Showing posts with label inext. Show all posts
Showing posts with label inext. Show all posts

Friday, March 1, 2019

आतंकवाद से लड़ने की पेचीदगियाँ

http://inextepaper.jagran.com/2048752/Kanpur-Hindi-ePaper,-Kanpur-Hindi-Newspaper-InextLive/01-03-19#page/12/1
भारतीय पायलट की वापसी के कारण फिलहाल दोनों देशों के बीच फैला तनाव कुछ समय के लिए दूर जरूर हो गया है, पर आतंकवाद का बुनियादी सवाल अपनी जगह है. यह सब पुलवामा कांड के कारण शुरू हुआ था. बुधवार को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में फिर से प्रस्ताव रखा है कि जैशे-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जाए. परिषद की प्रतिबंध समिति अगले दस दिन में इसपर विचार करेगी. पता नहीं, प्रस्ताव पास होगा या नहीं. चीन ने पुलवामा कांड की निंदा की है और बालाकोट पर की गई भारतीय वायुसेना की कार्रवाई की आलोचना भी नहीं की है, पर इस प्रस्ताव पर उसका दृष्टिकोण क्या होगा, यह देखना होगा.

पिछले दस साल में यह चौथी कोशिश है. सारी कोशिशें चीन ने नाकाम की हैं. वुज़ान में विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में हालांकि चीन ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की सारी बातों का समर्थन किया, पर पाकिस्तान का नाम नहीं लिया. एक प्रतिबंधित संगठन के नेता पर प्रतिबंध लगाने में इतने पेच हैं. हम इस वास्तविकता की अनदेखी नहीं कर सकते.

आतंकवाद पर विजय केवल फौजी कार्रवाई से हासिल नहीं होगी. उसके लिए राजनयिक मोर्चे पर ही लड़ना होगा. और केवल मसूद अज़हर पर पाबंदी लगाने से सारा काम नहीं होगा. पर वह बड़ा कदम होगा. सफलता तभी मिलेगी, जब पाकिस्तानी समाज इसके खिलाफ खड़ा होगा. सीमा के दोनों तरफ कट्टरता का माहौल खत्म होगा और कश्मीर में शांति की स्थापना होगी. क्या यह सब आसानी से सम्भव है? 


बालाकोट स्थित जैशे-मोहम्मद के ट्रेनिंग सेंटर पर हमले के बाद पाकिस्तानी आईएसपीआर के मेजर जनरल आसिफ़ ग़फ़ूर ने सुबह 5.12 मिनट पर पहला ट्वीट किया था, पर भारत सरकार की तरफ से पहली आधिकारिक जानकारी 11.30 बजे विदेश सचिव विजय गोखले ने दी. रक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में काफी सोच-विचार के बाद भारत ने इसे ‘नॉन-मिलिट्री’ एक्शन बताया था. हमला पाकिस्तान पर नहीं था, बल्कि ऐसे दुश्मन पर था, जो पाकिस्तान में तो है, पर नॉन-स्टेट एक्टर है. 

Monday, February 25, 2019

कश्मीरियों को जोड़िए, तोड़िए नहीं


http://inextepaper.jagran.com/2042227/Kanpur-Hindi-ePaper,-Kanpur-Hindi-Newspaper-InextLive/25-02-19#page/8
पुलवामा हमले के बाद देश के कई इलाकों में कश्मीरी मूल के लोगों पर हमले की खबरें आईं और इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार समेत 11 राज्यों को नोटिस जारी किया है. अदालत ने सभी राज्यों के चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी को निर्देश दिया है कि कश्मीरियों पर होने वाले किसी भी हमले के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करें. जिन राज्यों को नोटिस दिया गया है उनमें जम्मू कश्मीर उत्तराखंड, हरियाणा, यूपी, बिहार, मेघालय, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल, पंजाब और महाराष्ट्र शामिल हैं.

कश्मीरियों पर हमलों की खबरों के साथ ऐसी खबरें भी हैं कि कई जगहों पर इन्हें बचाने वाले लोग भी सामने आए. हालांकि ऐसी खबरों को ज्यादा तवज्जोह नहीं मिली, पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से भरोसा बढ़ा है. भले ही बचाने वालों की संख्या कम रही हो, पर हमारे बीच सकारात्मक सोच वाले भी मौजूद हैं. लोगों को भावनाओं में बहाना आसान है, सकारात्मक सोच पैदा करना काफी मुश्किल है. पर हमें इसके व्यापक पहलुओं पर विचार करना चाहिए. साथ ही मॉब लिंचिंग की मनोदशा को पूरी ताकत से धिक्कारना होगा. यदि हम कश्मीरियों को कट्टरपंथी रास्ते पर जाने से रोकना चाहते हैं, तो पहले हमें उस रास्ते का बहिष्कार करना होगा. 

Tuesday, February 19, 2019

कुलभूषण जाधव को क्या हम बचा पाएंगे?


