठ वकील और 20 पुलिस वाले घायल हुए. एक पुलिस वाले ने गोली भी चलाई. इसके बाद सोमवार को साकेत अदालत के बाहर फिर टकराव हुआ. कड़कड़डूमा कोर्ट के बाहर एक पुलिसकर्मी की पिटाई कर दी गई.
टकराव की छोटी-मोटी कई खबरें सुनाई पड़ीं. इस बीच मोटरसाइकिल पर सवार एक वर्दीधारी पुलिसकर्मी को कोहनी मारते और उसे थप्पड़ मारते हुए वीडियो सामने आने के बाद पुलिस वालों का गुस्सा भड़का और मंगलवार को उन्होंने दिल्ली पुलिस के मुख्यालय को घेर लिया. मुख्यालय की सुरक्षा के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस को तैनात करना पड़ा. समझाने-बुझाने के बाद अंततः पुलिसकर्मियों का आंदोलन वापस हो गया, पर अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया.
उधर तीस हजारी में हुए टकराव को लेकर बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई भी हुई. अदालत ने दोनों पक्षों को सलाह दी कि वे साथ बैठकर आपसी झगड़े को सुलझाएं. कोर्ट ने कहा कि वकीलों और पुलिस के जिम्मेदार प्रतिनिधियों के बीच संयुक्त बैठक होनी चाहिए, ताकि विवाद को सुलझाने की कोशिशें हो सकें. कोर्ट ने कहा, बार कौंसिल और पुलिस प्रशासन दोनों कानून की रक्षा के लिए हैं. न्याय के सिक्के के ये दो पहलू हैं और उनके बीच कोई भी असंगति या टकराव शांति और सद्भाव के लिए निंदनीय है. हाई कोर्ट द्वारा बनाई गई एक कमेटी इस मामले की जांच भी करेगी.

Saturday, November 2, 2019

यूरोपियन सांसदों के दौरे के बाद कश्मीर


पाकिस्तान की दिलचस्पी कश्मीर समस्या के अंतरराष्ट्रीयकरण में है. इसके लिए पिछले तीन महीनों में उसने अपनी पूरी ताकत लगा दी है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में खून की नदियाँ बहाने की साफ-साफ धमकी दी थी. हाल में पाक-परस्तों ने सेब के कारोबार से जुड़े लोगों की हत्या करने का जो अभियान छेड़ा है, उससे उनकी पोल खुली है.
पाक-परस्त ताकतों ने भारत की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और बहुलवादी व्यवस्था को लेकर उन देशों में जाकर सवाल उठाए हैं, जो भारत के मित्र समझे जाते हैं. वे जबर्दस्त प्रचार युद्ध में जुटे हैं. ऐसे में हमारी जिम्मेदारी है कि हम कश्मीर के संदर्भ में भारत के रुख से सारी दुनिया को परिचित कराएं और पाकिस्तान की साजिशों की ओर दुनिया का ध्यान खींचें. इसी उद्देश्य से हाल में भारत ने यूरोपियन संसद के 23 सदस्यों को कश्मीर बुलाकर उन्हें दिखाया कि पाकिस्तान भारत पर मानवाधिकार हनन के जो आरोप लगा रहा है, उनकी सच्चाई वे खुद आकर देखें.

Tuesday, October 22, 2019

अयोध्या पर क्यों न हम सकारात्मक रूप से सोचें?


