Showing posts with label हरिभूमि. Show all posts
Showing posts with label हरिभूमि. Show all posts

Monday, June 12, 2017

मध्य एशिया में भारत

अस्ताना में जो डिप्लोमैटिक गेम शुरू हुआ है, उसके दीर्घकालीन निहितार्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए। भारत और पाकिस्तान दोनों अब शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य हैं। यह संगठन आर्थिक और क्षेत्रीय सहयोग के अलावा सामरिक संगठन भी है। कुछ साल पहले जब भारत ने रूस की मदद से इस संगठन में प्रवेश की तैयारी की थी, तब हमारा लक्ष्य मध्य एशिया से जुड़ने का था। इस बीच चीनी प्रयास से पाकिस्तान भी इसका सदस्य बन गया। अब भारत और पाकिस्तान दोनों देश एक साथ इस संगठन में शामिल हुए हैं। भारत को अब इसका सदस्य रहते हुए चीन और पाकिस्तान दोनों पर नजर रखनी होगी। दूसरी और इस संगठन में शामिल होने के बाद पाकिस्तान और चीन के साथ रिश्ते बेहतर होने की सम्भावनाएं भी हैं। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि आने वाला वक्त किस करवट बैठता है।  

मध्य एशिया के साथ जुड़ने में सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान है, जिसने अभी तक हमारे सारे जमीनी रास्ते रोक रखे हैं। अभी तक एससीओ का स्वरूप मध्य एशिया और चीन तक सीमित था, पर अब इसमें दक्षिण एशिया के दो देश पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हो गए हैं। ईरान तथा अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य में सदस्य बनने की सम्भावनाएं हैं। इसके अलावा नेपाल और श्रीलंका इसके डायलॉग पार्टनर हैं। यह चीनी नेतृत्व की महत्वाकांक्षाओं का विस्तार भी है, जो ‘वन रोड-वन बैल्ट (ओबोर)’ के रूप में इस इलाके में उभर कर आ रहीं हैं।

Sunday, June 4, 2017

मोदी-डिप्लोमेसी का राउंड-2


भारतीय डिप्लोमेसी के संदर्भ में कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं तेजी से घटित हुईं हैं और कुछ होने वाली हैं, जिन पर हमें ध्यान देना चाहिए। डोनाल्ड ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन की पेरिस-संधि से अमेरिका के हटने की घोषणा करके वैश्विक राजनीति में तमाम लहरें पैदा कर दी हैं। भारत के नजरिए से अमेरिका के इस संधि से हटने के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण है ट्रंप का भारत को कोसना। यह बात अब प्रधान मंत्री की इसी महीने होने वाली अमेरिका यात्रा का एक बड़ा मुद्दा होगी।

नरेन्द्र मोदी इन दिनों विदेश यात्रा पर हैं। इस यात्रा में वे ऐसे देशों से मिल रहे हैं, जो आने वाले समय में वैश्विक नेतृत्व से अमेरिका के हटने के बाद उसकी जगह लेंगे। इनमें जर्मनी और फ्रांस मुख्य हैं। रूस और चीन काफी करीब आ चुके हैं। भारत ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का विरोध तो किया ही है चीन की वन बेल्ट, वन रोड पहल का भी विरोध किया है। इस सिलसिले में  हुए शिखर सम्मेलन का बहिष्कार करके भारत ने बर्र के छत्ते में हाथ भी डाल दिया है।

Monday, May 29, 2017

बजने लगे 2019 के चुनावी ढोल

मोदी सरकार के तीन साल पूरे होते ही नेपथ्य में सन 2019 के ढोल बजने लगे हैं। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धुर पूर्वोत्तर जाकर देश के सबसे लंबे नदी पुल ढोला-सादिया सेतु का उद्घाटन करके यह संदेश दिया कि देश के हर कोने पर अब बीजेपी खड़ी है। गुवाहाटी की रैली में उन्होंने कहा, हमारी सरकार के लिए हिन्दुस्तान का हर कोना दिल्ली है। यह रैली एक तरह से 2019 के चुनाव प्रचार का प्रस्थान बिन्दु है। इसमें मोदी ने अपनी सारी उपलब्धियों को एक सूत्र में पिरोया था।
यह सिर्फ संयोग नहीं था कि शुक्रवार को ही दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विरोधी दलों के नेताओं को लंच-पार्टी में एकत्र किया। यह लंच प्रकट रूप में राष्ट्रपति चुनाव के लिए विरोधी दलों की ओर से एक प्रत्याशी के बारे में विचार करने के इरादे से आयोजित था, पर वस्तुतः यह 2019 के चुनाव में एक मोर्चा बनाने की शुरुआती पहल है। एक ही दिन के दो राजनीतिक आयोजनों की सरगर्मी से माहौल में तेजी आ गई है।

