प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी की तरफ से किए गए रविवार के 'जनता कर्फ्यू' के आह्वान का देश और विदेश में बड़ी संख्या में लोगों ने
समर्थन किया है। इस अपील को राष्ट्रीय ‘संकल्प और संयम’ के रूप में देखा जा रहा
है। करीब-करीब ऐसी ही अपीलें महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में की
थीं। गांधी के चरखा यज्ञ की सामाजिक भूमिका पर आपने ध्यान दिया है? देशभर के लाखों लोग जब चरखा चलाते थे, तब कपड़ा बनाने के लिए
सूत तैयार होता था साथ ही करोड़ों लोगों की ऊर्जा एकाकार होकर राष्ट्रीय ऊर्जा में
तब्दील होती थी। ऐसी ही प्रतीकात्मकता का इस्तेमाल लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय
जवान, जय किसान’ के नारे के साथ किया था।
यह एकता केवल
संकटों का सामना करने के लिए ही नहीं चाहिए,
बल्कि राष्ट्रीय
निर्माण के लिए भी इसकी जरूरत है। स्वच्छ भारत और बेटी बचाओ जैसे अभियानों को
राष्ट्रीय संकल्प के रूप में देखना चाहिए और रविवार के ‘जनता कर्फ्यू’ को भी। यह
कार्यक्रम पूरे देश के संकल्प और मनोबल को प्रकट करेगा। प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संदेश के बाद
ज्यादातर प्रतिक्रियाएं सकारात्मक रही हैं। इनमें शशि थरूर और पी चिदंबरम जैसे
राजनेता, शेहला रशीद जैसी युवा नेता, सागरिका घोष, राजदीप सरदेसाई और
ट्विंकल खन्ना जैसे पत्रकार और लेखक तथा शबाना आज़मी और महेश भट्ट जैसे सिनेकर्मी
भी शामिल हैं, जो अक्सर मोदी के खिलाफ टिप्पणियाँ करते रहे
हैं।