दुर्भाग्य है कि पिछले 27 साल से हमारे सामाजिक जीवन में कुछ लोग 6 दिसम्बर को ‘शौर्य दिवस’ मनाते हैं और कुछ ‘यौमे ग़म.’ एक गहरा सामाजिक विभाजन एक घटना के कारण हमारे जीवन में पैदा हो गया है. अयोध्या में राम जन्मभूमि को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस साल 6 दिसंबर के पहले ही आ जाएगा. इस फैसले को लेकर कई तरह के कयास हैं. क्या अदालत इसे केवल स्वामित्व के रूप में देखेगी? क्या वह आस्था के सवाल पर फैसला करेगी? क्या उसपर जनमत का दबाव होगा? ऐसे बीसियों सवाल हैं. उम्मीदें भी हैं और अंदेशे भी. बेहतर यही होगा कि हम उम्मीद करें कि फैसला ऐसा होगा कि सभी पक्ष इसे स्वीकार करेंगे और हम इस साल से इस फैसले की तारीख को ‘राष्ट्र निर्माण दिवस’ के रूप में मनाना शुरू करेंगे.
इस मामले की सुनवाई के आखिरी दिन तक और अब भी यह सवाल हमारे मन में है कि क्या इसका निपटारा आपसी समझौते से संभव नहीं था? क्या अब भी यह संभव नहीं है? दुर्भाग्य से ऐसा संभव नहीं हुआ. संभव था, तो अबतक हो चुका होता. अब मनाना चाहिए कि यह निपटारा सामाजिक बदमज़गी पैदा न करे. इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन की लगातार सुनवाई के दौरान यह बदमज़गी भी किसी न किसी रूप में व्यक्त हुई थी. सुनवाई के आखिरी दिन भी कुछ ऐसे प्रसंग आए, जिनसे लगा कि कड़वाहट कहीं न कहीं बैठी है और बहुत गहराई से बैठी है.

Tuesday, October 15, 2019

करतारपुर कॉरिडोर से खुलेगा नया अध्याय


भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में ज्वार-भाटा जैसा तेज उतार-चढ़ाव आता है. यह जितनी तेजी से आता है, उतनी ही तेजी से उतर जाता है. पिछले एक साल में दोनों देशों के बीच तनाव और टकराव की बातों के साथ-साथ करतारपुर कॉरिडोर के मार्फत दोनों को जोड़ने की बातें भी चल रही हैं. उम्मीद है कि नवम्बर में गुरुनानक देव की 550वीं जयंती के अवसर पर यह गलियारा खुलने के बाद एक नया अध्याय शुरू होगा. केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने जानकारी दी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 नवंबर को करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे.72 साल की कड़वाहट के बीच खुशनुमा हवा का यह झोंका आया है.

करतारपुर गलियारा सिखों के पवित्र डेरा बाबा नानक साहिब और गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर को जोड़ेगा. करीब 4.7 किलोमीटर लम्बे इस मार्ग से भारत के श्रद्धालु बगैर वीजा के पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारे तक जा सकेंगे. इस गलियारे का प्रस्ताव एक अरसे से चल रहा है, पर पिछले साल दोनों देशों ने मिलकर इस गलियारे के निर्माण की योजना बनाई. दोनों देशों के बीच धार्मिक पर्यटन की बेहतरीन संभावनाएं हैं, पर किसी न किसी कारण से इनमें अड़ंगा लग जाता है. 

Thursday, October 10, 2019

स्विस बैंकों की सूची क्या तोड़ेगी काले धन का जाल?


अंततः भारत सरकार को स्विस बैंकों में जमा धन के बारे में आधिकारिक जानकारियों का सिलसिला शुरू हो गया है. इसी हफ्ते की खबर है कि सरकार को स्विस बैंकों में भारतीय खाता धारकों के ब्यौरे की पहली लिस्ट मिल गई है.  यह सूचना भारत को स्विट्ज़रलैंड सरकार ने ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इनफॉर्मेशन (एईओआई) की नई व्यवस्था के तहत दी है. यह जानकारी केवल भारत के लिए विशेष नहीं है, बल्कि स्विट्जरलैंड के फेडरल टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन ने 75 देशों को दी है. भारत भी इनमें शामिल है.

इस सूची से भारत को कितने काले धन की जानकारी मिलेगी और हम कितना काला धन वसूल कर पाएंगे, ऐसे सवालों का जवाब फौरन नहीं मिलेगा. इन विवरणों की गहराई से जाँच करने की जरूरत होगी. अलबत्ता महत्वपूर्ण वह व्यवस्था है, जिसके तहत यह जानकारी मिली है. यह एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य दुनियाभर में टैक्स चोरी को रोकना तथा काले धन पर काबू पाना है. भारत ने काफी संकोच के बाद 3 जून 2015 को स्विट्ज़रलैंड के साथ इस समझौते पर दस्तखत किए थे और यह व्यवस्था इस साल सितंबर से लागू हुई है.