Monday, May 22, 2017

  जीएसटी यानी एक नए युग में प्रवेश

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने की तारीख नजदीक आने के पहले उससे जुड़ी सारी प्रक्रियाएं तकरीबन पूरी हो चुकी हैं। जीएसटी कौंसिल की श्रीनगर में हुई बैठकों में वस्तुओं और सेवाओं की दरों को मंजूरी मिल चुकी है। अभी अटकलें हैं कि कौन सी चीजें या सेवाएं सस्ती होंगी और कौन सी महंगी। यह मानकर चलना चाहिए कि इस व्यवस्था के लाभ सामने आने में दो साल लगेंगे। एक बड़ा काम हो गया, फिलहाल यह बड़ा लाभ है।
मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर टीका-टिप्पणियों का दौर चल रहा है। ज्यादातर बातें राजनीतिक हैं, पर इस राजनीति के पीछे बुनियादी बातें आर्थिक हैं। जीएसटी के अलावा आर्थिक सवालों का सबसे बड़ा रिश्ता रोजगार से है। सरकार की बागडोर संभालते ही नरेन्द्र मोदी ने हर साल एक करोड़ रोजगार पैदा करने का वादा किया था। यह वादा पूरा होता दिखाई नहीं पड़ रहा है। लेबर ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के अनुसार फीसदी की आर्थिक संवृद्धि के बावजूद पिछले साल रोजगार सृजन में केवल 1.1 फीसदी का इजाफा हुआ। यानी कि जितने नए रोजगार बनने चाहिए थे, उतने नहीं बने। सवाल है कितने नए रोजगार बने? यह सवाल भटकाने वाला है। इसे लेकर रोज सिर फुटौवल होता है, पर कोई नहीं जानता कि कितने नए रोजगार बने या कितने नहीं बने।

Sunday, May 14, 2017

विपक्षी बिखराव के तीन साल

मोदी सरकार के तीन साल पूरे हुए जा रहे हैं। सरकार के कामकाज पर निगाह डालने के साथ यह जानना भी जरूरी है कि इस दौरान विपक्ष की क्या भूमिका रही। पिछले तीन साल में मोदी सरकार के खिलाफ चले आंदोलनों, संसद में हुई बहसों और अलग-अलग राज्यों में हुए चुनावों के परिणामों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि विरोध या तो जनता की अपेक्षाओं से खुद को जोड़ नहीं पाया या सत्ताधारी दल के प्रचार और प्रभाव के सामने फीका पड़ गया। कुल मिलाकर वह बिखरा-बिखरा रहा।

सरकार और विरोधी दलों के पास अभी दो साल और हैं। सवाल है कि क्या अब कोई चमत्कार सम्भव है? सरकार-विरोधी एक मित्र का कहना है कि सन 1984 में विशाल बहुमत से जीतकर आई राजीव गांधी की सरकार 1989 के चुनाव में पराजित हो गई। उन्हें यकीन है कि सन 2018 में ऐसा कुछ होगा कि कहानी पलट जाएगी। मोदी सरकार को लगातार मिलती सफलताओं के बाद विरोधी दलों की रणनीति अब एकसाथ मिलकर भाजपा-विरोधी ‘महागठबंधन’ जैसा कुछ बनाने की है।

घातक है स्टूडियो उन्माद

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें कश्मीरी आतंकवादी दो पुलिस मुखबिरों को यातनाएं दे रहे हैं। साफ है कि इस वीडियो का उद्देश्य पुलिस की नौकरी के लिए कतारें लगाने वाले नौजवानों को डराना है। शुक्रवार की शाम यह वीडियो भारतीय चैनलों में बार-बार दिखाया जा रहा था। ऐसे तमाम वीडियो वायरल हो रहे हैं जो दर्शकों के मन में जुगुप्सा, नफरत और डर पैदा करते हैं। सोशल मीडिया में मॉडरेशन नहीं होता। इन्हें वायरल होने से रोका भी नहीं जा सकता। पर मुख्यधारा का मीडिया इनके प्रभाव का विस्तार क्यों करना चाहता है?