पुलवामा कांड के ठीक चार दिन बाद सोमवार से हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में कुलभूषण जाधव के मामले की सुनवाई शुरू हो गई है, जो चार दिन चलेगी. इन चार दिनों में न केवल इस मामले के न्यायिक बिन्दुओं की चर्चा होगी, बल्कि भारत-पाकिस्तान रिश्तों की भावी दिशा भी तय होगी. भारत लगातार इस बात पर जोर दे रहा है कि पाकिस्तान का फौजी प्रतिष्ठान अंतरराष्ट्रीय नियमों-मर्यादाओं और मानवाधिकार के बुनियादी सिद्धांतों को मानता नहीं है. पर ज्यादा बड़ा सवाल है कि क्या हम कुलभूषण जाधव को छुड़ा पाएंगे? इस कानूनी लड़ाई के अलावा भारत के पास दबाव बनाने के और तरीके क्या हैं? पर इतना तय है कि आंशिक रूप से भी यदि हम सफल हुए तो वह पाकिस्तान पर दबाव बनाने में मददगार होगा.

इतिहास के बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव पर हम खड़े हैं. इस मामले में अदालत ने सन 2017 में पाकिस्तान को आदेश दिया था कि वह जाधव का मृत्युदंड स्थगित रखे. अदालत का फैसला आने में चार-पाँच महीने लगेंगे, पर यह फैसला दोनों देशों के रिश्तों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. पाकिस्तान को लगता है कि भारत में चुनाव के बाद बनने वाली नई सरकार से उसकी बात हो सकती है, पर जाधव को कुछ हुआ, तो वार्ता की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.

Tuesday, February 12, 2019

अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय भूमिका की परीक्षा

http://inextepaper.jagran.com/2022523/Kanpur-Hindi-ePaper,-Kanpur-Hindi-Newspaper-InextLive/12-02-19#page/8/1
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी अब लगभग निश्चित है. अमेरिका मानता है कि पाकिस्तानी सहयोग के बिना यह समझौता सम्भव नहीं था. उधर तालिबान भी पाकिस्तान का शुक्रगुजार है. रविवार 10 फरवरी को पाकिस्तान के डॉन न्यूज़ टीवी पर प्रसारित एक विशेष इंटरव्यू में तालिबान प्रवक्ता ज़बीउल्ला मुजाहिद ने कहा कि हम सत्ता में वापस आए तो पाकिस्तान को भाई की तरह मानेंगे. उन्होंने कहा कि इस वक्त अफ़ग़ानिस्तान में जो संविधान लागू है, वह अमेरिकी हितों के अनुरूप है. हमारा शत-प्रतिशत मुस्लिम समाज है और हमारा संविधान शरिया पर आधारित होगा.

इसके पहले 6 फरवरी को मॉस्को में रूस की पहल पर हुई बातचीत में आए तालिबान प्रतिनिधियों ने कहा कि हम समावेशी इस्लामी-व्यवस्था चाहते हैं, इसलिए नया संविधान लाना होगा. तालिबानी प्रतिनिधिमंडल के नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकज़ाई ने कहा कि काबुल सरकार का संविधान अवैध है. उसे पश्चिम से आयात किया गया है. वह शांति के रास्ते में अवरोध बनेगा. हमें इस्लामिक संविधान लागू करना होगा, जिसे इस्लामिक विद्वान तैयार करेंगे.

सवाल है कि अफ़ग़ानिस्तान की काबुल सरकार को मँझधार में छोड़कर क्या अमेरिकी सेना यों ही वापस चली जाएगी? पाकिस्तानी सेना के विशेषज्ञों को लगता है कि अब तालिबान शासन आएगा. वे मानते हैं कि तालिबान और अमेरिका के बीच बातचीत में उनके देश ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है और इसका पुरस्कार उसे मिलना चाहिए. अख़बार ‘दुनिया’ में प्रकाशित एक आलेख के मुताबिक़ पाकिस्तान ने तालिबान पर दबाव डाला कि वे अमेरिका से बातचीत के लिए तैयार हो जाएं. इस वक्त वह ऐसा भी नहीं जताना चाहता कि तालिबान उसके नियंत्रण में है. अलबत्ता अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान की सरकार को आश्वस्त किया है कि हम उसे मँझधार में छोड़कर जाएंगे नहीं. अमेरिका शुरू से मानता रहा है कि तालिबान को पाकिस्तान में सुरक्षित पनाह मिली हुई है.