Friday, October 4, 2019

बदलते मौसम का संकेत है बिहार की बाढ़


बिहार इन दिनों बारिश और बाढ़ की मार से जूझ रहा है. पटना शहर डूबा पड़ा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन पर तंज कसे जा रहे हैं. उन्होंने भी पलट कर कहा है कि क्या बिहार में बाढ़ ही सबसे बड़ी समस्या है? कभी हम सूखे का सामना करते हैं और कभी बाढ़ का. जब उनसे बार-बार सवाल किया गया तो वे भड़क गए. उन्होंने कहा, ‘मैं पूछ रहा हूं कि देश और दुनिया के और कितने हिस्से में बाढ़ आई है. अमेरिका का क्या हुआ?
उनकी पार्टी बिहार में बाढ़ प्रबंधन की आलोचना होने पर मुंबई और चेन्नई की बाढ़ का हवाला दे चुके हैं. अब नीतीश कुमार ने अमेरिका का जिक्र करके मौसम की अनिश्चितता की ओर इशारा किया है. बेशक इससे बाढ़ प्रबंधन और जल भराव से जुड़े सवालों का जवाब नहीं मिलता, पर यह सवाल इस बार शिद्दत के साथ उभर कर आया है कि जब मॉनसून की वापसी का समय होता है, तब इतनी भारी बारिश क्यों हुई? इससे जुड़ा दूसरा सवाल यह है कि मौसम दफ्तर की भविष्यवाणी थी कि इस साल सामान्य से कम वर्षा होगी, तब सामान्य से ज्यादा वर्ष क्यों हुई?

केवल बिहार ही नहीं उत्तर प्रदेश में भी इस साल आखिरी दिनों की इस बारिश ने जन-जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया. देश के मौसम दफ्तर के अनुसार दक्षिण पश्चिम मॉनसून को इस साल सोमवार 30 सितंबर को समाप्त हो जाना चाहिए था, बल्कि आधिकारिक तौर पर वह वापस चला गया है. पर सामान्य के मुकाबले 110 प्रतिशत वर्षा के बावजूद बरसात जारी है और अनुमान है कि मॉनसून की वापसी 10 अक्तूबर से शुरू होगी. संभवतः यह पिछले एक सौ वर्षों का सबसे लंबा मॉनसून साबित होगा. इसके पहले सन 1961 में मॉनसून की वापसी 1 अक्तूबर को हुई थी और 2007 में 30 सितंबर को.

Friday, September 27, 2019

भारत-पाक नजरियों का अंतर क्या है?


संयुक्त राष्ट्र महासभा में आज भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के भाषण होने वाले है. दोनों देशों में मीडिया की निगाहें इस परिघटना पर हैं. क्या कहने वाले हैं, दोनों नेता?  पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस अधिवेशन के लिए अमेरिका रवाना होने के पहले अपने देश के निवासियों से कहा था, मैं मिशन कश्मीर पर जा रहा हूँ. इंशा अल्लाह सारी दुनिया हमारी मदद करेगी. पर हुआ उल्टा महासभा में अपने भाषण के पहले ही उन्होंने स्वीकार कर लिया कि पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण के अपने प्रयासों में फेल रहा है. दूसरी तरफ भारत के प्रधानमंत्री ने हाउडी मोदी रैली में केवल एक बात से सारी कहानी साफ कर दी. उन्होंने कहा, दुनिया जानती है कि 9/11 और मुंबई में 26/11 को हुए हमलों में आतंकी कहाँ से आए थे।
संरा महासभा के भाषणों का औपचारिक महत्व बहुत ज्यादा नहीं होता. अलबत्ता उनसे इतना पता जरूर लगता है कि देशों और उनके नेतृत्व की विश्व दृष्टि क्या है. फिलहाल आज की सुबह लगता यही है कि महासभा के भाषण में इमरान खान केवल और केवल भारत-विरोधी बातें बोलेंगे और भारत के प्रधानमंत्री भारत की विश्व दृष्टि को दुनिया के सामने रखेंगे. भारत चाहता है कि पाकिस्तान भी एक सकारात्मक और दोस्ताना कार्यक्रम लेकर दुनिया के सामने आए, ताकि इस इलाके की गरीबी, मुफलिसी, अशिक्षा और बदहाली को दूर किया जा सके. आप खुद देखिएगा दोनों भाषणों के अंतर को.