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उद्भव के बाद से भारतीय समाचार-विचार की दुनिया सनसनीखेज हो गई है। सोशल मीडिया का तड़का लगने से इसमें कई नए आयाम पैदा हुए हैं। सायबर मीडिया की नई साइटें खुलने के बाद समाचार-विचार का इंद्रधनुषी विस्तार भी देखने को मिल रहा है। इसमें एक तरफ संजीदगी है, वहीं खतरनाक और गैर-जिम्मेदाराना मीडिया की नई शक्ल भी उभर रही है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को 24 घंटे, हर रोज और हर वक्त कुछ न कुछ सनसनीखेज चाहिए।

Sunday, April 30, 2017

'आप' पर संकट के बादल

अरविन्द केजरीवाल ने एक बार फिर से माफी माँगी है कि हमने जनता के मिज़ाज को ठीक से नहीं समझा। आम आदमी पार्टी जितनी तेजी से उभरी थी, उससे भी ज्यादा तेजी के साथ उसका ह्रास होने लगा है। पिछले डेढ़-दो महीनों में उसे जिस तरह से सिलसिलेवार हार का सामना करना पड़ रहा है, वह आश्चर्यजनक है। राजनीतिक दलों की चुनाव में हार कोई अनहोनी नहीं है। ऐसा होता रहता है, पर जिस पार्टी का आधार ही नहीं बन पाया हो, उसका तेज पराभव ध्यान खींचता है। सम्भव है पार्टी इस झटके को बर्दाश्त कर ले और फिर से मैदान में आ जाए। पर इस वक्त उसपर संकट भारी है। दो साल पहले दिल्ली के जिस मध्यवर्ग ने उसे अभूतपूर्व जनादेश दिया था, उसने हाथ खींच लिया और ऐसी पटखनी दी है कि उसे बिलबिलाने तक का मौका नहीं मिल रहा है।

Sunday, April 23, 2017

कैसे कायम होगी विपक्षी एकता?

मई 2014 में लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने बजाय आत्ममंथन करने के घोषणा की कि हम बाउंस बैक करेंगे। उस साल नवम्बर के महीने में मोदी सरकार के 6 महीने के कार्यकाल के दौरान विभिन्न मुद्दों पर यू-टर्न लेने का आरोप लगाते हुए बुकलेट जारी की। '6 महीने पार, यू टर्न सरकार' टाइटल वाली इस बुकलेट में विभिन्न मुद्दों पर बीजेपी सरकार की 22 'पलटियों' का जिक्र किया गया था। कांग्रेस को लगता था कि उसने कहीं नारेबाजी में गलती की है। उसके बाद सन 2015 में पार्टी ने आक्रामक होने का फैसला किया। संसद के मॉनसून सत्र में व्यापम और सुषमा स्वराज वगैरह के खिलाफ मोर्चा खोला गया। संसदीय कार्यवाही ठप कर दी गई। उसके बाद से पार्टी की हर कोशिश विफल हो रही है। उसे हाल में एक मात्र सफलता पंजाब में मिली है, पर अकाली-भाजपा सरकार की ‘एंटी इनकम्बैंसी’ को देखते हुए इसे पार्टी नेतृत्व की सफलता नहीं कहा जा सकता।