Wednesday, February 6, 2019

सीबीआई और पुलिस का राजनीतिकरण

http://inextepaper.jagran.com/2013528/Agra-Hindi-ePaper,-Agra-Hindi-Newspaper-–-InextLive/06-02-19#page/8/1
सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के पुलिस-कमिश्नर राजीव कुमार की गिरफ्तारी रोकने के बावजूद सीबीआई की पूछताछ से उन्हें बरी नहीं किया है. यह पूछताछ होगी. इस मामले में किसी की जीत या हार नहीं हुई है. टकराव फौरी तौर पर टल गया है, पर उसके बुनियादी कारण अपनी जगह कायम हैं. राजनीतिक मसलों में सीबीआई के इस्तेमाल का आरोप देश में पहली बार नहीं लगा है, और लगता नहीं कि केन्द्र की कोई भी सरकार इसे बंधन-मुक्त करेगी. उधर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद राज्य सरकारें पुलिस-सुधार को तैयार नहीं हैं. वे पुलिस का इस्तेमाल अपने तरीके से करना चाहती हैं. राजनीतिकरण इधर भी है और उधर भी.
राजीव कुमार के घर पर छापामारी के समय और तौर-तरीके के कारण विवाद खड़ा हुआ है. सीबीआई जानना चाहती है कि विशेष जाँच दल के प्रमुख के रूप में उन्होंने सारदा घोटाले की क्या जाँच की और उनके पास कौन से दस्तावेज हैं. इस जानकारी को हासिल करने कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए और उसमें अड़ंगे लगाना गलत है, पर देखना होगा कि सीबीआई का तरीका क्या न्याय संगत था? क्या उसने वे सारी प्रक्रियाएं पूरी कर ली थीं, जो इस स्तर के अफसर से पूछताछ के लिए होनी चाहिए? इन बातों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी सुनवाई के बाद ही आएगा.
केन्द्र और ममता बनर्जी दोनों इस मामले का राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं. बीजेपी बंगाल में प्रवेश करके ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटें हासिल करने की कोशिश में है, वहीं ममता बनर्जी खुद को बीजेपी-विरोधी मुहिम की नेता के रूप में स्थापित कर रहीं हैं. हाल में उनकी सरकार ने बीजेपी को बंगाल में रथ-यात्राएं निकालने से रोका है. बीजेपी बंगाल के ग्रामीण इलाकों में प्रवेश कर रही है. तृणमूल-विरोधी सीपीएम के कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल होते जा रहे हैं.
संघीय-व्यवस्था में केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच इस प्रकार का विवाद अशोभनीय है. देश की जिन कुछ महत्वपूर्ण संस्थाओं को जनता की जानकारी के अधिकार के दायरे से बाहर रखा गया है, उनमें सीबीआई भी है. इसके पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा और मामलों की संवेदनशीलता को मुख्य कारण बताया जाता है, पर जैसे ही इस संस्था को स्वायत्त बनाने और सरकारी नियंत्रण से बाहर रखने की बात होती है, सभी सरकारें हाथ खींच लेती हैं.

Saturday, February 2, 2019

उड़ानें भरता बजट


http://inextepaper.jagran.com/2007752/Kanpur-Hindi-ePaper,-Kanpur-Hindi-Newspaper-InextLive/02-02-19#page/8/1
मोदी सरकार का अंतिम बजट वैसा ही लुभावना और उम्मीदों से भरा है, जैसा सन 2014 में इस सरकार का पहला बजट था. इसमें गाँवों और किसानों के लिए तोहफों की भरमार है और साथ ही तीन करोड़ आय करदाताओं के लिए खुशखबरी है. कामगारों के लिए पेंशन है. उन सभी वर्गों का इसमें ध्यान रखा गया है, जो जनमत तैयार करते हैं. ऐसा भी नहीं कि इन घोषणाओं से खजाना खाली हो जाएगा, बल्कि अर्थ-व्यवस्था बेहतरी का इशारा कर रही है.

दो हेक्टेयर से कम जोत वाले किसानों सालाना छह हजार रुपये की मदद देने की जो घोषणा की गई है, उसे सार्वभौमिक न्यूनतम आय कार्यक्रम की शुरूआत मान सकते हैं. बेशक यह चुनाव से जुड़ा है, पर इस अधिकार से सरकार को वंचित नहीं कर सकते. अलबत्ता पूछ सकते हैं कि इसे लागू कैसे करेंगे? व्यावहारिक रूप से इन्हें लागू करने में कोई दिक्कत नहीं आएगी. बल्कि आने वाले वर्षों में ये स्कीमें और ज्यादा बड़े आकार में सामने आएंगी, क्योंकि अर्थ-व्यवस्था इन्हें सफलता से लागू करने की स्थिति में है.

पिछले साल जिस तरह से आयुष्मान भारत कार्यक्रम की घोषणा की गई थी, उसी तरह यह एक नई अवधारणा है, जो समय के साथ विकसित होगी. किसान सम्मान निधि से करीब 12 करोड़ छोटे किसानों का भला होगा. इन्हीं परिवारों को उज्ज्वला, सौभाग्य और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का लाभ मिलेगा. यह स्कीम 1 दिसम्बर 2018 से लागू हो रही है. यानी कि इसकी पहली किस्त चुनाव के पहले किसानों को मिल भी जाएगी. 