Sunday, September 22, 2019

वित्तमंत्री की ‘बिगबैंग’ घोषणा का अर्थ


वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कंपनी कर में कटौती की घोषणा करके अपने समर्थकों को ही नहीं विरोधियों को भी चौंकाया है. देश में कॉरपोरेट टैक्स की दर 30 से घटाकर 22 फीसदी की जा रही है और सन 2023 से पहले उत्पादन शुरू करने वाली नई कंपनियों की दर 15 फीसदी. यह प्रभावी दर अब 25.17 फीसदी होगी, जिसमें अधिभार व उपकर शामिल होंगे. इसके अलावा इस तरह की कंपनियों को न्यूनतम वैकल्पिक कर (एमएटी) का भुगतान करने की जरूरत नहीं होगी. इस खबर के स्वागत में शुक्रवार को देश के शेयर बाजारों में जबरदस्त उछाल दर्ज किया गया. बीएसई का सेंसेक्स 1921.15 अंक या 5.32 फीसदी तेजी के साथ 38,014.62 पर बंद हुआ. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 569.40 अंकों या 5.32 फीसदी की तेजी के साथ 11,274.20 पर बंद हुआ. यह एक दशक से अधिक का सबसे बड़ा एकदिनी उछाल है.   
वित्तमंत्री की इस घोषणा से रातोंरात अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं आएगा. कॉरपोरेट टैक्स में कमी का असर देखने के लिए तो हमें कम से कम एक-दो साल का इंतजार करना पड़ेगा, पर यह सिर्फ संयोग नहीं है कि यह घोषणा अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में होने वाली हाउडी मोदी रैली के ठीक पहले की गई है. इस रैली में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिका के अनेक सांसद भी आने वाले हैं. आर्थिक सुधारों की यह घोषणा केवल भारत के उद्योग और व्यापार जगत के लिए ही संदेश नहीं है, बल्कि वैश्विक कारोबारियों के लिए भी इसमें एक संदेश है.

Wednesday, September 18, 2019

सिविल कोड पर बहस से हम भागते क्यों हैं?


पिछले शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद समान नागरिक संहिता का सवाल एकबार फिर से खबरों में है. अदालत ने कहा है कि देश में समान नागरिक संहिता बनाने की कोशिश नहीं की गई. संविधान निर्माताओं ने राज्य के नीति निदेशक तत्व में इस उम्मीद से अनुच्छेद 44 जोड़ा था कि सरकार देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करेगी, लेकिन हुआ कुछ नहीं. देश में सभी तरह के व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध करने की माँग लंबे अरसे से चल रही है, पर इस दिशा में प्रगति नहीं है. इसकी सबसे बड़ी वजह देश की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता है, जिसे छेड़ने का साहस सरकारों में नहीं है.

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने अपने पिछले दौर में तीन तलाक के साथ-साथ इस विषय को भी उठाया था. इस सिलसिले में 21 वें विधि आयोग को अध्ययन करके अपनी संस्तुति देने के लिए कहा गया था. आयोग ने करीब दो साल के अध्ययन के बाद अगस्त 2018 में बजाय विस्तृत रिपोर्ट देने के एक परामर्श पत्र दिया, जिसमें कहा गया कि इस स्तर पर देश में समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही कोई इसकी मांग कर रहा है. आयोग की नजर में इसकी कोई माँग नहीं कर रहा है, तब अदालत माँग क्यों कर रही है?  