पिछले साल नवम्बर में की गई नोटबंदी के खिलाफ कांग्रेस और विपक्ष ने हंगामा खड़ा किया, पर वह जनता के मूड को समझने में विफल रहा। सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर कांग्रेसी बयान उल्टे पड़े। अब लालबत्ती हटाने का फैसला तुरुप का पत्ता साबित हो रहा है। भाजपा के बाहर और शायद भीतर भी, मोदी विरोधियों को इंतज़ार है कि एक ऐसी घड़ी आएगी, जब यह विजय रथ धीमा पड़ेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद मोदी सरकार को सन 2015 में पहले दिल्ली और बाद में बिहार के विधानसभा चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा था। पर इन दो झटकों को छोड़ दें तो और कोई बड़ी विफलता उसे नहीं मिली है। पर उत्तर प्रदेश के परिणामों ने तो गैर-भाजपा विपक्ष के हाथों के तोते उड़ा दिए हैं। उन्हें लगता है कि सन 2019 के चुनाव भी गया बीजेपी की गोद में। हाल में हुए पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद देश के 15 राज्य बीजेपी के झंडे तले आ गए हैं।

Sunday, April 16, 2017

सावधान ‘आप’, आगे खतरा है

एक ट्रक के पीछे लिखा था, ‘कृपया आम आदमी पार्टी की स्पीड से न चलें...।’ आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली की राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव का परिणाम खतरनाक संदेश लेकर आया है। पार्टी इस हार पर ज्यादा चर्चा करने से घबरा रही है। उसे डर है कि अगले हफ्ते होने वाले एमसीडी के चुनावों के परिणाम भी ऐसे ही रहे तो लुटिया डूबना तय है। इसके बाद पार्टी का रथ अचानक ढलान पर उतर जाएगा। लगता है कि ‘नई राजनीति’ का यह प्रयोग बहुत जल्दी मिट्टी में मिलने वाला है।

हाल में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा है कि छह महीने में दिल्ली में एक बार फिर विधानसभा चुनाव होंगे। पता नहीं उन्होंने यह बात क्या सोचकर कही थी, पर यह सच भी हो सकती है। आम आदमी पार्टी का उदय जिस तेजी से हुआ था, वह तेजी उसकी दुश्मन साबित हो रही है। जनता ने उससे काफी बड़े मंसूबे बाँध लिए थे। पर पार्टी सामान्य दलों से भी खराब साबित हुई। उसमें वही लोग शामिल हुए जो मुख्यधारा की राजनीति में सफल नहीं हो पाए थे। हालांकि सन 2015 के चुनाव ने पार्टी को 70 में से 67 विधायक दिए थे, पर अब कितने उसके साथ हैं, कहना मुश्किल है।

Sunday, April 9, 2017

क्या ‘आप’ के अच्छे दिन गए?

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बाद राष्ट्रीय स्तर पर जिस पार्टी के प्रदर्शन का इंतजार था वह है आम आदमी पार्टी। इंतजार इस बात का था कि पंजाब और गोवा में उसका प्रदर्शन कैसा रहेगा। सन 2015 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव में उसकी अभूतपूर्व जीत के बाद सम्भावना इस बात की थी कि यह देश के दूसरे इलाकों में भी प्रवेश करेगी। हालांकि बिहार विधानसभा के चुनाव में उसने सीधे हिस्सा नहीं लिया, पर प्रकारांतर से महागठबंधन का साथ दिया। उत्तर प्रदेश में जाने की शुरूआती सम्भावनाएं बनी थीं, पर अंततः उसका इरादा त्याग दिया। इसकी एक वजह यह थी कि वह पंजाब और गोवा से अपनी नजरें हटाना नहीं चाहती थी।

सन 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे पंजाब में अपेक्षाकृत सफलता मिली थी। यदि उस परिणाम को आधार बनाया जाए तो उसे 33 विधानसभा क्षेत्रों में पहला स्थान मिला था। इस दौरान उसने अपना आधार और बेहतर बनाया था। बहरहाल पिछले महीने आए परिणाम उसके लिए अच्छे साबित नहीं हुए। और अब इस महीने होने वाले दिल्ली नगर निगम चुनावों में इस बात की परीक्षा भी होगी कि सन 2015 की जीत का कितना असर अभी बाकी है। पंजाब में उसकी जीत हुई होती तो दिल्ली में उससे  उत्साह बढ़ता। ऐसा नहीं हुआ।