Saturday, January 26, 2019

भारतीय गणतंत्र की विडंबनाएं


इस साल हम अपना सत्तरवाँ गणतंत्र दिवस मनाएंगे. सत्तर साल कुछ भी नहीं होते. पश्चिमी देशों में आधुनिक लोकतंत्र के प्रयोग पिछले ढाई सौ साल से ज्यादा समय से हो रहे हैं, फिर भी जनता संतुष्ट नहीं है. पिछले नवम्बर से फ्रांस में पीली कुर्ती आंदोलनचल रहा है. फ्रांस में ही नहीं इटली, बेल्जियम और यूरोप के दूसरे देशों में जनता बेचैन है. हम जो कुछ भी करते हैं, वह दुनिया की सबसे बड़ी गतिविधि होती है. हमारे चुनाव दुनिया के सबसे बड़े चुनाव होते हैं, पर चुनाव हमारी समस्या है और समाधान भी.
ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को भारत की आजादी को लेकर संदेह था. उन्होंने कहा था, ‘धूर्त, बदमाश, एवं लुटेरे हाथों में सत्ता चली जाएगी. सभी भारतीय नेता सामर्थ्य में कमजोर और महत्त्वहीन व्यक्ति होंगे. वे जबान से मीठे और दिल से नासमझ होंगे. सत्ता के लिए वे आपस में ही लड़ मरेंगे और भारत राजनैतिक तू-तू-मैं-मैं में खो जाएगा.’
चर्चिल को ही नहीं सन 1947 में काफी लोगों को अंदेशा था कि इस देश की व्यवस्था दस साल से ज्यादा चलने वाली नहीं है. टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा. ऐसा नहीं हुआ, पर सपनों का वैसा संसार भी नहीं बसा जैसा गांधी-नेहरू ने कहा था. हम विफल नहीं हैं, पर सफल भी नहीं हैं. इस सफलता या विफलता का श्रेय काफी श्रेय हमारी राजनीति को जाता है और राजनीति की सफलता या विफलता में हमारा भी हाथ है.

Monday, January 14, 2019

बसपा-सपा ने क्यों की कांग्रेस से किनाराकशी?


http://inextepaper.jagran.com/1980169/Kanpur-Hindi-ePaper,-Kanpur-Hindi-Newspaper-InextLive/14-01-19#page/8/1
बसपा और सपा के गठबंधन की घोषणा करते हुए शनिवार को मायावती ने सिर उठाकर कहा कि कांग्रेस को शामिल न करने के बारे में आप कोई सवाल पूछें उससे पहले ही हम बता देते हैं कि देश की तमाम समस्याओं के लिए बीजेपी के साथ कांग्रेस भी जिम्मेदार है. यह भी कि कांग्रेस के साथ गठबंधन करने पर वोट ट्रांसफर भी नहीं होता. हमारा 1996 का और सपा का 2017 का यह अनुभव है. इस स्पष्टीकरण के बाद यह संशय कायम है कि ये दोनों दल कांग्रेस से दूरी क्यों बना रहे हैं?

किसी ने अखिलेश से पूछा कि क्या आप प्रधानमंत्री पद के लिए मायावती का समर्थन करेंगे? उन्होंने अपनी हामी भरी और मायावती मुस्कराईं. मायावती ने कहा कि यह गठबंधन 2019 के चुनाव से आगे जाएगा. कांग्रेस को शामिल करने से गठबंधन का वोट बढ़ता, पर फसल का बँटवारा होता. दोनों के हिस्से दस-दस सीटें कम पड़तीं. त्रिशंकु संसद बनने की स्थिति में उनकी मोल-भाव की ताकत कम हो जाती. दोनों को अपनी मिली-जुली ताकत का एहसास है. उनकी दिलचस्पी चुनावोत्तर परिदृश्य में है. कांग्रेस के साथ जाएंगे, तो उसके दबाव में रहना होगा. हमारी मदद से वह 15-20 सीटें ज्यादा ले जाएगी. ताकत उसकी बढ़ेगी, हमारी कम हो जाएगी.

Monday, January 7, 2019

राफेल से जुड़े वाजिब सवाल



दुनिया में रक्षा-उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक भारत है. हमारी साठ फीसदी से ज्यादा रक्षा-सामग्री विदेशी है. स्वदेशी रक्षा-उद्योग के पिछड़ने की जिम्मेदारी राजनीति पर भी है. सार्वजनिक रक्षा-उद्योगों ने निजी क्षेत्र को दबाकर रखा. सरकारी नीतियों ने इस इजारेदारी को बढ़ावा दिया. सन 1962 में चीनी हमले के बाद से देश का रक्षा-व्यय बढ़ा और आयात भी. नौसेना ने स्वदेशी तकनीक का रास्ता पकड़ा, पर वायुसेना ने विदेशी विमानों को पसंद किया. इस वजह से एचएफ-24 मरुत विमान का कार्यक्रम फेल हुआ. हम इंजन के विकास पर निवेश नहीं कर पाए.  
राजनीतिक शोर नहीं होता, तो शायद हम राफेल पर भी बात नहीं करते. चुनाव करीब हैं, इसलिए यह शोर है. अरुण जेटली ने कहा है कि कांग्रेस उस घोटाले को गढ़ रही है, जो हुआ ही नहीं. शायद कांग्रेस को लगता है कि जितना मामले को उछालेंगे, लोगों को लगेगा कि कुछ न कुछ बात जरूर है. जरूरी है कि इसकी राजनीति से बाहर निकलकर इसे समझा जाए.