Monday, September 9, 2019

शिक्षा और साक्षरता उपयोगी भी तो बने


आज हम विश्व साक्षरता दिवस मना रहे हैं. दुनियाभर में 52वां साक्षरता दिवस मनाया जा रहा है. हर साल इस दिन की एक थीम होती है. इस साल स्थानीय भाषाओं के संरक्षण के लिए थीम है साक्षरता और बहुभाषावाद. दिव्यांग बच्चों की स्पेशल एजुकेशन से जुड़े युनेस्को के सलमांका वक्तव्य के 25 वर्ष भी इस साल हो रहे हैं. यानी समावेशी शिक्षा, जिसमें समाज के सभी वर्गों को शामिल किया जा सके. शिक्षा, जो उम्मीदें जगाए है और एक नई दुनिया बनाने का रास्ता दिखाए. क्या हमारी शिक्षा यह काम कर रही है?  
भारत में साक्षरता के आंकड़े परेशान करने वाले हैं. सन 2011 की जनगणना के अनुसार सात या उससे ज्यादा वर्ष के व्यक्ति जो लिख और पढ़ सकते हैं, साक्षर माने जाते हैं. जो व्यक्ति केवल पढ़ सकता है, पर लिख नहीं सकता, वह भी साक्षर नहीं है. इस परिभाषा के अनुसार 2011 में देश की साक्षरता का प्रतिशत 74.04 था. इसमें भी साक्षर पुरुषों का औसत 82.14 और स्त्रियों का औसत 65.46 था.

Sunday, September 1, 2019

क्या हासिल होगा बैंकों के महाविलय से?


शुक्रवार की दोपहर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने राष्ट्रीयकृत बैंकों के विलय की घोषणा के लिए जो समय चुना था, वह सरकार की समझदारी को भी बताता है. इस प्रेस कांफ्रेंस के समाप्त होते ही खबरिया चैनलों के स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज थी कि इस वित्तवर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी की दर घटकर 5 फीसदी हो गई है. बैंकों के विलय की घोषणा ने जो सकारात्मक माहौल पैदा किया था, उसके कारण जीडीपी की खबर से लगने वाला धक्का, थोड़ा धीरे से लगा. बेशक मंदी की खबरें चिंताजनक हैं, पर सरकार यह संदेश देना चाहती है कि हम सावधान हैं और अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल कर रखेंगे. कई बार संकट के बीच से ही समाधान भी निकलते हैं.
वित्तमंत्री ने बैंकों के महाविलय की जो घोषणा की है, उससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या 18 से घटकर 12 रह जाएगी. वित्त मंत्री निर्मला पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का अधिग्रहण करेगा. इसी तरह वहीं केनरा बैंक में सिंडीकेट बैंक का, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक तथा इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक का विलय होगा. अब इन 10 बैंकों के विलय के बाद चार बैंक बन जाएंगे. बैंक ऑफ बड़ौदा और बैंक ऑफ इंडिया के रूप में दो बड़े बैंक पहले से हैं. इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और पंजाब एंड सिंध बैंक पहले की तरह काम करते रहेंगे क्योंकि ये मजबूत क्षेत्रीय बैंक हैं. बैंक-राष्ट्रीयकरण के पचास वर्ष बाद उन्हें लेकर यह सबसे बड़ा फैसला है.  

Sunday, August 25, 2019

मोदी के मित्र और सुधारों के सूत्रधार जेटली


भारतीय जनता पार्टी के सबसे सौम्य और लोकप्रिय चेहरों में निश्चित रूप से अरुण जेटली को शामिल किया जा सकता है, पर वे केवल चेहरा ही नहीं थे. वैचारिक स्तर पर उनकी जो भूमिका थी, उसे झुठलाया नहीं जा सकता. पार्टी और खासतौर से नेतृत्व के नजरिए से देखें, तो यह मानना पड़ेगा कि नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति दिलाने में सबसे बड़ी भूमिका उनकी रही. हालांकि उनके राजनीतिक जीवन का काफी लम्बा समय नरेंद्र मोदी की राजनीति से पृथक रहा, पर कुछ महत्वपूर्ण अवसरों पर उन्होंने निर्णायक भूमिका अदा की. दुर्भाग्य से उनका देहावसान असमय हो गया, अन्यथा उनके सामने एक बेहतर समय आने वाला था. 
सन 2002 में गुजरात के दंगे जब हुए, तब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बने ही बने थे. उनके पास प्रशासनिक अनुभव बहुत कम था. दंगों के कारण उत्पन्न हुई बदमज़गी के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि मोदी को राजधर्म का निर्वाह करना चाहिए. यह एक प्रकार से नकारात्मक टिप्पणी थी. पर्यवेक्षकों का कहना है कि अटल जी चाहते थे कि मोदी मुख्यमंत्री पद छोड़ दें, क्योंकि गुजरात के कारण पार्टी की नकारात्मक छवि बन रही थी. मोदी के समर्थन में लालकृष्ण आडवाणी थे, पर लगता था कि वे अटल जी को समझा नहीं पाएंगे.
नरेंद्र मोदी का व्यावहारिक राजनीतिक जीवन तब शुरू हुआ ही था. हालांकि वे संगठन के स्तर पर काफी काम कर चुके थे, पर प्राशासनिक स्तर पर उनका अनुभव कम था. उनकी स्थिति जटिल हो चुकी थी. यदि वे इस तरह से हटे, तो अंदेशा यही था कि समय की धारा में वे पिछड़ जाएंगे. ऐसे वक्त पर अरुण जेटली ने मोदी का साथ दिया. बताते हैं कि वे वाजपेयी जी को समझाने में न केवल कामयाब रहे, बल्कि मोदी के महत्वपूर्ण सलाहकार बनकर उभरे. वे अंतिम समय तक नरेंद्र मोदी के सबसे करीबी सलाहकारों में से एक रहे.