Sunday, April 2, 2017

प्रश्न प्रदेश में योगी का प्रवेश

आदित्यनाथ योगी की सरकार बनने के बाद से दो या तीन बातों के लिए उत्तर प्रदेश का नाम राष्ट्रीय मीडिया में उछल रहा है। एक, ‘एंटी रोमियो अभियान’, दूसरे बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई और तीसरे बोर्ड की परीक्षा में नकल के खिलाफ अभियान। तीनों अभियानों को लेकर परस्पर विरोधी राय है। एक समझ है कि यह ‘मोरल पुलिसिंग’ है, जो भाजपा की पुरातनपंथी समझ को व्यक्त करती है। पर जनता का एक तबका इसे पसंद भी कर रहा है। सड़क पर निकलने वाली लड़कियों के साथ छेड़-छाड़ की शिकायतें हैं। पर क्या यह अभियान स्त्रियों को सुरक्षा देने का काम कर रहा है? मीडिया में जो वीडियो प्रसारित हो रहे हैं, उन्हें देखकर लगता है कि घर से बाहर जाने वाली लड़कियों को भी अपमानित होना पड़ रहा है। यह तो वैसा ही है जैसे वैलेंटाइन डे पर हुड़दंगी करते हैं। 

इस अभियान को लेकर मिली शिकायतों के बाद प्रशासन ने पुलिस को आगाह किया है कि चाय की दुकानों में खाली बैठे नौजवानों के साथ सख्ती बरतने और मुंडन करने या मुर्गा बनाने जैसी कार्रवाई से बचे। यह मामला हाईकोर्ट तक गया है और लखनऊ खंडपीठ ने इसे सही ठहराया है। अदालत ने कहा-प्रदेश के नागरिकों के लिए संकेत है कि वे भी अनुशासन के लिए अपने बच्चों को शिक्षित करें। उत्तर प्रदेश से प्रेरणा पाकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने यहाँ भी ऐसा ही अभियान चलाने की घोषणा की है।

Monday, March 27, 2017

अब माइक्रो-आतंकी खतरा

पिछले बुधवार को लंदन के वेस्टमिंस्टर इलाके में आतंकी कार्रवाई करके इस्लामी चरमपंथियों ने आतंक फैलाने की जो कोशिश की उसकी गहराई तक जाने की जरूरत है। आतंकी रणनीतिकारों ने कम से कम जोखिम लेकर ज्यादा से ज्यादा पब्लिसिटी हासिल कर ली। उनका यही उद्देश्य था। अमेरिका में 9/11 हमले के बाद आतंकवादियों ने उच्च तकनीक की मदद ली थी। उसका तोड़ वैश्विक पुलिस व्यवस्था ने निकाल लिया। तकनीकी इंटेलिजेंस और हवाई अड्डों की सुरक्षा व्यवस्था में सुधार करके उनकी गतिविधियों को काफी सीमित कर दिया था। अब आतंकवादी जिस रास्ते पर जा रहे हैं उसमें मामूली तकनीक का इस्तेमाल है। इसे विशेषज्ञ माइक्रो-आतंकवाद बता रहे हैं।

लंदन पर हुए हमले के एक दिन बाद बेल्जियम के एंटवर्प शहर में लगभग इसी अंदाज में एक व्यक्ति ने अपनी कार भीड़ पर चढ़ा दी। इस घटना में भी कई लोग घायल हुए और हमलावर पकड़ा गया है। आतंक की इस नई रणनीति पर गौर करने की जरूरत है। लंदन का यह हमला पिछले आठ महीने में पाँचवाँ बड़ा हमला है, जिसमें मोटर वाहन का इस्तेमाल किया गया है।

Sunday, March 19, 2017

बैसाखियों पर कांग्रेस

गोवा और मणिपुर में कांग्रेस से भाजपा में आए विधायकों को पुरस्कार मिले हैं। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी मिलेंगे। दिग्विजय सिंह इसे खरीदना कहते हैं, पर भारतीय राजनीति में यह प्रक्रिया लम्बे अरसे से चल रही है। संयोग से कांग्रेस पार्टी ही इसकी प्रणेता है। देश की राजनीति के ज्यादातर मुहावरे उसके नाम हैं। गोवा में कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने दिया है। उसके तीन विधायक भाजपा सरकार के मंत्री बन गए हैं। तीनों कांग्रेस से आए हैं। तीनों के खिलाफ कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी खड़े नहीं किए थे, क्योंकि उसे लगता था कि चुनाव के बाद ये लोग काम आएंगे। ऐसा नहीं हुआ। यह बात केवल गोवा में ही नहीं देशभर में कांग्रेस की दुर्दशा को रेखांकित करती है।