Monday, December 31, 2018

उम्मीदों और अंदेशों से घिरा साल

http://inextepaper.jagran.com/1959798/Kanpur-Hindi-ePaper,-Kanpur-Hindi-Newspaper-InextLive/31-12-18#page/8/1
राजनीतिक दृष्टि से यह कांग्रेस की आंशिक वापसी और बीजेपी के आंशिक पराभव का साल था. न तो यह कांग्रेस को पूरी विजय देकर गया और न बीजेपी को स्थायी पराजय. अलबत्ता इस साल जो भी हुआ, उसे 2019 के संकेतक के रूप में देखा जा रहा है. हमारे जीवन पर राजनीति हावी है, इसलिए हम सामाजिक-सांस्कृतिक प्रश्नों पर ध्यान कम दे पाते हैं. यह साल गोरक्षा के नाम पर हुई बर्बरता और ‘मीटू आंदोलन’ के लिए याद रखा जाएगा. दोनों बातें हमारे अंतर्विरोधों पर रोशनी डालती हैं. यौन-शोषण की काफी कहानियाँ झूठी होती हैं, पर ज्यादा बड़ा सच है कि काफी कहानियाँ सामने नहीं आतीं. इस आंदोलन ने स्त्रियों को साहस दिया है.

हाल के वर्षों में हमारी अदालतों ने कुछ महत्वपूर्ण फैसले किए, जिनके सामाजिक निहितार्थ हैं. पिछले साल ‘प्राइवेसी’ को व्यक्ति का मौलिक अधिकार माना गया. दया मृत्यु के अधिकार को लेकर एक और फैसला हुआ था, जिसने जीवन के बुनियादी सवालों को छुआ. इस साल हादिया मामले में जीवन साथी को चुनने के अधिकार पर महत्वपूर्ण आया. धारा 377 के बारे में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इतने साल तक समान अधिकार से वंचित करने के लिए समाज को एलजीबीटी समुदाय से माफी माँगनी चाहिए. 

Sunday, December 23, 2018

कश्मीर पर राजनीतिक आमराय बने


फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि यदि हमारी पार्टी राज्य में सत्तारूढ़ हुई, तो 30 दिन के भीतर हम क्षेत्रीय स्वायत्तता सुनिश्चित कर देंगे. नेशनल कांफ्रेंस की पिछली सरकार ने राज्य में जम्मू, लद्दाख और घाटी को अलग-अलग स्वायत्त क्षेत्र बनाने की पहल की थी. क्या यह कश्मीर समस्या का समाधान होगा? पता नहीं इस पेशकश पर कश्मीर और देश की राजनीति का दृष्टिकोण क्या है, पर हमारी ढुलमुल राजनीति का फायदा अलगाववादी उठाते हैं. जम्मू और लद्दाख के नागरिक भारत के साथ पूरी तरह जुड़े हुए हैं, पर घाटी में काफी लोग अलगाववादियों के बहकावे में हैं.

कश्मीर में जब भी कोई घटना होती है, देश के लोगों के मन में सवाल उठने लगते हैं. हाल में पुलवामा के उग्र भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षाबलों को गोली चलानी पड़ी, जिसमें सात नागरिकों की मौत हो गई. मुठभेड़ में एक जवान भी शहीद हुआ और तीन उग्रवादी भी मारे गए. इस घटना पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा, हमारी माँग है कि संरा सुरक्षा परिषद जनमत-संग्रह की प्रतिबद्धता को पूरा करे. पाकिस्तानी आजकल बात-बात पर यह माँग करते हैं. पर सच यह है कि सुरक्षा परिषद में कश्मीर पर अंतिम विमर्श पचास के दशक में कभी हुआ था. उसके बाद से वहाँ यह सवाल उठा ही नहीं.

Tuesday, December 18, 2018

राजनीतिक दलदल में ‘राफेल’


राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से विवाद बजाय खत्म होने के बढ़ गया है. अदालती फैसले के एक पैराग्राफ को लेकर कांग्रेस पार्टी ने सरकार पर नए आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं. इससे मूल विवाद के अलावा कुछ नए आरोप और जुड़ गए हैं. शुक्रवार को अदालत ने जो फैसला सुनाया था, उससे सरकारी पक्ष मजबूत हो गया था, पर फैसले की भाषा के कारण लगता है कि यह विवाद अभी तबतक चलेगा, जबतक सुप्रीम कोर्ट उसे और स्पष्ट न करे.

शनिवार को सरकार ने हलफनामा दाखिल करके कहा कि सरकार ने सीलबंद लिफाफों में अदालत को जानकारी दी थी, उसमें यह नहीं लिखा गया था कि इस मामले में सीएजी रिपोर्ट आ गई है और उसे लोकलेखा समिति (पीएसी) को दिखा दिया गया है. सरकार ने केवल यह बताया था कि इस प्रकार के सौदों की जानकारी संसद के सामने लाने की प्रक्रिया क्या है. अदालती फैसले की भाषा से लगता है कि यह प्रक्रिया पूरी हो गई है. ऐसा नहीं है और सीएजी रिपोर्ट अभी दाखिल नहीं हुई है.