Friday, August 23, 2019

राफेल के आने से रक्षा-परिदृश्य बदलेगा


इस महीने के पहले हफ्ते से चल रहा घटनाक्रम देश की विदेश और रक्षा नीति के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है. जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के बाद सरकार ने राज्य के पुनर्गठन की घोषणा की है, जो अक्तूबर से लागू होगा. पर उसके पहले अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को अपनी नीतियों को प्रभावशाली तरीके से रखना होगा. इस लिहाज से एक परीक्षा सुरक्षा परिषद की बैठक के रूप में हो चुकी है. 
अब प्रधानमंत्री फ्रांस, यूएई और बहरीन की यात्रा पर गए हैं. इस दौरान वे दो बार फ्रांस जाएंगे. वे 22-23 को द्विपक्षीय संबंधों पर बात करेंगे और फिर 25-26 को जी-7 की बैठक में भाग लेंगे. यह पहला मौका है, जब जी-7 की बैठक में भारत को बुलाया गया है. इसकी बड़ी वजह आर्थिक है, पर इस मौके पर भारत को अपनी कश्मीर नीति के पक्ष में दुनिया का ध्यान खींचना होगा.

Thursday, August 15, 2019

हमारी आजादी पर हमले करती ‘आजादी’!


इस साल स्वतंत्रता दिवस ऐसे मौके पर मनाया जा रहा है, जब कश्मीर पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं. स्वतंत्रता के बाद कई मायनों में यह हमारी व्यवस्था की सबसे बड़ी परीक्षा है. आजादी के दो महीने बाद ही पाकिस्तानी सेना ने कबायलियों की मदद से कश्मीर पर हमला बोला था. वह लड़ाई तब से लगातार चल रही है. तकरीबन 72 साल बाद भारत ने कश्मीर में एक निर्णायक कार्रवाई की है. क्या हम इस युद्ध को उसकी तार्किक परिणति तक पहुँचाने में कामयाब होंगे?
तमाम विफलताओं के बावजूद भारत की ताकत है उसका लोकतंत्र. सन 1947 में भारत का एकीकरण इसलिए ज्यादा दिक्कत तलब नहीं हुआ, क्योंकि भारत एक अवधारणा के रूप में देश के लोगों के मन में पहले से मौजूद था. इस नई मनोकामना की धुरी पर है हमारा लोकतंत्र. पर यह निर्गुण लोकतंत्र नहीं है. इसके कुछ सामाजिक लक्ष्य हैं. स्वतंत्र भारत ने अपने नागरिकों को तीन महत्वपूर्ण लक्ष्य पूरे करने का मौका दिया है. ये लक्ष्य हैं राष्ट्रीय एकता, सामाजिक न्याय और गरीबी का उन्मूलन.
भारतीय राष्ट्र-राज्य अभी विकसित हो ही रहा है. कई तरह के अंतर्विरोध हमारे सामने आ रहे हैं और उनका समाधान भी हमारी व्यवस्था को करना है. कश्मीर भी एक अंतर्विरोध और विडंबना है. उसकी बड़ी वजह है पाकिस्तान, जिसका वजूद ही भारत-विरोध की मूल-संकल्पना पर टिका है. बहरहाल कश्मीर के अंतर्विरोध हमारे सामने हैं. घाटी का समूचा क्षेत्र इन दिनों प्रतिबंधों की छाया में है. कोई नहीं चाहता कि वहाँ प्रतिबंध हों, पर क्या हम जानते हैं कि अनुच्छेद 370 के फैसले के बाद वहाँ सारी व्यवस्थाएं सामान्य नहीं रह सकती थीं.