Sunday, March 12, 2017

भाजपा की बदली भाग्य-रेखा

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी की असाधारण जीत के कारणों का विश्लेषण अभी लम्बे समय तक चलेगा, पर एक बात साफ है कि विरोधी दलों ने यह समझने की कोशिश नहीं की है कि ऐसा हो क्यों रहा है। वे शुद्ध रूप से जातीय और साम्प्रदायिक जोड़-तोड़ के भीतर समस्या का समाधान देख रहे हैं। वे नहीं समझ पा रहे हैं कि वे जिसे समाधान समझ रहे हैं, वह उनकी समस्या है। 
इस जीत का अनुमान नरेन्द्र मोदी को था या नहीं था, कहना मुश्किल है, पर यह अनुमान से कहीं बड़ी है। नरेन्द्र मोदी बहुत बड़े ब्रांड के रूप में उभरे हैं। यह देश मजबूत, दृढ़ और तेजी से फैसला करने वाले नेता को पसंद करता है। जो नेता इस रास्ते पर चलना चाहता है उसके लिए रास्ते भी बना देता है। ऐसा इंदिरा गांधी के साथ हुआ और अब मोदी के साथ हो रहा है। सामान्य वोटर यह मानता है कि कोई काम कर सकता है तो वह मोदी है। 
मोदी के आगमन के दस साल पहले से कांग्रेस पार्टी ने देश के प्रधानमंत्री पद को निरीह और अशक्त बनाकर अपनी राह में जो काँटे बोए थे, वे उसे अनंत काल तक परेशान करेंगे। बहरहाल मोदी के नेतृत्व पर भारी विश्वास के जोखिम भी हैं, पर उन्हें उभरने में वक्त लगेगा। फिलहाल उनकी यह जीत गुजरात और हिमाचल में होने वाले चुनाव के संदर्भ में पार्टी के आत्मविश्वास को बढ़ाएगी। अब जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में भी भाजपा की ताकत बढ़ गई है। सबसे बड़ी बात 2019 के चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश ने अपना दरवाजा भाजपा के लिए खोल दिया है।  

Sunday, March 5, 2017

अतिशय चुनाव के सामाजिक दुष्प्रभाव

बिहार में नरेन्द्र मोदी के प्रति नाराजगी जताने के लिए उनकी तस्वीर पर जूते-चप्पल चलाए गए। इस काम के लिए लोगों को एक मंत्री ने उकसाया था। उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी कुंदन चंद्रावत ने केरल के मुख्यमंत्री पिनारी विजयन का सिर काटकर लाने वाले को इनाम देने की घोषणा की थी, जिसपर उन्हें संघ से निकाल दिया गया है। हाल में कोलकाता की एक मस्जिद के इमाम ने नरेन्द्र मोदी के सिर के बाल और दाढ़ी मूंड़ने वाले को इनाम देने की घोषणा की थी। ये मौलाना इससे पहले तसलीमा नसरीन की गर्दन पर भी इनाम घोषित कर चुके थे।

Sunday, February 26, 2017

नोटबंदी भी एक कसौटी है

हाल के वर्षों में यह नजर आया है कि स्थानीय निकायों के चुनाव भी राज्य और राष्ट्रीय स्तर की राजनीति और जनमत को व्यक्त करते हैं। बंगाल और केरल की राजनीति में यह प्रवृत्ति पहले से देखने को मिलती थी, क्योंकि वामपंथी दल हरेक स्तर पर विचारधारा के साथ सक्रिय रहते हैं। इन राज्यों में ग्राम सभा स्तर तक राजनीतिक दल पहुँच चुके हैं, जबकि एक अरसे तक देश में इस बात पर जोर दिया जाता था कि स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्व राजनीति पहचान के आधार पर नहीं होना चाहिए क्योंकि वहाँ विचारधारा की जगह स्थानीय मुद्दे होते हैं। ये परिणाम स्थानीय निकाय स्तर तक पार्टी के संगठन और नेतृत्व की क्षमता के संकेतक भी होते हैं।