Saturday, December 15, 2018

कांग्रेस के सामने खड़ी चुनौतियाँ

जीत के फौरन बाद तीन राज्यों में मुख्यमंत्रियों के चयन को लेकर पैदा हुआ असमंजस कुछ सवाल खड़े करता है. कांग्रेस एक नए बयानिया (नैरेटिव) के साथ वापसी करना चाहती है. राहुल गांधी अनुशासित और नवोन्मेषी राजनीति को बढ़ावा देना चाहते हैं. ऐसा कैसे होगा? क्या इसे उस राजनीति का नमूना मानें? तीनों राज्यों में मुख्यमंत्रियों के नाम को लेकर पार्टी कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए. समर्थन में नारेबाजी अनोखी बात नहीं है, पर यहाँ तो नौबत आगज़नी, वाहनों की तोड़फोड़ और सड़क जाम तक आ गई. प्रत्याशियों को अपने-अपने समर्थकों को समझाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ा. कार्यकर्ताओं तक की बात भी नहीं है. लगता है कि नेतृत्व ने भी अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया है.
इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक संभव है असमंजस दूर हो गए हों, पर अब जो सवाल सामने आएंगे, वे दूसरे असमंजसों को जन्म देंगे. सरकार का गठन असंतोषों का बड़ा कारण बनता है, यहाँ भी बनेगा. नेताओं के व्यक्तिगत रिश्ते, परिवार से नजदीकी, प्रशासनिक अनुभव, कार्यकर्ताओं से जुड़ाव, पार्टी के कोष में योगदान कर पाने और 2019 के लोकसभा चुनाव का अपने इलाके में बेहतर संचालन कर पाने की क्षमता वगैरह की अब परीक्षा होगी. 
कांग्रेस कार्यकर्ताओं को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि राजस्थान और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में सकल वोट प्रतिशत के मामले में बीजेपी और कांग्रेस की लगभग बराबरी है. लोकसभा चुनाव में एक या दो फीसदी वोट की गिरावट से ही कहानी कुछ से कुछ हो सकती है. यदि वे सरकार के गठन के साथ ही अराजक व्यवहार का प्रदर्शन करेंगे, तो उनकी छवि खराब होगी. 

Wednesday, December 12, 2018

बीजेपी की उतरती कलई


इन चुनाव परिणामों का बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए एक ही संदेश है. वक्त है अब भी बदल जाओ. पर फटकार बीजेपी के नाम है. उत्तर के तीनों राज्यों में उसकी कलई उतर गई है. दक्षिण और पूर्वोत्तर में भी कुछ मिला नहीं. उसने खोया ही खोया है. बेशक छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान तीनों में एंटी-इनकम्बैंसी थी, पर पार्टी ने बचने के लिए जिस हिन्दुत्व का सहारा लिया, वह कत्तई कारगर साबित नहीं हुआ. संघ का कुशल-कारगर संगठन और अमित शाह की शतरंजी-योजनाएं फेल हो गईं.

सबसे बड़ी और शर्मनाक हार छत्तीसगढ़ में हुई, जो बीजेपी का आदर्श राज्य हुआ करता था. उसकी तरह 5 साल की एंटी इनकम्बैंसी मध्य प्रदेश में भी थी, पर शिवराज सिंह चौहान को श्रेय जाता है कि उन्होंने शर्मनाक हार को बचाकर उसे काँटे की टक्कर बनाया. दोनों पार्टियों का वोट प्रतिशत तकरीबन बराबर है. रमन सिंह और वसुंधरा राजे ऐसा करने में विफल रहे. छत्तीसगढ़ और राजस्थान दोनों राज्यों में बीजेपी के वोट प्रतिशत में आठ-आठ फीसदी की गिरावट आई है.

Tuesday, December 4, 2018

किसानों का दर्द और जीडीपी के आँकड़े


दो तरह की खबरों को एकसाथ पढ़ें, तो समझ में आता है कि लोकसभा चुनाव करीब आ गए हैं. नीति आयोग और सांख्यिकी मंत्रालय ने राष्ट्रीय विकास दर के नए आँकड़े जारी किए हैं. इन आँकड़ों की प्रासंगिकता पर बहस चल ही रही थी कि दिल्ली में हुई दो दिन की किसान रैली ने देश का ध्यान खींच लिया. दोनों परिघटनाओं की पृष्ठभूमि अलग-अलग है, पर ठिकाना एक ही है. दोनों को लोकसभा चुनाव की प्रस्तावना मानना चाहिए.

संसद के शीत-सत्र की तारीखें आ चुकी हैं. किसानों का मसला उठेगा, पर इससे केवल माहौल बनेगा. नीतिगत बदलाव की अब आशा नहीं है. इसके बाद बजट सत्र केवल नाम के लिए होगा. जहाँ तक किसानों से जुड़े दो निजी विधेयकों का प्रश्न है, यह माँग हमारी परम्परा से मेल नहीं खाती. ऐसे कानून बनने हैं, तो विधेयक सरकार को लाने होंगे, वैसे ही जैसे लोकपाल विधेयक लाया था. यों उसका हश्र क्या हुआ, आप बेहतर जानते हैं.