Thursday, August 8, 2019

एक विलक्षण राजनेता की असमय विदाई


सौम्य, सुशील, सुसंस्कृत, संतुलित और भारतीय संस्कृति की साक्षात प्रतिमूर्ति. सुषमा स्वराज की गणना देश के सार्वकालिक प्रखरतम वक्ताओं और सबसे सुलझे राजनेताओं में और श्रेष्ठतम पार्लियामेंटेरियन के रूप में होगी. जैसे अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों को लोग याद करते हैं, वैसे ही उनके भाषण लोगों को रटे पड़े हैं. संसद में जब वे बोलतीं, तब उनके विरोधी भी ध्यान देकर उन्हें सुनते थे. सन 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा का उनका भाषण हमेशा याद रखा जाएगा, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के आतंकी प्रतिष्ठान की धज्जियाँ उड़ा दी थीं.
सन 2014 में मोदी सरकार में जब वे शामिल हुई, तब तमाम कयास और अटकलें थीं कि यह उनकी पारी का अंत है. पर उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा को एक नया आयाम दिया. विदेशमंत्री पद को अलग पहचान दी. वे देश की पहली ऐसी विदेशमंत्री हैं, जिन्होंने प्रवासी भारतवंशियों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान किया. एक जमाने में देश का पासपोर्ट लेना बेहद मुश्किल काम होता था. आज यह काम बहुत आसानी से होता है. इसका श्रेय उन्हें जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वपूर्ण दौरों के पहले वे तमाम देशों की यात्राएं करके भारत के पक्ष में जमीन तैयार करती रहीं.

Monday, August 5, 2019

‘तीन तलाक’ पर मुस्लिम समाज भी विचार करे


तीन तलाक को अपराध की संज्ञा देने वाला विधेयक अब कानून बन चुका है। इस कानून के दो पहलू हैं. एक है इसका सामाजिक प्रभाव और दूसरा है इसपर होने वाली राजनीति. मुस्लिम समाज इस कानून को किस रूप में देखता है?ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसका विरोध करते हुए कहा कि हम इसे अदालत में चुनौती देंगे. साथ ही उसने विरोधी दलों के रवैये की निंदा की है. बोर्ड ने ट्वीट करते हुए कहा कि हम कांग्रेस, जनता दल यूनाइटेड, मायावती की बहुजन समाज पार्टी, एआईएडीएमके, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), वाईएसआर कांग्रेस की कड़ी निंदा करते हैं.
बोर्ड इस मामले को राजनीतिक नजरिए से देखता है और परोक्ष रूप से पार्टियों को ‘वोट’ खोने की चेतावनी दे रहा है. यह संगठन इस सवाल पर मुसलमानों के बीच बहस को चलाने के बजाय इसे राजनीतिक रूप से गरमाने की कोशिश करेगा. इस सिलसिले में पश्चिम बंगाल के मंत्री और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष सिद्दिकुल्ला चौधरी ने कहा कि यह कानून इस्लाम पर हमला है. हम इस कानून को स्वीकार नहीं करेंगे. यह बात उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कही जरूर है, पर इससे बंगाल की राजनीति पर भी असर पड़ेगा.

Monday, July 29, 2019

हर साल बाढ़ झेलने को अभिशप्त क्यों है बिहार?