Monday, February 20, 2017

अपनी लगाई आग में जलता पाकिस्तान

गुरुवार की शाम पाकिस्तान में सिंध के सहवान कस्बे की लाल शाहबाज कलंदर दरगाह पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें 88 लोगों के मरने और करीब 200 को घायल होने की खबर है। इस आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने ली है। इस्लामिक स्टेट ने इससे पहले नवम्बर में बलूचिस्तान में एक सूफी दरगाह पर हुए हमले की जिम्मेदारी भी ली थी। पाकिस्तान में इस्लामिक स्टेट की गतिविधियाँ बढ़ती जा रहीं है। हालांकि उसका अपना संगठन वहाँ नहीं है, पर लश्करे-झंगवी जैसे स्थानीय गिरोहों की मदद से वह अपनी जड़ें जमाने में कामयाब हो रहा है।

Sunday, February 12, 2017

राजनीति तुर्की-ब-तुर्की

मुहावरा है तुर्की-ब-तुर्की। जिस अंदाज में बोलेंगे, जवाब उसी अंदाज में मिलेगा। शब्द अमर्यादित नहीं हैं तो उनपर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। साथ ही राजनीति के मैदान में उतरे हैं तो खाल मोटी करनी होगी। किसी पर हमला करें तो जवाब सुनने के लिए तैयार भी रहना चाहिए। लोकसभा और राज्यसभा में प्रधानमंत्री के हाल के भाषण को लेकर कांग्रेस पार्टी ने मर्यादा के सवाल खड़े किए हैं। देर से ही सही मर्यादा का सवाल आया है, पर यह तब जब मनमोहन सिंह पर मोदी ने चुटकी ली। 

Sunday, February 5, 2017

चुनाव में सुनाई पड़ेगी बजट की अनुगूँज

बजट एक राजनीतिक दस्तावेज भी है। सालाना हिसाब-किताब से ज्यादा उसमें की गई नीतियों की घोषणाएं महत्त्वपूर्ण होती हैं। इन बातों का सीधा रिश्ता चुनाव से है। सरकारें चुनाव जीतने के लिए ही काम करती हैं। पाँच राज्यों के चुनाव के ठीक पहले बजट लाने का कांग्रेस ने विरोध ही इसलिए किया था कि सरकार कहीं खुद को ज्यादा बड़ा देश-हितैषी साबित न कर दे। 
पाँचों राज्यों में हो रहे चुनावों में केंद्र सरकार के बजट की अनुगूँज निश्चित रूप से सुनाई पड़ेगी। चुनाव का आगाज ही इसबार नोटबंदी से हुआ है। विपक्ष जहाँ नोटबंदी के मार्फत बीजेपी के दुर्ग में दरार डालना चाहता है वहीं आम बजट का मूल स्वर नोटबंदी के नकारात्मक असर को कम करने का है। 

Sunday, January 29, 2017

इंतजार आर्थिक उछाल का

नोटबंदी के बाद करीब तीन महीने के मंदे के बावजूद लोगों की उम्मीदें सकारात्मक बदलावों पर टिकी हैं। केंद्र सरकार के लिए सन 2019 के चुनाव के पहले अगले दो साल के बजट बेहद महत्वपूर्ण हैं। इसबार का बजट पाँच राज्यों के चुनाव के ठीक पहले है। देखना होगा कि सरकार लोक-लुभावन रास्ता पकड़ेगी या अर्थ-व्यवस्था को सुदृढ़ करते हुए दीर्घकालीन रणनीति का। चूंकि चुनाव के ठीक पहले बजट आ रहा है इसलिए सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग की चेतावनियों की तलवार भी उसपर लटक रही है। पर राजनीति का तकाजा है कि सरकार किसी न किसी रूप में रियायतों का पिटारा खोलेगी। पर देश को इंतजार उस आर्थिक उछाल का है, जिसमें हमारी समस्याओं का समाधान निहित है।