Wednesday, November 28, 2018

चुनावी दौर में मंदिर का शोर

अयोध्या में राम मंदिर बनाने की माँग फिर से सुनाई पड़ रही है. रविवार को विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या की धर्मसभा में आंदोलन को जारी रखने का संकल्प किया. शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे भी अयोध्या आए और उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पास मंदिर बनाने का पूरा अधिकार है. ऐसा नहीं करेगी तो यह सरकार दोबारा नहीं बनेगी, लेकिन राम मंदिर जरूर बनेगा. ठाकरे की दिलचस्पी अपने वोटर में है. उन्होंने सरकार से मंदिर निर्माण की तारीख पूछी है.  
उधर नागपुर की हुंकार सभा में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि राम मंदिर सुप्रीम कोर्ट की प्राथमिकता नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हमारे धैर्य का समय बीता जा रहा है. एक साल पहले तक मैं कहता था, धैर्य रखो, आज मैं कह रहा हूँ कि अब आंदोलन निर्णायक हो.उन्होंने सरकार से कहा कि वह सोचे कि मंदिर कैसे बनाया जा सकता है. संघ के एक राष्ट्रीय नेता इंद्रेश कुमार ने मंगलवार को एक गोष्ठी में सुप्रीम कोर्ट पर भी तीखी टिप्पणी कर दी. उन्होंने कहा कि सरकार कानून बनाने जा रही है. चुनाव की आदर्श आचरण संहिता लागू है, इसलिए घोषणा नहीं की है. साथ में उनका कहना है कि सरकार कानून बनाने का प्रस्ताव लाए, तो संभव है कि सुप्रीम कोर्ट उसे स्टे कर दे. हो सकता है आदेश लाने के खिलाफ कोई सिरफिरा सुप्रीम कोर्ट जाएगा, तो आज का चीफ जस्टिस उसे स्टे भी कर सकता है. बीजेपी और संघ के नेता सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं. उधर विहिप नेता कह रहे हैं, अब याचना नहीं, रण होगा. निर्मोही अखाड़े के महंत रामजी दास ने कहा, मंदिर निर्माण की तारीख की घोषणा महाकुंभ के दौरान की जाएगी.

Saturday, November 24, 2018

कश्मीर को नई शुरुआत का इंतजार


कश्मीर विधानसभा भंग करने के फैसले ने एक तरफ राजनीतिक और सांविधानिक विवादों को जन्म दिया है, वहीं राज्य की जटिल समस्या को शिद्दत के साथ उभारा है. कुछ संविधान विशेषज्ञों ने विधानसभा भंग करने के राज्यपाल के अधिकार को लेकर आपत्ति व्यक्त की है. सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था है कि सरकार बनने की स्थिति है या नहीं, इसका फैसला सदन के फ्लोर पर होना चाहिए. राज्यपाल सतपाल मलिक का कहना है कि मैं किसी भी पार्टी को सरकार बनाने का मौका देता तो राज्य में बड़े पैमाने पर खरीद-फरोख्त होती.

सरकार बनाने के लिए वहाँ दो तरह की खिचड़ियाँ पक रहीं थीं. दोनों के स्थायित्व की गारंटी नहीं थी. पता नहीं कि राज्यपाल के फैसले को चुनौती दी जाएगी या नहीं, पर इसके सांविधानिक निहितार्थ पर विचार जरूर किया जाना चाहिए. सवाल है कि विधानसभा भंग करने की भी जल्दी क्या थी? लोकतांत्रिक विकल्प खोजने चाहिए थे. विधानसभा भंग होनी ही थी, तो जून में क्यों नहीं कर दी गई, जब बीजेपी के समर्थन वापस लेने के बाद महबूबा मुफ्ती ने इस्तीफा दिया था?

Wednesday, November 21, 2018

सरकार और बैंक की सकारात्मक सहमतियाँ


सरकार, रिजर्व बैंक, उद्योग जगत की महत्वपूर्ण हस्तियों और बैंकिंग विशेषज्ञों की आमराय से देश की पूँजी और मौद्रिक-व्यवस्था न केवल पटरी पर वापस आ रही है, बल्कि भविष्य के लिए नए सिद्धांतों को भी तय कर रही है. इस लिहाज से हाल में खड़े हुए विवादों को सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए. ये फैसले और यह विमर्श रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 7 की रोशनी में ही हुआ है. सोमवार को रिजर्व बैंक बोर्ड की बैठक अपने किस्म की पहली थी. इतनी लम्बी बैठक शायद ही पहले कभी हुई होगी. करीब नौ घंटे चली बैठक के बाद सरकार और बैंक के बीच तनातनी न केवल ठंडी पड़ी, बल्कि भविष्य का रास्ता भी निकला है. 

यों अब भी कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि टकराव अवश्यंभावी है, फिलहाल बैंक ने टकराव मोल नहीं लिया है और सरकार की काफी बातें मान ली हैं. इन विशेषज्ञों को बैंक के बोर्ड में शामिल प्राइवेट विशेषज्ञों को लेकर आपत्ति है, जिन्हें सरकार मनोनीत करती है. इसका एक मतलब है कि भविष्य में कभी टकराव इस हद तक बढ़े कि दोनों पक्ष अपने कदम वापस खींचने को तैयार नहीं हों, तो ये सदस्य सरकार के पक्ष में पलड़े को झुका देंगे. पर ऐसा माना ही क्यों जाए कि टकराव होना ही चाहिए. क्या दोनों पक्षों को एक-दूसरे की बात समझनी नहीं चाहिए, जैसा इसबार हुआ है?