बिहार में बाढ़ की विभीषिका विकराल रूप ले रही है. इसकी वजह से कई गाँवों का अस्तित्व समाप्त हो गया है. सवा सौ से ज्यादा लोगों की मृत्यु की पुष्टि सरकार ने की है. न जाने कितनों की जानकारी ही नहीं है. पिछले हफ्ते जारी सूचना के अनुसार, आकाशीय बिजली गिरने से बिहार के अलग-अलग जिलों में 39 और झारखंड में 12 लोगों की मौत हुई है. करीब 82 लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित है. विडंबना है कि उत्तर बिहार और सीमांचल के 13 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं, तो 20 जिलों पर सूखे का साया है. दोनों आपदाओं के पीड़ितों को राहत पहुंचाने की चुनौती है. पानी उतरने के बाद बीमारियों का खतरा ऊपर से है.
असम और उत्तर प्रदेश से भी बाढ़ की विभीषिका की खबरें हैं. असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुताबिक 33 जिलों में से 20 जिलों में बाढ़ से 38.82 लाख लोग प्रभावित हैं. केंद्रीय जल आयोग के अनुसार बिहार में बूढ़ी गंडक, बागमती, अधवारा समूह, कमला बलान, कोसी, महानंदा और परमान नदी अलग-अलग स्थानों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. पश्चिम बंगाल के निचले इलाकों में भी भारी बारिश के कारण बाढ़ जैसे हालात बन रहे हैं.
बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत और बचाव के काम चल रहे हैं. अभी पीड़ित परिवारों को छह-छह हजार रुपये की मदद सीधे खातों में भेजी जा रही है. इसके बाद खेती से नुकसान का आकलन होगा और किसान फसल सहायता और कृषि इनपुट सब्सिडी के जरिए मदद की जाएगी. आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, सहरसा, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और  कटिहार जिलों में बाढ़ है. सीतामढ़ी में सबसे ज्यादा 37 लोगों की मौत हुई है.

Wednesday, July 24, 2019

लाखों बेटियों की प्रेरणा हैं हिमा और दुती


हिमा दास और दुती (या द्युति) चंद दो एकदम साधारण घरों से निकली लड़कियाँ हैं, पर उनकी उपलब्धियाँ असाधारण हैं. दोनों की चर्चा इन दिनों खेल के मैदान में है. हिमा दास भारत की पहली एथलीट हैं, जिन्होंने आईएएएफ की अंडर 20 प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है. हाल में यूरोप की प्रतियोगिताओं में लगातार पाँच स्वर्ण पदक जीतकर वे खबरों में हैं. दुती चंद ने वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में स्वर्ण पदक जीता. हिमा 400 और 200 मीटर में दौड़ती हैं और दुती चंद 100 और 200 मीटर में.
छोटी दूरी की ये रेस बहुत मुश्किल मानी जाती हैं और इनके खास तरह की ट्रेनिंग और शारीरिक गठन की दरकार होती है. एथलेटिक्स के मैदान में हरेक प्रतियोगिता का अपना महत्व होता है. छोटी रेस की अपनी जरूरत है और लम्बी रेस की अपनी. इतना ही नहीं, 100 मीटर 400 मीटर की तकनीक भी अलग है. दोनों खिलाड़ी रिले टीम की सदस्य के रूप में अपनी विशेषज्ञता से बाहर जाकर भी दौड़ती हैं, ताकि देश को पदक मिले.
दोनों उदीयमान खिलाड़ी हैं और उनसे देश को काफी उम्मीदें हैं. जो बात महत्वपूर्ण है वह यह कि दोनों कई तरह की परेशानियों से लड़ते हुए आगे बढ़ी हैं. दुति चंद ने खेल के मैदान के अलावा अंतरराष्ट्रीय खेल अदालत में जो लड़ाई लड़ी, वह महत्वपूर्ण है. हिमा ने असम में धान के खेतों में प्रैक्टिस करके खुद को निखारा. दुति चंद ने उड़ीसा के ग्रामीण इलाकों में. उनका परिवार गरीबी की रेखा के नीचे परिवार है. दोनों भारत की स्त्री-शक्ति को रेखांकित करती हैं और बदलते भारत की कहानी भी कहती हैं. खेल के मैदान में भारतीय लड़कियों की उपलब्धि के साथ-साथ अक्सर यह बात पीछे रह जाती है कि वे कितने किस्म की विपरीत परिस्थितियों का सामना करके सामने आती हैं.