बैठक के पहले कयास था कि बैंक पर सरकार द्वारा मनोनीत प्राइवेट निदेशक अपने संख्याबल के आधार पर हावी हो जाएंगे. ऐसा कुछ नहीं हुआ. जो जानकारी बाहर आई है उसके अनुसार किसी भी प्रस्ताव पर मतदान की नौबत नहीं आई. बैंक-प्रतिनिधियों ने सरकार की बातों को गौर से सुना और सरकार ने बैंक-प्रतिनिधियों को पूरा सम्मान दिया. दोनों पक्षों ने आग पर पानी डालने का काम किया. यह तनातनी कितनी थी, इसे लेकर भी कयास ज्यादा हैं. मीडिया और राजनीति के मैदान में इसका विवेचन ज्यादा हुआ और ट्विटरीकरण ने आग लगाई.

Tuesday, November 13, 2018

‘नाम’ और उससे जुड़ी राजनीति


इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने और फिर फैजाबाद की जगह अयोध्या को जिला बनाए जाने के बाद नाम से जुड़ी खबरों की झड़ी लग गई है. केंद्र सरकार ने पिछले एक साल में कम से कम 25 शहरों, कस्बों और गांवों के नाम बदलने के प्रस्ताव को हरी झंडी दी है जबकि कई प्रस्ताव उसके पास विचाराधीन हैं. इनमें पश्चिम बंगाल का नाम ‘बांग्ला’ करने, शिमला को श्यामला, लखनऊ को लक्ष्मणपुरी, मुजफ्फरनगर को लक्ष्मीनगर, अलीगढ़ को हरिगढ़ और आगरा को अग्रवन का नाम देने के प्रस्ताव शामिल हैं. गुजरात के मुख्यमंत्री ने कहा है कि हम अहमदाबाद का नाम कर्णवती करने पर विचार कर रहे हैं. 

दो राय नहीं कि यह नाम-परिवर्तन बीजेपी के हिन्दुत्व का हिस्सा है और इस तरीके से पार्टी अपने जनाधार को बनाए रखना चाहती है. सवाल है कि क्या वास्तव में बड़ी संख्या में हिन्दुओं को यह सब पसंद आता है? क्या इन तौर-तरीकों से बड़े स्तर पर राष्ट्रवादी चेतना जागेगी? और क्या इस तरीके से देश की मुस्लिम संस्कृति को  सिरे से झुठलाया या खारिज किया जा सकेगा? हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति की वास्तविकता को क्या इस तरीके से खारिज किया जा सकता है?

नाम-परिवर्तन की प्रक्रिया आज अचानक शुरू नहीं हुई है. काफी पहले से चली आ रही है. भारत ही नहीं, सारी दुनिया में. कुंस्तुनतुनिया का नाम इस्तानबूल हो गया. पाकिस्तान के लायलपुर का नाम अब फैसलाबाद है. इस नाम-परिवर्तन के अलग-अलग कारण हैं. देश-काल, ऐतिहासिक घटनाक्रम और संस्कृतियों के बदलाव से ऐसा होता है. आज के दौर के इतिहास को बदलने में राजनीति की बड़ी भूमिका है. इस बदलाव के सांस्कृतिक और राजनीतिक कारण साफ हैं. बदलाव करने वाले इसे छिपाना भी नहीं चाहते.

Monday, November 5, 2018

सरकार और रिज़र्व बैंक की निरर्थक रस्साकशी


भारतीय अर्थ-व्यवस्था के लिए दो-तीन अच्छी खबरें हैं. ईरान से तेल खरीदने पर अमेरिकी पाबंदियों का खतरा टल गया है. अमेरिका ने जापान, भारत और दक्षिण कोरिया समेत अपने आठ मित्र देशों को छूट दे दी है. तेल की कीमतों में भी कुछ कमी आई है. विश्व बैंक की 16वीं कारोबार सुगमता (ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस) रैंकिंग में भारत इस साल 23 पायदान पार करके 100वें से 77वें स्थान पर पहुंच गया है. इससे भारत को विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी. इसके पूँजी निवेश को लेकर निराशा का भाव है. बैंकों की दशा खराब है.

वित्त मंत्रालय की कोशिशों के बावजूद लगता है कि इस साल राजकोषीय घाटा लक्ष्य से बाहर चला जाएगा. व्यापार घाटे में लगातार इजाफा हो रहा है. ऐसे में सीबीआई के भीतर टकराव और रिज़र्व बैंक के साथ केंद्र के टकराव ने हालात को और बिगाड़ दिया है. विडंबना है कि यह टकराव सैद्धांतिक नहीं है, बल्कि नासमझी का नतीज़ा है. और मीडिया ने इसे सनसनी का रूप दे दिया है. पराकाष्ठा पिछले हफ्ते हुई, जब केंद्र सरकार ने आरबीआई कानून की धारा 7 के संदर्भ में विचार-विमर्श शुरू कर दिया. केंद्र सरकार जरूरी होने पर इस धारा का इस्तेमाल करते हुए, रिज़र्व बैंक को सीधे निर्देश भेज सकती है.